खनन माफिया के लोकतंत्र में आपका स्वागत है
http://www.janatantra.com/news/2010/08/22/sushant-jha-on-mining-vedanta-and-reliance/खनन माफिया के लोकतंत्र में आपका स्वागत है
आपको मालूम है कि ये अनिल अग्रवाल कौन है? मुकेश अंबानी को तो आप जानते ही होंगे और चिदंबरम को भी। अरे वहीं अपने होम मिनिस्टर। जयराम रमेश भी अब याद करने लायक बन गए हैं। एक ग्लैमरस स्टोरी है जिसके ये अहम किरदार हैं। मधुर भंडारकर में अगर हिम्मत होती तो इसे पर्दे पर उतार देते और 'कॉरपोरेट पार्ट टू' बना देते।
चलिए अनिल अग्रवाल से शुरुआत करते हैं। उदार भारत के डालर अरबपतियों में दूसरे पोदान पर हैं 'वेदांता रिसोर्स' के मालिक अनिल अग्रवाल। साल 2009 में इनकी रैंकिंग पांचवी थी। यूं, मुकेश अंबानी से बहुत पीछे हैं लेकिन इनकी चमत्कारिक ग्रोथ रेट अंबानी के लिए यकीनन चिंता की बात होगी। अनिल अग्रवाल की जन्मस्थली पटना है । इस हिसाब से आप उन्हें पहला बिहारी डॉलर अरबपति भी कह सकते हैं! घनघोर किस्म के बिहारी चाहें तो अपना छाती चौड़ी कर सकते हैं! अग्रवाल ने पटना के मिलर स्कूल में पढ़ाई की जहां लालू प्रसाद यादव उनके सहपाठी हुआ करते थे। हाल ही में वो तब चर्चा में आए जब उन्होंने तेल और ऊर्जा के क्षेत्र की बड़ी कंपनी केर्न इंडिया पर 9.6 अरब डॉलर की बोली लगा दी।
अनिल अग्रवाल के पिता शहर पटना में एक छोटे से धातु कारोबारी हुआ करते थे जो बिजली विभाग के लिए एल्यूमिनियम का कंडक्टर बनाते थे। सन् '76 में अनिल अग्रवाल ने स्टरलाइसट इंडस्ट्रीज नाम की कंपनी बनाई जिसे धातु कारोबार के फील्ड में आसमान चूमना था। जी हां, ये वहीं स्टरलाइट थी जिसने बीजेपी के राज में बाल्को को भारत सरकार से खरीद लिया था। बाद में साल 1986 में अग्रवाल ने 'वेंदांता रिसोर्स' नाम की कंपनी की नींव डाली। साल 2002 में अग्रवाल ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को भी खरीद लिया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
अनिल अग्रवाल और उनकी वेदांता पर भ्रष्टाचार और धांधली के कई आरोप लगे। बाल्को अधिग्रहण के वक्त भी और हाल ही में नियामगिरी हिल्स में बाक्साइट के खदान हथियाने की कोशिशों को लेकर भी। एन सी सक्सेना कमेटी ने वहां चल रही माईनिंग को अवैध करार दे दिया। वेदांत पर जमीन हड़पने, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लंजीगढ़ (उड़ीसा) में एल्यूमिनियम रिफाइनरी खोलने के आरोप लगाए गए। उन्होंने तमाम नियम कानून ताक पर रख दिया और ऐसा मीडिया मैनेज किया कि मुख्यधारा की मीडिया इस खबर को सिर्फ सूंघकर रह गई।
बहुत दिन नहीं हुए जब हमारे गृहमंत्री पी चिदंबरम वेदांता के एक डायरेक्टर हुआ करते थे। बाद में जब उन्हें गृहमंत्री बनाया गया तो अरुंधती राय ने कहा कि वे तो वेदांता के खनन हितों की सुरक्षा के लिए चौकीदार बने है। कई लोगों को अरुंधती सही भी लगी। बहरहाल, वेदांता उस वक्त विवादों में फंस गई जब उड़ीसा के नियामगिरी की पहाड़ियों में बाक्साइट के खदानों के लिए उड़ीसा सरकार हजारों आदिवासियों को उजाड़ने पर आमादा हो गई। पुनर्वास के बदले में आदिवासियों को 30 किलोमीटर दूर बने अपार्टमेंटनुमा मकानों में बसा दिया जाना था! लेकिन जिस दिन वेदांता ने केर्न इंडिया पर दावा ठोका, उसी दिन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने वेदांता के नियामगिरी प्रोजेक्ट पर पानी फेर दिया। बहरहाल, तेज रफ्तार से दौड़ रहे अनिल अग्रवाल, जयराम रमेश के दिए घावों को सहला रहे हैं और अगले वार की तैयारी में है।
यहां पर कुछ पेंच है जिसे समझना जरूरी है। अनिल अग्रवाल जैसे लोगों ने दिल्ली समेत छोटी राजधानियों में डीलमेकरों का जो जाल बिछाया है उसमें कई बार आपस में ही टकराव हो जाता है। बीजेपी के राज में उनका काम मजे से चला और कांग्रेस में चिदंबरम उनके पुराने यार हैं। केर्न इंडिया को अगर वो खरीद लेते हैं तो वो उस स्थिति में आ जाएंगे, जहां से उनका टकराव मुकेश अंबानी की रिलांयस से होगा। इसलिए अब वो मुकेश की आंखों में चुभ रहे हैं। तेल रिफाइरनी के मामले में वो मुकेश अंबानी से पंगा ले रहे हैं तो बिजली के सुपर प्रोजेक्ट की घोषणा करके उन्होंने अनिल अंबानी को भी चुनौती दे दी है। अग्रवाल एक बार रिफाइनरी के धंधे में हाथ जला चुके हैं लेकिन पुराने इरादे खतम नहीं हुए हैं। अगले साल के शुरुआत में वे बिजली के 11 सुपर प्रजेक्ट के लिए कमर कस रहे हैं जिसमें हरेक कम से कम 4,000 मेगावाट का है। यहीं जाकर रिलांयस के दो दिग्गजों से उनका टकराव शुरू होता है।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के अंदर के सत्ता समीकरण में चिदंबरम, मनमोहन सिंह और मोंटेक एक 'कोटरी' के हैं जो धुर उदारवादी माना जाता है। दूसरी तरफ एक खेमा वो है जो पार्टी आलाकमान के हिसाब से पार्टी का समाजिक चेहरा बनना चाहता है। इसके नए अगुआ बने हैं दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश और सीपी जोशी। ये कांग्रेस आलाकमान का समाजिक चेहरा है, बिल्कुल सौम्य, सरल और निश्चल! इस खेमे को 'आम आदमी' के 'सरोकारों' की सोते जागते चिंता रहती है। वो सरकार की कॉरपोरेट लॉबी के बरक्श हमेशा बयानवाजी करता है और जनता को आश्वस्त करता जाता है। सूत्रों की माने तो रिलांयस ने इसी खेमे को साधा है। इनके अलावा मुरली देवड़ा और रिलायंस के रिश्ते पर तो चर्चा होती ही रहती है। केर्न इंडिया को निगलने की फिराक में लगी वेदांता की बाक्साइट खदानों पर ताला जड़े जाने की घटना को इन संदर्भों में देखा जाना चाहिए। वैसे हमें याद है कि एक बार साल 1994 में तब के पर्यावरण मंत्री राजेश पायलट का रातोंरात तबादला कर दिया गया था जब उन्होंने चंद्रास्वामी से पंगा लिया था। लेकिन इस बार जयराम रमेश के पीछे मुकेश अंबानी खड़े हैं जिनकी कांग्रेस के बड़े नेताओं में आकंठ घुसपैठ है। इसलिए फिलहाल उनकी नौकरी सुरक्षित लगती है।
इधर जिस हिसाब से माओवाद के बहाने दिग्विजय सिंह, चिदंबरम पर निशाना साध रहे हैं उससे कई बार चिदंबरम की नौकरी खतरे में लगती दिखती है। जाहिर है, दिग्गी राजा का ये माओवाद प्रेम महज दिखावा है, खेल तो कहीं और से खेला जा रहा है।
देखा जाए तो वेदांता जिस राह पर आगे बढ़ती हुई इस मुकाम पर पहुंची है, लगभग रिलांयस ने भी वहीं तरीका अपनाया था। धीरुभाई अंबानी हों या उनके सुपुत्र अंबानी बंधु-उन्होंने कारोबार में आगे बढ़ने के लिए हर उपलब्ध तरीका अख्तियार किया। ऐसे में ये कॉरपोरेट वार किस मंत्री को हलाल करेगा ये आगे देखने वाली बात होगी।
दुर्भाग्य से हम एक ऐसे युग के गवाह हैं जहां ठेकेदारों, दलालों और खनन माफियाओं ने सरकार पर कब्जा कर लिया है। हिंदुस्तान में आर्थिक सुधार(?),खान माफियाओं का उदय, आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन और माओवाद के उदय का कालक्रम लगभग एक ही है। इस हिसाब से आप कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं को अनिल अग्रवाल और अंबानी बंधुओं का लघु रूप मान सकते हैं। दुनिया के विशालतम लोकतंत्र में आपका फिर भी स्वागत है! चलिए कॉमनवेल्थ गेम्स में अतिथियों का स्वागत करें! चुप रहें और देश की लाज बचाएं!
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