BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, November 9, 2015

https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU ऋत्विक घटक की बगावत,उनका सामाजिक यथार्थ और उनकी फिल्म सुवर्णरेखा! Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya https://www.youtube.com/watch?v=jeiGPWYIOqs ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है। फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है। प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य। https://youtu.be/riBIpzxI8qU Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas



ऋत्विक घटक की बगावत,उनका सामाजिक यथार्थ और उनकी फिल्म सुवर्णरेखा!

Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya


ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है।


फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है।


प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य।


Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel!

Palash Biswas

ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है।


फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है।


प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य।


इसीलिए कोमल गांधार के बाद सुवर्ण रेखा पर मेरा आज का यह प्रवचन।जो देखें सुनें,उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो और टूटें गुलामी की जंजीरें,टूटें कैदगाहों,कब्रो की दीवारें।जय हो।


Subarnarekha

Directed by

Written by

Ritwik Ghatak(screenplay, story),

Starring

Music by

Cinematography

Dilip Rajan Mukherjee

Edited by

Ramesh Joshi

Release dates

1 October 1965

Running time

143 min.

Language


यह त्रासदी भारत विभाजन की है, जो जारी है।यह कथा मनुस्मृति राज की है।


यह कथा अति दलित बाग्दी बउ की है,जिसके बेटे अभिराम से सुवर्णरेखा किनारे पली बढ़ी ब्राह्मण कन्या सीता का प्रेम हुआ और उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने वाले ब्राह्मण भाई ने इस रिश्ते को ठुकराकर उसका विवाह अन्यत्र कर देने का आत्मघाती फैसला किया।


उस भाई ईश्वर और बहन सीता,विभाजन पीड़ित अनाथ भाई बहन के रिश्ते की यह त्रासदी है जो अछूत प्रेमी के साथ भाई का घर छोड़कर कोलकाता की गंदी बस्ती में घर बसाती तो है पर वह घर बस ड्राइवर बने प्रेमी पति की एक दुर्घटना में उसकी बस से कुचलकर एक लड़की के मारे जाने की वजह से गुस्साई जनता के हाथों हत्या होजाने के बाद उजड़ जाता है।


शरणार्थी अछूत को व्याही ब्राह्मण कन्या सीता को जिंदा रहने के लिए यौनक्रम का विकल्प अपनाना होता है।


चकले में दाखिले के बाद  सीता का पहला खरीददार उसका सगा भाई, वह बहन से जुदा शोकसंतप्त अकेला सगा भाई शराबी निकलता है तो वह आत्महत्या कर लेती है।


यह ब्राह्मण कन्या सीता और अतिदलित स्त्री ,जिसको शरणार्थी बस्ती में उसीतरह जगह नहीं मिलती जैसे पूर्वी बंगाल से आये करोड़ों दलितों और अति दलितों को नहीं मिली,शरणार्थी आंदोलन और कामरेड बिरादरी ने उनका सामाजिक बहस्कार ही नहीं किया, उन्हें बंगाल के इतिहास भूगोल से निस्कासित निर्वासित कर दिया।


उनसे मातृभाषा छीन ली।छीन लिया आरक्षण,राजनीतिक प्रतिनिधित्व, जिनका पुनर्वास दरअसल अभी तक हुआ नहीं है और केसरिया सत्ता ने उनकी जमीन और नागरिकता छीनने का चाकचौबंद इतजाम कर दिया।


कोमल गांधार में इप्टा पर राजनैतिक नेतृत्व के खिलाफ ऋत्विक की बगावत के बाद ही उन्हें पार्टी और इप्टा से निस्कासित कर दिया तो सुवर्णरेखा के दलित विमर्श को उनका धर्मांतरण जैसा अपराध मान लिया गया जैसे कि वे विचाराधारा के धर्मविरोधी जिहादी करार दिये गये।


यह त्रासदी ऋत्विक की जितनी है,उससे कम हमारी नहीं है।


यह त्रासदी भारत के सर्वहारा वर्ग,मेहनतकश आम जनता और बहुजनसमाज का भी है,जिनके वर्गीय ध्रूवीकरण के लिए जाति व्यव्स्था को खत्म करने के बजाय मनुस्मृति शासन के तहत सत्ता में भागेदारी ही बहुजन समाज की तरह भारतीय वामपंथ की विचारधारा हो गयी।


इसीलिए न सर्वहारा,मेहनतकशों,किसानों की दुनिया में ,और न बदलाव और प्रतिरोध की लड़ाई में उनकी कोई भूमिका बन पायी है और भारत में सत्ता की राजनीति में भी वह हाशिये पर है।


इसीलिए बंगाल और केरल में में भी केसरियाकरण का सिलसिला है।वामपंथ असहाय विकलांग है।


वामपंथ के विश्वासघात की वजह से ही बदलाव के लड़ाके माओवादी हैं तो बहुजन समाज ,बहुसंख्य जनता केसरिया बजरंगी फौजे हैं।


यह अपराध फसीवाद का जितना है,वामपंथी नेतृत्व के ब्राह्मण गिरोह का उससे कुछ भी कम नहीं है।


बिहार में मजहबी सियासत बेशक हार गयी।लेकिन सियासती मजहब हारा नहीं है।क्योंकि जाति न सिर्फ अटूट है,पिछड़ों के ओबीसी महागठबंधन से मंडल कमंडल गृहयुद्ध अब घनघोर हैं।


हिंदुत्व के दुश्मन विदेशी ताकतें नहीं हैं और न गैरमजहब के लोग हैं।हिंदू समाज लाखों धड़ों में बंटा हुआ है और उस बंटवारे को रोज रोज हर चुनाव में नये नये जाति समीकरण से हिंदुत्व के नाम तेज किया जा रहा है।दंगा फसाद कयामती फिजां के इस सियासती मजहब को समझने के लिए,आत्मध्वंस को समझने के लिए ऋत्विक घटक की भारत विभाजन पर बनी तीनों फिल्में अवश्य देखनी चाहिए।


हम कोमल गांधार का विश्लेषण कर चुके हैं।यह फिल्म समीक्षा नहीं है।फिल्म के जरिये समामाजिक यथार्थ की चीरफाड़ है,जो ऋत्विक घटक हमें सिखा गये हैं,जो सामाजिक यथार्थ का उनका व्याकरण और सौंदर्यशास्त्र है।


KOMAL GANDHAR!Forget not Ritwik , his musicality, melodrama,sound design to understand Partition!


हम अछुत रवींद्र के दलित विमर्श पर बात कर चुके हैं।उनके व्रात्य मंत्रहीन जातिहार रवींद्रसंगीत के सामाजिक यथार्थ और सरहदों के आर पार उसके मार्फत स्त्री मुक्ति की भी हम चर्चा कर चुके हैं।रवींद्र के दलित विमर्श की जैसे कोई चर्चा नहीं हुई है वैसे ही ऋत्विक घटक के दलित विमर्श पर हमारा ध्यान नहीं गया।


মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত! Tagore liberated Woman in Music!


अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श!Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood !



नवारुण दा ने हर्बर्ट,फैताड़ु बोम्बाचाक और कांगाल मालसाट उपन्यासों के जरिये अंधाधुंध शहरीकरण के मुक्त बाजार में रोजी रोटी से बेदखल इन अछूतों के महानगरों में अंडर क्लास सर्वहारा में तब्दील होने की कथा बांचकर ऋत्विक की दृष्टि की निरंतरता बनाये रखी है।लेकिन इन चीजों को समझने की हमारी दृष्टि अभी बनी नहीं है क्योंकि हम जाति अंध है।

Why do I quote Nabarun Bhattacharya so often? এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!


धर्म हमारा पाखंड है।


धर्म हमारा अंधियारा कारोबार है।


धर्म मनुस्मृति अर्थशास्त्र है तो मजहबी सियासत सियासती मजहब की कयामती फिजां और फासीवादी राजकाज का चरमोत्कर्ष है क्योंकि हम हजारों जातियों में बंटे हुए लोग हैं और कुल मिलाकर जाति हमारा वजूद है और लोकतांत्रिक सहिष्णु बहुलतावादी सनातन हिदुत्व को हम मिथकीय महाभारत और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में तब्दील करके आत्मध्वंस पर आमादा हैं और जाति समीकरणों में कैद है हमारा लोकतंत्र।


जब हम आस्था की बात करते हैं तो वह यात्रा न तो भारतीय इतिहास,भारतीय परंपरा,लोक रिवाज,साझे चूल्हे या भारतीय संस्कृति या देशी उत्पादन प्रणाली या उत्पादन संबंधों या रोजगार और आजीविका और लोक,रीति रिवाज,उत्सव मेले के नैसर्गिक स्रोत प्रकृति और पर्यावरण के साथ शुरु होती हैं।


जिन वेदों और उपनिषदों से विश्वभर में हिंदुत्व की बेजोड़ सभ्यता बतौर पहचान है,हम भूल रहे हैं,वह मुक्त बाजार की उपज नही हैं और न ही वह उपभोक्तावादी अनैतिक भ्रष्ट मुनाफाखोर सुखीलाला  संसार या बिररिंची बाबा का नरसंहारी सुधार है।


वह हमारी आरण्यक सभ्यता थी,जहां हमारे पुरखों ने वैदिकी साहित्य रचा और उस धर्म में जाति व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी और न उनके महाकाव्यों से अवतरित भगवान और तैंतीस करोड़ देव देवी न थे और न उनपर रचे गये रंगबिरंगे पुराण थे,जिसे वैदिकी बताया जा रहा है और जो इस्लामी शासन के अंत अंत तक रचे गये।इसे बारत का जो इतिहास बताने से अगाते नहीं हैं,उनसे मूर्ख कोई दूसरा शख्स नहीं है।


विश्वभर में सभ्यता का विकास शरणार्थियों के जरिये हुए।


आइंस्टीन भी शरणार्थी थे।


अमेरिकाओं और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैड जो विकसित देश है,वह भी यूरोप के आपराधिक तत्वों को कालापानी की सजा की नतीजा है।


इंग्लैंड की भाषा और सभ्यता मूलनिवासियों की नहीं है।एंगेलो सैक्सन जर्मन मूल की है।


यूरोप और दुनियाभर में सभ्यता,दर्शन,कला, साहित्य औरसंस्कृति का विकास जो हुआ,वह नवजागरण का नतीजा है,जो यूनान और इटली से दुनियाभर में सौ साल के धर्मयुद्ध का नतीजा है।


भारत  में सभ्यता,संस्कृति और धर्म के विकास को रवींद्रनाथ ने भारततीर्थ कविता में बहुत बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया है,जो सहिष्णुता और बहुलता की हमारी सभ्यता,संस्कृति और विरासत है।


वैदिकी धर्म के अनुयायी प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे।कोणार्क का सूर्यमंदिर और बिना पुरोहित उत्तर भारत की छठ पूजा और त्रिपुरा में आदिवासियों और गैरआदिवासियों का साझा फसल का जश्न गड़िया उत्सव इसका नतीजा है।


हमारे सारे पर्व त्योहार कृषि आजीविका और लहलहाती फसलों की खुशबू हैं,जो हमारा लोक है तो हमारा देसज अर्थशास्त्र,साझा चूल्हा और हमारी उत्पादन प्रणाली है।


वैदिकी धर्म में कोई मिथकीय देवदेवियां नहीं है और न ही मूर्ति पूजा  का धर्मोन्मादी बवंडर है।


भारत में विभिन्न नस्लों आर्य,अनार्य,द्रंविड़,शक हुण मुगल पठान, अहम, मग,निग्रोइड,मंगलाइड ,आस्ट्रेलाइड समुदाओं के बीच खूनखराबा कम नहीं हुआ।लेकिन सहिष्णुता,बहुलता और विविधता की साझा कोख से जनमा भारतवर्ष।


विविधता का विलय भारततीर्थ।


हम उन्हीं तत्वों की हत्या और कत्लेआम कर रहे हैं जो भारत को भारत बनाते हैं और हिंदुत्व को सभ्यता की विरासत भी बनाते हैं।


फिर हम बजरंगी  अंध राष्ट्रवादी खुद को धार्मिक भी बताते हैं और देशभ्क्त को और जो हमसे असहमत है,उन्हें राष्ट्रद्रोही, माोवादी, हिंदूविरोधी वगैरह वगैरह कहने से पहले तनिको नहीं सोचते कि हम हिंदुत्व का सर्वनाश कर रहे हैं और भारत वर्ष का विनाश।


आरण्यक वह वैदिकी धर्म और सभ्यता,उसकी आजीविका निर्भर वर्ण व्यवस्थाजब वर्ण वर्चस्व और वर्णभेद बनकर असमता और अन्याय का पर्याय बना तो गौतम बुद्ध ने विश्वभर में पहले रक्तहीन जन अभ्युत्थान का नेतृत्व किया और भारत बौद्धमय बना।हम पंचशील के इस इतिहास,परंपरा को बदल नहीं सकते।


बौद्धमय इतिहास के अवसान के लिए वैदिकी धर्म का अवसान भी हो गया और मनुस्मृति हमारी नियति हो गयी।मनुस्मृति के तहत जाति हमारा वजूद हो गया और हम जब भी बोलते हैं,हमारी जाति बोलती है।यह हमारी अर्थव्यवस्था है।


बाबासाहोब डा.भीमराव अंबेडकर,महात्मा ज्योति बा फूले,हरिचांद ठाकुर, बशेश्वर, संत तुकाराम,गुरु नानक,चैतन्य महाप्रभू,  बीरसा मुडा,रानी दुर्गावती,टांट्या भील, सिधो कान्हों आयुश, अय्यंकाली, पेरियार और नारायण स्वामी,गुरुचांद ठाकुर,सूर तुलसी कबीर रसखान मीरा जयदेव दादु गाडगे बाबा पीर फकीर बाउल तमाम हमारे पुरखे इसी मनुस्मृति स्थाई बंदोबस्त को खत्म करके समता और न्याय की लड़ाई लड़ते रहे थे।


हम उलट इसके हिंदुत्व को नर्क में तब्दील करते हुए जाति के चुनावी समीकरण के तहत धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के तहत हजारों साल पहले,सदियों पहले  खत्म तमाम विवाद नये सिरे से शुुरु करके हिंद राष्ट्र में तब्दील होने के एजंडा के साथ साथ इतिहास, परंपरा, धर्म, सहिष्णुता, बहुलता, समाजाजिक तानाबाना,अमन चैन,भाईचारा,मुहबब्त का कत्ल करते हुए,लोकतंत्र और संविधान की हत्या करते हुए आत्मध्वंसी दस दिगंत सर्वनाश का आवाहन कर रहे हैं जाति युद्ध के महाभारत रचते हुए दरअसल हम भारत और हिंदू धर्म दोनों की हत्या कर रहे हैं।


जमींदारियों और रियासतों के वंशज सिर्फ राजकाज के धारक वाहक नहीं हैं।वे भी धर्म कर्म के भी ठेकेदार हैं।


वही लोग हमारे विचारधाराओं,आदोलनों,कला संस्कृति साहित्य, माध्यमों और विधाओं के भी मसीहा,देव देवियां हैं।


बाबासाहेब ने कहा कि भारत में साम्यवाद से अच्छी कोई बात नहीं है।लेकिन साम्यवाद भी ब्राह्मणों के कब्जे में है।


तेलतुंबड़े ने उस ब्राह्मण गिरोह की चर्चा कि तो वे चेहरे अब बेनकाब हैं।सरेबाजार नंगे।जिनका जनमजात ब्राह्मण जाति से कोई ललेना देना नहीं हैं,जिनके खिलाफ बहुजनों की फर्जी लड़ाई।


ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरों को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।


यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीय जनता की आत्मकथा भी है।


लाल नीली सर्वहारा बहुजन जनता में एका नहीं हो,यही हिंदुत्व का असली एजंडा है धर्म कर्म के बहाने ताकि मनुस्मृति राजकाज जारी रहे।


Tonnes of Paper had been inked to focus on Cahrulata, Japanese Bou,Biraj Bahu,Kagojer Bou,etc!But we could not discuss the Ati Dalit Bagdi Bou,untouchable and the love story of the son of the Ati dalit Bgadi Bou,Abhiram and Sita,a Brahamin refugee girl who eloped as caste system could not allow the inter caste marriage even in sixties!Indian Communist Movement and Indian Peole`s theatre had to do nothing with caste,the Indian social realism.Tagore,the BRATYA,MANTRAHEEN,JATIHARA Nobel laureate addressed untouchability in Chandalika, land grab in Dui Bigha Jami,wrote about the plight of untouchable Indian peasantry in his letters from Russia and supported socialist model of development,though ideologically he was a Gandhian,not a communist.

The greatest artist,the revolutionary filmmaker Ritwik Ghatak somehow managed to finish three feature films from which a trilogy is strikingly different and then he was a communist, an activist engaged with IPTA,from which he had been expelled and excluded from Bhadralok Bengal as the Brahaminical hegemony treated Subarnarekha as blasphemy against ideology.


We have to discus Ritwik and Subarnarekha just because,we may not celebrate just because Religious Polarization and caste equations launched afresh by institutional fascism lost the elections in Bihar and the dominant caste alliance of OBC brotherhood won  resultant in so many beefs on Ginnie Bir Rinchi Baba`s Titanic Menu.We not celebrate the GOHAARA Mandate,the lost Arab Spring all on the name of Save Cow.Biharies seem not that BURBAK neither those who voted against fascism could be deported to Pakistan! Not enough! Be aware,it is Mandal Versus Kamandal,the civil war the riot arson bloodshed scenario looming large around as the holocaust of Partition continues.We might not recover from the mythical Greek Tragedy either!


বাংলা নিরুত্তাপ তবু রেপ সুনামির শেষ দেখবে ভারত,যারা গৌরিকীকরণ ফ্যাসিবাদের বিরুদ্ধে দাঁড়ানোর মেরুদন্ড হারিয়েছেন,ইতিহাসের আস্তাকুঁড়েতেও জায়গা হবেনা শিরোনামে যারা, সেই সব বিদ্বতজনদের!

बलात्कार सुनामी का तो हुई गयो काम तमाम!

सरेबाजार भयो नंगे,अब तो रोको दंगे!

धर्म पर भारी जाति,सारे समीकरण फेल हुई रहे  हिंदुत्व के !


बिहार में करारी हार,फिर नीतीशे कुमार!

आगे यूपी,बंगाल,उत्तराखंड वगैरह वगैरह बाकी है!

हिंदुत्व,इंसानियत और मुल्क के लिए भलाई इसी में हैं,जाति कर दो खत्म और खत्म करो दंगे!


KUMAR ( STUDIOMAHUA )9304550100 LYRICS BY SHAKTI BABUA

https://www.youtube.com/watch?v=E0ANGYr-100


Ritwik was also the victim of partition as our people had been and it is easier for me as a son of a refugee sharing the eternal eyewitness account,the first person version of the overwhelming tragedy and it impact the continuous partition and the continuous demography adjustment and readjustment, degeneration, unprecedented violence,conflict and riots,religious polarization killing the legacy of tolerance and pluralism as a common human being.I am not an expert but I am speaking human to address contemporary time!


हिंदुओं की बात करते हैं,हिंदू हितों पर तूफां खड़ा करते हैं।देहात और खेत खलिहान को कब्रिस्तान बनाकर गायों को गोशाला से,खेती को आजीविका से बेदखल करके डीजीटल रोबोटिक देश बनाने वालों को हिंदू हितों की परवाह कितनी है,हम विबाजन पीड़ित पूर्वी बंगाल के देशभर में बिखरे बेनागरिक बना दिये गये लोग इस हिदुत्व के शिकार हैं तो देख लें हिंदुओं के कत्लेआम का नजारा भी।जिस कश्मीर को देस से अलग करके हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी है,जिस कश्मीर की आग से पूरे महादेश को आग के हवाले कर देने की तैयारी है,वहां मुसलमानों के साथ साथ हिंदू भी दमन और उत्पीड़न,सैन्यतंत्र के वैसे ही शिकार है जैसे सलवा जुड़ुम में मरने वाले आदिवासी  तो मारने वाले भी आदिवासी।


मुकम्मल मनुस्मृति राजकाज है हिंदुत्व या इस्लाम के नाम सरहदों के आर पार।बांग्लादेश में सर कलम हैं तो सर कलम हैं हिंदुस्तान में भी।मधेशी और आदिवासी खड़े हैं अपनों के ही खिलाफ नेपाल में तो श्रीलंका में,म्यांमार में कत्लेआम हैं।पाकिस्तान आतंकी हमलों से खुदै तबाह है और बौद्ध म्यांमार में रोहंगा मुसलमानों की कयामत है।अफगानिस्तान में तालिबान हैं।तो हिंदुस्तान हिंदू तालिबान का।


I would discuss the first film Meghe Dhaka which represents his original breakthrough into rhythmic sound design to merge with the vocal scenario!


Rather I have to discuss Subarnalata the last of the trilogy which was treated rather as blasphemy!He was excluded after he made Komal Gandhar exposing the internal conflict in ideology inherent with IPTA which was finally exposed with a logical conclusion,the partition of Indian Communist movement along with disintegration of IPTA in 1964 and Subarnalata released in 1965.


Ritwik broke the myth of Sita who died in a brothel and made a protagonist of an Ati Dalit refugee woman Bagdi Bou.The exclusion was complete because Indian Communist movement never addressed caste or untouchability,the root base of class caste identity division and polarization.I have to discuss it because our comrades still fail to include the SC,ST,OBC and tribal proletariates for class polarization to end the class caste race hegemony!


We have to pay for this historical blunder which was pointed out by Baba Saheb BR Ambedkar while he never did oppose communism as ideology but he branded Indian Communist leadership as Brahaminical.


Recently the most efficient leader from Kisan Sabha Rezzak Ali Molla had been expelled from the party just because he demanded representation of every community in Party leadership.


Because SC,ST,OBC and tribals deserted Indian Communist forces and the followers of Dr BR Ambedkar despise most communism,the become the forces of reactionary fascism in India.The crisis would be intensified more as caste identity and caste alliance defeated the religious nationalism.The Caste War would intensify,I am afraid.


The revolutionary artist from IPTA dealt with caste in Subarnorekha.


Madhavi Mukherjee who played Charulata in Satyajit Ray film Charulata which is said to be frame to frame perfect only Indian film.She was introduced by Mrinal Sen in Baishe Shraban and she again played the key role in Subranarekha.


Ritwik Ghatak was born in 1925 in Dhaka, then a part of India, but in 1947, after the independence and partition of India, it became a part of East Pakistan and now it is the capital of Bangladesh (after the partition of Pakistan in 1972). Ghatak moved to Baharampur and then to Calcutta in the early fifties.


Rwitwik Ghatak made three films on Partition.Meghe Dhaka tara (The Cloud-Capped Star) in 1960,Komal Gandhar ( E-Flat) in 1961(The Golden Line) and Subarnalata in 1962.He had been excluded from Communist Party,IPTA and virtually for Bengal.These films not only dals the degeneration,disorder idividual and social,the plight of refugees,Indian People`s Theatre Movement and the conflict within,the real impact of the phenomenon of transfer of power,transfer of population along with partition itself,it spans though the most creative period of his life,the revolutionary artist himself who triggered alternative cinema and his musicality,rooted into Indian folk and cultural heritage,day today suffering of the masses,sound design,frame to frame aesthetics of social realism! I have discussed these points on my video talk on Komal Gandhar which had been treated as his deviation from ideology.


Subarnarekha (film)

From Wikipedia, the free encyclopedia

Subarnarekha (Bengali: সুবর্ণরেখা Subarṇarēkhā) is an Indian Bengali filmdirected by Ritwik Ghatak.[1] It was produced in 1962 but was not released until 1965. It was part of the trilogy, Meghe Dhaka Tara (1960), Komal Gandhar (1961), and Subarnarekha (1962), all dealing with the aftermath of the Partition of India in 1947 and the refugees coping with it.[2]

In a critics' poll of all-time greatest films conducted by Asian film magazineCinemaya in 1998, Subarnarekha was ranked at #11 on the list.[3]

Contents

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Plot summary[edit]

The film tells the story of Ishwar Chakraborty (Abhi Bhattacharya), a Hindurefugee from East Pakistan after the 1947 partition of India. He goes to West Bengal with his little sister Sita (Indrani Chakrabarty) where he tries to start a new life. In a refugee camp, they see the abduction of a low-caste woman. He gets a job at a factory in the province, near the river Subarnarekha.

After completing his study when Abhiram is asked to go to Germany for his studies, he (Satindra Bhattacharya) and Sita (Madhabi Mukherjee) discover that they are in love. But at this moment, Ishwar's fear of prejudice emerges, as he does not want his sister, a Brahmin, to marry a lower caste boy. During Sita's wedding with another man, the girl and Abhiram elope and go to Calcutta. Ishwar is angry and heartbroken.

Sita and Abhiram live in the slums of Calcutta and try to make ends meet. They have a little son (Sriman Ashok Bhattacharya). One day, Abhiram gets a new job as a bus driver, but this leads to tragedy: when he accidentally hits and kills a little girl, he is lynched by the crowd. In her desperate situation, Sita is forced to think about taking up prostitution.

In the meantime, Ishwar is living a lonely and sad life in the province. When his old time friend Haraprasad (Bijon Bhattacharya) comes to visit him, they decide to go to Calcutta on a binge-drinking tour. They finally end up in a brothel, both completely drunk. When Ishwar staggers into one of the bedchambers, he is faced... with his own sister, whose first "client" he should become. Sita immediately recognizes him and rather cuts her own throat than submit to incest. She dies. When Ishwar realizes what has happened, he breaks down.


At the end of the film, the now completely broken Ishwar meets Sita's little son, who is now his closest relative. He brightens up and decides to take the little boy into his house.

Cast[edit]

  • Abhi Bhattacharya as Iswar Chakraborty

  • Bijon Bhattacharya as Haraprasad

  • Indrani Chakraborty as Little Sita

  • Gita Dey as Koushalya (Bagdi Bou)

  • Mater Tarun as Little Abhiram

  • Ranen Roy Choudhury as Baul

  • Abanish Bandopadhyay as Hari Babu

  • Radha Govinda Ghosh as Manager

  • Ritwik Ghatak as Music Teacher

  • Satindra Bhattacharya as Abhiram

  • Jahor Roy as Mukherjee (Foreman)

  • Umanath Bhattacharya as Akhil Babu

  • Sita Mukhopadhyay as Kajal Didi

  • Pitambar as Rambilas

Crew[edit]

  • Story: Ritwik Ghatak, Radheshyam Jhunjhunwala

  • Screenplay: Ritwik Ghatak

  • Cinematography: Dilip Rajan Mukherjee

  • Editing: Ramesh Joshi

  • Sound: Satyen Chatterjee

  • Art Direction: Rabi Chatterjee

Soundtracks[edit]

  • Aaj dhaner khete roudro chhayay...

  • Ali, dekh bhor bhai... kahan jage...

  • Aaj ki ananda, aaj ki ananda, jhulat jhulane Shyamchanda...

  • Mor dukhuya ka se kahun... aaj'

  • Khelan aaye... kuhar phuhar


The HFA explained: Involved from an early age in politics and in theater, Ghatak was a member of the Indian Communist Party and regarded Brecht and Eisenstein as his artistic heroes. Consequently, Ghatak's films wed his activism with rich cultural content, fashioning popular forms – melodrama, songs, dances – into appropriate vehicles for radical political expression. His films are almost all veiled autobiography. Ghatak came of age during the convulsions of the 1940s – World War II, the terrible "man-made famine" of 1944, the communal violence that came with independence, and especially the partition of Bengal, which obsessed him all his life. His subjects are almost invariably chosen from among the uprooted and the dispossessed: parentless children, homeless families, disoriented refugees, and the petit bourgeoisie, economically broken by their exile. Yet, as in the fatal vision of Robert Bresson, there is a glimmer of hope in even the darkest moments.


Since his death at age fifty in 1976, Ritwik Ghatak has come to be regarded as one of the greatest figures in postwar Indian cinema for his brilliant and abrasive films, which certainly rank among the most revolutionary achievements in contemporary Indian art.


A brilliant eccentric and heavy drinker, Ghatak completed only eight features before his premature death. The HFA offers Ghatak's last five as proof of his genius, films which include three heartbreaking melodramas built around the partitioning of Bengal to form Pakistan out of what had been northeastern India. These films – The Cloud-Capped Star, The Golden Line and E-Flat – are together sometimes referred to as Ghatak's "partition trilogy."

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