---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2010/8/19
Subject: इराकः एक देश के बारे में दो कविताएं
To: abhinav.upadhyaya@gmail.com
अमेरिकी सेना ने इराक को छोड़ दिया है. जैसा कि भारत के बारे में कहा जाता है, बहुत से लोग अब इराक के बारे में भी कहेंगे कि वह विदेशी कब्जे से आजाद हो गया है. लेकिन हम जानते हैं और इराकी भी जानते हैं कि आजादी उनके लिए अब भी एक सपने और संघर्ष का नाम है. अमेरिकी या किसी भी विदेशी सेना के निकल जाने से कुछ नहीं होता, इस दौरान वहां जिस तरह की सत्ता संरचना को स्थापित किया गया है, जिस तरह का शासक वर्ग वहां सत्ता पर काबिज है, वह अब इस सेना द्वारा छोड़ी गई जिम्मेदारियों को पूरा करेगा. इराकी संसाधनों की लूट जारी रहेगी, वह साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे की चरागाह बना रहेगा. इराक की जनता की दुर्दशा और बदतर हालत में कोई कमी नहीं आएगी. लेकिन जाहिर है कि इसी के साथ इराकी जनता का शानदार और अपराजेय प्रतिरोध भी जारी रहेगा और पूरी दुनिया उसके साथ अपनी उम्मीदों को जोड़े रखने में अपनी सार्थकता तलाशेगी. पेश हैं फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश और छात्र राजनीति में साक्रिय अंजनी कुमार की कविताएं. रविवार और कारवां से साभार. दरवेश की कविता का अनुवाद अनिल जनविजय ने किया है.
--
Nothing is stable, except instability
Nothing is immovable, except movement. [ Engels, 1853 ]
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2010/8/19
Subject: इराकः एक देश के बारे में दो कविताएं
To: abhinav.upadhyaya@gmail.com
अमेरिकी सेना ने इराक को छोड़ दिया है. जैसा कि भारत के बारे में कहा जाता है, बहुत से लोग अब इराक के बारे में भी कहेंगे कि वह विदेशी कब्जे से आजाद हो गया है. लेकिन हम जानते हैं और इराकी भी जानते हैं कि आजादी उनके लिए अब भी एक सपने और संघर्ष का नाम है. अमेरिकी या किसी भी विदेशी सेना के निकल जाने से कुछ नहीं होता, इस दौरान वहां जिस तरह की सत्ता संरचना को स्थापित किया गया है, जिस तरह का शासक वर्ग वहां सत्ता पर काबिज है, वह अब इस सेना द्वारा छोड़ी गई जिम्मेदारियों को पूरा करेगा. इराकी संसाधनों की लूट जारी रहेगी, वह साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे की चरागाह बना रहेगा. इराक की जनता की दुर्दशा और बदतर हालत में कोई कमी नहीं आएगी. लेकिन जाहिर है कि इसी के साथ इराकी जनता का शानदार और अपराजेय प्रतिरोध भी जारी रहेगा और पूरी दुनिया उसके साथ अपनी उम्मीदों को जोड़े रखने में अपनी सार्थकता तलाशेगी. पेश हैं फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश और छात्र राजनीति में साक्रिय अंजनी कुमार की कविताएं. रविवार और कारवां से साभार. दरवेश की कविता का अनुवाद अनिल जनविजय ने किया है.
इराकः एक देश के बारे में दो कविताएं
--
Nothing is stable, except instability
Nothing is immovable, except movement. [ Engels, 1853 ]
इराकः एक देश के बारे में दो कविताएं
Posted by Reyaz-ul-haque on 8/19/2010 03:18:00 PMअमेरिकी सेना ने इराक को छोड़ दिया है. जैसा कि भारत के बारे में कहा जाता है, बहुत से लोग अब इराक के बारे में भी कहेंगे कि वह विदेशी कब्जे से आजाद हो गया है. लेकिन हम जानते हैं और इराकी भी जानते हैं कि आजादी उनके लिए अब भी एक सपने और संघर्ष का नाम है. अमेरिकी या किसी भी विदेशी सेना के निकल जाने से कुछ नहीं होता, इस दौरान वहां जिस तरह की सत्ता संरचना को स्थापित किया गया है, जिस तरह का शासक वर्ग वहां सत्ता पर काबिज है, वह अब इस सेना द्वारा छोड़ी गई जिम्मेदारियों को पूरा करेगा. इराकी संसाधनों की लूट जारी रहेगी, वह साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे की चरागाह बना रहेगा. इराक की जनता की दुर्दशा और बदतर हालत में कोई कमी नहीं आएगी. लेकिन जाहिर है कि इसी के साथ इराकी जनता का शानदार और अपराजेय प्रतिरोध भी जारी रहेगा और पूरी दुनिया उसके साथ अपनी उम्मीदों को जोड़े रखने में अपनी सार्थकता तलाशेगी. पेश हैं फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश और छात्र राजनीति में साक्रिय अंजनी कुमार की कविताएं. रविवार और कारवां से साभार. दरवेश की कविता का अनुवाद अनिल जनविजय ने किया है.
एक आदमी के बारे में
एक आदमी के बारे में
महमूद दरवेश
उन्होंने उसके मुँह पर जंज़ीरें कस दीं
मौत की चट्टान से बांध दिया उसे
और कहा- तुम हत्यारे हो
उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए
फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में
और कहा- चोर हो तुम
उसे हर जगह से भगाया उन्होंने
प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया
और कहा- शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी
अपनी जलती आँखों
और रक्तिम हाथों को बताओ
रात जाएगी
कोई क़ैद, कोई जंज़ीर नहीं रहेगी
नीरो मर गया था रोम नहीं
वह लड़ा था अपनी आँखों से
एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़
भर देंगे खेतों को
करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से
इराक मेरा देश नहीं है
मौत की चट्टान से बांध दिया उसे
और कहा- तुम हत्यारे हो
उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए
फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में
और कहा- चोर हो तुम
उसे हर जगह से भगाया उन्होंने
प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया
और कहा- शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी
अपनी जलती आँखों
और रक्तिम हाथों को बताओ
रात जाएगी
कोई क़ैद, कोई जंज़ीर नहीं रहेगी
नीरो मर गया था रोम नहीं
वह लड़ा था अपनी आँखों से
एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़
भर देंगे खेतों को
करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से
इराक मेरा देश नहीं है
अंजनी कुमार
इराक मेरा देश नहीं है
और फल्लुजाह मेरा शहर नहीं है।
अमेरिकी हमले में मारे गये लोगों की सूची मे
मेरा नाम नहीं है।
गुएन्तमाओं के यातनागृहों में
चल रही पूछताछ के दौरान
हजार वॉट की रौशनी में नहीं पिघली मेरी आंख
और न ही सर्द संगीनों तले
घुट गयी मेरी सांस ... ।
जिन्हें नंगा किया गया सरे बाजार
वे मेरे कुछ नहीं लगते थे
शक् के आधार पर
जिनमें सिर में मार दी गयी गोली
वे भी मेरे भाई बंधु नहीं थे।
बारूद के धुंए के बीच तड़पता
नजफ या बगदाद का बाशिंदा नहीं हूं मैं।
धमाकों से बिखर गयी जिनकी देह
भूख और बीमारी की गोद में सो गयो जो बच्चे
मलबे में तब्दील घरों में जो खोज रहे हैं जीवन का नया सूत्र
इनमें से कोई भी मैं नहीं हूं मैं।
दजला फरात ने जिन इन्सानों को जन्मा
उन तहजीवी विरासत को ले जाने वालों में
मेरा नाम नहीं है।
आज़ादी के जुगजुओं के देश का नाम है इराक
जिनकी कबूलियत में गुलामी काफिराना शब्द है
और लहू इतिहास की इबादत का सबसे खूबसूरत लफ्ज,
इराक के नाम पर कंधे उचका देने वालों में
मेरा नाम नहीं है।
वैदिक हिंसा और शांति के वारिस
नागरिकों की सूची में
आजादी एक निरीह शब्द है
और इराक दुष्टता का प्रतीक,
.............
इन नागरिकों की सूची में
मेरा नाम नहीं है।
और फल्लुजाह मेरा शहर नहीं है।
अमेरिकी हमले में मारे गये लोगों की सूची मे
मेरा नाम नहीं है।
गुएन्तमाओं के यातनागृहों में
चल रही पूछताछ के दौरान
हजार वॉट की रौशनी में नहीं पिघली मेरी आंख
और न ही सर्द संगीनों तले
घुट गयी मेरी सांस ... ।
जिन्हें नंगा किया गया सरे बाजार
वे मेरे कुछ नहीं लगते थे
शक् के आधार पर
जिनमें सिर में मार दी गयी गोली
वे भी मेरे भाई बंधु नहीं थे।
बारूद के धुंए के बीच तड़पता
नजफ या बगदाद का बाशिंदा नहीं हूं मैं।
धमाकों से बिखर गयी जिनकी देह
भूख और बीमारी की गोद में सो गयो जो बच्चे
मलबे में तब्दील घरों में जो खोज रहे हैं जीवन का नया सूत्र
इनमें से कोई भी मैं नहीं हूं मैं।
दजला फरात ने जिन इन्सानों को जन्मा
उन तहजीवी विरासत को ले जाने वालों में
मेरा नाम नहीं है।
आज़ादी के जुगजुओं के देश का नाम है इराक
जिनकी कबूलियत में गुलामी काफिराना शब्द है
और लहू इतिहास की इबादत का सबसे खूबसूरत लफ्ज,
इराक के नाम पर कंधे उचका देने वालों में
मेरा नाम नहीं है।
वैदिक हिंसा और शांति के वारिस
नागरिकों की सूची में
आजादी एक निरीह शब्द है
और इराक दुष्टता का प्रतीक,
.............
इन नागरिकों की सूची में
मेरा नाम नहीं है।
Copyright 2007 © हाशिया. Entries (RSS). Comments (RSS). 3 Columns Blogger Template Ori
--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
3 टिप्पणियां: Responses to " इराकः एक देश के बारे में दो कविताएं "
By Rahul Kumar on August 19, 2010 3:44 PM
सोलह आने सच है यह कविता... और सफ़ेद झूठ है अमरीका की बातें!! जो दिख रहा है वो सच नहीं..!! जो टुकड़ी वहां से वापस आयी है... वैसे कई दस्ते अमरीका में आज भी हथियारबंद हैं!! कैसे मान लिया जाए कि वो इराकी प्रशासन के इशारे पर चलेंगे.. जबकी उन्हें रोटी तो अमरीका ही खिलाएगा न!!
By अजित वडनेरकर on August 19, 2010 4:54 PM
बढ़िया
By Suman on August 19, 2010 5:03 PM
nice