BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, February 25, 2012

एक और तेल युद्ध की शुरुआत! (10:02:58 AM) 26, Feb, 2012, Sunday




एक और तेल युद्ध की शुरुआत!
(10:02:58 AM) 26, Feb, 2012, Sunday
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मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

देशी कंपनियों का बारह बजना महज औपचारिकता है।
मंदी की मार से अब तक बच निकली भारतीय अर्थ व्यवस्था और भारतीय राजनय दोनों के सामने ​​कठिन परीक्षा की घड़ी है। 


एक और तेल युद्ध की शुरुआत हो गयी है।  दुनिया में करीब 40 फीसदी कच्चे तेल की आपूर्ति ठप हो जाएगी।  इंडस्ट्री के दिग्गजों को डर है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से महंगाई बढ़ेगी और इससे ब्याज दरों के घटने की उम्मीदें कम हो जाएंगी। यही नहीं उन्हें इस बात का भी डर है कि कच्चे तेल की बढती कीमतों का असर लागत पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी [आईएईए] की एक गोपनीय रिपोर्ट के बाद शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई। रिपोर्ट में ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम में विस्तार की बात कही गई है। मंदी की मार से अब तक बच निकली भारतीय अर्थ व्यवस्था और भारतीय राजनय दोनों के सामने ​​कठिन परीक्षा की घड़ी है। बढ़ी हुई तेल कीमतों से निबटने में प्रणव मुखर्जी  क्या नूस्खा अपनाते हैं, उद्योग जगत को इसी का इंतजार है। इस​ ​ बीच वाशिंगटन के हस्तक्षेप से ईरान के बदले सऊदी अरब से तेल आयात लगभग तय हो गया है। ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी से​ ​ विदेशी निवेशक एक बार फिर मैदान में है। देशी कंपनियों का बारह बजना महज औपचारिकता है। भारत सरकार की आँखों का तारा ये नवरत्न तेलकम्पनियाँ दीवालिया ही हो जायेंगीं ।

मालूम हो कि  भारत ने चीन के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि वह ईरान पर लगे अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बावजूद वह ईरान से तेल आयात में कटौती नहीं करेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत ईरान से पेट्रोलियम आयात में कमी नहीं करेगा। ईरान से तेल आयात में कटौती करना भारत के लिए संभव नहीं है। ईरान एक ऐसा देश है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं की जरूरतों को पूरा कर सकता है। पर युद्ध छिड़ने की स्थिति में क्या भारत अमेरिका और इजराइल के खिलाफ जा सकता है। अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के युद्ध में भारत की क्या भूमिका थी?  सद्दाम हुसैन के पतन के बाद तो कच्चा तेल की समस्या दिनोंदिन विकराल होती रही।  बजट पर कच्चा तेल का हमेशा दबाव रहा है। अब जरूर सरकार सब्सिडी घटाकर इस संकट से निजात पाने की कोशिश कर रही है। देशी तेल कंपनियों का बोझ बार बार बेल आउट के बावजूद घटता नजर नहीं आता। तो अब क्या होना है? सरकारी तेल उत्पादक कंपनियों पर सब्सिडी बोझ बढऩे की खबर से बाजार ऊपरी स्तरों से फिसले। बाजार ने कई बार रिकवरी दिखाई, लेकिन बाजार पर मुनाफावसूली का दबाव भारी पड़ा, ऐसा नजारा हमें बार बार देखना पड़ता है। अब राजस्व और संसाधन पर दोहरा दबाव और सुरसामुखी वित्तीय घाटा के मुकाबले अलग से तेल कंपनियों को बचाने के लिए प्रणव दादा क्या करतब कर दिखाते हैं, यही देखना बाकी है।

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें जब भी बढ़ती हैं तो सरकार और तेल कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

वैश्विक बाजार में मजबूत रुख के बीच सटोरियों की लिवाली से कच्चे तेल की कीमत शुक्रवार को 1.24 फीसदी बढ़कर 5,396 रुपये प्रति बैरल रही। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में कच्चे तेल की कीमत अप्रैल डिलिवरी के लिए 66 रुपये यानी 0.124 फीसदी बढ़कर 5,396 रुपये प्रति बैरल रही। इसमें 397 लाट के लिए कारोबार हुआ।बजट के दबाव के बीच अब सरकार न इस संकट से ऊबर पा रही है और न ही इसे नजरअंदाज करने की स्थिति में दिख रही है। ऐसे में भारत सरकार की दिक्कतें और भी बढ़ने के कयास लगाए जाने लगे हैं।मैर्क्वायरी की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान तेल संकट से सरकार की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इसके अलावा देश की तेल कंपनियों पर भी असर पड़ेगा। भारत जरूरत का 9 फीसदी कच्चा तेल ईरान से आयात करता है। मैक्वायरी के एमडी (ऑयल एंड गैस रिसर्च), जल ईरानी का कहना है कि ईरान से सप्लाई रुकने से कच्चे तेल में उबाल जारी रह सकता है।

इसी प्रकार, मार्च अनुबंध के लिए तेल की कीमत 65 रुपये या 1.23 फीसदी बढ़कर 5,345 रुपये प्रति बैरल रही। इसमें 8,995 लॉट के लिए कारोबार हुआ। विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका तथा जर्मनी में बेहतर आर्थिक आंकड़ों और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंता के कारण तेल की कीमत में तेजी दर्ज की गई।

इस बीच, न्यूयार्क मर्केन्टाइल एक्सचेंज में अप्रैल डिलिवरी के लिए कच्चे तेल की कीमत 64 सेंट बढ़कर 108.47 डॉलर प्रति बैरल रही।

भविष्य में तेल आयात की समस्या अर्थव्यवस्था के लिए मुसीबत नहीं खड़ी कर दे इसलिए पेट्रोलियम राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने सऊदी अरब के सहायक पेट्रोलियम मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज से आगामी वर्षों में आयात बढ़ाने के पेशकश की है। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्प लिमिटेड (एचपीसीएल) अगले वित्त वर्ष में सऊदी अरब से तेल आयात को दोगुना करेगी और ईरान से होने वाली खरीद 14 फीसदी घटाएगी। कंपनी के सूत्रों ने बताया कि एचपीसीएल ने 2012-13 में सऊदी अरब के सऊदी ऐराम्को से 35 लाख टन कच्चा तेल खरीदने का प्रस्ताव किया है जबकि पिछले साल कंपनी ने यहां से 17.5 लाख टन कच्चा तेल खरीदा था।

रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि पश्चिमी देश निशस्त्रीकरण अभियान का प्रयोग ईरान में सत्ता परिवर्तन करने के लिए कर रहे हैं।समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार, पुतिन ने कहा, ''जनसंहार के हथियारों के निशस्त्रीकरण के बहाने परमाणु अस्त्र सम्पन्न ईरान में सत्ता परिवर्तन की कोशिश की जा रही है।''उन्होंने कहा, ''हमें इसके प्रभावों के विषय में शंका है। रूस, ईरान पर पश्चिमी देशों के रवैये एवं ईरान समस्या को सुलझाने के तरीके से असहमत है।''

ईरान द्वारा पिछले चार महीनों में यूरेनियम संवर्धन के काम में नाटकीय रूप से तेज़ी लाई गई है जिससे इस देश के परमाणु कार्यक्रम की सैन्य प्रकृति पर संदेह और पक्का हो गया है। यह बात पश्चिमी समाचार एजेंसियों के हाथ लगी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.) की एक रिपोर्ट में कही गयी है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, तेहरान इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दे सका है कि उस यूरेनियम धातु का इस्तेमाल कहाँ और कैसे किया गया था जिसका सरकारी रिकार्डों में कोई  लेखा नहीं मिला है। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट है कि पश्चिमी राजनयिकों के तर्क के अनुसार इस रेडियोधर्मी सामग्री का ईरान द्वारा परमाणु हथियार बनाने के लिए गुप्त रूप से किए जा रहे प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सप्ताह तेहरान में हुई बातचीत के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का यह शक कम नहीं हुआ है कि ईरान परमायु हथियार बनाने के प्रयास कर रहा है।

इजरायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने चेतावनी दी है कि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए सभी विकल्प खुले हैं।
 
उन्होंने कहा, 'परमाणु संपन्न ईरान न सिर्फ इस्राइल बल्कि पूरे विश्व के लिये सामरिक खतरा है। ईरान 'आचरण संबंधी भ्रष्टाचार'  का केंद्र बन चुका है और वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।' पेरेज ने जोर दे कर कहा कि इस्राइल को किसी भी खतरे से खुद का बचाव करने का अधिकार है और वह ऐसा करने में सक्षम भी है।

उन्होंने अमेरिकी यहूदी संगठनों के अध्यक्षों की एक बैठक में कहा 'जब हम कहते हैं कि सभी विकल्प खुले हैं तो यह बात मायने रखती है।' पेरेज ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर रूस, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं से बात की और उन्हें पता चला कि सभी देश अयातुल्ला के नेतृत्व और परमाणु बम के 'गठजोड़ से उत्पन्न होने वाले बड़े खतरे' से अवगत हैं।

सवाल उठ सकता है कि खाड़ी युद्ध के क्या दुष्परिणाम होंगे और बड़ा शिकार कौन होगा? निसंदेह तेलकी आपूर्ति और मांग में विकराल अंतर होगा और कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होगी? गौरतलब है कि आसन्न  तेल युद्ध के परिणामों से पहले ही अमेरिका अपना और इजराइल का पल्ला झाड़ रहा है।अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का ठीकरा एक बार फिर भारत और चीन के सिर पर फोड़ा है। ओबामा ने कहा कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों में तेल की मांग लगातार बढ़ रही है और इसके चलते अमेरिकियों को तेल के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं।ओबामा ने कहा कि 2010 में चीन में एक करोड़ नई कारें सड़कों पर आईं आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इन कारों के लिए कितने तेल की जरुरत होगी। भारत और चीन जैसे देशों में कारों की मांग लगातार बढ़ रही है वह अमेरिकियों की तरह नई कारें खरीदना चाहते हैं। गौरतलब है कि अमेरिका दुनिया का सबसे ज्यादा तेल खपत करने वाला देश है सबसे ज्यादा कारें भी अमेरिका में है। इसके बावजूद ओबामा तेल को लेकर भारत और चीन पर निशाना साधते रहते हैं।

एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख का कहना है कि इस बजट में एनर्जी सेक्टर पर फोकस करना बेहद जरूरी है। क्योंकि उर्जा क्षेत्र में निवेश किए बिना विकास दर में बढ़त के आसार कम हैं, साथ ही आर्थिक सुधारों पर भी फैसला लेना होगा। वहीं देश में विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार को जल्द से जल्द उचित कदम उठाने की जरूरत है।दीपक पारेख के मुताबिक अगले 6 महीनों में विनिवेश तेज हो सकता है। वहीं चुनावों के बाद पेट्रोल की कीमतों में एक बार फिर से बढ़ोतरी देखी जा सकती है। साथ ही आगामी बजट में सरकार डीजल से सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए अहम कदम उठा सकती है।। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने सीएनबीसी आवाज़ से खास बातचीत में आगामी बजट को लेकर अपने सुझाव बताए।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि बजट में किसी एक सेक्टर पर फ़ोकस नहीं किया गया है। बजट में हर सेक्टर की ज़रूरतों को देखते हुए क़दम उठाए गए हैं।

कच्चा तेल एक बार फिर बाजार और सरकार की सबसे बड़ी चिंता बन रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल पिछले 7 दिन से लगातार चढ़ रहा है। ब्रेंट क्रूड तो लगातार 5 हफ्ते से चढ़ रहा है।कच्चे तेल में इस लगातार तेजी के चलते अब नायमैक्स पर कच्चा तेल 109 डॉलर के ऊपर चला गया है। जबकि भारत के लिए अहम ब्रेंट क्रूड 125 डॉलर पर पहुंच गया है। कच्चे तेल में ये तेजी ईरान से सप्लाई की कमी की आशंका के चलते देखने को मिल रही है।जबकि ताजा हालत यह है कि ईरान से अब तेल आने वाला नहीं है। बढ़ी हुई कीमत पर सऊदी अरब से नई शर्तों के मुताबिक तेल लाया जायेगा। इस बीच यूरोपीय यूनियन ने जुलाई से ईरान से कच्चे तेल के आयात पर रोक लगाने की धमकी दी है।ईरान ने भी स्टेट ऑफ होरमुज के रास्ते को रोक देने की चेतावनी दे डाली है। स्टेट ऑफ होरमुज के रास्ते दुनिया को करीब 20 फीसदी कच्चे तेल की आपूर्ति होती है।


 आईएईए की रिपोर्ट में ईरान और पश्चिमी देशों के बीच अधिक टकराव को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। न्यूयॉर्क मर्कटाइल एक्सचेंज में अप्रैल के लिए लाइट, स्वीट कच्चे तेल की आपूर्ति 1.94 डॉलर [1.80 प्रतिशत] की वृद्धि के साथ 109.77 डॉलर प्रति बैरल हो गई। इस सप्ताह प्रति बैरल कच्चे तेल की आपूर्ति में 6.53 डॉलर [69.33 प्रतिशत] की वृद्धि हुई।लंदन में ब्रेंट कच्चे तेल की अप्रैल की आपूर्ति में भी वृद्धि हो गई है और अंतिम कारोबार 125 डॉलर प्रति बैरल पर हुआ। इस तरह कीमत में छह प्रतिशत की साप्ताहिक वृद्धि दर्ज की गई। ज्ञात हो कि अमेरिका और यूरोप ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लागू कर दिए हैं। दुनियां का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक जापान, अमेरिकी दबाव में ईरानी कच्चे तेल के आयात में 20 प्रतिशत तक की कटौती कर सकता है।

सरकार माल व सेवा कर (जीएसटी) को जल्दी से जल्दी लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बुधवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित सीमा शुल्‍क और केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्क विभाग के एक समारोह के दौरान यह बात कही। उनका कहना था कि जीएसटी देश के अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के इतिहास में सबसे अहम सुधार है। उद्योग व व्यापार जगत ही नहीं, तमाम अर्थशास्त्री व विशेषज्ञ में इसे बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार मानते हैं।जीएसटी को अप्रैल 2010 से ही लागू किया जाना था। लेकिन राज्यों, खासकर बीजेपी शासित राज्यों के विरोध के कारण यह बराबर टलता जा रहा है। वित्त मंत्री ने सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त 35 अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशस्ति पत्र देने के बाद कहा कि जीएसटी कराधान के मामले में और अधिक सक्षम प्रणाली के तौर पर सामने आएगा और इससे केन्‍द्र और राज्‍यों के कर राजस्‍व में वृद्धि होने की संभावना है।वित्‍त मंत्री ने कहा कि जीएसटी राज्‍यों के बीच आने वाले अवरोधों को भी दूर करेगा और समूचे देश को एक समान बाजार में परिवर्तित करेगा। उन्‍होंने कहा कि एक बार कार्यान्वित हो जाने के बाद जीएसटी देश में अप्रत्‍यक्ष कराधान के क्षेत्र में एक मिसाल कायम करेगा।

इस बीच किसानों की आत्महत्या और खेती किसानी करने वाले लोगों और ग्रामीण भारत की दुर्दशा को देखते हुए देश भर के किसान संगठनों ने 'किसान आंदोलन की भारतीय समन्वय समिति' के तहत बजट के पहले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को अपनी मांगों की सूची सौंपी है। अपने पत्र में समिति ने लिखा है कि भारत के कृषि क्षेत्र और खेती से जुड़े लोगों की स्थिति में सुधार के लिए इनके अनुकूल बजट पेश किए जाने की जरूरत है। अगर देश को गरीबी, भूख, पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से निपटना है तो ऐसा करना जरूरी होगा। समिति ने ध्यान दिलाया है कि बजट में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में रखा जाना चाहिए, जिससे इस क्षेत्र का पुनरुद्धार किया जा सके। इसमें प्राथमिक तौर पर छोटे, मझोले और सीमांत किसानों और महिलाओं के साथ कृषि मजदूरों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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