Wednesday, 01 February 2012 10:30 |
धर्मेंद्र सिंह सन 2007 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ग्यारह फीसद और 2002 विधानसभा चुनाव के मुकाबले पंद्रह फीसद वोटों का इजाफा हुआ। जबकि बसपा को 2002 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले आठ फीसद और 2007 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले एक फीसद का फायदा हुआ। समाजवादी पार्टी से मुसलिम आधार में दरार पड़ गई थी। यही वजह थी कि 2007 में समाजवादी पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। सपा को 2002 के विधानसभा चुनाव में मुसलिम मतदाताओं के चौवन फीसद, 2007 के विधानसभा चुनाव में सैंतालीस फीसद और 2009 के लोकसभा चुनाव में महज तीस फीसद वोट मिले। यानी 2002 के मुकाबले 2009 में करीब चौबीस फीसद मुसलिम मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी से मुंह फेर लिया था। न तो भाजपा को मुसलिम वोटों की जरूरत है न ही मुसलिम मतदाता भाजपा को पसंद करते हैं। इसके बावजूद तीन फीसद मुसलिम मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था। इस बार भाजपा ने सिर्फ एक मुसलिम उम्मीदवार खड़ा किया है। यह भी साफ है कि बिना मुसलिम समर्थन के कांग्रेस अपनी खोई हुई शक्ति फिर से नहीं पा सकती। लोकसभा चुनाव जैसी कामयाबी दोहराने के लिए कांग्रेस ने आरक्षण का दांव तो चला ही, इस बार मुसलिम उम्मीदवार खड़े करने में भी उसने कोई कोताही नहीं की है। पिछली बार कांग्रेस के छप्पन मुसलिम उम्मीदवार थे तो इस बार इकसठ हैं। इस तादाद में वह और भी इजाफा कर सकती थी,लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठजोड़ की वजह से ऐसा नहीं कर सकी। अब भला मायावती क्यों पीछे रहतीं। इस बार उन्होंने ब्राह्मणों के बजाय मुसलिम मतदाताओं से अधिक आस लगा रखी है। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले बसपा के इकसठ मुसलिम उम्मीदवार थे, इस बार पचासी हैं। कांग्रेस के आरक्षण कार्ड खेलने से पहले ही बसपा आरक्षण का यह पासा फेंक चुकी थी। मायावती ने इस आरक्षण की मांग को लेकर केंद्र को चिट्ठी लिखी थी। समाजवादी पार्टी, जो मुसलिम समर्थन के बूते सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है, उसने चौरासी मुसलिम उम्मीदवार खड़े किए हैं, बसपा से सिर्फ एक कम। पिछली बार उसने इस समुदाय से सत्तावन उम्मीदवार ही खडेÞ किए थे। 403 विधानसभा सीटों में से सौ से सवा सवा सौ सीटों पर मुसलिम मतदाताओं की अहम भूमिका रहती है। लेकिन पिछले चुनाव में सिर्फ चौवन मुसलिम उम्मीदवार ही जीत पाए। इनमें से उनतीस बसपा से जीते थे, जबकि समाजवादी पार्टी से सिर्फ उन्नीस; छह उम्मीदवार अन्य दलों से। गौर करने की बात है कि कांग्रेस के टिकट पर पिछली बार एक भी मुसलिम उम्मीदवार नहीं जीत पाया था। कांग्रेस चुनावी मौसम में मुसलिम मतदाताओं को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती है भले इससे उसे फायदा हो या नहीं। तभी तो सलमान रुश्दी के जयपुर आने के मुद्दे पर कांग्रेस का ढुलमुलपन देश के सामने आ गया। जयपुर साहित्य समारोह में शिरकत करने का रुश्दी का कार्यक्रम जिस तरह रद्द किया गया, उसके पीछे वोट की ही राजनीति है। कांग्रेस डर गई कि मुसलिम संगठनों के विरोध के बावजूद अगर रुश्दी को जयपुर के कार्यक्रम में शामिल होने दिया गया तो मुसलिम मतदाता बिदक जाएंगे। सलमान रुश्दी अपना कार्यक्रम रद्द होने से बेहद आहत हुए। उन्होंने कहा कि यह सब उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुसलिम वोट हासिल करने के लिए किया गया है। कांग्रेस की इस मुद्दे पर काफी फजीहत हुई, लेकिन इससे पार्टी को क्या फर्क पड़ता है! यही नहीं, चार साल के बाद एक गडेÞ मुर्दे को उखाड़ा गया। बटला हाउस मुठभेड़ पर भी राजनीति शुरू हो गई। दिग्विजय सिंह अपने बयान पर कायम हैं तो उनकी पार्टी और सरकार ने उनके बयान से किनारा कर लिया है। भाजपा इस मुद्दे पर कांग्रेस और सरकार दोनों को घेरना चाहती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या अब इस मुद्दे को उछालने से भाजपा और कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के चुनाव में फायदा मिलेगा? आरक्षण के अलावा इस चुनाव में और भी कई मुद््दे उछाले गए हैं। बसपा विकास के नाम पर चुनाव के ठीक पहले तुरुप का पत्ता फेंक चुकी है। एक राज्य के गठन में सालों लग जाते हैं। लेकिन मायावती ने एक नहीं बल्कि चार राज्य बनाने का प्रस्ताव विधानसभा से पास करा दिया। मंजूरी के लिए वे यह प्रस्ताव केंद्र के पास भेज चुकी हैं। उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन करके चार राज्य बनें या न बनें, चुनावी मौसम में इस मुद्दे को भुनाने का मौका तो मायावती को मिल ही गया है। चुनावी महादंगल में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती है। उनकी घोषणाएं और वादे भले ही अटपटे हों, और उन्हें पूरे करने की राह में चाहे जितनी संवैधानिक अड़चनें हों, पर पार्टियों को इसकी कोई परवाह नहीं है। उनका एक ही मकसद है, किसी तरह से वोट हासिल करना। जहां सब एक ही थैली के चट््टे-बट््टे नजर आएं, वहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि वास्तव में चुनने को है क्या! सत्ता परिवर्तन का मतलब विकल्प नहीं है। जबकि जनता विकल्प चाहती है। |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Wednesday, February 1, 2012
उत्तर प्रदेश की बिसात
उत्तर प्रदेश की बिसात
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