BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, August 28, 2010

सैकड़ों के सामने काट डाली महिला की जीभ, आइए चुप रहें

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सैकड़ों के सामने काट डाली महिला की जीभ, आइए चुप रहें

आवेश तिवारी ♦ लगभग 200 लोगों की भीड़ के सामने पंचायत में बैठे लोगों ने जागेश्वरी के दोनों हाथों और पैरों को जकड़ रखा था। जागेश्वरी का पति, अंधा पिता और उसके दो माह से लेकर आठ साल तक के चार बेटों के रोने से पूरा करहिया कांप रहा था। पंचायत ने कहा, जीभ बाहर निकालो। जागेश्वरी ने जीभ थोड़ी सी बाहर निकाली। वहीं मौजूद सहदेव के बेटे ने उसकी जीभ पकड़ कर बाहर खिंच दी और एक ही प्रहार में तेजधार बलुए से अलग कर दिया। पंचायत का मानना था कि जोगेश्वरी डायन है और उसकी वजह से ही उसके पड़ोसी सहदेव के एक नवजात बच्चे की अकाल मौत हुई थी। ये हिंदुस्तान में कानून व्यवस्था की कब्रगाह पर नाच रही पंचायतों का अब तक के सबसे खौफनाक कुकृत्यों में से एक था।

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[24 Jun 2010 | 6 Comments | ]
विद्रोह के केंद्र में… दिन और रातें…

डेस्‍क ♦ जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गये थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी। इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी आंदोलन, उसकी वजहों, भाकपा माओवादी के काम करने की शैली, उसके उद्देश्यों और नीतियों के बारे में भी विस्तार से बताते हैं। पेश है हाशिया से साभार इस लंबे आलेख का हिंदी अनुवाद। अनुवादक की जानकारी नहीं मिल पायी है।

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[23 Jun 2010 | 5 Comments | ]
हमने रेड कॉरिडोर में असहाय आदिवासियों के आंसू देखे!

ग्‍लैडसन डुंगडुंग ♦ मिट्टी के लाल घर की पीड़ा, विभा का रोना-बिलखना और पुलिस अधिकारी का वही रौब। यह सब कुछ देखने और सुनने के बाद हम लोग रेड कॉरिडोर से वापस आ गये। लेकिन हमारा कंधा खरवार आदिवासियों के दुःख, पीड़ा और अन्याय को देखकर बोझिल हो गया था। पुलिस जवानों के अमानवीय कृत्‍य देखकर हमारा सिर शर्म से झुक गया था और विभा की रुलाई ने हमें अत्‍यधिक सोचने को मजबूर कर दिया। मैं मां-बाप को खोने का दुःख, दर्द और पीड़ा को समझ सकता हूं। लेकिन यहां बात बहुत ही अलग है। जब मेरे माता-पिता की हत्या हुई थी, उस समय मैं उस दुःख, दर्द और पीड़ा को समझने और सहने लायक था। लेकिन जसिंता के बच्चे बहुत छोटे हैं।

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[23 Jun 2010 | One Comment | ]
वह जमीन रिफाइनरी की थी, दबंगों ने मंदिर बना दिया

राहुल कुमार ♦ पत्थर के उन टुकड़ों के चारों ओर रातों-रात पिलर ढाल दिये गये। छत की ढलाई हो गयी। सुबह जब निकला, तो देखा कि ईंट जुड़ाई का काम चल रहा था। इतनी तेज गति से किसी काम को देखने का यह मेरा पहला अनुभव था। 24 घंटे के अंदर रिफाइनरी की जमीन पर एक ऐसा ढांचा तैयार था, जिसे तोड़ने के नाम पर ही मार-काट शुरू हो जाती है। मंदिर बनकर तैयार हो गया। मंदिर, जिसे देखकर लोग साइकिल से हों, मोटर साइकिल से हों, पैदल हों या चार चक्के से… एक हाथ से ही सही… सर झुकाकर प्रणाम की मुद्रा में जरूर आते हैं। फिर चाहे मंदिर की बुनियाद अधर्म से हथियायी जमीन पर ही क्यों न रखी गयी हो। अब दूर-दूर तक उपवन लगने लगे हैं। मंदिर दिनों-दिन अपना दायरा बढ़ा रहा है।

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[23 Jun 2010 | 7 Comments | ]
हर शाख पे एंडरसन बैठा है… उर्फ कथा सोनभद्र की!

आवेश तिवारी ♦ सोनभद्र से आठ नदियां गुजरती हैं, जिनका पानी पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। यह इलाका देश में कुल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्स्सर्जन का 16 फीसदी अकेले उत्सर्जित करता है। सीधे सीधे कहें तो यहां चप्पे चप्पे पर यूनियन कार्बाइड जैसे दानव मौजूद हैं, इसके लिए सिर्फ सरकार और नौकरशाही तथा देश के उद्योगपतियों में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए मची होड़ ही जिम्मेदार नहीं है। सोनभद्र को ध्वंस के कगार पर पहुंचाने के लिए बड़े अखबारी घरानों और अखबारनवीसों का एक पूरा कुनबा भी जिम्मेदार है। कैसे पैदा होता है भोपाल, क्‍यों बेमौत मरते हैं लोग? अब तक वारेन एंडरसन के भागे जाने पर हो हल्ला मचाने वाला मीडिया कैसे नये नये भोपाल पैदा कर रहा है, आइए इसकी एक बानगी देखते हैं।

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[21 Jun 2010 | 7 Comments | ]
क्‍यों न राजीव गांधी से भारत रत्‍न छीन लिया जाए?

सुशांत झा ♦ हमें इस बात का जवाब चाहिए कि बीच के दौर में वीपी सिंह से लेकर वाजपेयी सरकार तक ने उस अमेरिकी हत्यारे को भारत न लाकर संविधान की किस धारा का उल्लंघन किया। कुछ लोगों की राय में राजीव गांधी तो दिवंगत हो चुके हैं, उनको जांच के दायरे में कैसे लाया जा सकता है? इसका जवाब ये है कि अगर जांच के बाद राजीव गांधी दोषी पाये जाते हैं, उनको दिये गये तमाम राष्ट्रीय सम्मान छीन लिये जाएं, जिनमें भारत रत्न भी शामिल है, और दूसरे जिंदा लोगों के पेंशन और सम्मान छीने जा सकते हैं। लेकिन मैं ये सवाल किससे कर रहा हूं? जब देश का पक्ष और विपक्ष ही इस नरमेघ में शामिल है तो फिर सवाल किससे और क्यों? शायद, मैं मूर्खों के स्वर्ग में रह रहा हूं!

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[17 Jun 2010 | 9 Comments | ]
कैसे पत्रकार थे, दर्द नहीं देह देख रहे थे!

विकास वश‍िष्‍ठ ♦ गजाला यहां के मीडिया के लिए 'अहम किरदार' हैं। जब भी भोपाल गैस त्रासदी का जिक्र आता है, हर मीडिया हाउस उनके पास पहुंच जाता है। ऊपर उनका छोटा सा परिचय देना इसीलिए जरूरी था। विधवा कॉलोनी यहां की ऐसी कॉलोनी है, जिसमें अधिकतर महिलाओं के शौहर गैस हादसे के शिकार हो गये थे और इस कॉलोनी का नाम विधवा कॉलोनी पड़ गया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सीनियर रिपोर्टर महोदय कुछ असहज सी चुप्पी लगाये मुस्कुराते रहते हैं। लेकिन कुछ कहने की हिम्मत वह भी नहीं कर पाये। यह आज तक समझ में नहीं आया कि ओहदे में सीनियर होते हुए वह कुछ बोल क्यों नहीं पाये। आज भी यही सोच रहा हूं और उस वक्त भी यही सोच रहा था।

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[9 Jun 2010 | 7 Comments | ]
जिला अदालत, भोपाल 2010, 12 बजकर 5 मिनट!

विकास वश‍िष्‍ठ ♦ यूनियन कार्बाइड कारखाने के सामने चिलचिलाती धूप में तपती उस औरत का वह स्टेच्यू आज जैसे अकेले ही अदालत के फैसले के इंतजार में था। यह स्टेच्यू हादसे के बाद बनाया गया था। जेपी नगर की सुबह आज कुछ ज्यादा अलग नहीं थी। रोजाना की तरह आज भी लोग अपने-अपने काम पर चले गये थे। लड़कों का झुरमुट जो शायद स्टेच्यू के पास वाली दुकान पर बैठने के लिए ही बना था, आज भी वैसे ही गपबाजी कर रहा था। वहीं पास में चौकड़ी लगाये कुछ आदमी ताशों के सहारे अपना वक्त काट रहे थे। लेकिन इन सबके बीच जेपी नगर की हवा में यूनियन कार्बाइड की 25 साल पुरानी वह गैस जैसे आज फिर से फैल रही थी।

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[7 Jun 2010 | 2 Comments | ]
नजर पर पर्दा या जिस्‍म पर पर्दा… देखिए स्‍पेशल रिपोर्ट!

डेस्‍क ♦ एनडीटीवी इंडिया हर शुक्रवार को प्राइम टाइम में रात साढ़े नौ बजे रवीश की रिपोर्ट नाम से, मुद्दों से जुड़ा विशेष कार्यक्रम प्रसारित करता है। इसी कड़ी में, मुस्लिम महिलाओं के बुर्के को लेकर जारी किये गये देवबंद के एक मौलाना के फतवे पर उठे व्यापक वाद-विवाद को समेटते हुए परदे में नजर प्रसारित हुआ। रवीश एक परिपक्व और मंझे हुए रिपोर्टर हैं। पिछले 15 वर्षों के रिपोर्टिंग के अनुभवों ने उन्हें मुद्दे की संवेदनशीलता और व्यापकता दोनों को सहेजने में माहिर बना दिया है। इसी महारत के साथ उन्होंने इस संवेदनशील और अंतरराष्‍ट्रीय बन चुके मुद्दे को भी उसके तमाम पहलुओं के साथ उभारा। इस मसले पर जब दुनिया भर में बच्चे से ले कर बूढ़ा तक एक तयशुदा नजरिया बना चुका है, रवीश ने पक्ष-विपक्ष के स्वर उभारे।

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[7 Jun 2010 | 5 Comments | ]
गुजरात में… जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएंगे

शेष नारायण सिंह ♦ गुजरात में अब मुसलमानों में कोई अशांति नहीं है। सब अमन चैन से हैं। गुजरात के कई मुसलमानों से सूरत और वड़ोदरा में बात करने का मौका लगा। सब ने बताया कि अब बिलकुल शांति है। कहीं किसी तरह के दंगे की कोई आशंका नहीं है। उन लोगों का कहना था कि शांति के माहौल में कारोबार भी ठीक तरह से होता है और आर्थिक सुरक्षा के बाद ही बाकी सुरक्षा आती है। बड़ा अच्छा लगा कि चलो 10 साल बाद गुजरात में ऐसी शांति आयी है। लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि जो कुछ मैं सुन रहा था, वह सच्चाई नहीं थी। वही लोग जो ग्रुप में अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे, जब अलग से मिले तो बताया कि हालात बहुत खराब हैं। गुजरात में मुसलमान का जिंदा रहना उतना ही मुश्किल है, जितना कि पाकिस्तान में हिंदू का।

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[28 Aug 2010 | 10 Comments | ]
ठगी की धारा 420,  विभूति के सहकर्मी 421
[28 Aug 2010 | Read Comments | ]

संवाददाता ♦ क्या युवा कथाकार और हिंदी विश्वविद्यालय के व्याख्याता राकेश मिश्र को जेल होगी? क्या हिंदी विश्वविद्यालय के व्याख्याता, साक्षात्कार के अंकों में हेर-फेर से पदासीन होने वाले अमरेंद्र शर्मा को जेल होगी?

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नागार्जुन ♦ दीपक चौ‍रसिया के तेवर से नाराज नकवी ने दीपक को औकात बताने के लिए अशोक सिंघल को उनकी जगह दे दी। इससे बेतुका फैसला टीवी न्यूज के इतिहास में शायद ही कभी लिया गया हो।
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मोहल्‍ला लाइव, शब्‍द संगत »

[28 Aug 2010 | 7 Comments | ]
मनीषा कुलश्रेष्‍ठ की धमकी के पीछे का सच क्‍या है?

आवेश तिवारी ♦ ये हम जानते हैं कि मनीषा उन लोगों की जमात में शामिल हैं, जिन्हें ये लगता है कि वेब मीडिया को सिर्फ लाठियों से हांका जा सकता है (आश्चर्य नहीं कि इस बार वो इसमें अपने पति की मदद लेंगी)। कुछ दिनों पूर्व उन्होंने लिखा था कि "इंटरनेट पर हिंदी साहित्य के लिए कोई खास छलनी नहीं है, कोई क्वालिटी कंट्रोल नहीं, अभिव्यक्त करना इतना आसान कि चार पंक्तिया लिखी ओर ठेल दी"। उन्होंने अब तक ज्ञानपीठ में ज्ञान ठेलने के बारे में कुछ नहीं लिखा। हम जानते हैं आगे भी नहीं लिखेंगी। नमक का फर्ज अदा करना जरूरी भी है, समय की दरकार भी। मगर हम ये जरूर कहना चाहेंगे कि यहां इंटरनेट पर जो कुछ लिखा जा रहा है, उनमें अश्‍लील या अपठनीय जहां कुछ भी है, पाठक उसे खुद खारिज कर रहे हैं।

शब्‍द संगत »

[28 Aug 2010 | 2 Comments | ]
नामवर-मैनेजर का बाहूबली के साथ मंच साझा करने से इनकार

बिनीत राय ♦ हिंदी के दो सर्वाधिक प्रतिष्ठत आलोचकों नामवर सिंह और मैनेजर पांडे ने बिहार के कुख्यात बाहुबली नेता के साथ एक मंच पर बैठने से इनकार कर दिया। इन दोनों के 'नेशनल बुक ट्रस्ट', नयी दिल्ली द्वारा आयोजित भोजपुरी पुस्तक 'पूर्वी के थाह' के लोकार्पण में जाने से इनकार करने पर आयोजकों को कार्यक्रम की रूपरेखा बदलनी पड़ी। पुस्तक के लेखक थे जौहर शफीहाबादी। यह पुस्तक भोजपुरी भाषा में लिखी गयी है। हिंदी साहित्य के इन दोनों नामचीन शख्‍सीयतों का कार्यक्रम कल छपरा में आयोजित किया गया था। आयोजकों का तर्क था कि प्रभुनाथ सिंह ने भोजपुरी के लिए आवाज उठाया है। एनबीटी के आयोजकों ने प्रभुनाथ सिंह का कार्यक्रम रद्द तो नहीं किया लेकिन उन्हें दूसरे सत्र में बुलाया जिसमें ये दोनों उपस्थित नहीं थे।

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[28 Aug 2010 | Comments Off | ]

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[27 Aug 2010 | 17 Comments | ]
बिक जाने के आरोप पर राजकिशोर ने दिया बयान

राजकिशोर ♦ सुना है, मैं बिक गया हूं। यह पहली बार सुनने को मिला है, इसलिए कुछ विचित्र-सा अनुभव हो रहा है। आरोप मेरे लिए नये नहीं हैं। कई बार सुनने को मिल चुका है कि मैं बेहद कनफ्यूज्ड हूं। यह जान कर हर बार मुझे अच्छा लगा है। जीवन और जगत के बारे में जिनके विचार निश्चित और अडिग हैं, उनका हश्र सभी देख रहे हैं। फिर भी ये निश्चयवादी अपने बारे में पुनर्विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन्हें लगता है, ये नहीं भटके हैं, जनता ही भटक गयी है। सिद्धांतों के बजाय मूल्यों में मेरी ज्यादा आस्था है। जब सिद्धांत और मूल्य के बीच टकराव होता है, तो मैं मूल्य को चुनता हूं। मेरा विचार है, सिद्धांत मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। इसलिए तर्क की मांग पर अपना मत बदलने में मुझे कभी दुविधा नहीं हुई।

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[26 Aug 2010 | 67 Comments | ]
मनीषा कुलश्रेष्‍ठ ने धमकाया, कहा – ब्‍लडी, बास्‍टर्ड

अविनाश ♦ अव्‍वल तो हम महिलाओं के खिलाफ मोहल्‍ले में एक भी अश्‍लील टिप्‍पणी नहीं रखते – लेकिन कभी रह भी गयी, तो संज्ञान में आने पर उसे हटा देते हैं। अनामिका की पोस्‍ट में भी ऐसे बहुत से वल्‍गर कमेंट आये, तो हमने उसे हटाया। अभी अभी मनीषा कुलश्रेष्‍ठ का एक ईमेल आया और उसके तुरत बाद एक फोन। उन्‍होंने कहा कि उनसे जुड़ी कुछ टिप्‍पणियां हैं, जिसे हटाया जाए। हमने कहा कि जहां तक हमारा खयाल है, हमने ऐसे सारे कमेंट हटा दिये हैं। फिर वो मोहल्‍ला लाइव की कथित अश्‍लीलता पर बिफर पड़ीं। उन्‍होंने कहा कि मेरे पति फौज में अफसर हैं और साइबर लॉ के एक्‍सपर्ट हैं – आप चक्‍कर में पड़ जाएंगे। आप जो हिंदी के साथ कर रहे हैं, वह गलीज है।

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[26 Aug 2010 | 10 Comments | ]
गाड़ी, घोड़े, थिएटर… चलते हुए ही अच्‍छे लगते हैं!

रामकुमार सिंह ♦ एक दौर था, जब बॉक्‍स ऑफिस पर कतार होती थी और फिल्‍म की रिलीज के बाद यह होता था कि पैसा रखें कहां, लेकिन अब हालत खराब है। वे याद करते हैं कि पिछले दो साल में उनके थिएटर में वांटेड ऐसी फिल्‍म थी, जिसके हाउसफुल शो रहे। ईद का मौका था और उन्‍हें अपने दर्शकों को वापस भेजना पड़ा क्‍योंकि सीट नहीं थी। फिलहाल थिएटर में करीब नौ सौ सीटें हैं, जिनमें सबसे नीचे ड्रेस सर्किल तो उन्‍होंने बंद ही कर रखा है। बालकनी और बॉक्‍स ही बेच रहे हैं। इतने ही दर्शक आते हैं आजकल। प्रकाशजी कहते हैं, छोटे शहरों के लोगों के लिए उस तरह की मनोरंजक फिल्‍में बनना बंद हो गयीं। आइ हेट लव स्‍टोरीज को चूरू जैसे शहर में पहले दिन शाम को शो बंद रखना पड़ा क्‍योंकि कोई देखने वाला ही नहीं था।

सिनेमा »

[25 Aug 2010 | 2 Comments | ]
आइए, छोटे कस्‍बे के सिनेमाघरों को बचाते हैं…

अरविंद अरोरा ♦ अब छोटे शहरों और कस्‍बों के सिनेमाघर मालिकों के सामने एक ही रास्‍ता बचता है, जिसे वे हारकर अपनाते ही हैं। और वह रास्‍ता है, अपने थिएटर में सस्‍ती फिल्‍में करना जिनमें से 99 प्रतिशत लो बजट सी ग्रेड हिंदी सिनेमा होता है, और एक प्रतिशत दक्षिण का अंग प्रदर्शन से भरा हिंदी में डब किया हुआ सिनेमा, जिन्‍हें देखने सिनेमाघर जाने की सोचना तो दूर, उनके आसपास से निकलने में भी लोग हिचकते हैं कि कहीं कोई यह न सोचे कि 'ऐसी वाली' फिल्म देख कर आ रहे हैं। हालांकि यह प्रवृत्ति आखिरकार सिनेमा का ही नुकसान कर रही है, लेकिन हैरत की और उससे भी ज्‍यादा दु:ख की बात यह है कि ऐसी फिल्‍में प्रदर्शित करके भी सिनेमाघर बहुत अधिक लाभ कमाने की स्थिति में नहीं हैं।

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[25 Aug 2010 | 5 Comments | ]
राय, कालिया और मिश्र के खिलाफ क्रिमिनल नोटिस

डेस्‍क ♦ वर्धा जिला न्यायालय के फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट, धनंजय निकम ने भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका "नया ज्ञानोदय" में छपे विभूति नारायण राय के साक्षात्कार में लेखिकाओं को दी गयी गाली मामले में राय, रवींद्र कालिया और साक्षात्कारकर्ता राकेश मिश्र के खिलाफ क्रिमिनल नोटिस जारी की है। 23 अगस्त के अपने ऑर्डर में निकम ने कहा कि सभी कागजात देखने के बाद तथा शिकायतकर्ता की दलीलें सुनाने के बाद यह मामला प्रथमदृष्टया ऐसा लगता है कि इस प्रकरण से महिला लेखिकाओं का अपमान हुआ है। अतः तीनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 499, 500, 501 तथा 509 के तहत नोटिस किया जा सकता है। कालिया, राय और मिश्र को 20 सितंबर तब अपना जवाब रखना है।

शब्‍द संगत, स्‍मृति »

[25 Aug 2010 | 4 Comments | ]
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है, मेरी भी आभा है इसमें!

सत्यानंद निरूपम ♦ 12 दिसंबर 1980 को विजय बहादुर सिंह को नागार्जुन ने इलाहाबाद से एक चिट्ठी लिखी थी – "अपने बारे में मित्रों एवं अमित्रों के मंतव्य सभी को सुनने पड़ते हैं… किसने, कब, कहां मेरे प्रसंग में क्या कहा? … वामपंथी एवं वामगंधी बंधुओं के परामर्श, चेतावनियां, शीतोष्ण उपदेश … यह सब मेरे इन कानों तक पहुंचते रहे हैं… परंतु सर्वाधिक परवाह जिस तत्व की मैं करता हूं वह कोई और तत्व है। जिस शक्ति से मैं ऊर्जा हासिल करता हूं, वह कोई और शक्ति है… मुझे संघर्षशील जनता का विपन्न बहुलांश ही शक्ति प्रदान करता है। कोटि-कोटि भारतीयों के वे निरीह, पिछड़े हुए, अकिंचन, दुर्बल समुदाय जो चाहने पर भी अपना मतपत्र नहीं डाल पाये, मेरी चेतना उनकी विवशताओं से ऊर्जा हासिल करेगी।"

Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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