BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, March 30, 2016

कांग्रेस वाम गठबंधन की बढ़त जारी,जंगल महल की मुस्कान दीदी के लिए जहरीली होने लगी। संघ ने संभाला दीदी के खिलाफ मोर्चा और मजबूर दीदी चूं तक नहीं कर रही,उल्टे वामनेताओं को धमकाने लगी हैं! बंगाल में नूरा कुश्ती लाजवाब! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



कांग्रेस वाम गठबंधन की बढ़त जारी,जंगल महल की मुस्कान दीदी के लिए जहरीली होने लगी।

संघ ने संभाला दीदी के खिलाफ मोर्चा और मजबूर दीदी चूं तक नहीं कर रही,उल्टे वामनेताओं को धमकाने लगी हैं!

बंगाल में नूरा कुश्ती लाजवाब!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप संवाददाता

बंगाल में हर जिले तहसील में वाम कांग्रेस गठबंधन की बढ़त जारी है।पिछले चुनावों में दीदी की भारी जीत में कांग्रेस का समर्थन निर्णायक रहा है,कमसकम दीदी से बेहतर इसे कोई और समझ नहीं सकता।


अब हालात यह है कि पहले दौर के चुनाव के लिए जंगल महल में केंद्रीयवाहिनी की लामबंदी के बीच वहां अब भी सक्रिय माओवादी दीदी को हर कीमत पर हराने की कोशिश में लगे हैं।


गौरतलब है कि  कल तक दीदी की जीत में माओवादी खास मददगार थे,जैसा तृणमूल के पूर्व सांसद कबीर सुमन ने भी खुलासा किया है और नंदीग्राम सिंगुर की जंग जितने में माओवादी हाथ अब साफ साफ है।


किशनजी की पुलिसिया मुठभेड़ में मार गिराने की कार्रवाई को माओवादी दीदी की तरफ से विश्वासघात मानते हैं तो पिलिसियाअत्याचार विरोधी समिति के नेताओं को माओवादी ब्राडिंग के साथ जेल के सींखचों में डालकर जंगलमहल की मुस्कान के बावजूद वहां सैन्यशासन जैसी परिस्थितियों से भी माओवादी ज्यादा खुश नहीं हैं।


जंगल महल को जानने वाले समझते ही होंगे कि माओवादी समर्थन का मतलब क्या होता है।


जंगल महल जीतने के लिए दीदी को फिर उसी माओवादी समर्थन की सबसे ज्यादा जरुरत है जो मिलने के आसार नहीं है।


झारखंड से जुड़े पुरुलिया और बांकुड़ा के अलावा मेदिनीपुर में भी कांग्रेस का आधार बहुत मजबूत रहा है।


इसे ऐसे समझिये कि एकेले मेदिनीपुर जिले में आजादी की लड़ाई में करीब साढ़े तीन सौ महिला कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागेदारी रही है।अब चाचा ज्ञानसिंह सोहनपाल वहा काग्रेस के निर्विवाद आदरणीय नेता हैं।


दूसरी तरफ इसी जंगल महल में माओवादी वर्चस्व कायम होने से पहले तक वाम दलों का एकाधिकार रहा है।


अब जो समीकरण बना है ,उसके मुताबिक दीदी को जिताने वाले माओवादी उनके साथ नहीं है तो दूसरी तरफ कांग्रेस और वाम गठबंधन का साझा प्रचार अभियान जंगल महल में फिर तिरंगे और लेल झंडे की वसंत बहार है।


इस पर तुर्रा यह कि शंग परिवार का वरदहस्त हट जाने से जैसे तैसे चुनाव जीत लेने के मौके भी बन नहीं रहे हैं।


यही वजह है कि वाम और कांग्रेस के खिलाफ दिनोदिन आक्रामक शेरनी की तरह दहाड़ती दीदी नरेंद्र मोदी और अमित साह से लेकर राहुल सिन्हा तक के सीधे हमले के खिलाफ मंतव्य करने से बच रही हैं।


भाजपा के पास ममता पर हमला करने के सिवाय कोई विकल्प अब बचा नहीं है वरना बंगाल तो क्या पूर्वी भारत में कहीं भी पांव ऱकने की कोई जगह बची नहीं रहेगी संघ परिवार के लिए।


दीदी लेकिन इन मुश्किल हालात में केंद्र सरकार या संघ परिवार का दामन छोड़ने का जोखिम उठा नहीं सकती।


बहरहाल बंगाल के चुनाव नतीजे पीछे के रास्ते राज्यों की सत्ता दखल कर लेने के संघी मंसूबे और यूपी जीत लेने की तैयारी पर बेहद खराब असर डाल सकता है।


इससे वाकिफ बजरंगी ब्रिगेड ने अब देर सवेर ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है।


शारदा चिटफंड मामले में सुदीप्तो और देवयानी को हिरासत में लेने के बाद विधाननगर कमिश्नरेट के तत्कालीन कमिश्नर राजीव कुमार ने पहले ही झटके में इस मामले में फंसे आदरणीय बिरादरी के खिलाफ सबूत मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।


अब नये सिरे से जनादेश हासिल करने के अभियान में वे राजीव कुमार ही दीदी के पिलिसिया सिपाहसालार है,जिससे नत्थी है तृणमूल की सबकुछसफाया कर देने की वोट मशीन।


राजीव कुमार इस वक्त कोलकाता पुलिस कमिश्नर हैं और भाजपा नेता राहुल सिन्हा को स्टिंग आपरेशन में खुफिया पुलिस के जरिये फंसाने के आपरेशन उन्हीं का बताया जा रहा है।


अब दिल्ली और कोलकाता में सक्रिय भाजपा नेताओं ने इन्ही राजीव कुमार पर निशाना साधा,जिनपर सबकुछ जानते हुए शारदा मामला रफा दफा करने के सिलसिले में भाजपाइयों ने चूं तक नहीं की।जिस वजह से बहुत हिलाने डुलाने का दिखावा के बावजूद कटघरे में खड़े तमाम चेहरे उसी तरह रिहा है जैसे नारद स्टिंग मामले में कोई कार्वाई नही हुी है जबकि इसके उलट स्टिंग के बहाने उत्तराखंड में हरीश रावत का तख्ता पलट हो गया रातोंरात।


दीदी की हालत कितनी नाजुक है ,इसीसे समझ लीजिये कि अपने कस सिपाहसालार को बचाने की बजायउनकी कोशिश यह है कि राजीव कुमार जायें तो जायें,केंद्र सरकार और चुनाव आयोग उनकी वोट मशीनरी के किसी और खास आदमी को वहां बैठाने की इजाजत दे दें।ऐसा ही होने जा रहा है।


इसमें कुल निष्कर्ष यह है कि सत्ता में भागेदारी के लिहाज से भले ही पूरे देश में वामदल हाशिये पर हों,लेकिन जमीन पर आंदोलन और प्रतिरोध के मामले में संघ परिवार के मुकाबले में सिर्फ वामदल ही मैदान में है।इसलिए संघ परिवार का असली दुश्मन वाम है।


जाहिर है अपना घर बचाने की कवायद में लगी भाजपा को यह भी देखना होगा कि जनता को समझा लेने के बाद कहीं ऐसी गुंजाइसश न बन जाये कि दीदी सचमुच हार न जायें और बंगाल में कांग्रेस वाम गठबंधन का फार्मूला बाकी देश में संघ परिवार को कचरापेटी में डाल न दें।


जाहिर है कि इस नूरा कुश्ती का अंजाम भी मधुरेन समापन बनाने की पूरी कोशिश संघ परिवार की होगी।दीदी पर हमले के बावजूद उसका अंतिम लक्ष्य लेकिन कांग्रेस वाम गठजोड़ को फेल करके फिर दीदी की ताजपोशी करना है।


इस खेल को समझने में भूल हुई तो इसका असर भी चुनाव नतीजे पर होना है।


भाजपा के औचक बंगाल में सत्रह फीसद वोट पाने के पीछे मोदी दीदी का गठबंधन काम कर रहा था।


कमसकम इस चुनाव में चाहे कांग्रेस वाम गठबंधन जीते या न जीते,दीदी के साथ मधुर संबंध गुपचुप तालमेल से संघ परिवार को कोई फायदा नहीं है,यह समझने में शंग परिवार ने देर नहीं लगायी है और दीदी के खास सिपाहसालार को ही शुली पर चढ़ाने की तैयारी है।जाहिर है कि सिपाहसालार की बलि चढ़कर दीदी को बचा लेने की यह कवायद है।दीदी भी इसे बेहतर समझ रही होंगी और चुप हैं।


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