BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, May 19, 2013

रोजवैली और एमपीएस के खिलाफ आम निवेशकों को चेतावनी सेबी की, उनके पास को सर्टिफिकेट नहीं है। पुलिस कब कार्रवाई करेगी?

रोजवैली और एमपीएस के खिलाफ आम निवेशकों को चेतावनी सेबी की, उनके पास को सर्टिफिकेट नहीं है। पुलिस कब कार्रवाई करेगी?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बाकायदा अखबारों में विज्ञापन जारी करके आम निवेशकों को चतावनी दी है कि ये रोजवैली और एमपीएस कंपनिया उन्हें कैसे धोखे में रखते हुए गैरकानूनी तरीके से पोंजी स्कीम के तहत उनका पैसा हड़प रही है। सेबी ने इस विज्ञापन में स्पष्ट कर दिया है कि इन कंपनियों को सेबी की ओर से अपनी योजनाओं के लिए पैसा जमा करने की कोई इजाजत नहीं दी गयी है।


सेबी ने स्पष्ट किया है कि उसने १९९९ के कलेक्टिव इंवेस्टमेंट रेगुलेशनक स्कीम रेगुलेशन्स ६५ और १९९२ के सेबी अधिनियम की धारा ११ बी के तहत रोजवैली रियल एस्टेट एंड कंस्ट्रक्शन लिमिटेड को ३ जनवरी २०११ को निर्देश दिया था कि वह किसी परियोजना के लिए या किसी स्कीम के तहत पैसा कतई जमा न करें। इसके साथ अपनी संपत्ति की बिक्री और डेलिनियेट करने पर भी रोजवैली को सेबी ने मनाही कर दी थी।इसके अलावा आम निवेशकों से पैसा जमा करने. इसे बैंको में जमा करने से या उन पैसों का अन्यत्र निवेश करने से भी सेबी ने मना किया हुआ है। इसीतरह सेबी ने स्पष्ट किया है कि उसने ६ दिसंबर, २०१२ को एमपीएस ग्रिनारी डेवलपार्स लिमिटेड को अपनी कल्क्टिव स्कीम तुरंत प्रभाव से बंद करने का निर्देश जारी किया हुआ है।


मालूम हो कि इन दोनों कंपनियों के कर्णधार टीवी चैनलों और अखबारों के जरिये निरंतर यह दावा करते रहे हैं कि उन्हें सेबी की इजाजत मिली हुई है।


असम. त्रिपुरा, बिहार, झारखंड , उड़ीसा जैसे तमाम राज्यों में सेबी के खिलाफ गिरफ्तारी और जब्ती की कार्रवाइया होने के बावजूद इन दो कंपनियों के अलवा बंगाल के किसी भी चिटफंड कंपनी के कारोबार पर कोई रोक टोक नहीं लगी है।


सेबी के इस स्पष्टीकरण के बाद तो इन कंपनियों के खिलाफ फौजदारी मामला बनता है और पुलिस को इसका संज्ञान लेते हुए धारा ४२० और धारा १२० के तहत तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन जिस तरह शारदा मामले में बिना कुछ किये पुलिस ने जांच बंद कर दी और शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन की पुलिस हिफाजत के लिए अदालत में आवेदन नहीं किया, उसके मद्देनजर साफ है कि राजनीतिक नेतृत्व की हरी झंडी के बाना पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करेगी।


अभी तक शारदा समूह के खिलाफ राज्यसरकार ने कोई एफआईार दर्ज नहीं कराया है, जिसके चलते हजारों करोड़ की संपत्ति पता लगने के बावजूद पुलुस कोई जब्ती नहीं कर सकती।


इसी बीच बाजार नियामक सेबी ने बहुचर्चित सहारा मामले में उन व्यक्तिगत निवेशकों का पैसा वापस किए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है जिनका सत्यापन वह कर चुका है। यह मामला सहारा द्वारा 'विभिन्न गैरकानूनी तरीकों' से 24,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाने से जुड़ा है।


भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने केवल उन निवेशकों को पैसा लौटाना शुरू किया है जिनके मामलों में सत्यापन प्रक्रिया के दौरान किसी तरह का दोहराव सामने नहीं आया। बाकी निवेशकों को रिफंड के लिए उच्चतम न्यायालय के आगामी निर्देशों तक इंतजार करना होगा। न्यायालय इस मामले पर 17 जुलाई को सुनवाई कर सकता है।


सहारा ग्रुप ने इस मामले में सेबी के पास 5,120 करोड़ रुपये जमा कराये थे और दावा किया है कि वह अपनी दो कंपनियों के बांडधारकों को 20,000 करोड़ रुपये पहले ही लौटा चुका है। निवेशकों का रिफंड सेबी के पास जमा कराई गयी राशि में से किया जा रहा है।


सूत्रों के अनुसार सहारा का दावा है कि उसने उच्चतम न्यायालय के 31 अगस्त 2012 के आदेश से पहले ही सीधे तौर पर रिफंड किये थे। उसके इस दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि अभी की जानी है।


चिटफंड घोटाले जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए रिजर्व बैंक या भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए और निवेशकों को ऐसी योजनाओं के प्रति सतर्क करना चाहिए। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अध्यक्ष प्रतीप चौधरी ने यह बात कही।


५वें आईसीसी बैंकिंग सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रतीप चौधरी ने कहा, "रिजर्व बैंक या सेबी को जागो ग्राहक जागो, वूलमार्क या हालमार्क अभियान की तर्ज पर फर्जी चिटफंड योजनाओं के प्रति निवेशकों को सतर्क करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू करना चाहिए।"


शैडो बैंकिंग पर उन्होंने कहा कि यह तरीका परंपरागत तरीकों से ज्यादा लचीलापन रखता है। परंपरागत बैंकिंग में न्यूनतम जमा अवधि सात दिन होती है, जबकि शैडो बैंकिंग में एक दिन के लिए भी जमा रखी जाती है। शैडो बैंकिंग के जरिए मध्यस्थ वित्तीय संस्थाएं नियामकीय बाधाओं के बिना साख प्रबंध कर सकती हैं। गौरतलब है कि स्विटजरलैंड स्थित फायनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शैडो बैंकिंग व्यवसाय का आकार करीब ६७० अरब डॉलर (करीब ३७ लाख करोड़ रुपए) का है तथा विश्व के कुल शैडो बैंकिंग व्यवसाय में भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत है।


चौधरी ने कहा कि होम लोन संस्थाओं, बैंकों तथा हाउसिंग फायनेंस कंपनियों समेत होम लोन मुहैया कराने वाली सभी संस्थाओं का नियमन एकमात्र रिजर्व बैंक को ही करना चाहिए। उन्होंने होम लोन के लिए अलग-अलग नियामकों के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि फिलहाल बैंकों द्वारा होम लोन का नियमन रिजर्व बैंक करता है, जबकि हाउसिंग फायनेंस कंपनियों (एलआईसी हाउसिंग फायनेंस तथा एचडीएफसी आदि) के होम लोन व्यवसाय का नियमन नेशनल हाउसिंग बैंक करता है। दुनिया के किसी अन्य देश में कई तरह के ऋणों का नियमन अलग-अलग संस्थाएं नहीं करती हैं।


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