BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, April 20, 2016

संघ परिवार पूरी ताकत झोंककर बंगाल जीत नहीं सकता,कभी नहीं बंगाल में हिंसा के मध्य जो सत्ता समीकरण बन बिगड़ रहे हैं,उससे जनादेश जैसा भी होगा ,वह संघ परिवार के फासिज्म के राजकाज के खिलाफ होगा।रंग चाहे जो हो बंगाल का रंग केसरिया नहीं है और न बजरंगियों की यहां चलने वाली है।पिछले लोकसभा चुनाव से बार बार बंगाल में पेशवाई हमले जारी हैं लोकिन धर्मोन्माद की फसल अभी पैदा ही नहीं हुई है।न यहां जाति की पहचान का कोई मायने है।बाकी देश में ऐसा नहीं है। भारत में फासिज्म के राजकाज के लिए संयुक्त मोर्चे की नींव बंगाल में बन सकती है तो हम इस नरसंहारी अश्वमेधी रंगभेदी वर्ण वर्चस्वी मुक्तबाजार का सही मायने में प्रतिरोध कर सकते हैं। पलाश विश्वास

संघ परिवार पूरी ताकत झोंककर बंगाल जीत नहीं सकता,कभी नहीं

बंगाल में हिंसा के मध्य जो सत्ता समीकरण बन बिगड़ रहे हैं,उससे जनादेश जैसा भी होगा ,वह संघ परिवार के फासिज्म के राजकाज के खिलाफ होगा।रंग चाहे जो हो बंगाल का रंग केसरिया नहीं है और न बजरंगियों की यहां चलने वाली है।पिछले लोकसभा चुनाव से बार बार बंगाल में पेशवाई हमले जारी हैं लोकिन धर्मोन्माद की फसल अभी पैदा ही नहीं हुई है।न यहां जाति की पहचान का कोई मायने है।बाकी देश में ऐसा नहीं है।

भारत में फासिज्म के राजकाज के खिलाफ संयुक्त मोर्चे की नींव बंगाल में बन सकती है तो हम इस नरसंहारी अश्वमेधी रंगभेदी वर्ण वर्चस्वी मुक्तबाजार का सही मायने में प्रतिरोध कर सकते हैं।


पलाश विश्वास



बंगाल में चुनाव हो रहे हैं और हिंसा भी हो रही है।बाकी देश की तरह यहां भी धनबल और बाहुबल दोनों का वर्चस्व है।फिर भी बाकी देश से बंगाल में हो रहा चुनाव अलग है।


हम सत्ता परिवर्तनकी बात नहीं कर रहे हैं और इसे लेकर हमारा कोई सरदर्द नहीं है क्योंकि हम समता और न्याय के आधार पर स्वतंत्र और संप्रभु नागरिकता का लोकतंत्र चाहते  हैं और फासिस्ट औपनिवेशिक राष्ट्र का दमनकारी उत्पीड़क जनविरोधी चरित्र बदलना हमारा मिशन है जो फिर वहीं बाबासाहेब का जाति उन्मूलन का मिशन है क्योंक फासिज्म के इस राजकाज के पीछे मनुस्मृतका मुक्तबाजार है तो इस मुक्तबाजार की नींव जाति व्यवस्था है जिसे वैदिकी सभ्यता बताकर भारत को मध्ययुगीन अंधकार में धकेलने के लिए धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद है।


बंगाल में हिंसा के मध्य जो सत्ता समीकरण बन बिगड़ रहे हैं,उससे जनादेश जैसा भी होगा ,वह संघ परिवार के फासिज्म के राजकाज के खिलाफ होगा।रंग चाहे जो हो बंगाल का रंग केसरिया नहीं है और न बजरंगियों की यहां चलने वाली है।


पिछले लोकसभा चुनाव से बार बार बंगाल में पेशवाई हमले जारी हैं लोकिन धर्मोन्माद की फसल अभी पैदा ही नहीं हुई है।न यहां जाति की पहचान का कोई मायने है।बाकी देश में ऐसा नहीं है।


बंगाल बुद्धमय रहा है ग्यारहवीं शताब्दी तलक और धर्म चाहे किसी का कुछ भी हो,उनके पुरखे कमसकम ग्यारहवीं शताब्दी तक गौतम बुद्ध के अनुयायी रहे हैं जबकि बाकी भारत में गौतम बुद्ध के के धम्म का  पुष्यमित्र शुंग के राजकाज के साथ ही खत्म हो गया था।बंगाल में वैदिकी सभ्यता कभी नहीं रही है और हिंदूकरण के बावजूद यहां उपनिषद,चार्वाक और लोकायत लोक की संस्कृति फिर साधु संत बाउल पीर फकीर की साझा विरासत है।


यह जमीन नवजागरण के समाज सुधारों से जितनी पकी है उससे ज्यादा खुशबू यहां आदिवासी किसानों की साम्राज्यवाद और सामंत वाद के के खिलाफ लगातार खिलने वाले बगावत और बलिदान के फूलों से है।वैदिकी सभ्यता के ब्राह्मणवाद के मुकाबले भारत में रहने वाले तमाम नस्लों की मनुष्यता के लोकविरासत की यह जमीन है।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी बंगाल का .योगदान देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले कम नहीं है।तो फासिज्म के खिलाफ उसका प्रतिरोध भी निर्णायक साबित होने जा रहा है।


बंगाल में पंचशील का अनुशीलन भले अब न होता हो लेकिन धर्म और जाति के नाम मारकाट उस तरह नहीं है ,जैसे बाकी देश में है।


न यहां मंडल या कमंडल का गृहयुद्ध है,इसी वजह से शीर्ष स्तर पर सत्ता के तमाम रंग बिरंगे तमाशे के बावजूद विष वृक्ष की केती यहां होती नहीं है और दल मत निर्विशेष जाति धर्म निर्विशेष बंगाल में जनता का मोर्चा फासिज्म के खिलाफ है।


गौरतलब है कि बंगाल में आजादी के नारों पर रोक नहीं है और मनुस्मृति के हक में कोई नहीं है और विवाह और दहेज के लिए प्रताड़ना बाकी देश के मुकाबले कम है।विवाह संबंधों के लिए जाति गोत्र धर्म बंगाल में अब निर्मायक नहीं है और इसीलिए जाति और धर्म की दीवारें उतनी मजबूत नहीं है।


संघ परिवार पूरी ताकत झोंककर बंगाल जीत नहीं सकता और यहां सत्ता चाहे किसी की हो,फासिज्म और साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई तेज से तेज होती रहेगी।


भारत में फासिज्म के राजकाज के लिए संयुक्त मोर्चे की नींव बंगाल में बन सकती है तो हम इस नरसंहारी अश्वमेधी रंगभेदी वर्ण वर्चस्वी मुक्तबाजार का सही मायने में प्रतिरोध कर सकते हैं।


जो भी जीते या हारे बंगाल में फासिज्म की हार तय है।


इस मोर्चाबंदी को देश व्यापी बनाने की आज सबसे ज्यादा जरुरत है और यह जरुरत धार्मिक लोगों को सबसे ज्यादा,बहुसंख्य हिंदुओं को सबसे ज्यादामहसूस करनाचाहिए क्योंकि धर्म के नाम पर अधर्म का बोलबाला है और धर्म संकट में है।


बंगाल में दुर्गापूजा यहां की संस्कृति में शामिल हो गयी है जो कुल मिलाकर मातृत्व का उत्सव है क्योंकि बंगाल में अब भी समाज में स्त्री का स्थान आदरणीय है और समाज व परिवार में उनकी भूमिका पुरुषों से कम महत्वपूर्ण नहीं है।


यहां भी महिषासुर का वध होता है लेकिन महिषासुर दुर्गापूजा में वध्य है तो यहां नस्ली तौर पर दुर्गा भक्त असुरों के वंशज भी हैं।


इसलिए दुर्गा मां का अवाहन करके दुर्गाभक्तों के जरिये धर्मोन्मादी राजनीति की कोई खिड़की खोलने में नाकाम है मनुस्मृति।


क्योंकि महिषासुर वध की कथा के मुकाबले दुर्गा की मायके में आयी बेटी का मिथक ज्यादा प्रबल है।


देवी का विसर्जन इसलिए बिटिया की विदाई है,जहां महिषासुर का प्रसंग प्रासंगिरक है ही नहीं।


गौतम बुद्ध जैसा क्रांतिकारी दुनिया के इतिहास में दूसरा मिलना असंभव है,जिनने बिना रक्तपात सत्य और अहिसां की नींव पर समता और न्याय पर आधारित वर्गहीन शोषणविहीन समाज का निर्माण कर दिखाया।


भले ही भारत अब बौद्धमय नहीं रहा लेकिन भारतीय संस्कृति धार्मिक पहचान के आरपार उसी माहन क्रांतिकारी की विरासत की वजह से अब भी इंसानियत का मुल्क है विभिन् नस्लों और रक्तधाराओं के विलय से बना बहुलता विविधता सहअस्तित्व और सहिष्णुता,साझे चूल्हे का यह भारत तीर्थ।


कविगुरु रवींद्रनाथ की कविताओं में जहां बुद्धं शरणं गच्छामि की गूंज है तो गांधी के नेतृत्व में पूरा देश एकताबद्ध होकर भारत की स्वतत्रता के लिए जो ऐतिहासिक लड़ाई की,उसका मूल मंत्र फिर वही सत्य और अहिंसा है।जो परम आस्थावान थे तो कट्टर हिंदी भी थे और पंचशील गांधी दर्शन की नींव है।


इसीतरह जिन बाबासाहेब के मिशनकी बात हम करते हैं ,वे भी भारत को बौद्धमय बनाने का संकल्प लेकर जिये और मरे और उनसे कोई बेहतर नहीं जनाता रहा होगा कि गौतम बुद्ध के रास्ते से ही समता और न्याय की मंजिल हासिल होगी।


बाबासाहेब अछूत थे लेकिन भोगी हुई अस्पृश्यता उनकी आपबीती नहीं है और वे इस अस्पृश्यता के विरुद्ध जाति उन्मूलन के लिए अपना पूरा जीवन होम कर दिया।


गौतम बुद्ध अछूत नहीं थे और वे राजकुमार थे।


जनमजात पहचान और हैसियत के दायरे तोड़कर जो क्रांति उनने की,भारत में बौद्धमत के अवसान के बावजूद दुनिया की एक बड़ी आबादी अब भी बुद्ध के अनुयायी हैं और जाति धर्म निर्विशेष दुनियाभर में जो भी सामाजिक क्रांति करते हैं,वे गौतम बुद्ध के धम्म का अनुसरण और अनुशीलन के जरिये ही परिवर्तन का रास्ता बनाते हैं।


इसीलिए साम्राज्यवादी अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के कंठस्वर में भी हमें गौतम बुद्ध के दर्शन की गूंज सुनायी पड़ती है तो नेल्सन मंडेला ने गांधी की तरह सत्य और अहिंसा के मार्ग पर ही दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का अंत किया।


भारत में ब्रिटिश राज के अवसान के बाद रंगभेद नहीं है लोकिन जनमजात जाति व्यवस्था रंगभेद से भयानक है और मुक्तबाजार की अर्थव्यवस्था की जनसंहारी धर्मोन्मादी सियासत रंगभेद और फासिज्म का मिला जुला घातक रसायन है।


इस बिंदू पर हमें फिर सोचना है कि जाति धर्म भाषा नस्ल क्षेत्र की पहचान के आधार पर हम इस मुक्तबाजार,इस रंगभेद और इस फासिज्म का मुकाबला कैसे कर सकते हैं।


इस देश के बहुजन सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य का हवाला अपनी विरासत बतौर अमूमन पेश करते हैं।


उस इतिहास की परख करके हमें भविष्य का रास्ता तय करना चाहिए वरना उस विरासत का कोई मतलब नहीं है।


भारतीय इतिहास की सही समझ के बिना हम आगे एककदम भी नहीं बढ़ सकते और इसलिए हम गुरुजी की रामकथा जैसे बांच रहे हैं वैसेही इतिहास पर उनकी कक्षा लगा रहे हैं।


भारत में चंद्रगुप्त मोर्य नामक कोई नेतृत्व बहुजनों को कभी नहीं मिलता अगर उनके पीछे चाणक्य नहीं होते,जो ब्राह्मण हैं।


संजोग से ताराचंद्र त्रिपाठी ब्राह्मण भी हैं और हमारी तरह नास्तिक तो कतई नहीं है।फिरभी उनकी आस्था अंध नहीं है और आज हस्तक्षेप पर लगी उनकी कक्षा में भारतीय संस्कृति और ब्राह्मणवाद के अवरोध पर जिस ईमानदारी से चर्चा हुई है,उसपरबहुजनों को खासद्यानदेने की जरुरत होती है।


वैसे भी गुरु की कोई जात नहीं होती है और ज्ञान का कोई धर्म नहीं होता।वैदिकी हिंसा के ब्राह्मणवाद और जनता के उपनिषद भित्तिक लोक संस्कृति की जमीन औरशोषण,दमन उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध की जमीन को पहचानने के लिए हस्तक्षेप पर गुरुजी की कक्षा में शामल जरुर हैं।



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