BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, July 28, 2015

याकूब मेमन की फांसी पर रिहाई मंच ने उठाए पांच सवाल


Rihai Manch Press Note- याकूब मेमन की फांसी पर रिहाई मंच ने उठाए पांच सवाल

Rihai Manch
For Resistance Against Repression
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याकूब मेमन की फांसी पर रिहाई मंच ने उठाए पांच सवाल
मुलायम, मायावती, लाूल, नीतीश याकूब मेमन की फांसी पर अपनी स्थिति करें
स्पष्ट- रिहाई मंच

लखनऊ, 28 जुलाई 2015। रिहाई मंच ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के
सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सिविल सोसाइटी के बड़े हिस्से द्वारा याकूब
मेमन की फांसी की सजा रद्द किए जाने की मांग के बावजूद अगर उसे फांसी दी
जाती है तो इसे भारतीय लोकतंत्र द्वारा दिन दहाड़े की इंसाफ की हत्या
माना जाएगा। मंच ने सपा, बसपा, कांग्रेस, राजद, जदयू समेत कथित
धर्मनिरपेक्ष दलों से इस मसले पर संसद में अपनी स्थिति स्पष्ट करने की
मांग की है।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जस्टिस काटजू का यह कहना कि
टाडा अदालत के फैसले में याकूब के खिलाफ सबूत बहुत कमजोर हैं तथा इससे यह
भी अंदाजा लगता है कि उसने जो कुछ भी कहा है वह पुलिसिया टार्चर के कारण
कहा है, इस पूरे मुकदमें को ही कटघरे में खड़ा कर देता है। इसके फैसले को
खारिज किया जाना न्याय व्यवस्था में लोगों के यकीन को बचाने के लिए जरुरी
है। उन्होंने कहा कि याकूब मामले में उसे कानूनी तौर पर प्राप्त राहत के
सभी विकल्पों के खत्म होने से पहले ही उसके खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिए
जाने जैसी गैरकानूनी कार्रवाई के अलावां भी कई कारण हैं जिसके चलते उसे
फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता।

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने याकूब मेमन की फांसी को लेकर पांच सवाल उठाए।

पहला- याकूब मेमन की गिरफ्तारी के दावों पर ही गंभीर अंतर्विरोध है। जहां
सीबीआई ने उसे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़ने का दावा किया था तो वहीं
उसके और तत्कालीन खुफिया अधिकारी बी रामन के मुताबिक उसे नेपाल से उठाया
गया था।

दूसरा- याकूब की सजा का आधार जिन छह सह आरोपियों का बयान बनाया गया है
उसमें से पांच अपने बयान से मुकर चुके हैं। यहां सवाल उठता है कि जो लोग
अपने बयान से पलट चुके हों उनके बयान के आधार पर किसी को फांसी तो दूर,
साधारण सजा भी कैसे दी जा सकती है?

तीसरा- यह भी सामान्य समझ से बाहर है कि जब बम प्लांट करने वाले आरोपियों
की सजाएं उम्र कैद में बदल दी गईं तो फिर कथित तौर पर घटना के आर्थिक
सहयोगी के नाम पर, जिससे उसने इंकार किया है, को फांसी की सजा कैसे दी
सकती है?

चैथा- जब वह इस मामले का एक मात्र गवाह है जिसनें जांच एजेंसियों को
सहयोग करते हुए तथ्य मुहैया कराए तब उसे कैसे फांसी की सजा दी जा सकती
है? क्योंकि किसी भी न्यायिक प्रक्रिया में मुख्य गवाह जो जांच एजेंसी या
उसे पकड़ने वाली एजेंसी के कहने पर गवाह बना हो को फांसी देने का परंपरा
नहीं है। अगर ऐसा होता है तो इसे उस शक्स के साथ किया गया धोखा ही माना
जाएगा। यानी अगर याकूब फांसी पर चढ़ाया जाता है तो यह विधि सम्मत फांसी
होने के बजाए धोखे से किया गया फर्जी एनकाउंटर है जो पुलिस द्वारा रात के
अंधेरे में किए गए फर्जी एनकाउंटर से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि इसे पूरी
दुनिया के सामने अदालत द्वारा अंजाम दिया गया होगा।

पांचवा- जब याकूब मेमन को भारत लाने वाले राॅ अधिकारी रामन यह कह चुके
हैं कि इस मुकदमें में अभियोजन पक्ष ने याकूब से जुड़े तथ्यों को
न्यायपालिका के समक्ष ठीक से रखा ही नही ंतो क्या अभियोजन पक्ष द्वारा
मुकदमें के दौरान रखे गए तथ्यों और दलीलों को सही मानकर दिए गए पोटा
अदालत का फैसला खुद ब खुद कटघरे में नहीं आ जाता? वहीं याकूब जब पुलिस की
हिरासत में आ गया था और वह अपने परिवार को करांची से भारत लाने के नाम पर
गवाह बना तो ऐसे में यह भी सवाल है कि याकूब ने जो गवाही दी वह मुंबई
धमाकों से जुड़े तथ्य थे या फिर पुलिसिया कहानी थी। दरअसल होना तो यह
चाहिए कि बी रामन के लेख की रोशनी में अभियोजन पक्ष द्वारा तथ्य को छुपाए
जाने, उन्हें तोड़ मरोड़कर अदालत में रखने उनके द्वारा आरोपियों से बयान
लेने के लिए इस्तेमाल किए गए गैर कानूनी तौर तरीकों जिसका जिक्र जस्टिस
काटजू ने भी अपने बयान में किया है, की जांच कराई जाए। यह जांच इसलिए भी
जरुरी है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के वकील उज्जवल निकम रहे हैं जो
कसाब मामले में मीडीया में उसके खिलाफ झूठे बयान देने कि वह बिरयानी की
मांग करता था स्वीकार कर चुके हैं।

वहीं रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि जिस तरह फांसी के पक्ष
में संघ गिरोह माहौल बना रहा है उससे साफ है कि सरकार और भगवा ब्रिग्रेड
मीडिया ट्रायल के जरिए एक कम कसूरवार व्यक्ति का दानवीकरण कर उसे सिर्फ
मुस्लिम होने के नाते फांसी पर लटकाकर बहुंसंख्यक हिंदू समाज के
सांप्रदायिक हिस्से को खुश करना चाहता है। उन्होंने कहा कि याकूब पर
अदालती फैसले ने इस छुपी हुई सच्चाई को बाहर ला दिया है कि हमारी न्याय
व्यवस्था आतंकवाद को धर्म के चश्मे से देखती है। जो मुस्लिम आरोपी को
फांसी देने में यकीन रखती है और असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा, बाबू बजरंगी,
माया कोडनानी, कर्नल पुरोहित जैसे आतंकवाद के हिंदू आरोपियों को जमानत
दिया जाना जरुरी समझती है।

रिहाई मंच नेता ने कहा कि मेमन की फांसी के सवाल पर सपा, बसपा, राजद,
जदयू जैसी कथित सेक्युलर पार्टियों की खामोशी साबित करती है कि वह इस
मसले पर वह संघ व भाजपा से अलग राय नहीं रखती।

द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम
(प्रवक्ता, रिहाई मंच)
09415254919
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