हम लोग जन्मजात भारत को गांवों का देश जानते मानते रहे हैं अब भी उत्तर आधुनिक सुपरफास्ट महानगरीय अपसंस्कृति के तेज संक्रमणके बावजूद हमारा चरित्र कमोबेश ग्रामीण है और हमारी संस्कृति ग्राम्य। फिल्म शंघाई में निर्देशक दिबाकर बैनर्जी ने बाकायदा आंख में उंगली डालकर दिखा दिया है कि उस गांव की हत्या कैसे हो रही है।दिबाकर बैनर्जी अपने यथार्थवादी और अनूठे ट्रीटमेंट की वजह से मुख्यधारा से अलग खड़े हो कर भी अपनी जगह बनाने में अब तक कामयाब रहे हैं। जल जंगल जमीन के विस्थापन के बाद बाकी जो बचा है वह है भारत नगर, जिसे आप शाइनिंग इंडिया, इमर्जिंग मार्केट, पारमाणविक महाशक्ति हिंदू राष्ट्र, कारपोरेट साम्राज्यवाद का निर्बाध वधस्थल, सिलिकन वैली, फ्रीसेनसेक्स इंडिया, खुला बाजार , चाहें जिस नाम से पुकारे, वह हमारा जन्मजात जाना पहचाना भारत नहीं है और न ही भारत के बहिष्कृत समाज और भूगोल में बसे बहुसंख्य निनानब्वे फीसद लोग इस भारत के जन्मजात नागरिक बनने लायक क्रयशक्ति के धारक है। सत्तावर्ग ने भारत का जो कायाकल्प कर दिया है, वह विश्व के सबसे बड़े सेज शंघाई से ही तुलनीय है और किसी से नहीं। इसी लिए अतुल्य भारत!
विमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन में जमींदार किसान के खिलाफ है तो मदर इंडिया में किसान परिवार के सर्वनाश का उत्तरदायी महाजन है।श्याम बेनेगल की निशांत और अंकुर, गौतम घोष की दखल और मृणाल से न की तमाम फिल्मों में पूरी सामंती व्यवस्था बेनकाब है। लेकिन शंघाई में विस्थापन के मूल में बिल्डर प्रोमोटर माफिया है, जो आम मुंबइया फिल्मों में इन दिनों खूब दीखता है, जहां बसितियों का विस्थापन अहम थीम है।दिबाकर की नई फ़िल्म 'शंघाई' एक राजनैतिक क्राइम-थ्रिलर है।लेकिन शंघाई में समावेशी विकास के नारे के साथ सेज की जो पृष्ठभूमि है, वह दरअसल देस के खुला बाजार बनने और राष्ट्र के कारपोरेट बन जाने की कथा है। अमेरिका कारपोरेट है, इसलिए कारपोरेट व्यवस्था के हक में खड़ा सत्ता वर्ग विचारधाराओं और दलों से उपर इस कदर अमेरिकापरस्त है। राष्ट्र और समाज के अमेरिकापरस्त बन जाने और सीमांत बहिष्कृत शरणार्थी बस्तीवासी आदिवासी अछूत पिछड़ी बहुसंख्यक जनसंख्या के विलोप की कथा है शंघाई।
परंपरागत फिल्म समीक्षा और पेज थ्री रपटों के दायरे से बाहर इस फिल्म की खास चर्चा जरूरी है, इस लिए फिल्म समीक्षक न होने के बावजूद आज इस पर लिखना जरूरी हो गया है। राष्ट्रपति चुनाव के कारपोरेट परिदृश्य इस फिल्म में नहीं है, पर कारपोरेट इंडिया की सर्व शक्तिमान राजनीति से हम मुखातिब होते हैं उस वास्तव के, जिसे आप हम समसामयिक राजनीति कहते हैं, जो दरअसल सत्तावर्ग का सुनियोजित अर्थशास्त्र है, जिसे हम अधपढ़े अधलिखे, अपढ़ अलिख लोग लगभग जानते ही नहीं हैं और न जानने का दुस्साहस करते हैं।अंबेडकर नामक एक अछूत ने इसे समझने का दुस्साहस किया था, पर उसके अर्थशास्त्र को किनारे करके हम सत्ता में भागेदारी का ख्वाब सजाने बैठ गये और शिकारियों के लिए भारत को खुला आखेटगाह बना डाला। गांधी नाम का एक हिंदू संत भी था जो मनुस्मृति के धारक वाहक होने के बावजूद विकास और औद्योगीकरण के खिलाफ ग्रामीण भारत की वकालत करते रहे। आज वैचारिक स्तर पर वामपंथ हाशिये पर है और कुल मिलाकर भारत की राजनीति अंबेडकर और गांधी के नाम चलती है और वे अवतार और ईश्वर तक बना दिये गये।लेकिन उनकी विचारधाराएं कचरापेटी में डालकर आक्रामक ग्लोबल हिंदुत्व और कारपोरेट साम्राज्यवाद के शिकंजे में भारत आज भारत नगर बनने के उपक्रम में चौतरफा सत्यानाश के सम्मुखीन है , जो हालीवूड की फंतासी अवतार के साम्राज्यवादी आक्रमण से कहीं ज्यादा भयावह है।
इस फिल्म को देखते हुए मुख्यमंत्री के किरदार में सुप्रिया पाठक और उनका स्थान प्रतिरोध आंदोलन की फसल काटने के अंदाज में ले लेने वाली तिलोत्तमा के चेहरे सर्वव्यापी हैं, जो भारत के कोने कोने में पहचाने जा सकते हैं अलग अलग शक्ल ओ शूरत अख्तियार किये। यही सत्ता का कारपोरेट चेहरा है। इस फिल्म को देखते हुए सिंगुर, नंदीग्राम, नवी मुंबई, कलिंगनगर, जैतापुर, नियमागिरि पहाड़, अबूझमाड़, कुडनकुलम, समूचे मध्य भारत, समूचा आदिवासी भूगोल, अछूत हिमालय और बहिष्कृत पूर्वोत्तर आंखों के सामने तिरें नहीं, यह असंभव है। डा अहमदी की नियति तो बार बार पुनरावृत्ति के शिकार हैं और ऐसे शिकार चेहरों को भी हम भली भांति जानते हैं। सेज जो बहिष्कार और विस्थापन, नरसंहार का अर्थशास्त्र है, इस प्रस्थानबिंदू को संबोधित किये हिए फिल्म शंगाई पर फिल्मी बातचीत बेमानी है और इसके लिए राष्ट्र, समाज और संसकृति के बदलते चरित्र को समझने की समझदारी भी चाहिए। इमरान हाशमी, अभय देवल, छोटी सी भूमिका में बांग्ला फिल्मों के सुपरस्टार प्रोसेनजीत की यादगार अभिनय , बोल्ड, हाट और बिउटीफुल कल्कि की तो खूब चर्चा हो गयी। अब तनिक इस फिल्म की आत्मा को पकड़ने का दुस्साहस करते हुए अपनी प्रेतमुक्ति का भी इंतजाम करें।सीमेंट का जंगल अब महानगरों का एकाधिकार नहीं है। आहिस्ता आहिस्ता यह जंगल हमारे भूगोल और इतिहास से हम सबको बेदखल करने लगा है। हम सुनते रहे हैं कि बदलाव हमेशा बेहतरी के लिए होता है। लीजिये, यह मुहावरा भी खोटा सिक्का निकला। परिवर्तन किसे कहते हैं, बंगाल में सांसें ले रहा हर जीव को अच्छी तरह महसूस हो रहा होगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्र अथवा सेज़ (एसईजेड) उस विशेष रूप से पारिभाषित भौगोलिक क्षेत्र को कहते हैं, जहां से व्यापार, आर्थिक क्रिया कलाप, उत्पादन तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियों को किया जाता है। यह क्षेत्र देश की सीमा के भीतर विशेष आर्थिक नियम कायदों को ध्यान में रखकर व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विकसित किए जाते हैं।
सत्त्तर के दशक में जब सथ्यू, मृणाल सेन, श्याम बेनेगल जैसों की अगुवाई में समांतर फिल्मों का सैलाब उमड़ा, और उससे इतर सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक जैसे दिग्गज फिल्मकारों ने जो फिल्में बनायीं, उस दौर तक भारत न खुला बाजार बना था और न तब तक कारपोरेट साम्राज्यवाद के साथ ग्लोबल हिंदुत्व और जियोनिज्म का गठजोड़ बना था, इसलिए जाहिरा तौर पर कारपोरेट परिदृश्य सिरे से गायब है। तब भूमि सुधार के मुद्दे बालीवूड की अच्छी फिल्मों की कथानक हुआ करती थी और मूल निशाना सामंती महाजनी सभ्यता थी। पर आज के भारतनगर का सामाजिक यथार्थ महाजनी सभ्यता और मनुस्मृति का नशीला काकटेल है, तो समाज खुले बाजार में फैमिली बार एंड रेस्त्रां,कैसीनो, शापिंग माल, सेज, कैसिनो, डिस्कोथेक या फिर फेसबुक वाल है, जहां दुश्मन नकाबपोश हैं और समावेशी विकास के बहाने बिल्डर प्रोमोटर सेनसेक्स राज के कैसीनो में आपको कहीं भी कभी भी मार गिराने की फिराक में हैं और आप एकदम अकेले निहत्था असहाय मारे जाने के लिए समर्पित प्रतीक्षारत। सारे कर्मकांड यज्ञ आयोजन इसी वधस्थल की वैदिकी संसकृति है और कारपोरेट हिंसा वैदिकी हिंसा है और जैसा कि भारतेंदु बहुत पहले कह चुके हैं कि वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति। उसी तर्ज पर सेज भारतनगर के राष्ट्रधरम के मुताबिक कारपोरेट हिंसा हिंसा न भवति। लेकिन नरसंहार के विरुद्ध प्रतिरोध राष्ट्रद्रोह जरूर है। जल जंगल जमीन की लड़ाई तो क्या, उसकी बात करने वाला हर शख्स माओवादी है। हम लोग अवतार से अभिभूत थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि मसाला फिल्मों की राजनीति में निष्णात भारतीय दर्शकों को कारपोरेट राजनीति पर बनी फिल्म कब देखने को मिलेगी।इस मामले में शंघाई एक सकारात्मक पहल जरूर है।
इस फिल्म में कारपोरेट बिल्डर माफिया राज को बेरहमी से बेनकाब तो किया ही गया है, लेकिन इसके साथ साथ भारतमाता के स्कारलेट आइटम के जरिये हिंदू राष्ट्रवाद के जनविरोधी आक्रामक पाखंड की धज्जियां उड़ायी गयी है। बहुजन मूलनिवासियों की बेदखली के लिए भारत माता और वंदेमातरम का हिंदुत्व अब कारपोरेट है और यही भारत नगर के सेज अभियान का थीम सांग है।'शंघाई' में विशाल शेखर के संगीत के तेवर कथानक के मुताबिक हैं. एलबम में अलग-२ रंगों के पाँच ट्रैक्स हैं, जिन्हें पाँच अलग गीतकारों ने शब्द दिये है।'भारत माता की जय' एलबम को एक जोशीली शुरुआत देता है। एक सड़क का धुंआधार जुलूस गीत है जिसमें देश की विसंगतियों पर कटाक्ष है।फिल्म 'शंघाई' के गीत 'भारत माता की जय...' पर बवाल मच गया है। यूट्यूब पर इस वीडियो को लोग खूब पसंद कर रहे हैं, लेकिन यह गीत के गायक विशाल ददलानी को धमकियां मिल रही हैं।
'सोने की चिडिय़ा, डेंगू मलेरिया, गुड़ भी है, गोबर भी... भारत माता की जय' ये बोल हैं इमरान हाशमी और अभय देओल की आने वाली फिल्म 'शंघाई' के। अपने 'कंट्रोवर्शल' लिरिक्स की वजह से यह गीत यूट्यूब पर काफी पॉपुलर हो रहा है। करीब एक हफ्ते पहले अपलोड किए गए इस सॉन्ग को 65 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं। विशाल पर पैसों की खातिर भारत माता का अपमान करने का आरोप लग रहा है। यहां तक कि ददलानी की मां को भी उसने घसीट लिया है। उन्होंने ट्वीट किया, 'यह सॉन्ग कुछ इस तरह होना चाहिए, 'विशाल की मम्मी पीलिया और एड्स की मरीज है। बोलो विशाल की मम्मी की जय।'ऐसे में, विशाल भी पीछे नहीं रहे इस पर उन्होंने ट्वीट किया, 'मिस्टर बग्गा मुझे धमकी देने की बजाय इस गाने को ध्यान से सुनो। देशभक्ति की आड़ में गुंडागर्दी नहीं चलेगी। और रही बात मां की तो वह आपकी भी होगी।'
गौरतलब है कि सोने की चिड़िया डेंगू मलेरिया ...भारत माता की जय " के विरोध में बजरंग दल आगे आया है और उसने शंघाई फिल्म से इस गाने को हटाने की मांग की है ! बजरंग दल का कहना है कि फिल्म के इस गाने में भारत माता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है !
शरीकी सत्ता और कारपोरेट तानाबाना को दिवाकर ने वास्तव के बराबर साधा है, जिसमें केंद्र और राज्य के जनविरोधी चरित्र का बेहरीन फिल्मांकन हुआ है। मालूम हो कि मूलत: इस फिल्म की कहानी ग्रीक लेखक वासिलिस वासिलिकोस की किताब जेड से प्रेरित है. आसान कहानी को दिलचस्प ढंग से पर्दे पर पेश किया है और कलाकारों का अभिनय भी शानदार है। इस फिल्म की मूल कथा यूनान में तब रची गयी थी, जब राजनीतिक हत्याओं के जरिए पूंजीवाद का कारपोरेट कायाकल्प हो रहा था। साठ के दशक के उस परिदृश्य में राजनीतिक हत्याओं में सबसे उल्लेखनीय है अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या तो श्वेत वर्चस्व के विरुद्ध विश्वव्यापी अश्वेत प्रतिरोध के महान कारीगर मार्टिन लूथर किंग भी उसी दौर में मारे गये। इस कथा पर बनी भारतीय फिल्म में सेज के संदर्भ में राजनीतिक हत्या का जो संदर्भ है, वह सीधे राष्ट्रशक्ति के कारपोरेट हित में सैन्यीकरण और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के लिए खेती, देहात और प्रकृति से जुड़े समुदायों के निर्विरोध नरसंहार की संस्कृति का चरमोत्कर्ष है। प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, खुला बाजार, कानून पर कारपोरेट वर्चस्व जिसे हम आर्थिक सुधार कहते हैं, सामाजिक न्याय, भूमि सुधार और समता के सिद्दांत के खिलाफ है। संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूची के विरुद्ध है।फिल्म की शुरुआत होती है भारत के एक ऐसे राज्य से जहां पर इलेक्शन शुरु होने जा रहे हैं। उसी राज्य का एक बहुत ही ईमानदार और सम्माननीय समाज सेवी डॉक्टर एहमदी (प्रसेनजीत चैटरजी) वहां की सरकार पर इल्जाम लगाते हुए कहता है कि सरकार एक एसईज़ी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन का बहुत ही बड़ा हिस्सा प्रयोग कर रही है वो भी वहां पर रह रहे लोगों को बिना मुनासिब मुआवज़ा दिए।डॉक्टर एहमदी एक जनसभा के दौरान अचानक ही एक दुर्घटना में मारा जाता है। शालिनी (कल्की)कहती है कि यह एक दुर्घटना नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश है। उसी समय जोगीन्दर परमार ( इमरान हाशमी) यह दावा करता है कि उसके पास ऐसा सबूत है जिससे ये साबित होता है कि डॉक्टर एहमदी का खून कोई दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश है और ये सबूत सरकार के लिए भी मुसीबत बन सकता है।सरकार द्वारा एक आई ए एस ऑफिसर (अभय देओल) इस मामले की छानबीन के लिए बुलाया जाता है और फिर ये तीनों शालिनी, जोगिन्दर परमार और आई एस ऑफिसर मिलकर सच की इस लड़ाई में शामिल हो जाते हैं।
सेज प्रकरण दरअसल भारत में सत्ता वर्ग के वर्चस्ववादी कारपोरेट समाज के लिए पायलट प्रोजेक्ट है, जहां देश का कानून, संविधान, सरकार, प्रशासन, जनप्रतिनिधित्व, मीडिया, नागरिकता, नागरिक और मानव अधिकारों की कोई प्रासंगिकता नहीं है। सेज देश के भीतर विदेश है, जहां देश का कानून लागू नहीं होता। जाति उन्मूलन, सामाजिक न्याय., समता और भूमि सुधार जैसे प्रसंग वहां गैरप्रासंगिक है। फिल्म में भारतनगर जो गांव है और जिसे शंघाई बनाया जाना है, वह दरअसल कोई एक गांव नहीं, पूरा देश है , जिसे सेज की सेज पर सजाने की राजनीति सत्ता में है। हकीकत में सिंगुर, नंदीग्राम, नवी मुंबई जैसे सेज तो पायलट प्रोजेक्ट ही थे , जिसके प्रतिरोध के बहाने अंततः सत्ता वर्ग के ही वर्चस्व की राजनीति साधी गयी और सत्ता व वर्चस्व के चेहरे बदल दिये गये। इस प्रक्रिया को भी बेहद खूबसूरती से शहीद अहमदी की विधवा मिसेज अहमदी के सत्ताबदल के बाद मुख्यमंत्री बन जाने की नियति मध्ये अभिव्यक्त दी गयी है।ज़मीन पर उसी की हड्डियों के चूने से ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं, वह देश जी के अहसान तले दब जाता है। यह वैसा ही है जैसी कहानी हमें 'शंघाई' के एक नायक (नायक कई हैं) डॉ. अहमदी सुनाते हैं।
शंघाई पहले मछुआरों का एक गाँव था, पर प्रथम अफ़ीम युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने इस स्थान पर अधिकार कर लिया और यहां विदेशियों के लिए एक स्वायत्तशासी क्षेत्र का निर्माण किया, जो १९३० तक अस्तित्व में रहा और जिसने इस मछुआरों के गाँव को उस समय के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय नगर और वित्तीय केन्द्र बनने में सहायता की।१९४९ में साम्यवादी अधिग्रहण के बाद उन्होंने विदेशी निवेश पर रोक लगा दी और अत्यधिक कर लगा दिया। १९९२ से यहां आर्थिक सुधार लागू किए गए और कर में कमी की गई, जिससे शंघाई ने अन्य प्रमुख चीनी नगरों जिनका पहले विकास आरम्भ हो चुका था जैसे शेन्झेन और गुआंग्झोऊ को आर्थिक विकास में पछाड़ दिया। १९९२ से ही यह महानगर प्रतिवर्ष ९-१५% की दर से वृद्धि कर रहा है, पर तीव्र आर्थिक विकास के कारण इसे चीन के अन्य क्षेत्रों से आने वाले अप्रवासियों और समाजिक असमनता की समस्या से इसे जुझना पड़ रहा है।इस महानगर को आधुनिक चीन का ध्वजारोहक नगर माना जाता है और यह चीन का एक प्रमुख सांस्कृतिक, व्यवसायिक, और औद्योगिक केन्द्र है। २००५ से ही शंघाई का बन्दरगाह विश्व का सर्वाधिक व्यस्त बन्दरगाह है। पूरे चीन और शेष दुनिया में भी इसे भविष्य के प्रमुख महानगर के रूप में माना जाता है।चीनी जनवादी गणराज्य का सबसे बड़ा नगर है। यह देश के पूर्वी भाग में यांग्त्ज़े नदी के डेल्टा पर स्थित है। यह अर्थव्यवस्था और जनसंख्या दोनों ही दृष्टि से चीन का सबसे बड़ा नगर है। यह देश की चार नगरपालिकाओं में से एक है और उसी स्तर पर है जिसपर कि चीन का कोई अन्य प्रान्त।चीन के पूर्वी शहर शंघाई, हांगकांग और चोंगकिंग शहर को एक सर्वे में उनकी समृद्धि, आकर्षक इमारतों और खूबसूरत लड़कियों के कारण सर्वाधिक 'सेक्सी शहरों'' की सूची में क्रमश: पहला, दूसरा और तीसरा स्थान मिला है।
डॉक्टर अहमदी ने जो कहानी सुनाई और जो दिबाकर बनर्जी और उनकी टीम ने हमें सुनाई, उस कहानी पर हमारे और आपके बात करने का कोई ख़ास फ़ायदा नहीं है, क्योंकि जहाँ वह कहानी पहुँचनी चाहिए, वहाँ शायद 'राउडी राठौड़' देखी जा रही हो या अगली ऐसी ही किसी दूसरी फ़िल्म का इंतज़ार किया जा रहा हो।फ़िल्मों के प्रति हमरे नजरिये और समझदारी का आलम यह है कि आज के दर्शकों को मसाला मनोरंजन पसंद है, 'शंघाई' जैसी पॉलिटिकल फिल्म में उनकी खास रूचि नहीं है। उनका कहना है कि शंघाई का बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन औसत रहा। इसमें इमरान हाशमी और अभय देओल जैसे टैलेंटेड एक्टर थे, फिर भी इसको मात्र 30 प्रतिशत की ओपनिंग मिली, जबकि राउडी राठौर दूसरे हफ्ते भी खूब चली। अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा की 'राउडी राठौर' इतनी बड़ी ब्लॉकबस्टर होगी, फिल्म पंडित भी इसका अनुमान नहीं लगा पाए थे। रिलीज होने के दूसरे हफ्ते भी यह इतनी धुआंधार चली, कि पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म 'शंघाई' को उतने दर्शक नहीं मिले, जितने मिल सकते थे। अक्षय का एक्शन और सोनाक्षी का जलवा देखने के लिए इस हफ्ते भी भारी संख्या में दर्शक गए जिसके कारण 'शंघाई' कमाई में भी बहुत पीछे छूट गई।
ट्रे़ड पंडित कोमल नाहटा ने शंघाई के बारे में कहा कि इस फिल्म को समझना सभी दर्शकों के बस की बात नहीं है। 'इसका कलेक्शन अच्छा नहीं रहा। यह मास की नहीं, क्लास की फिल्म है। शु्क्रवार को इसका कलेक्शन 3.10 करोड़, शनिवार को 4 करोड़, रविवार को 5 करोड़ रहा। इसका कलेक्शन भले बढ़ता हुआ दिख रहा है लेकिन दूसरे हफ्ते में इसकी कोई आशा नहीं दिखती। उधर राउडी राठौर का कलेक्शन दूसरे हफ्ते में पहले से दोगुना रहा।
फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श ने ट्विट किया है कि 'शंघाई' ने पहले हफ्ते 12.10 करोड़ की कमाई की। जबकि राउडी राठौर दूसरे हफ्ते 100 करोड़ पार कर गई। सिंगल स्क्रीन्स और मल्टीप्लेक्सेस, दोनों के दर्शकों को यह फिल्म रास आई।
आमोद मेहरा ने भी यह स्वीकार किया कि शंघाई को दर्शकों की सराहना नहीं मिली। 'इसका रिपोर्ट ठीक नहीं है। पहले दिन इसका कलेक्शन मात्र 2.5 करोड़ रहा।'
अक्षय के एक फैन महेश चवन का कहना है, 'मैं शंघाई भले नहीं देखूं लेकिन राउडी राठौर फिर से देखने जाउंगा। जब अक्षय बोलेंगे 'डोन्ट एंग्री मी', मैं सीटियां बजाउंगा।'
सीरियल किसर के नाम से मशहूर इमरान हाशमी फिल्म 'शंघाई' साइन करने को लेकर संशय में थे। 'शंघाई' में पैसों के लिए शादी के वीडियो और पॉर्न फिल्में तक बनाने वाले पत्रकार के किरदार में इमरान को बहुत सराहा गया। बकौल इमरान 'मैं बहुत खुश हूं कि कई सालों के बाद अब पब्लिक ने मुझे आशिक के किरदार में न होने पर भी पसंद किया। यह रिस्की गेम था लेकिन यह रिस्क लेना मेरे लिए जरूरी था।
अब तक मैंने सभी किरदार शहरी लड़कों के निभाए थे जो निभाना मेरे लिए आसान भी था लेकिन जोगी परमार जैसा देसी कैरेक्टर निभाना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। हर कलाकार को अपनी सक्सेसफुल इमेज से बाहर आकर काम करने में डर लगता ही है। मुझे भी लगा था लेकिन मैं खुद को वर्सटाइल एक्टर के रूप में साबित करना चाहता था।
इस फिल्म के लिए दिबाकर ने एक साल तक इमरान से मेहनत कराई, वर्कशॉप्स लीं। बकौल इमरान 'यह किरदार चैलेंजिंग था क्योंकि एक ऐसा आदमी जिसकी तोंद है, जो आवारा और थोड़ा निगेटिव भी है, वह फिल्म का हीरो कैसे बन सकता है, लेकिन फिल्म के अंत में जोगी हीरोगिरी का ही काम करता है।'
अभय देओल, इमरान हाशमी, कल्कि कोचलिन अभिनीत फिल्म शंघाई एक राजनैतिक थ्रिलर है पर बीबीसी से एक खास बातचीत में दिबाकर ने ये साफ किया कि इस फिल्म में ना तो राजभवन या राजनेता दिखाई देंगे और ना ही शंघाई शहर। शंघाई वो सपना है जिसे भारत के हर शहर को दिखाया जाता है।
चारों तरफ महंगाई है, फिर भी हम शंघाई हैं - वर्तमान स्थिति को इस एक लाइन में समझाते हुए दिबाकर ने बताया कि शंघाई की कहानी भारत के उन शहरों की कहानी है जहां एक तरफ तो फ्लाईओवर और बड़ी बड़ी इमारतों की चकाचौंध है तो दूसरी तरफ पेट्रोल और सब्जी जैसी आधारभूत जरुरतों के लिए भी आम आदमी को संघर्ष करना पड़ता है।
लेकिन इन्हीं संघर्षों में एक रोमांच छुपा है जो भारतीयों को कुछ कर दिखाने के लिए प्रेरित करता है।
परदेस से जल्दी बोर हो जाने वाले दिबाकर मानते हैं कि विदेशों में भारत जैसी उत्तेजना और रोमांच की कमी है और शंघाई के माध्यम से भारत की इसी उत्तेजना को दिखाने की कोशिश की गई है जहां अच्छे बुरे हर किस्म के बदलाव के साथ देश आगे बढ़ रहा है.
दिबाकर के शब्दों में एक आम आदमी की सकारात्मक लड़ाई को दिखाने की कोशिश है शंघाई। हालांकि दिबाकर ने ये भी साफ किया कि उनकी फिल्म में किसी नाटकीय सकारात्मकता की उम्मीद ना की जाए।
शंघाई से पहले दिबाकर ने खोसला का घोसला, ओए लकी लकी ओए और लव सेक्स और धोखा जैसी फिल्में बनाकर आलोचकों की प्रशंसा बटोरी थी।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नए दिशानिर्देशों में सेज का आकार कम करने के प्रावधान के साथ सेज यूनिट को अब तक नहीं मिलने वाले कई नए प्रोत्साहन शामिल किए जा सकते हैं। एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट (ईओयू) के लिए जारी की जाने वाली स्कीम में भी कई नए प्रावधान शामिल किए जाने की उम्मीद है।
केंद्रीय वाणिज्य, उद्योग व कपड़ा मंत्री आनंद शर्मा ने 5 जून को सालाना विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) की घोषणा के दौरान कहा था कि मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स (मैट) और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) के लागू होने के बाद सेज से होने वाले निर्यात में कमी आई है। इसलिए मंत्रालय ने सेज स्कीम का समग्र मूल्यांकन किया है और जल्द ही इसके लिए नए दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
वाणिज्य मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक सबसे प्रमुख बदलाव सेज के आकार को लेकर होगा। जमीन अधिग्रहण में दिक्कतों के कारण कई सेज मंजूरी के बावजूद सालों से अधिसूचित नहीं हो पाए हैं। मल्टी प्रोडक्ट सेज के लिए अभी 1000 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होती है जिसे घटाकर 250 हेक्टेयर किया जा सकता है। मल्टी सर्विसेज और सेक्टर विशेष सेज के लिए 100 हेक्टेयर की जगह जमीन की तय सीमा 40 हेक्टेयर की जा सकती है। लेकिन हैंडीक्राफ्ट्स और जेम्स व ज्वैलरी सेज के लिए 10 हेक्टेयर की सीमा में कोई बदलाव नहीं होगा।
इसके अलावा पहले से निर्मित सेज में अतिरिक्त निवेश करने पर वित्तीय छूट का प्रावधान किया जा सकता है। बड़े शहर के 100 किलोमीटर के दायरे से बाहर विकसित होने वाले सेज में आवासीय, स्कूल और अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित करने की छूट दी जा सकती है। बड़े शहर के 100 किलोमीटर के भीतर विकसित होने वाले सेज में ऐसे निर्माण की इजाजत नहीं होगी।
सूत्रों के मुताबिक सेज से निर्यात में बढ़ोतरी के लिए उन्हें सेज से बाहर वाली निर्यात यूनिट की तरह फोकस मार्केट स्कीम, एग्री इंफ्रा स्क्रिप्स, मार्केट लिंक्ड फोकस प्रोडक्ट स्कीम और स्टेट्स होल्डर इंसेंटिव स्क्रिप्स का लाभ दिया जा सकता है जो उन्हें अब तक नहीं दिया जाता है। वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान सेज से होने वाले निर्यात में मात्र 15.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई जबकि इससे पहले वित्त वर्ष के दौरान यह बढ़ोतरी दर 43 फीसदी थी। वर्ष 2008 से 2012 के मार्च तक 48 सेज की अधिसूचनाएं रद्द की गईं।
सूत्रों के मुताबिक ईओयू स्कीम के तहत आयकर छूट के प्रावधान खत्म होने से इस स्कीम का अस्तित्व लगभग समाप्ति की ओर है। सैकड़ों यूनिट स्कीम से बाहर हो चुकी हैं। स्कीम को पुनर्जीवित करने के लिए सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क व सेवा कर जैसे करों से छूट की सिफारिश वित्त मंत्रालय से की जा सकती है।
ईओयू स्कीम के तहत यूनिट लगाने की न्यूनतम निवेश सीमा भी बदली जा सकती है। एक ईओयू से दूसरे में किसी सेवा के स्थानांतरण पर सेवा कर से छूट मिल सकती है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र
विशेष आर्थिक क्षेत्र अथवा सेज़ (एसईजेड) उस विशेष रूप से पारिभाषित भौगोलिक क्षेत्र को कहते हैं, जहां से व्यापार, आर्थिक क्रिया कलाप, उत्पादन तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियों को किया जाता है। यह क्षेत्र देश की सीमा के भीतर विशेष आर्थिक नियम कायदों को ध्यान में रखकर व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विकसित किए जाते हैं।
http://www.bharat.gov.in/spotlight/spotlight_archive.php?id=63
प्रदर्शन एवं कार्यकरण
नीतियां एवं कानून
स्थापना, सुविधाएं एवं वितरण
प्रशासन एवं निगरानी
प्रदर्शन एवं कार्यकरण
भारत उन शीर्ष देशों में से एक है, जिन्होंने उद्योग तथा व्यापार गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष रूप से ऐसी भौगोलिक इकाईयों को स्थापित किया। इतना ही नहीं, भारत पहला एशियाई देश है, जिसने निर्यात को बढ़ाने के लिए सन 1965 में कांडला में एक विशेष क्षेत्र की स्थापना की थी। इसे निर्यात प्रकिया क्षेत्र (एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन/ईपीजेड) नाम दिया गया था।
सेज के प्रदर्शन एवं कार्य के बारे में जानकारी:
परिचालित एसईजेड की सूची (60 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड निर्यात प्रदर्शन- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
विशेष आर्थिक जोन से निर्यात 2009-2010 (44 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
विशेष आर्थिक जोन पर तथ्य पत्रक (12 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
विदेश व्यापार पर प्रदर्शन विश्लेषण प्रणाली (एफटीपीए)- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
नीतियां एवं कानून
एसईजेड को आर्थिक विकास का पैमाना बनाने के लिए इसे उच्च गुणवत्ता तथा अधोसंरचना से युक्त किया जाता है तथा इसके लिए सरकार ने वर्ष 2000 में विशेष आर्थिक जोन नीति भी बनाई है, जिससे अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारत में आएं।
आयात-निर्यात (एक्सिम) नीति-2000 के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं क्लिक करें।
इस नीति का एकमात्र उद्देश्य व्यापार को बढ़ावा देना है। इससे विदेशी निवेश बढ़ेगा तथा किसी भी पूर्व निर्धारित मूल्य संवर्धन या न्यूनतम निर्यात संवर्धन निष्पादन के लिए आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
सरकार की दृष्टि की परिणति, विशेष आर्थिक जोन अधिनियम, 2005 के रूप में पारित की गई, जिसका उद्देश्य निर्यात के लिए आधिकारिक तौर पर अनुकूल मंच प्रदान करना है। नए अधिनियम में एसईजेड इकाईयों तथा एसईजेड विकसित करने वालों के लिए कर में छूट का प्रावधान भी किया गया है।
केंद्रीय विधान
विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम, 2005 (416 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड के नियम एवं संशोधन- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
सूचनाएं / परिपत्र- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
निर्देश- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
ग्रीन एसईजेड के लिए मसौदा तथा निर्देश (64 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
राज्य सेज अधिनियम
गुजरात एसईजेड अधिनियम (164 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
हरियाणा एसईजेड अधिनियम (116 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
मध्यप्रदेश एसईजेड अधिनियम (140 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
पश्चिम बंगाल एसईजेड अधिनियम (80 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
तमिलनाडु एसईजेड अधिनियम (492 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
पंजाब एसईजेड अधिनियम (64 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
राज्य एसईजेड नियम- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
राज्य एसईजेड नीतियां
झारखंड विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति (40 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
उत्तर प्रदेश एसईजेड संशोधित नीति– 2007 भाग - एक (92 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
उत्तर प्रदेश एसईजेड संशोधित नीति – 2007 भाग - दो (100 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
कर्नाटक विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति– 2009 (84 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
कर्नाटक राज्य परिचालनात्मक नीति दिशा-निर्देश- 2009 (448 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
पंजाब विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति - 2005 (20 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
चंडीगढ़ प्रशासन विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति- 2005 (28 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
केरल विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति -2008 (732 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
पश्चिम बंगाल विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति (1.82 MB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
महाराष्ट्र विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति (2.46 MB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
मध्यप्रदेश विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति (48 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम, 2005 (416 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
इन प्रावधानों के अलावा, यह अधिनियम, आयात-निर्यात एवं वैश्विक स्तर पर मुक्त व्यापार को स्थापित करने में सहायक है। साथ ही आयात एवं निर्यात के लिए विश्व स्तर की सुविधाएं भी उपलब्ध करा रहा हे। इस अधिनियम का उद्देश्य एसईजेड को आधिकारिक रूप से सशक्त बनाने तथा उसे स्वायत्तता प्रदान करना है जिससे एसईजेड से जुड़ी जांच एवं प्रकरणों का निपटारा जल्द से जल्द किया जाए।
स्थापना, सुविधाएं एवं वितरणवर्तमान में एसईजेड को निजी या सार्वजनिक क्षेत्र स्थापित कर सकता है या फिर इसे किसी के साथ मिलकर संयुक्त उद्यम के तहत भी स्थापित किया जा सकता है। एसईजेड में वस्तुओं के निर्माण, सेवाओं की उपलब्धता, निर्माण से संबंधित प्रक्रिया, व्यापार, मरम्मत एवं पुननिर्माण इत्यादि का कार्य किया जा रहा है।
एसईजेड के लिए प्रोत्साहन एवं विशेष आर्थिक सुविधाओं की पेशकश- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
एसईजेड की स्थापना के पहले अधिसूचना अधिनियम, 2005 (132 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड की औपचारिक स्वीकृति के लिए सेज अधिनियम, 2005 (140 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड की मंजूरी के लिए सिद्धांत, सेज अधिनियम 2005 के अंतर्गत (64 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड का राज्यवार वितरण (12 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एसईजेड का क्षेत्रवार वितरण (12 KB)- पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
प्रशासन एवं निगरानीएसईजेड को तीन स्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था से नियंत्रित किया जाता है। एक शीर्ष निकाय अनुमोदन बोर्ड की तरह कार्य करता है और यह अनुमोदन समिति के साथ क्षेत्रीय स्तर पर एसईजेड से संबंधित मामलों से सरोकार रखता है। क्षेत्रीय स्तर पर एसईजेड की स्थापना के लिए ज़ोन स्तर की अनुमोदन समिति से अनुमति लेना आवश्यक है।
एसईजेड की इकाईयों के प्रदर्शन का समय-समय पर विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण अनुमोदन समिति करती है तथा अनुमोदन करने की शर्तों का अथवा विदेशी व्यापार अधिनियम (विकास एवं विनियमन) का उल्लंघन होने पर संबंधित इकाई या संगठन को दंडित करने के लिए भी यही जिम्मेदार है।
मंजूरी बोर्ड- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
अनुमोदन समिति की इकाई की बैठक- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
राज्य स्तर की एकल खिड़की समिति की बैठक- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
Last Updated (Saturday, 16 June 2012 22:19)
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