BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, September 5, 2010

शिवराज का लंगर और भूखे पत्रकार

शिवराज का लंगर और भूखे पत्रकार

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकारी खर्चे से भोजन कराने का बहुत शौक है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री आवास का सत्कार व्यय सालाना एक से दो करोड़ के आस-पास बैठता है. वैसे यहां हम सीएम की फिज़ूलखर्ची की चर्चा नहीं कर रहे हैं. चर्चा तो उनके लंगर के आयोजन की है. हुआ यूं कि 2 सितम्बर श्री कृष्ण जन्माष्टमी को शिवराज ने पत्रकारों को रात्रिभोज पर बुलवाया. सीएम का पीआर संभालने वाले अधिकारी सभी को फोन करते हैं, इस क्षेपक के साथ..."सपरिवार आइयेगा. बहुत सेलेक्टेड लोगों को बुलाया गया है. लोकल मीडिया तक को नहीं बुलाया गया. ज़रूर आइये."

मैं बता दूं, इस क्षेपक की ज़रूरत क्यों पड़ी. दरअसल जब भी सीएम के यहां से सपरिवार आने का न्योता होता है,  कुछ लोगों को छोड़कर कोई परिवार लेकर नहीं जाता, क्योंकि वहां लंगर जैसा माहौल रहता है. कल इत्मीनान कराया गया तो कुछ लोगों ने हौसला कर लिया. सुबह से ही पत्नियों को ताकीद कर दी गई कि शाम को सीएम साहब के घर भोजन पर चलना है. शाम को कई बड़े अखबारों के मालिकान और संपादकनुमा / वरिष्ठ पत्रकार अपनी-अपनी पत्नियों के साथ पहुंच गए. उम्मीद थी कि माननीय शिवराज जी सपरिवार उनकी अगवानी करेंगे लेकिन देख कर भौचक रह गए वहां हमेशा की तरह कार्यकर्ता सम्मलेन जैसा माहौल है.

हज़ारों की तादात में छोटे, बड़े, मंझोले, लम्बे, नाटे, काले, पीले, गोरे लोग पहले से कुर्सियों पर काबिज़ हैं. बैठने को जगह नहीं. गेट पर अगवानी कर रहे थे भाजपा भोपाल के पूर्व और वर्तमान अध्यक्ष. अखबार मालिक तो कई सारे संभावित लाभ-शुभ के चलते कुछ कह नहीं सकते थे, लिहाजा जहां जगह मिली, कुर्सियों पर सपरिवार धंस गए. जो बच गए वे सीएम हाउस में लगे पेड़ों पर पुश्त टिकाकर खड़े हो गए. वहां एक मंच भी बना था जिसमे रविन्द्र जैन जी रामानंद सागर की रामायण मार्का स्वर लहरियां बिखेर रहे थे. पास ही जो भोजन के पंडाल थे वहां ऐसा माहौल मचा था, जैसा किसी भी रेलवे स्टेशन पर शताब्दी / राजधानी एक्सप्रेस की सफाई के वक्त बचे हुए खाने पर स्टेशन के आस-पास रहने वाले अनाथ लोग टूटते हैं.

जो पहली बार बीबीयों के साथ सीएम के घर अपना रौब गांठने गए थे उनके अरमान ठंडे पड़ गए. जिनके साथ थोड़ा बहुत बोलना सीख चुके बच्चे थे, वे पापा को कोहनी मारते कहने लगे, "पापा चलो कहीं और खाना खायेंगे पर यहाँ नहीं खायेंगे." खुद को तोप मानने वाली पत्रकारीय कौम भौचक थी कि क्या करें. अखबारों के मालिकों की मौजूदगी में गुस्सा भी कैसे झल्काएं. कहीं ये भी अखबार की "पॉलिसी " के खिलाफ बात न हो जाए. क्योंकि आजकल तमाम पत्रकार खबर लिखने से पहले अखबार की "पॉलिसी" पर ज़रूर विचार करते हैं.

बहरहाल लोग कुढ़ते रह गए और मज़बूरी में भूखे पेट वहां से पलायन करना पडा. पत्नियों की तो चांदी हो गई क्योंकि ज्यादातर पतियों ने उन्हें मज़बूरी में होटल में ले जाकर डिनर दिया. इसमें वैसे देखा जाए तो सबसे बड़ा दोष जनसंपर्क आयुक्त का है, जो कार्यक्रम को ठीक तरह से मैनेज नहीं कर पाए. मुख्य मंत्री के घर पर लंगर ही होता है ये सभी जानते हैं, तो उन्हें ये क्षेपक वाला फोन पत्रकारों को नहीं करना था. यदि किया था तो उन्हें शिवराज से चिरोरी करना था कि "सर सिर्फ पत्रकारों को ही आज बुला लीजिये, बाकियों को कल या और किसी दिन बुला लेते हैं." लेकिन नए जन संपर्क आयुक्त शिवराज सिंह चौहान की उस "यस सर वाली आईएएस ब्रिगेड" से आते हैं, जिनके लिए कोई तर्क देना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है. लिहाजा वे मौन रहे. न केवल मौन रहे बल्कि खुद चुपचाप एक कुर्सी में बैठे रहे.

हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री महज 15 मिनट के लिए आये और चले गए. बताया गया कि उन्हें दो दिन से बुखार है. सवाल ये उठता है की जब सीएम को बुखार था तो उन्होंने पत्रकारों को भोज पर बुलाया ही क्यों? किसने कनपटी में रिवाल्वर रख कर धमकाया था कि हमें डिनर पर बुलाओ? अखबार मालिकों को भी बुलाकार क्या सीएम अपने व्यवहार से अपने ओहदे का भान करना चाहते थे? खैर जो भी हो, इतना ज़रूर हुआ है कि इसे मुख्यमंत्री की यदि पीआर कवायद समझा जाए तो इसमें पीआर बढ़ा नहीं कमज़ोर हुआ है, क्योंकि जो भी पत्रकार उस दिन वहां गया, वो गाली देते हुए ही वहां से लौटा है. ये वही जन संपर्क आयुक्त हैं जो सीएम के पैतृक गाँव में दलितों के साथ भेदभाव वाली खबर को हैंडल नहीं कर पाए थे और इस खबर ने शिवराज की बहुत भद पिटवा दी थी.

लेखक प्रवीण कुमार भोपाल में लम्बे कद के छोटे-से पत्रकार हैं.


शिवराज का लंगर और भूखे पत्रकार

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकारी खर्चे से भोजन कराने का बहुत शौक है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री आवास का सत्कार व्यय सालाना एक से दो करोड़ के आस-पास बैठता है. वैसे यहां हम सीएम की फिज़ूलखर्ची की चर्चा नहीं कर रहे हैं. चर्चा तो उनके लंगर के आयोजन की है. हुआ यूं कि 2 सितम्बर श्री कृष्ण जन्माष्टमी को शिवराज ने पत्रकारों को रात्रिभोज पर बुलवाया. सीएम का पीआर संभालने वाले अधिकारी सभी को फोन करते हैं, इस क्षेपक के साथ..."सपरिवार आइयेगा. बहुत सेलेक्टेड लोगों को बुलाया गया है. लोकल मीडिया तक को नहीं बुलाया गया. ज़रूर आइये."

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Palash Biswas
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