BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, May 20, 2013

जितने कमजर्फ हैं महफिल से निकाले जायें

जितने कमजर्फ हैं महफिल से निकाले जायें


वसीम अकरम त्यागी

http://hastakshep.com/intervention-hastakshep/ajkal-current-affairs/2013/05/19/%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AB-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A5%87#.UZo0GqKBlA0

एक मौत होती है पाकिस्तान में सारा मीडिया चीख- चीख कर सोग मनाता है पंजाब सरकार भी सोग में डूब जाती है केन्द्र सरकार भी सोगवार हो जाती है, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मृतक के परिजनों से मिलने पहुँच जाते हैं, अन्तिम संस्कार में पूरी पंजाब कैबिनेट शामिल होती है। पंजाब सरकार मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपया, मृतक को शहीद का दर्जा, उसकी लड़कियों को दो नौकरी देती है। अभी तो एक महीना भी नहीं गुजरा है उस घटना को ऐसे ही आरोप में जेल में जेल में बन्द मौलाना खालिद जाहिद की कल मृत्यु हो गयी है। मगर इस मौत पर सभी खामोश हैं क्या नेता, क्या मीडिया, क्या मानवधिकार, क्या पक्ष, क्या विपक्ष सभी की जुबान पर ताला लग गया है। और वे समाजिक कार्यकर्ता जिन्होंने सरबजीत की मौत पर जगह मोमबत्ती जलाकर जूलूस निकाला था आज कहीं नजर नहीं आ रहे हैं ?

अखबारों ने तो हद ही कर दी जब खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी की खबर आयी थी तो अखबारों ने उसकी सारी कुण्डली प्रकाशित की थी मगर आज इनकी स्याही खत्म हो गयी है। टीवी चैनल के रिपोर्टर्स और एंकरों का भी गला सूख गया है आखिर क्यों ? किसी ने यह माँग तक नहीं की है कि मृतक को मुआवजा मिलना चाहिये। मुआवजा तो छोड़िये खुद को मुस्लिमों का नेता कहने वाले तथाकथित मुस्लिमपरस्त नेता उनके परिवार से मिलने तक नहीं गये। अब कहाँ हैं मुस्लिम हितेषी होने का दावा करने वाली पार्टी ? अब कहाँ हैं आजम खाँ जो अमेरिका में बेइज्जत होते ही अपने आपको मुस्लिम कहना शुरू कर देते हैं ? अब कहाँ है नसीमुद्दीन सिद्दीकी ? अब कहाँ हैं मुख्तार अब्बास नकवी, सैय्यद शाहनवाज, नजमा हेपतुल्ला ? अब कहाँ सलमान खुर्शीद, राशिद अल्वी, अहमद पटेल, दिग्गी राजा ? और सबसे बड़ी बात वह तथाकथित हाथी दाँत वाले सांसद जिन्होंने बिलावजह वंदेमातरम् का विरोध करके अपना चुनाव मजबूत किया है ? वही हाँ वही शफीकुर्रहमान बर्क। क्या इस मुद्दे पर बोलने से उनकी संसद सद्स्यता खत्म हो जायेगी ?

इस खामोशी को देखकर अवनीश कुमार पांडेय उर्फ समर की वह टिप्पणी याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि "अल्पसंख्यक उत्पीड़न(minority persecution) के बढ़ते जाने के इस दौर में आपके नाम में एक अदद खान/ मोहम्मद/ रिजवी जुड़ा होना आपको संदिग्ध बना देता है यह मैं जानता हूँ। कहीं धमाके हों आप उठाये जा सकते हैं, फिर आप सम्मानित पत्रकार काजमी हों या प्रोफ़ेसर गीलानी फर्क नहीं पड़ता, यह भी मैं जानता हूँ। शक के आधार पर दिनों तक थाने में बैठाये जाने से लेकर हिन्दू आतंकवादियों के किये समझौता हमले को लेकर आप सालों बिना जमानत जेल में रखे जा सकते हैं, यह भी मैं जानता हूँ।

वसीम अकरम त्यागी

वसीम अकरम त्यागी, लेखक युवा पत्रकार हैं।

और मैं जानता हूँ तो कौम के ठेकेदार भी जानते ही होंगे। सलमान खुर्शीदों, शाहनवाज़ हुसैनों से लेकर बुखारियों तक. इनको कभी बोलते देखा है आपने? न न, मुस्लिमों के ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में नहीं बल्कि नाम लेकर केस के बारे में। काजमी के मामले में, गीलानी के बारे में, जेल में सड़ते तमाम बेगुनाहों के बारे में। यकीन करिये, हालात ख़राब हैं पर इतने नहीं कि इनके बोलने का असर न हो। इस मुल्क की किसी हुकूमत की औकात नहीं है कि वो इन बुखारियों के साथ भी वही सलूक करे जो वहआम मुसलमानों के साथ करती है। फिर क्यों चुप रहते हैं येयह काम हम सेकुलरों के ही हिस्से क्यों आता हैकहीं ऐसा तो नहीं कि कौम के ऊपर ढाये जा रहे जुल्म ही इनकी ठेकेदारी जिन्दा रखते हैं? क्या अब भी कोई उम्मीद की जा सकती है इन तथाकथित कौम के ठेकेदारों से जिनकी तादाद प्रदेश में सत्तारूढ़ दल में सबसे अधिक है करीब दर्जन भर मन्त्री हैं एक गृह भी हैं जो अल्पसख्यक समुदाय से ही आते हैं। अब बताईये कि कितनी फिक्र है इन लोगों को मुसलमानों की। अक्सर इनका चेहरा सामने आता रहता है और मौलाना खालिद मुजाहिद की रहस्मय मौत से ये एक बार फिर सामने आ गया है। जिसको बुद्धिजीवी वर्ग सियासी कत्ल करार दे रहा है।

एशियन ह्यूमन राईट्स कमीशन के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर अवनीश पांडे समर कहते हैं कि "खालिद मुजाहिद की मौत निर्विवाद रूप से अभिरक्षा में हत्य़ा का मामला है और भारत में विचाराधीन कैदियों सामान्य और आतंकवाद के संदिग्ध मुस्लिम बेगुनाह युवकों की सामान्य हालत का बयान है। ऊपर से इस मामले पर भी कौमी ठेकेदारों की खामोशी देखिये, कब बोलेंगे ? ये और किस बात पर ? एक के बाद एक बेगुनाह मारे जा रहे हैं और ये उनकी लाशों को बेचकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि मुस्लिम युवा इनके खिलाफ आवाज बुलन्द करें ? और इन कौम के ठेकेदारों को सबक सिखाया जाये।"

राहत इंदौरी ने भी क्या खूब कहा है कि शायद इन्हीं तथाकथित ठेकेदारों की तरफ इशारा करते हुऐ…

इंतजामात नये ढँग से संभाले जायें

जितने कमजर्फ हैं महफिल से निकाले जायें।

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