BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, December 24, 2015

जापान के इतने द्रुत और सुव्यवस्थित विकास के मूल में संकल्प, प्रतिबद्धता, निष्ठा और अनुशासन का बहुत बड़ा योगदान है। स्वाधीनता के साठ वर्ष बाद भी हम यह कहते आ रहे हैं कि उच्च स्तर पर भारतीय भाषाओं में सुचारु रूप से विज्ञान की शिक्षा देना संभव नहीं है पर जापान में अपनी भाषा में सारी शिक्षा व्यवस्था चल रही है।


TaraChandra Tripathi


जापान के इतने द्रुत और सुव्यवस्थित विकास के मूल में संकल्प, प्रतिबद्धता, निष्ठा और अनुशासन का बहुत बड़ा योगदान है। स्वाधीनता के साठ वर्ष बाद भी हम यह कहते आ रहे हैं कि उच्च स्तर पर भारतीय भाषाओं में सुचारु रूप से विज्ञान की शिक्षा देना संभव नहीं है पर जापान में अपनी भाषा में सारी शिक्षा व्यवस्था चल रही है। 
हमारी तो भाषा भी उसी परिवार की है जिस परिवार की भाषा अंग्रेजी है। हमारी लिपि अंग्रेजी से अधिक व्यवस्थित है। व्याकरण विश्व का सर्वोत्तम व्याकरण माना जाता है। इनकी तो लिपि भी विचित्र और कठिन है। एक ही वाक्य में कंजी (चीनी चित्र लिपि), और अन्य भाषाओं के शब्दों को लिखने के लिए प्रयुक्त होने वाली ध्वनिमूलक कताकना और हीरागना लिपियों का उपयोग करना पड़ता है। शब्दों के एक-एक अक्षर को बनाने में कभी-कभी तेरह-चौदह रेखाओं का संयोजन होता है। इस पर भी यह कहीं आड़े ढंग से लिखी जाती है तो कहीं लंबवत्। इतना होने पर भी यह देश शैक्षिक और आर्थिक प्रगति के मामले में यदि अग्रणी है तो इसका एकमात्र कारण जापान की सरकार का दृढ़ संकल्प है।
एक मामले में आज हम अवश्य उतने ही आगे हैं, जितने बौद्ध धर्म के प्रसार के समय आगे थे। वह है सूचना विज्ञान और तकनीकी का क्षेत्र। कल तक हमको हेय समझने वाले देशों में भी हमारे युवकों के तकनीकी कौशल की तूती बोल रही है। आज जापान में भारतीयों को यदि सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है तो केवल उसकी तकनीकी विशेषज्ञता के कारण । पुराने लोग यदि इंदो (भारतीय) कहने पर भगवान बुद्ध के देश को याद करते हैं तो नये लोग नारायणमूर्ति के देश को। लेकिन हमारे देशभक्त कर्णधार वोट-बैंक के चक्कर में आरक्षण का पलीता लगा कर इस उपलब्धि को उड़ा देने पर तुले हुए हैं। 
भाषा और लिपिगत कठिनाइयों के होने पर भी वर्षों से अन्य भाषाओं की उत्कृष्ट पुस्तकों के जापानी अनुवाद का कार्य तूफानी गति से चल रहा है। यदि आज विदेशी भाषा में विज्ञान पर कोई पुस्तक निकलती है तो कल उसका जापानी संस्करण निकल आता है। किसी भी पुस्तक विक्रेता की दूकान में चले जाइये, अंग्रेजी या विदेशी भाषाओं की कोई पुस्तक मिलेगी ही नहीं, पर उसका जापानी संस्करण अवश्य मिल जायेगा। 
तोक्यो में अंग्रेजी में पुस्तकों की उपलब्धता के बारे में इंटरनेट पर खोज की तो इसके उपनगर कांदा में एक पुस्तक विक्रेता के पास अंग्रेजी पुस्तकों की उपलब्धता का पता लगा। जाने पर देखा, इस विशाल पुस्तक भंडार में भी केवल पाँचवीं मंजिल पर थोड़ी सी अंग्रेजी की पुस्तकें उपलब्ध हैं जिनमें अधिकतर विदेशी विद्वानों द्वारा जापान पर लिखी गयी पुस्तकें ही हैं। 
यह उस विकलांग देश का हाल है जिसकी सत्तर प्रतिशत भूमि जंगलों के अलावा किसी काम की नहीं है। चौदह प्रतिशत पर नगर बसे हैं। सात प्रतिशत पर सड़कें और रेल लाइनें हैं। यदि केवल नौ प्रतिशत पर यह सारी चमाचम है तो सब कुछ होते हुए भी हमारी यह दुर्दशा क्यों है? उत्तर कुमाउनी की जैक बिगड़ बुड़ वीक बिगड़ कुड़ उक्ति में छिपा हुआ है।
इस देश की आश्चर्यजनक उन्नति का दूसरा कारण नागरिकों की राष्ट्रनिष्ठा में निहित है। हर कदम पर इस निष्ठा के दर्शन होते हैं। योजनाकर्ताओं ने हर योजना पर न केवल सूक्ष्मता से विचार किया है अपितु उसे क्रियान्वित भी किया है तो जापानी नागरिक भी सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा अपना दायित्व समझता है। प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से हमारी अपेक्षा अत्यंत दीन इस देश से प्रचुरता और विकास के मामले में हम अगले सौ साल में भी बराबरी कर सकेंगे, ऐसा नहीं लगता।

(मेरी पुस्तक 'वह अविस्मरणीय देश' से )



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