Saturday, 25 February 2012 12:40 |
सुनील जनसत्ता 25 फरवरी, 2012: जब पूरे देश की निगाहें पांच राज्यों में हो रहे चुनावों पर थीं, तब केंद्र सरकार ने चुपचाप एक बड़ा फैसला किया। शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के शहादत दिवस के ठीक अगले दिन 31 जनवरी को भारत के इतिहास के सबसे बडेÞ हथियारों के सौदे को मंजूरी दे दी गई। करीब चौवन हजार करोड़ रुपए के इस सौदे में भारत फ्रांस से राफाल नामक एक सौ छब्बीस लड़ाकू विमान खरीदेगा। यानी एक विमान की लागत करीब चार सौ उनतीस करोड़ रुपए होगी। यह इतना बड़ा सौदा है कि इसकी प्रतिस्पर्धा में यूरोप के चार अन्य देशों- ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन और इटली- ने मिल कर लड़ाकू विमान देने की निविदा लगाई थी और फैसला होने के बाद भी उन्होंने राजनयिक स्तर पर इसे बदलवाने की कोशिश की। देश के केवल बीस फीसद बच्चे कक्षा बारह तक की शिक्षा हासिल कर पाते हैं। क्या ऐसे में हथियारों पर इतना पैसा लुटाना देश के लोगों के प्रति किसी गुनाह से कम है? हाल ही में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून के लिए पैसा कहां से आएगा, यह सोच कर उन्हें नींद नहीं आती। तब हथियारों की इस महा-खरीदी के लिए पैसा कहां से आता है? इस पर उनकी नींद क्यों नहीं हराम होती? हमारी सरकारें विदेशी हथियार उद्योग पर इतनी मेहरबान और देश की जनता के लिए इतनी कंजूस और क्रूर क्यों हैं, यह सवाल पूछने का वक्त आ गया है। देश की जरूरतों और प्राथमिकताओं के ठीक विपरीत किए जा रहे इन रक्षा सौदों के पीछे बड़ी कमीशनखोरी के लालच और भ्रष्टाचार की गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत में बडेÞ घोटालों की शुरुआत तो बोफर्स तोपों के सौदे से ही हुई। इसके बाद भी जर्मन पनडुब्बी से लेकर करगिल के ताबूत तक के सौदों में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। मिग विमान का सौदा भी काफी विवादास्पद रहा है और इस विमान ने कई दुर्घटनाओं में पायलटों और नागरिकों की जान ली है। यह मामला इतना चर्चित रहा है कि इस पर आमिर खान ने 'रंग दे बसंती' नामक फिल्म बना डाली। यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा क्षेत्र उभर कर आया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अधूरी रहेगी, अगर वह रक्षा और हथियारों के नाम पर इस देश-लुटाऊ कारोबार पर सवाल नहीं खड़ा करेगी। समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिंहा ने करीब तीन दशक पहले ही 'इकतरफा निशस्त्रीकरण' का विचार रखा था। उनका कहना था कि हथियारों का यह अर्जन दो मायनों में बेकार है। एक, हम कितने ही हथियार हासिल कर लें, दुनिया की बड़ी ताकतों के मुकाबले हम हथियारी ताकत में कमजोर और पीछे ही रहेंगे। दूसरा, आधुनिक जमाने में हथियारों के बल पर कोई भी देश दूसरे देश पर ज्यादा दिन कब्जा करके नहीं रख सकता। अगर उस देश की जनता मजबूत और संगठित हो, तो वही उस देश की सबसे बड़ी ताकत होगी। क्यूबा, विएतनाम, वेनेजुएला, दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देश इसके उदाहरण हैं। इसलिए हथियारों और फौज पर विशाल खर्च करने के बजाय देश के संसाधनों का उपयोग आम जनता की बुनियादी जरूरतों और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हासिल करने में किया जाना चाहिए। चीन या पाकिस्तान कुछ भी करें, हमें अपनी जनता की भलाई पर ध्यान और संसाधन केंद्रित करना चाहिए। शीत-युद्ध की समाप्ति के बाद उम्मीद थी कि दुनिया में हथियारों और फौज पर खर्च कम होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। उलटे यह तेजी से बढ़ रहा है। भले ही दुनिया में भूखे लोगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते एक अरब का आंकड़ा पार कर गई हो, पृथ्वी के संसाधनों का बड़ा हिस्सा संहारक हथियारों, फौज और मार-काट पर खर्च हो रहा है। सबसे ज्यादा खर्च अमेरिका का बढ़ा है जो उसके इराक, अफगानिस्तान जैसे विनाशकारी अभियानों की देन है। दुनिया का बयालीस फीसद फौजी खर्च अमेरिका करता है। उसके बाद फौजी खर्च करने वाले अगले पचीस देशों के कुल खर्च से भी ज्यादा खर्च उसका है। दरअसल, अपनी लूट, दबदबे और साम्राज्य को बनाए रखने के लिए उसको उत्तरोत्तर ज्यादा सैन्य-खर्च करना पड़ रहा है। अलबत्ता आर्थिक मंदी के चलते उसके सामने भी मुश्किलें आ रही हैं। दूसरी ओर इसी मंदी से निबटने और पूंजीवाद के संकट से उबरने के लिए दुनिया के अमीर देश हथियार उद्योग पर जोर दे रहे हैं। अन्य उद्योगों के मुकाबले हथियार उद्योग की यह खासियत है कि इसकी मांग में ठहराव नहीं आता है। हथियार कुछ दिन में पुराने पड़ जाते हैं और नए हथियारों का बाजार तैयार हो जाता है। इसलिए अमीर देश दुनिया के गरीब देशों के बीच हथियारों की होड़ को हवा देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। भारत और पाकिस्तान जैसे देशों की जन-विरोधी सरकारें उनके इस मकसद को पूरा कर रही हैं। पिछली सदी में अहिंसा और सत्याग्रह से आजादी हासिल करने वाले बुद्ध, महावीर और गांधी के इस देश ने क्या कभी सोचा था कि एक दिन वह इंसानों का कत्लेआम करने वाले संहारक हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार और पंूजीवाद-साम्राज्यवाद का संकट में सबसे बड़ा सहारा बनने की भूमिका में पहुंच जाएगा? |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Saturday, February 25, 2012
हथियारों के बाजार में
हथियारों के बाजार में
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