BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, April 14, 2013

दुनिया को बदलनेवालों में डॉ.आंबेडकर कहां? एच एल दुसाध


सर्वस्वहाराओं के मसीहा की १२२ वीं जयंती के अवसर पर अशेष बधाइयों के साथ

दुनिया को बदलनेवालों में डॉ.आंबेडकर कहां?

एच एल दुसाध

 गत  वर्ष स्वाधीनता की 66 वीं जयंती पर जब 'आउट लुक पत्रिका' के सौजन्य से सीएनएन आइबीएन और हिस्ट्री- 18 चैनल द्वारा दुनिया के 21 देशों में कराये गये सर्वेक्षण की रिपोर्ट सामने आई,आंबेडकरवादी खुशी से झूम उठे. किन्तु उन्हें सर्वश्रेष्ठ भारतीय के रूप में चुना जाना बहुतों को रास नहीं आया इसलिए कई कोनों से आपत्ति के स्वर के स्वर भी उठे. बहरहाल जिन्हें आंबेडकर के सर्वश्रष्ठ भारतीय होने संदेह है उन्हें 2004 की उस घटना पर नज़र डालनी चाहिए जब अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना की 250 वीं वर्षगांठ मनाई. तब 'स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स' (सीपा)की ओर से कई कार्ड जारी किये गए ,जिसमें विश्वविद्यालय के 250 सालों के इतिहास के 40 ऐसे महत्वपूर्ण लोगों के नाम थे जिन्होंने वहां अध्ययन किया तथा 'दुनिया को प्रभावशाली ढंग से बदलने में 'महत्वपूर्ण योगदान किया. ऐसे लोगों में डॉ.आंबेडकर का नाम पहले स्थान पर था. काबिले गौर है कि इसे अबतक 95 नोबेल पुरस्कार विजेता देने का गौरव प्राप्त है. कोलंबिया विवि ने डॉ.आंबेडकर को अपने अनेक नोबेल विजेता विद्यार्थियों  पर तरजीह दी .बहरहाल यहाँ सवाल पैदा होता है क्या डॉ.आंबेडकर दुनिया को बदलनेवाले सिर्फ कोलंबिया विवि से संबद्ध लोगों में ही सर्वश्रेष्ठ थे या उससे बाहर भी?

दुनिया बदलने वालों की श्रेणी में उन महामानवों को शुमार किया जाता है जिन्होंने ऐसे समाज-जिसमें लेश मात्र भी लूट-खसूट,शोषण-उत्पीडन नहीं होगा;जिसमें मानव-मानव समान होंगे तथा उनमें आर्थिक विषमता नहीं होगी-का न सिर्फ सपना देखा बल्कि उसे मूर्त रूप देने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया. ऐसे लोगों में बुद्ध,मज्दक,अफलातून,सैनेका,हाब्स-लाक,रूसो-वाल्टेयर,पीटर चेम्बरलैंड,टामस स्पेन्स,विलियम गाडविन,फुरिये,प्रूधो,चार्ल्सहाल,राबर्ट ऑवेन,मार्क्स,लिंकन,लेनिन,माओ,आंबेडकर इत्यादि की गिनती होती है. ऐसे महापुरुषों में बहुसंख्य लोग कार्ल मार्क्स को ही सर्वोतम मानते है. ऐसे लोगों का दृढ़ विश्वास रहा है कि मार्क्स पहला व्यक्ति था जिसने विषमता की समस्या का हल निकालने का वैज्ञानिक ढंग निकाला। किन्तु मार्क्स को सर्वश्रेष्ठ विचारक माननेवालों ने प्राय: उनकी सीमा को परखने की कोशिश नहीं की. मार्क्स ने जिस गैर-बराबरी के खात्मे का वैज्ञानिक सूत्र दिया उसकी उत्पत्ति साइंस और टेक्नालोजी के कारणों से होती रही है. उसने जन्मगत कारणों से उपजी शोषण और विषमता की समस्या को समझा ही नहीं. जबकि सचाई यह है कि मानव-सभ्यता के विकास की शुरुआत से ही मुख्यतः जन्मगत कारणों से ही दुनिया के अनेक देशों में विषमता का साम्राज्य कायम रहा जो आज भी अटूट है. इस कारण ही सारी दुनिया में महिला अशक्तिकरण एवं नीग्रो जाति को पशुवत इस्तेमाल हुआ .इस कारण ही भारत के दलित-पिछड़े हजारों साल से शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक)से पूरी तरह शून्य रहे.

दरअसल पूंजीवादी व्यवस्था में जहाँ मुट्ठी भर धनपति शोषक की भूमिका में उभरता है वहीँ जाति और नस्लभेद व्यवस्था में एक पूरा का पूरा समाज शोषक तो दूसरा शोषित के रूप में नज़र आते हैं. भारत में ऐसे शोषकों की संख्या 15 प्रतिशत और शोषितों की 85 प्रतिशत रही. जबकि अमेरिका में लगभग पूरा का पूरा गोरा समाज ही, जिसकी संख्या 70 प्रतिशत से कुछ अधिक रही, अश्वेतों के खिलाफ शोषक की भूमिका में क्रियाशील रहा.

जन्मगत आधार पर शोषण से उपजी विषमता के खात्मे का जो सूत्र  मार्क्स न दे सके ,इतिहास ने वह बोझ डॉ.आंबेडकर के कन्धों पर डाल दिया, जिसका उन्होंने नायकोचित अंदाज़ में निर्वहन किया.

मार्क्स के सर्वहारा सिर्फ आर्थिक दृष्टि से विपन्न थे,पर राजनीतिक,आर्थिक और धार्मिक क्रियाकलाप उनके लिए मुक्त थे.विपरीत उनके भारत के दलित सर्वस्वहारा थे जिनके लिए आर्थिक,राजनीतिक के साथ ही धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियां भी धर्मादेशों से पूरी तरह निषिद्ध रहीं.यही नहीं लोग उनकी छाया तक से दूर रहते थे. ऐसी स्थिति दुनिया किसी भी मानव समुदाय की कभी नहीं रही. डॉ.आंबेडकर ने किस तरह तमाम प्रतिकूलताओं से जूझते हुए दलित मुक्ति का स्वर्णीय अध्याय रचा,वह एक इतिहास है जिससे हमसब भली भांति वाकिफ हैं.

डॉ.आंबेडकर ने दुनिया को बदलने के लिए किया क्या? उन्होंने अलिखित 'हिंदू आरक्षण' के तहत सदियों शक्ति के सभी स्रोतों से वहिष्कृत किये गए मानवेतरों के लिए संविधान में आरक्षण के सहारे शक्ति के कुछ स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक) में संख्यानुपात में हिस्सेदारी सुनिश्चित कराया. परिणाम चमत्कारिक रहा. जिन दलितों के लिए कल्पना करना दुष्कर था, वे झुन्ड के झुण्ड एमएलए,एमपी,आईएएस,पीसीएस,डाक्टर,इंजीनियर इत्यादि बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा जुड़ने लगे. दलितों की तरह ही दुनिया के दूसरे जन्मजात सर्वस्वहाराओं-अश्वेतों, महिलाओं इत्यादि-को जबरन शक्ति के स्रोतों दूर रखा गया. भारत में अम्बेडकरी आरक्षण के, आंशिक रूप से ही सही, सफल प्रयोग ने दूसरे देशों के सर्वहाराओं के लिए मुक्ति के द्वार खोल दिए. अम्बेडकरी प्रतिनिधित्व (आरक्षण) का प्रयोग अमेरिका, इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, आयरलैंड इत्यादि ने अपने अपने तरीके से अपने-अपने देश के जन्मजात वंचितों को शक्ति के स्रोतों में उनकी वाजिब हिस्सेदारी दिलाने  के लिए किया(पढ़ें आरक्षण पर डॉ.रामसमुझ का शोधग्रन्थ-'रिजर्वेशन पॉलिसी:इट्स रेलिवेंस इन मॉडर्न इंडिया').इस आरक्षण ने तो दक्षिण अफ्रीका में क्रांति ही घटित कर दिया .वहां जिन 9-10 प्रतिशत गोरों का शक्ति के समस्त केन्द्रों पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा था ,वे अब अपने संख्यानुपात पर सिमट रहे हैं,वहीँ सदियों के वंचित मंडेला के लोग अब हर क्षेत्र में अपने संख्यानुपात में भागीदारी पाने लगे हैं.इसी आरक्षण के सहारे सारी दुनिया में महिलाओं को राजनीति इत्यादि में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराने का अभियान जारी है.यह सही है कि अनेक देशों में अम्बेडकरी आरक्षण ने जन्मजात सर्वस्वहाराओं के जीवन में भारी बदलाव लाया है.पर अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है. अभी भी शक्ति के सभी स्रोतों में मुक्कमल रूप से अम्बेडकरी प्रतिनिधित्व का सिद्धांत लागू नहीं हुआ है, यहाँ तक कि अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में भी. इसके लिए लड़ाई जारी है और जब ऐसा हो जायेगा,फिर इस सवाल पर माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी कि दुनिया को सबसे प्रभावशाली तरीके से बदलने वाला कौन?

दिनांक:14 अप्रैल, 2013

(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं)


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