BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, May 10, 2016

उत्तराखंड में हो गयी किरकिरी आगे फिर उत्तर प्रदेश की बारी उत्तराखंड की सत्ता पर डाका डालने में संघ परिवार की करारी हार लोकतंत्र की जीत है संघ परिवार को लगातार शिकस्त देने के अलावा इस देश में आम जनता को मुक्तबाजारी नरंसहार से कोई राहत नहीं मिलने वाली है। यह सिर्फ कांग्रेस या हरीश रावत की जीत नहीं है और इसे भी ज्यादा अभी जिंदा न्यायपालिका की जीत है यह। इस लोकतंत्र को जारी रखने की लड़ाई हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता न हो तो हम समाजिक न्याय और समता की लड़ाई भी नहीं लड़ सकते। यूपी के चुनाव से पहले उत्तराखंड में आस्था वोट के मौके पर कांग्रेस को अपना निर्णायक समर्थन देकर संघ परिवार के मंसूबे पर पानी फेरने के लिए बहन मायावती को बधाई।यूपी में भी संघ परिवार को हराने के लिए बहन जी अगर व्यापक धर्मनिरपेक्ष लोकतातांत्रिक मोर्च का समर्थन कर दें तो यकीनन यूपी में भी हारेगा संघ परिवार। बकौल राजीव नयन बहुगुणाःहाय , हाय , बागी दुर्दशा देखी न जाए ---------------------------------------------- गर्भावस्था के नवें महीने में औरत की , और चुनाव के वर्ष में विधायक की भूख बढ़ जाती है । ऐसे में परिवार का मुखिया उनकी

उत्तराखंड में हो गयी किरकिरी

आगे फिर उत्तर प्रदेश की बारी

उत्तराखंड की सत्ता पर डाका डालने में संघ परिवार की करारी  हार लोकतंत्र की जीत है

संघ परिवार को लगातार शिकस्त देने के अलावा इस देश में आम जनता को मुक्तबाजारी नरंसहार से कोई राहत नहीं मिलने वाली है।


यह सिर्फ कांग्रेस या हरीश रावत की जीत नहीं है और इसे भी ज्यादा अभी जिंदा न्यायपालिका की जीत है यह। इस लोकतंत्र को जारी रखने की लड़ाई हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता न हो तो हम समाजिक न्याय और समता की लड़ाई भी नहीं लड़ सकते।


यूपी के चुनाव से पहले उत्तराखंड में आस्था वोट के मौके पर कांग्रेस को अपना निर्णायक  समर्थन देकर संघ परिवार के मंसूबे पर पानी फेरने के लिए बहन मायावती को बधाई।यूपी में भी संघ परिवार को हराने के लिए बहन जी अगर व्यापक धर्मनिरपेक्ष लोकतातांत्रिक मोर्च का समर्थन कर दें तो यकीनन यूपी में भी हारेगा संघ परिवार।

बकौल राजीव नयन बहुगुणाःहाय , हाय , बागी दुर्दशा देखी न जाए

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गर्भावस्था के नवें महीने में औरत की , और चुनाव के वर्ष में विधायक की भूख बढ़ जाती है । ऐसे में परिवार का मुखिया उनकी भूख का संज्ञान लेते हुए उन्हें पौष्टिक और तरावट वाली चीज़ खिलाये । कचर बचर न खाने दे । घर से भागी हुयी दुघर्या जनानी और विधायक कहीं के नहीं रहते । जग हंसाई तो होती ही है , दूसरा घर भी मुश्किल से मिलता है । पिछला सब छूट जाता है । किसी के बहकावे में कभी अपनी पार्टी , और अपना घर न छोड़ें । दुश्मन के मन की हो जाती है । पनघट पर भी पानी भरने चोरी छुपे जाना पड़ता है । शराबी , कबाबी , बदमाश किस्म के मनुष्यों की पापी नज़र हर वक़्त पीछा करती है ।

पलाश विश्वास

बिहार में हारने के बाद  बंगाल दखल करने के लिए जिस  तेजी से बंगाल का भगवाकरण जारी है,उसके मद्देनजर उत्तराखंड की सत्ता पर डाका डालने में संघ परिवार की हार लोकतंत्र की जीत है और यह सिर्फ कांग्रेस या हरीश रावत की जीत नहीं है और इसे भी ज्यादा अभी जिंदा न्यायपालिका की जीत है यह।


केंद्र की सरकार नागपुर के संघ मुख्यालय से चलाने वाले बजरंगदी ब्रिगेड ने संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध सरकारिया आयोग की तमाम सिफारिशों के उलट केंद्र सरकार पर काबिज राजनिति के अशवमेधी घोड़ों को दिशा दिशा दौड़ाकर राज्य सरकारों का तख्ता पलटने के लिए राष्ट्रपति,राज्यपाल और विधानसभाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पदों के लोकतांत्रक संस्थानों का खत्म करने का जो भगवा उपक्रम शुरु किया है,उसके मद्देनजर यह भारतीय लोकतंत्र और भारत की जनता की बहुत बड़ी जीत है लेकिन यह जीत कभी भी आगे हार में बदलने वाली है यदि हम मोर्चाबंद न हुए तो।


इस लोकतंत्र को जारी रखने की लड़ाई हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता न हो तो हम समाजिक न्याय और समता की लड़ाई भी नहीं लड़ सकते।जाहिर है कि इसीलिए राजनीतिक मोर्चाबंदी में भी हम फीचे हट नहीं सकते।


संघ परिवार को लगातार शिकस्त देने के अलावा इस देश में आम जनता को मुक्तबाजारी नरंसहार से कोई राहत नहीं मिलने वाली है।


उत्तराखंड हमारा घर है और संघ परिवार केखिलाप लोकतांत्रिक मोर्चाबंदी के सात हम खड़े हैं।


यूपी के चुनाव से पहले उत्तराखंड में आस्था वोट के मौके पर कांग्रेस को अपना निर्णायक  समर्थन देकर संघ परिवार के मंसूबे पर पानी फेरने के लिए बहन मायावती को बधाई।


यूपी में भी संघ परिवार को हराने के लिए बहन जी अगर व्यापक धर्मनिरपेक्ष लोकतातांत्रिक मोर्च का समर्थन कर दें तो यकीनन यूपी में भी हारेगा संघ परिवार।


अकेली भी मायावती जीत सकती हैं लेकिन संघ परिवार को कोई भी मौका न देने काअगर इरादा बहुजनसमाज का है,अगर मनुस्मति शासन के खिलाफ  निर्णायक युद्ध छेड़ना सामाजिक क्रांति के लिए अनिवार्य है तो बहन जी,संघ परिवार कोक हराने के लिए यूपी में भी संघ परिवार के खिलाफ बिहार और बंगाल की तर्ज पर साझा लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मोर्चा अनिवार्य है।


इसके बिना राजनीतिक लड़ाई तो क्या ,अराजनीतिक सामाजिक आंदोलन भी करना अब मुश्किल है क्योकिं विश्वविद्यालयों को खत्म करने की महिम में लगी केसरिया मनुस्मृति किसी लोकतांत्रिक संस्थान या किसी लोकतांत्रिक गुंजाइश छोड़ेगी नहीं।


गनीमत है कि राज्यसभा में अभी संघ परिवार का बहुमत नहीं है वरना तमाम कायदा कानून के साथ साथ श्रम कानूनों को खत्म करने के साथ साथ,नागरिकों का सबकुछ हबाजार के हवाले करने के साथसाथ भारतीय संविधान के बजाये संघ परिवार के रामराज्य में मनुस्मृति को ही संविधान का दर्जा दे देती संघ परिवार और यही हिंदुत्व का असल एजंडा है तो बहुजन समाज की राजनीति करने वालों का सबसे बड़ा कार्यभार बाबासाहेब और हमारे पुरखों के हजारों बरसों के महासंग्राम की विरासत आजादी बहाल रखना है और इसके लिए लोकतंत्र के मुकाबले,धर्मनिरपेक्षता के मुकाबले फासिज्म के राजकाज के धारक वाहक संघ परिवार को हराना है।


जबसे उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार गिरी है ,तबसे लगातार हम हरीश रावत और किसोरी उपाध्याय को फोन लगाने की कोशिश कर रहे हैं सिर्फ यह बतलाने के लिए कि हम उनके साथ हैं।


भारतीय संविधान की हत्या करते हुए जिस तरह हरीश रावत की सरकार गिरायी गयी,हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उसका खुलासा हो गया और राष्ट्रपति शासन लागू करने के महामहिम के आदेश की भी धज्जियां बिखर गयी तो हरीश रावत और किशोरी उपाध्याय का इस केसरिया  सुनामी के मुकाबले समर्थन करने के अलावा हमारे पास दूसरा विकल्प नहीं है।


नई दिल्ली में जेएनयू से लेकर हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और कोलकाता के यादवपुर विश्वविद्यालय को बंद कराने की जो बेशर्म भगवा अश्वमेध है,उसके मद्देनजर लोकतंत्र के लिए अब जीवन मरण की लड़ाई है और लोकतंत्र नहीं बचेगा तो फासिज्म के राजकाज और मनुस्मृति शासन में समता और न्याय के नारे बुलंद करने पर भी राष्ट्रद्रोही और माओवादी और उग्रवादी करार दिये जायेंगे।मार दिये जायेंगे कलबर्गी,पनासारे दाभोलकर की तरह।


गौरतलब है कि सरकारिया आयोग का गठन भारत सरकार ने जून १९८३ में किया था। इसके अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश न्यायमूर्तिराजिन्दर सिंह सरकारिया थे। इसका कार्य भारत के केन्द्र-राज्य सम्बन्धों से सम्बन्धित शक्ति-संतुलन पर अपनी संस्तुति देना था।


कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई ने अपनी सरकार की बर्खास्तगी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने के उनके आग्रह को राज्यपाल द्वारा ठुकरा देने के निर्णय पर सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय एक पीठ ने बोम्मई मामले में मार्च 1994 में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संदर्भ में सख्त दिशा-निर्देश तय किए।


न्यायमूर्ति सरकारिया ने केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यों में संवैधानिक मशीनरी ठप हो जाने की स्थितियों की व्यापक समीक्षा की और 1988 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस संदर्भ में समग्र दिशा-निर्देश सामने रखे। उन्होंने कहा कि राज्यपालों की नियुक्ति में मुख्यमंत्रियों से सलाह ली जानी चाहिए। राज्यपालों के पक्षपातपूर्ण आचरण पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। यदि चुनाव में किसी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राज्यपाल को सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। राज्यपालों को राजभवन के लान में विधायकों की गिनती कर किसी दल या गठबंधन के बहुमत के बारे में निर्णय नहीं लेना चाहिए। बहुमत का परीक्षण राज्य विधानसभा में ही होना चाहिए।


सरकारिया आयोग के प्रावधानों के खिलाफ उत्तराखंड में मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने का मौका दिये बिना पिछले दरवाजे से सत्तादखल की कोशिश केंद्र सरकार ने की है।


गौरतलब है कि भाजपा की ही अटल वाजपेयी सराकार के उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने दावा किया था कि 1988 में गठित अंतरराज्यीय परिषद ने सरकारिया आयोग की जिन सिफारिशों को लागू करने के फैसले किये हैं,उनमें से 152का कियान्वन कर दिया गया और 27 सिफारिशों का कार्यान्वयन बाकी है तो 51 सिफारिशे खारिज कर दी।


बिना संसद में बहस कराये हाजोरों कानून गैर जरुरी बताकर बिना उसका ब्यौरा या मसविदा जारी किये बिना  अच्छे दिनों की देशभक्त सरकार ने खारिज  कर दिये तो देश के संघीय ढांचे पर कुठाराघात करने के लिए उत्तराखंड में ही सरकारिया प्रावधानों की धज्जियां उड़ाकर राजसूय आयोदन किया देशभक्तों की सरकार ने।


इन हालात में सामाजिक आंदोलन जारी रखने के लिए एक राष्ट्रवादी फासिज्मविरोधी देशद्रोही सत्ता विरोधी  मोरचे में लोकतंत्र समर्थक सभी विचारधाराओं और सभी सामाजिक शक्तियों का शामिल होना अनिवार्य है।


उत्तराखंड के मौजूदा सियासती माहौल पर हमारे आदरणीय राजीव नयन बहुगुणा ने जो टिप्पणी दो टुक शब्दों में की है, वह सटीक है।कृपया इसे पहले पढ़ लेंः


बकौल राजीव नयन बहुगुणाःहाय , हाय , बागी दुर्दशा देखी न जाए

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गर्भावस्था के नवें महीने में औरत की , और चुनाव के वर्ष में विधायक की भूख बढ़ जाती है । ऐसे में परिवार का मुखिया उनकी भूख का संज्ञान लेते हुए उन्हें पौष्टिक और तरावट वाली चीज़ खिलाये । कचर बचर न खाने दे । घर से भागी हुयी दुघर्या जनानी और विधायक कहीं के नहीं रहते । जग हंसाई तो होती ही है , दूसरा घर भी मुश्किल से मिलता है । पिछला सब छूट जाता है । किसी के बहकावे में कभी अपनी पार्टी , और अपना घर न छोड़ें । दुश्मन के मन की हो जाती है । पनघट पर भी पानी भरने चोरी छुपे जाना पड़ता है । शराबी , कबाबी , बदमाश किस्म के मनुष्यों की पापी नज़र हर वक़्त पीछा करती है ।


मौकापरस्त सियासत पर इससे अच्छी टिप्पणी कोई नहीं हो सकती।


नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के राष्ट्रपति के आदेश की वैधता से लेकर बागी विधायकों की सदस्यता खारिज करने के जो माइलस्टोन फैसले किये हैं,आगे सियासत का जो हो,वह भारतीय गणतंत्र के अभीतक जिंदा रहना के सबसे बड़ा सबूत है।सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों ने फिर अपील की है और आस्था वोट जीतकर मुख्यमंत्री पद पर बहाली के बावजूद उत्तराखंड की राजनीति स्थिरता के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।


सुप्रीम कोर्ट में लिफाफा खुलने के बाद हम फौरी तौर पर कह सकेंगे कि हरीश रावत आस्था वोट जीत गये हैं।हालांकि आंदोलन की पृष्ठभूमि से उनकी राजनीति शुरु होने की वजह से उम्मीद है कि वे किसी भी सूरत में हारने वाले शख्स नहीं है।


मैं कांग्रेसी नहीं हूं और न सियासी हूं और न उत्तराखंड की सियासत पर मेरा कोई दांव है।


जब उत्तराखंड अलग राज्य बना तबतक मैं यूपी से शिफ्ट करके कोलकाता आ चुका था लेकिन मेरा घर उसी उत्तराखंड में है और अपना घर जलता हुआ देखकर हजारों मील दूर बैठे किसी भी इंसान को जो महसूस हो सकता है,वही मुझे महसूस हो रहा है।


उत्तराखंड,छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों का गठन संघ परिवार के केसरिया अश्वमध के एजंडे के मुताबिक हुआ और इन राज्यों के अकूत प्राकृतिक संसाधनों के दम पर पूरे भारत और पूरी दुनिया पर भगवा परचम लहराने का उनका हिंदुत्व कार्यक्रम है।


भगवा सिपाहसालारों के शिकंजे से कभी ये तीनों राज्य मुक्त नहीं हुए।वह विकास के नाम विनाश ही राजकाज राजनीति है।


कहने को तो सलवा जुड़ुम छत्तीसगढ़ की कथा व्यथा है लेकिन हकीकत की जमीन पर हालात उत्तराखंड और झारखंड की भी वही है।सिर्फ सैन्यतंत्र की बूटों की गूंज यहा नहीं है क्योंकि उत्तराखंड में आदिवासी नहीं है और जल जंगल जमीन प्राकृतिक संसाधनों के खुल्ला नीलाम के खिलाफ छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के मुकाबले उत्तराखंड और हिमाचल में कहीं भी कोई प्रतिरोध नहीं है।


सत्ता के दावेदार सारे के सारे थोकदार हैं और बकौल बटरोही थोकदार किसी की नहीं सुनता।जबसे अलग राज्य बना है,इन तोकदारों में घमासान मचा है और विकास की आग अब हिमालय को जलाकर काक कर रहा अनंत दावानल है,तो जिम कार्बेट पार्क से लेकर हिमालयके उत्तुंग शिकर और ग्लेशियर तक धूधू जल रहे हैं।


उत्तराखंड की जनका की हालत बूढ़े थके हुए इकलौते पर्यावरण कर्मी सुंदरलाल बहुगुणा से बेहतर नहीं है कि अपनी नदियों,अपनी घाटियों,अपने शिखरों,अपने ग्लेशियरों,जल जंगल जमीन और अपनी जान माल की हिफाजत के लिए अपने बच्चों के भविष्य के लिए वे कुछ भी कर सकें।


ऐसे राज्य में सत्तासंघर्ष ही एकमात्र हलचल का सबब है और उनकी मौजें भारत भर में सुनामी है और किसी को न केदार जल प्रलय की याद है,न किसी की नजर में सूखे की चपेट में पहाड़ की कोई तस्वीर है और बार बार हो रहे भूकंप की चेतावनियों पर गौर करने की किसी को भी फुरसत नहीं है।


सब अपना अपना हिस्सा समझ लेना चाहते हैं और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार है और भगवा ब्रिगेट तो वैसे ही हिंदुत्व के नाम पर वंदेमातरम और भारत माता की जयजयकार कहते हुए पूरे जदेश को नीलाम कर रहा है तो हिमालय को बख्शने के मूड में वह है ही नहीं।


चुनाव तक का इंतजार नहीं किया और सत्ता पर काबिज होने के लिए संघ परिवार ने अपनी ही  केंद्र सरकार की किरकिरी करा दी।


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