BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, July 20, 2012

जेल में बंद बेटे की मां ने सुनायी एक दास्तान

जेल में बंद बेटे की मां ने सुनायी एक दास्तान



मैं अपने बेटे का हाथ छूने के लिए बेचैन थी.लेकिन मैं उस कांच की दीवार को ही छू पाती थी जो मेरे और मेरे बेटे के बीच में थी.सिर्फ एक मां ही इस दर्द को समझ सकती है.इस ग्लास पार्टीशन को हटाने के लिए हमें पुनः कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने इस कांच की दीवार में एक छोटा छेद कर दिया.यह छेद इतना छोटा था कि उसमें मैं अपने बेटे की उंगली के पोर को ही छू सकती थी.हमने दुबारा कोर्ट में पेटीशन डाली.तब जाकर कांच के पार्टीशन को हटाया गया...

राजीव गाँधी की हत्या में सजायाफ्ता जी. पेरारिवालान उर्फ़ अरियू की मां का पत्रकार शाहीना को दिया वक्तव्य, अनुवाद - कृति 

राजीव गांधी की हत्या के 20 दिन बाद 11 जून 1991 की आधी रात को पुलिस ने जोलारपेट्टई में हमारे घर पर धावा बोला.लिट्टे के नेता प्रभाकरन की एक फोटो टीवी के ऊपर रखी हुयी थी.पुलिस ने उसे जांचा परखा.नलिनी के भाई भाग्यनाथन द्वारा भेजे गए पत्रों के बण्डल से उन्होंने कुछ पत्र रख लिए.(नलिनी इस राजीव हत्याकांड केस में मुख्य अभियुक्त है और आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रही है) मेरे पति कविताएं लिखते थे.जो भाग्यनाथन के प्रेस मे छपतीं थीं.और उपरोक्त पत्र उन कविताओं के प्रकाशन से सम्बन्धित थे.

पुलिस ने कहा कि वे पत्रों को अपने साथ ले जा रहे हैं.वापस जाने से पहले पुलिस ने पूछा कि अरियू (पेरारिवलन को इसी नाम से जाना जाता है) कहां है? उस वक्त अरियू चेन्नई में था जहां वह इलेक्ट्रानिक्स में डिप्लोमा कर रहा था.हमने उनसे वादा किया कि हम उसे आपके सामने पेश करेंगे.उन्होंने हमें अदयार में मल्लीगाई भवन का पता दिया जो उस वक्त स्पेशल टीम का हेडक्वार्टर था.दूसरे दिन मैं अरियू को लेने चेन्नई गयी.

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अरियु की मां : दरकती जिंदगी की दास्तान

वह उस वक्त द्रविड़ कड़गम (डीके) के आफिस में रह रहा था.घर पर हुए पुलिस के रेड के बारे में जानकर वह आश्चर्य में डूब गया.हम पेरियार के अनुयायी हैं.(ईवी रामास्वामी जिन्हें थन्थाई पेरियार भी कहा जाता है, जिसका मतलब है अच्छे पिता) पेरियार तमिलनाडु में द्रविड़ आन्दोलन के संस्थापक हैं.

द्रविड़ कड़गम उन्हीं के द्वारा स्थापित की गयी थी और यह डीमके और एआईएडीमके की मातृ पार्टी है.डीके आफिस में लोगों ने सुझाव दिया कि अरियू को दूसरे दिन सुबह सीबीआई आफिस में पेश होना चाहिए और निश्चित रूप से शाम तक उसे रिहा कर दिया जाएगा.हम कुछ खरीदने के लिए बाहर निकले.और जब हम आफिस पहुंचे तो पुलिस वहां मेरे पति के साथ हमारा इन्तजार कर रही थी.मेरे पति को उन्होंने घर से उठाया था.उन्होंने अरियू को हिरासत में ले लिया.और दूसरे दिन उसे छोड़ देने का वादा किया.यह अन्तिम दिन था जब मैंने अपने बेटे को आजाद देखा था.तबसे आज तक बीस साल गुजर गए हैं.

दूसरे दिन मल्लीगाई भवन में हम बेटे से मिलने गए.लेकिन उन्होंने मुझे मेरे बेटे से मिलने देने से मना कर दिया.उन्होंने कहा कि पूछताछ अभी खत्म नहीं हुयी है.अन्ततः 18 जून को उसकी गिरफ्तारी दर्ज कर ली गयी.हालांकि वह 11 जून से ही पुलिस की हिरासत में था.यानी वह पूरे एक हफ्ते गैरकानूनी हिरासत में रहा.

जब मैं बाहर उससे मुलाकात का इन्तजार कर रही थी, तो मुझे रत्ती भर अहसास नहीं था कि मेरे बेटे को ठीक उसी वक्त अन्दर यातना दी जा रही थी.हम वहां दूसरे दिन पुनः पहुंचे.मुझे देख कर पुलिस वाले काफी गुस्से में आ गए.और मुझे वकील के साथ आने को कहा.मुझे समझ नहीं आया कि मेरे बच्चे ने क्या गलत किया है और मुझे वकील की आवश्यकता क्यों है? एक हफ्ते बाद अखबारों से पता चला कि मेरे बेटे अरियू को पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

हमें नहीं समझ में आया कि सबसे पहले हमें क्या करना चाहिए? पुलिस, कानून, कचहरी ये सब हमारे लिए एकदम नए थे.एक वकील ने जो द्रविड़कड़गम का कार्यकर्ता भी था, हमें बताया कि अरियू को टाडा के तहत गिरफ्तार किया गया है.और टाडा के तहत हमारे सारे अधिकार निलम्बित हो जाते हैं.यातना के द्वारा मेरे बेटे से अपराध स्वीकरण (कन्फेशन स्टेटमेंट) लिया गया.उसे चेंगलपेट्टू में टाडा स्पेशल कोर्ट में प्रस्तुत किया गया.

जब हम उसे देखने पहुंचे तो उसका चेहरा एक अपराधी की तरह नकाब से ढका हुआ था.मैं इस दृश्य को देख नहीं सकी और मैं चिल्लाने लगी.वहां खड़े पुलिस वालों पर मैं चीखने लगी.उन्होंने मुझसे कहा कि अपने बेटे से मिलने के लिए दूसरे दिन हम एसआईटी हेडक्वार्टर जाएं.दूसरे दिन हम वहां गए.और अन्ततः हमें अन्दर जाने दिया गया.मैंने अपने बेटे को देखा.मैंने उसके हाथों को छुआ.मैं कुछ नहीं बोल सकी.एक भी शब्द मेरे मुंह से नहीं निकला.

जिस दिन हमने अरियू को पुलिस के हवाले किया था, उसके पहले मैं अन्य महिलाओं की तरह एक साधारण महिला थी जो अपने परिवार से बंधी हुयी थी.ज्यादातर समय मैं अपने घर ही रहती थी.मैं अपने बच्चों और पति के लिए खाना बनाती थी.मैं कभी अकेले बाहर नहीं जाती थी.बाहर जाते वक्त हमेशा मेरे पति मेरे साथ होते थे.

मेरे बेटे की गिरफ्तारी के साथ ही सबकुछ बदल गया.मैं लोगों से सहायता मांगने के लिए दूर-दूर यात्राएं करने लगी.घर पर मैं बहुत कम रह पाती थी.ज्यादातर समय चेन्नई में अपने वकील से मिलने जाने में बीत जाता था.अकेले ही न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर (सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व प्रसिद्ध जज जो इस वक्त मृत्युदण्ड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण अभियान चला रहे हैं) से मिलने केरल गयी.

धीरे-धीरे मैं सभी चीजों से परिचित होती गयी-पुलिस, कोर्ट, पुलिस स्टेशन, जेल आदि.मेरे पति डाइबिटीज और हाईब्लडप्रेशर के मरीज हैं.चूँकि ज्यादातर समय मेरा बाहर गुजरता है इस लिए मैं उनके लिए खाना नहीं बना पाती और उनका ध्यान नहीं रख पाती.इस कारण वह मेरी बड़ी बेटी के घर चले गए.मुकदमे की कार्यवाई के दौरान मैं प्रतिदिन टाडा कोर्ट जाया करती थी.परन्तु मुझे अन्दर नहीं जाने दिया जाता था.मुझे बताया गया कि मेरे वकील से भी अन्दर जाने का अधिकार छीना जा सकता है.टाडा का यही मतलब था.

एसआईटी हेड क्वार्टर ने उस मुलाकात के बाद मैंने अपने बेटे को अगली बार चेंगलपेट्टू जेल में देखा.इस दरमियान एक लम्बा वक्त गुजर चुका था.मुकदमे की कार्यवाई के दौरान ही उसे सजायाफ्ता कैदी की वर्दी पहना दी गयी थी.मैंने जब उसे उस वर्दी में यानी सफेद शर्ट और सफेद पैंट में देखा तो मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक सकी.

इसे तभी बदला गया जब मेरे वकील ने कोर्ट में एक पेटीशन लगायी.हर छोटी से छोटी चीज के लिए हमें कोर्ट जाना पड़ता था.शुरुआत में जेल के मुलाकाती कक्ष में फाइबर ग्लास का एक पार्टीशन रहता था जो कैदी और उसको मिलने वाले को अलग करता था.बातचीत करने के लिए हमें हेड फोन दिया जाता था जिसकी आवाज बहुत खराब थी.मैं अपने बेटे का हाथ छूने के लिए बेचैन थी.लेकिन मैं उस कांच की दीवार को ही छू पाती थी जो मेरे और मेरे बेटे के बीच में थी.सिर्फ एक मां ही इस दर्द को समझ सकती है.इस ग्लास पार्टीशन को हटाने के लिए हमें पुनः कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने इस कांच की दीवार में एक छोटा छेद कर दिया.यह छेद इतना छोटा था कि उसमें मैं अपने बेटे की उंगली के पोर को ही छू सकती थी.हमने दुबारा कोर्ट में पेटीशन डाली.तब जाकर कांच के पार्टीशन को हटाया गया.

मुकदमे की कार्यवाई के दौरान मैं जिस पीड़ा से गुजरी उसे बयान नहीं कर सकती.8 सालों तक मैं अपने बेटे का चेहरा नहीं देख सकी थी.उसे एकान्त सेल में रखा गया था.उसकी सेल के ऊपर की छोटी खिड़की के माध्यम से ही उसे हमसे बात करने की इजाजत थी.उसका चेहरा देखने के लिए मुझे काफी उचकना पड़ता था.लेकिन फिर भी उसका चेहरा देखना बहुत मुश्किल होता था.अक्सर तो मुझे उससे मिलने ही नहीं दिया जाता था.मुझे घंटों गेट के बाहर इन्तजार करना पड़ता था.कई बार मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगती थी और कई बार मैं जेल के अधिकारियों पर चीखने लगती थी.

पिछले 20 सालों में उससे मिलने वक्त मैंने अपने बेटे से यह कभी नहीं पूछा कि उसने कुछ खाया है या नहीं.मैं कभी यह पूछने का साहस न कर सकी.हर वक्त जब मैं खाना खाती हूं तो मेरा पेट यह सोच कर जलने लगता है कि मेरे बेटे ने कुछ खाया भी है या नहीं . अरियू की बड़ी बहन ग्रामीण विकास विभाग में काम करती है और उसकी छोटी बहन अन्नामलाई विश्वविद्यालय मे लेक्चरर है.मुकदमें के दौरान हो रहे खर्च के लिए इनकी आय ही हमारा मुख्य स्रोत है.

हर बार जब निर्णय आया, पहले टाडा कोर्ट की तरफ से फिर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से और फिर राष्ट्रपति की तरफ से (दया याचिका खारिज करने के रूप में ), तो हर बार मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी अपनी हत्या हो गयी हो.राष्ट्रपति ने जब दया याचिका खारिज की तो उसके बाद न मैं सो सकी और न ही कुछ खा सकी.मैं अपने बेटे की जिन्दगी बचाने के लिए बेचैन थी.लेकिन मैं नहीं जानती थी कि कैसे? लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरे बेटे को फांसी पर नहीं चढ़ाया जाएगा.

जिस दिन मेरे बेटे की मौत की तारीख घोषित हुयी उस दिन मैं दिल्ली में अपने बेटे की किताब के हिन्दी अनुवाद (फांसी के तख्ते से एक अपील) के अनावरण समारोह में शामिल थी.दोपहर में मैंने महसूस किया कहीं कुछ गलत है.लोग हाल के बाहर जा रहे थे और फोन पर धीमे-धीमे बात कर रहे थे.उनके चेहरों पर निराशा छाने लगी थी.वे कुछ छिपा रहे थे.

जब मैंने उनसे पूछा कि मामला क्या है तो उन्होंने मुझे दोपहर का भोजन करने और होटल के कमरे में आराम करने के लिए बाध्य किया.अन्ततः मृत्युदण्ड के खिलाफ जनान्दोलन के एक कार्यकर्ता ने मुझे मेरे बेटे को दी जाने वाली मौत की तारीख की सूचना दी.कुछ देर के लिए मैं स्तब्ध रह गयी और उसके बाद मैं उसके ऊपर चिल्लाने लगी-मौत की तारीख घोषित होने से पहले तुम सब क्या कर रहे थे? मैं वापस चेन्नई लौट आयी.

हालांकि हमने मौत की तारीख पर स्टे प्राप्त कर लिया है लेकिन मुझे अभी यह लड़ाई लम्बी लड़नी है, तब तक जब तक मेरा बेटा वेल्लोर जेल के बाहर नहीं आ जाता .महज एक बैट्री देने के अपराध के लिए 11 साल तक मृत्युदण्ड की सजा के साथ जीना क्या पर्याप्त सजा नहीं है?
अंग्रेजी पत्रिका 'ओपेन' के 26 सितम्बर 2011 अंक से साभार.

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