`सन् 2000 के अंदर मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से ज्यादा हो जायेगी!'
प्रबीर गंगोपाध्याय
जनसंख्या की राजनीति
फिलहाल तथ्य और कुछ सवाल
प्रबीर गंगोपाध्याय
अनुवादःपलाश विश्वाससारणी -9 में हम देखते हैं कि 1971 की जनगणना के मुताबिक देशभर में कुल 9 जिलों में मुसलमान बहुसंख्य हैं। 1961 में वे कुल 7 जिलों में बहुसंख्य थे। इसकी वजह यह है कि पूंछ (जम्मू व कश्मीर) और मल्लापुरम, दोनों जिलों का गठन 1961 के बाद हो गया। बाकी सात जिलों में श्रीनगर को छोड़कर सभी जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या घटी है। इन जिलों में वृद्धि की दर औसत वृद्धि दर से कम है। ग्वालपाड़ा जिले में वृद्धि दर 40.57 होने के बावजूद कुल जनसंख्या के अनुपात में मुस्लिम जनसंख्या 191 से 1971 तक 1.05 प्रतिशत घट गयी। रजौर जिले में सबसे ज्यादा घटी है मुस्लिम जनसंख्या।
जिन 15 जिलों में मुसलमानों की आबादी घट गयी है,उनके बारे में आंकड़े सारणी -10 में दिये गये हैं।
सारिणी -10 में हम देखते हैं कि लाहौल स्पीति (हिमाचल प्रदेश) में मुसलमान करीब करीब गायब हो गये हैं।1961 में वहां मुसलमान कुल जनसंख्या के 5.96 प्रतिशत थे,1971 में यह अनुपात घटकर 0.12 हो गया है।मणिपुर में मुस्लिम जनसंख्या करीब दो तिहाई घट गयी है।त्रिपुरा के तीन जिलों में मुसलमान करीब 10-15 प्रतिशत घट गये हैं।
सारणी 10 (12)
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जिला जिले में जनसंख्या में जनसंख्या में वृद्धि दर
मुसलमानों का प्रतिशत कमी वृद्धि 1961-71
1961 1971 (प्रतिशत में)
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लाहौल स्पीति 5.96 0.12 -5.84 - 97.77
दक्षिण त्रिपुरा 20.10 4.34 -15.76 - 76.68
मणिपुर दक्षिण 6.20 0.19 -5.01 - 66.43
कुलु * 0.21 * - 61.20
पश्चिम त्रिपुरा 20.10 6.47 -13.63 -54.82
रोपड़ * 0.55 * -47.51
जिंद * 1.20 * -31.27
खासी जयंतिया
पहाड़ 1.10 0.73 -0.47 -24.56
उत्तर त्रिपुरा 20.10 9.38 -10.72 -20.72
टिहरी गढ़वाल 0.58 0.48 -0.10 -10.79
पुरुलिया 6.00 4.64 -1.36 - 8.72
लुधियाना 0.41 0.40 -0.01 -7.69
होशियारपुर 0.50 0.33 -0.17 -7.02
चमोली 0.38 0.32 -0.06 -1.96
महासु 0.80 0.67 -0.13 -1.05
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इस तरह के बदलाव से यह समझने की कोई वजह नहीं है कि यह कुदरत के किसी गैरमामूली कानून के तहत हो रहा है।यानी किमृत्यु दर जन्म दर के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ गयी होगी।असल में यह सबकुछ जिले से बाहर चले जाने या जिले में नई आबादी की बसावट की वजह से हुआ है। त्रिपुरा के सेंसस कमिश्नर ने कहा हैः `हम अच्छी तरह जानते हैं कि 1961 से पहले पूर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश) से गैरकानूनी तरीके से कुछ घुसपैठियों के आ जाने से त्रिपुरा में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ गयी थी। इन लोगों की वापसी का नतीजा त्रिपुरा की मुस्लिम जनसंख्या में देखा जा रहा है।'
जिलावार इन आंकड़ों से हमारे लिए जो मसला साफ हो जाता है,वह यह है कि सिर्फ वृद्धि दर से मुस्लिम जनसंख्या का हिसाब किताब से बनी हमारी धारणा हमें एक बड़ी गलती की तरफ खींच ले जायेगी।सिर्फ इन जिलावार आंकड़ों से हम अंदाज लगा सकते हैं कि मुसलमानों की संक्या दरअसल कितनी बढ़ी है। इसके साथ ही हम हकीकत की जमीन पर खड़े होकर यह समझ सकते हैं कि किसी सूरत में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि की वजह से मुसलामान हिंदुओं केबहसंक्य संख्या को पार नहीं कर सकते।
पिछले तेरह सौ सालों के तथ्यों की पड़ताल करने के बाद यह मालूम पड़ता है कि अखंड भारत में मुसलमानों की आबादी 1941 में सबसे ज्यादा हो गयी थी। तब जेएम दत्त के अनुसार कुल जनसंख्या के 23.81 प्रतिशत या किंग्सले डेविस के मुताबिक 24.28 फीसद मुसलमान थे। हालांकि बहुत लोगों का यह मानना है कि पाकिस्तान की मांग का औचित्य साबित करने के मकसद से 1941 की जनगणना में मुस्लिम जनसंख्या को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया था।
फिर अखंड देश के विभाजन के बाद भारत में मुस्लिम जनसंख्या 9-11 प्रतिशत बना रहा है। दूसरी तरफ,शुरु से हिंदू अस्सी फीसद से ज्यादा बने हुए हैं। आज भी स्थिति वही है।तेरह सालों से अगर जनसमुदायों में तरह तरह के बदलाव के बावजूद तस्वीर एक सी बनी हुई है तो अगले तेरह साल में भी इस तस्वीर को पलट देना क्या संभव है? इसका फैसला चिंतनशील पाठकों पर छोड़ दिया जा रहा है।
विश्व हिंदू परिषद का दावा और एक हिसाब
अब हम विस्व हिंदू परिषद के दिये तथ्यों की पड़ताल करेंगे।हमने पहले ही साफ कर दिया है कि उनके आंकड़े सरकारे आंकड़ों से मिलते नहीं हैं। वे मुसलमानों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर बता रहे हैं। तब भी हम देखते हैं कि दिये गये तथ्यों (सारणी-2) के मुताबिक मुस्लिम जनसंख्या 1951 के 3.5 करोड़ से बढ़कर 1981 में 8.5 करोड़ हो गयी है।यानी की तीस साल में मुसलमानों की संख्या इन तीस सालों में 5 करोड़ बढ़ गयी है।इस हिसाब से हर दस साल में उनकी औसत वृद्धि दर 1.66 करोड़ बनती है।1981 -2001 तक या बीस साल में अगर इसी दर से वृद्धि होती रही तो मुसलमानो की संख्या बढ़कर 11.82 हो जाती है। दलील बतौर अगर हम मान लें कि मुस्लिम जनसंख्या उन ती, साल की अविधि के मुकाबले दो गुणा भी बढ़ जाये तो बी उनकी संख्या 2001 में 15 करोड़ बनती है। अब हम यह भी मान ले कि इस दौरान हिंदुओं की जनसंख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है।तो भी किस गणित से 1971 के 55 करोड़ हिंदुओं के मुकाबले 15 करोड़ मुसलमान बहुसंख्य हो जायेंगे? ऐसा कौन गणित विशारद है जिसके उपजाऊ दिमाग में इसतरह का अजब गजब गणित बन रहा है!
अब थोड़ा हिसाब जोड़ लिया जाये।1981 के आंकड़ो में दाखा जा रहा है कि भारत में हिंदुओं की जनसंख्या 55 करोड़ है और मुसलमान 7.5 करोड़ हैं।यानी हिंदुओं के मुकाबले में ज्यादा होने के लिए और 48 करोड़ मुसलमान होने चाहिए। जो 7.5 करोड़ मुसलमान भारत में हैं,वे सबके सब बच्चे पैदा नहीं कर सकते।उनमें बच्चे हैं और बूढ़े बूढिया भी हैं।मुसलमानों के बहुत ज्यादा बच्चे होते हैं।मान लीजिये कि इनमें 4.5 करोड़ ब्च्चे और बूढ़े हैं।(14)बाकी 3 करोड़ मर्द और औरतें बच्चे पैदा करने में सक्षम हैं।इस हिसाब से 1.5 मुस्लिम मर्द औरत जोड़ियों को 45 करोड़ बच्चे पैदा करने होंगे। हर जोड़े के लिए यह संख्या 32 होगी।उनकी औसत संतानों की संख्या कुछ कम यानी तीन ही मान लें तो अगर हर मुस्लिम जोड़ी 35 बच्चे पैदा कर सकें तभी विश्व हिंदू परिषद की चेतावनी सच में बदल सकती है।( यह भी मान लेना होगा कि इस अवधि में हिंदू बच्चे पैदा नहीं करेंगे।)
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