Wednesday, 29 February 2012 10:23 |
रमेश दवे अगर हमारे नारेबाज बौद्धिक अवसर-आह्लाद के इतने प्रेमी हैं, तो उन्हें कह देना चाहिए कि कुछ पार्टी विशेष का सत्ता-पक्ष ही उनकी बौद्धिक मरुभूमि है। कट्टरता और सांप्रदायिकता के निहायत इकतरफा इल्जामों के साथ वे जो वाणी का दुरुपयोग करते हैं, उस पर उन्हें आत्मचिंतन भी करना होगा। वे गरीब के पक्ष में बोलते हैं, लेकिन गरीबों के पक्ष में किसी सत्ता से कोई सार्थक लड़ाई लड़ी हो, इसके प्रमाण कुछ राज्यों में अपवाद के रूप में दिखाई देते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बुद्धिजीवी कहलाने वाले अधिकतर लोगों का आचरण छद्म या दोहरा है। कहने को वे कट्टरता का विरोध करते हैं, पर एक तरह की असहिष्णुता और कट्टरता को वे स्वयं पाले रहते हैं। साहित्यकारों को बुद्धिजीवी कहलाने का बड़ा शौक है। साहित्य अगर हित का सहगामी है, तो उसमें सर्वहित की उदारता और सहिष्णुता आवश्यक है। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप जन या प्रगति के पक्ष की तो बात करें, मगर वह जन आपकी प्रगति के खाने में सर्वजन नहीं होता। आपने अपने जन का भी बंटवारा कर लिया है। साहित्य का लोकतंत्र तो सर्वाधिक उदार और उदात्त लोकतंत्र होना चाहिए, लेकिन यहां एक खेमा दूसरे के मंच या आयोजन में नहीं जाता और उस मंच को गाली देता है। अगर विचार के आधार पर असहमति है, तो उस मंच पर जाकर असहमति का साहस दिखाना आवश्यक है, लेकिन जो विशेष विचार से बंधे बुद्धिजीवी हैं, उन्हें अपने और अपने कुछ चुने हुए अल्पसंख्यकों, दलितों के अलावा बाकी पूरा देश सांप्रदायिक लगता है। जिस आरएसएस या ऐसे अन्य संगठनों को वे देशद्रोही बताने की हद तक जाकर कोसते हैं, क्या वे स्वयं उनसे कम कट्टर हैं? आप जिस बौद्धिक जीवन को जीते हैं वह कितना देशज है, स्वदेशी है, लोक-संवेदी है, यह भी तो सोचें? आप जिस कट्टरता के साथ अन्य का बहिष्कार, तिरस्कार या विचार के नाम पर दुष्प्रचार करते हैं, वैसी कट्टरता तो संभवतया न मार्क्स के घोषणापत्र में है, न किसी भी ऐसे राजनीतिक संगठन में जो लोकतंत्र में अपना हस्तक्षेप करने के लिए स्वतंत्र है। अब समय आ गया है जब आंख मूंद कर विरोध करने की प्रणाली को आंख खोल कर जायज और निष्पक्ष या निरपेक्ष विरोध करने की प्रणाली अपनानी होगी। पुरानी तरह की प्रतिबद्धताओं का जमाना लद गया है, अब उनकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई है। नई निष्ठाएं और नए मूल्य विकसित करने होंगे। इतिहास की गति और घटनाओं को समझने के कुछ नए वैचारिक औजार भी गढ़ने होंगे। बौद्धिक की नई भूमिका में एक तरफ जन-सरोकारों का महत्त्व होगा तो दूसरी तरफ व्यक्ति की स्वतंत्रता का भी। सत्ताएं तो स्वभाव से ही निरंकुश होती हैं जिसके उदाहरण ब्रिटिश राज से लेकर छियासठ वर्ष के लोकतंत्र में हम देख चुके हैं। इसलिए लोकतंत्र की जनप्रतिनिधि आधारित सत्ता भी असहिष्णु और निरंकुश हो तो आश्चर्य ही क्या? अगर यूनान की घाटियों में दुनिया के पहले गणतंत्र बने थे, तो वहां भी निरंकुश सत्ता ने सुकरात की हत्या की थी। जब-जब जहां-जहां बौद्धिक शक्ति सत्ता-शक्ति से टकराई है, वहां सत्ता ही जीती है। ईसा को सूली पर लटकाने वाले, मोहम्मद साहब पर पत्थर फेंकने वाले, गांधी को गोली मारने वाले, मार्टिन लूथर किंग और पेट्रिस कुसुंबा की हत्या करने वाले, नेल्सन मंडेला को छब्बीस साल तक जेल में रखने वाले, बर्मा (म्यांमा) की नेता सू की को आधी उम्र तक फौजी तानाशाही की कैद में रखने वाले, जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाने वाले या तो सत्ता की शक्ति से जुड़े थे या विचार की कट्टरता से। सत्ता का चरित्र अगर लोकतंत्र में भी इतना हिंसक है तो फिर जनता भी अगर अपराध का चरित्र अपनाने लगे तो उसमें आश्चर्य क्या? भारत के पास आधी इक्कीसवीं सदी तक पचास प्रतिशत से अधिक युवा शक्ति होगी। अगर जनप्रतिनिधि ही अपराध तंत्र में लिप्त होंगे, शासक-प्रशासक भ्रष्ट, निरंकुश और दमनकारी होंगे तो लोकतंत्र का सर्वाधिक निरपराध निरीह लोक और सच्चा बौद्धिक जिएगा किसके भरोसे? अगर सत्ता की नीतियों या आचरण के विरुद्ध कोई जन आंदोलन करेगा और उसके विरुद्ध आप फौजदारी कानून की धाराओं के धारदार हथियार लेकर दौड़ेंगे तो लोकतंत्र में असहमति जताने के अधिकार का क्या होगा। बुद्धिजीवी ऐसे आंदोलनों से असहमत क्यों होता है, जो सरकार का जायज विरोध करते हैं। जयप्रकाश आंदोलनों से लेकर आज तक कई आंदोलनों में बौद्धिकों का आचरण संदेहप्रद रहा है, यहां तक कि सत्ता समर्थक रहा है। क्या आम जन को देश की सत्ता की सही जानकारी देना, बौद्धिक अपराध है? सोचना होगा उनको, जो बुद्धि का अपव्यय कर रहे हैं, केवल अपने स्वार्थों की रक्षा और स्वयं की सुरक्षा के लिए!
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BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Wednesday, February 29, 2012
मौन बौद्धिक मुखर सत्ता
मौन बौद्धिक मुखर सत्ता
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