Monday, 30 January 2012 09:50 |
मणींद्र नाथ ठाकुर जनसत्ता 30 जनवरी, 2012: गांधी की मृत्यु की खबर से विचलित होकर नेहरू ने कहा था कि 'हमारी जिंदगी से रोशनी चली गई है'। शायद यह शोक व्यक्त करने का उनका अपना अंदाज हो, या फिर वे गांधी के इस तरह अचानक चले जाने पर देश के मानस में उपजे दर्द को अभिव्यक्त करना चाहते हों। लेकिन क्या गांधी-विचार के आधार पर नेहरू के इस वक्तव्य के महत्त्व को जांचा जा सकता है! गांधी के दैहिक रूप से अनुपस्थित हो जाने से आखिर किस 'रोशनी' का अभाव हो गया, जिसने स्वतंत्र भारत को बेहद प्रभावित किया। इस प्रश्न के कई जवाब हो सकते हैं। उनका मानना है कि सत्य बहुआयामी है और किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह को किसी भी समय सत्य के सभी आयामों की जानकारी हो सके, यह संभव नहीं है। प्रकृति के नियमों के अलावा बाकी सत्य संस्कृति-सापेक्ष भी हो सकता है। ऐसे में अपने से विपरीत विचारों के लोगों को अपना विरोधी मान लिया जाए और उनकी हत्या कर दी जाए यह सर्वथा अनुचित है। उनके अनुसार, आवश्यकता मीमांसा के इस आयाम को समझ कर सभ्यताओं, ज्ञान-परंपराओं और लोगों के बीच उचित संवाद स्थापित करने की है। और इसके लिए दोनों पक्षों को अपने-अपने सत्य के प्रति निष्ठावान होना ही चाहिए और उसके लिए आग्रह भी करना चाहिए। लेकिन साथ ही दूसरे के दृष्टिकोण के प्रति भी सम्मान रखना चाहिए। संवाद की इसी प्रक्रिया को गांधी सत्याग्रह का नाम दिया करते थे। |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Monday, January 30, 2012
रोशनी बुझी नहीं
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/10069-2012-01-30-04-21-06
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