BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, October 2, 2015

मैं असली अम्बेडकरवादी नहीं हूँ! मैं किसी भी अविवेकी उन्मादी भीड़ का हिस्सा होने से इंकार करता हूँ

आत्म-स्वीकारोक्ति

मैं असली अम्बेडकरवादी नहीं हूँ!

मैं किसी भी अविवेकी उन्मादी भीड़ का हिस्सा होने से इंकार करता हूँ

bhanwar meghwanshiहिंदुत्व का छद्म चमचा, सवर्णों के तलुवे चाटने वाला तथा दलित बहुजन आंदोलन का गद्दार है, दलित विरोधी है तथा शेर की खाल में भेड़िया है।'' आजकल सोशल मीडिया पर मैं इन्हीं अनंत विभूषणों से विभूषित हूँ, क्योंकि मैंने सच को सच कहने का दुःसाहस कर दिया, एक जमीन की लड़ाई को प्रॉपर्टी का संघर्ष कह दिया और दलित अत्याचार नहीं माना, जिससे बाबा साहब के नाम पर दुकानें चला रहे दलितों के ठेकेदार खफा हो गए हैं तथा उन्होंने फतवा जारी कर दिया है कि- भँवर मेघवंशी एक नकली अंबेडकरवादी है।

भंवर मेघवंशी

यह अभियान इन दिनों दलित बहुजन आंदोलन के जिम्मेदार साथियों की जानिब से मेरी मुखालफत में भीलवाड़ा जिले में लांच किया गया है जो मुझे 'दलित द्रोही' सवर्ण हिंदुओं के तलवे चाटने वाला, गद्दार, दलितों के नाम पर दुकान चलाने वाला घोषित कर रहा है।

     पिछले दिनों के एक घटनाक्रम की वजह से मुझे 'दलित विरोधी' ही नहीं बल्कि 'दलितों का घोर दुश्मन' भी घोषित किया गया है, वह मेरे निवास अम्बेडकर भवन से 30 किलोमीटर दूर स्थित करेड़ा कस्बे में स्थित एक धर्मस्थल हरमंदिर की भूमि को लेकर हो रहा एक विवाद से जुड़ा हुआ है। हुआ यह कि करेड़ा में चारभुजानाथ व हरमंदिर की जमीनें जो कि 92 बीघा के करीब है, उन पर बरसों से खटीक, कलाल तथा वैश्य जाति के काश्तकार 'खड़मदार' के नाते खेती कर रहे थे तथा वे लगान मंदिर के पुजारी को जमा करवाते आ रहे थे, इनमें से कईयों को सामंतशाही के दौरान के राजा-महाराजाओं ने कुछ पट्टे आदि भी जारी कर रखे थे, मगर जागीरदारी प्रथा के उन्मूलन के साथ ही इन सामंतों द्वारा जारी तमाम पट्टे शून्य हो गए तथा राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के तहत तमाम भूमियों की मालिक राजस्थान सरकार हो गई, खातेदार मंदिर के पुजारी तथा खड़मदार के रूप में विभिन्न जातियों के लिए लोगों के नाम भी दर्ज कर दिये गए।

      बाद के घटनाक्रम में सन् 1991 में भैरोंसिंह शेखावत के मुख्यमंत्रित्व काल में राजस्थान सरकार ने पुजारियों द्वारा मंदिर माफी की जमीनों को खुर्दबुर्द किए जाने की व्यापक शिकायतों के मद्देनजर एक परिपत्र जारी कर मंदिर माफी की जमीनों को पुजारियों तथा खड़मदारों के बजाय मंदिर मूर्तियों के नाम दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए, फलस्वरूप 1992 में करेड़ा में चारभुजानाथ तथा हरमंदिर की भूमियों पर बरसों से काबिज तमाम खड़मदारों  के नाम विलोपित किए जाकर उक्त भूमि का स्वामित्व मंदिर मूर्तियों को दे दिया गया तथा उनके बेचान पर, खुर्द बुर्द करने, रेहन रखने या बटाई अथवा खड़मदारी पर देने पर भी रोक लगा दी गई। इस तरह सभी खड़मदार काश्तकारों का मालिकाना हक स्वतः ही राजस्व रिकोर्ड में समाप्त हो गया। इस बारे में विगत 22 सालों से कोई हलचल नहीं हुई, विभिन्न जाति के पूर्व खड़मदार देवस्थान की जमीनों पर ही काबिज रहे और उक्त जमीन का उपयोग उपभोग करते रहे।

   हाल ही में चम्पाबाग तथा हनुमान बाग के महंत सरजूदास महाराज के महंताई समारोह के पश्चात् उन्होंने सभी जमीनों को कब्जे में लेने की कार्यवाही प्रारंभ की तथा काबिज काश्तकारों व ग्रामीणों के सहयोग से हरमंदिर की 15 बीघा जमीन को भी अतिक्रमण मुक्त करवा कर तारबंदी कर दी गई। इस पूरी कार्यवाही में करेड़ा के खटीक समाज तथा कलाल समाज व अन्य समुदाय के लोगों ने स्वेच्छा से अपने कब्जे खुद ही हटाए तथा सार्वजनिक रूप से यह उद्घोषणा भी की कि अगर महंत सरजूदास महाराज इस खाली करवाई गई जमीन पर सार्वजनिक हित के लिए चिकित्सालय बनाते हैं तो वे तन, मन, धन से पूरा सहयोग करेंगे।

शुरू-शुरू में तो सब कुछ सामान्य था पर अचानक स्थितियां बदलने लगी तथा स्वयं कब्जा हटाने वाले सामान्य तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के कुछ लोगों ने दलित जाति के काश्तकारों के कंधों पर बंदूक रखकर इस लड़ाई को 'दलित उत्पीड़न' का रंग देने की कोशिश शुरू कर दी।

    मैं इस घटनाक्रम से अपरिचित ही रहता अगर 20 सितंबर 2015 को ग्रामीणों व खटीक समुदाय के लोगों के मध्य प्रशासन की मौजूदगी में 'हिंसक झड़प' के समाचार सोशल मीडिया में नहीं देखता। करेड़ा के दलित व सवर्ण सभी समुदाय के लोग आपसी समन्वय से सभी चीजें कर रहे थे, तब तक मुझ जैसे 'दलितों के नाम पर दुकान चलाने वाले' व्यक्ति तक कोई समाचार ही नहीं आ रहे थे। आज जो दलित अत्याचार के बड़े-बड़े आरोप लगाकर पीड़ित बने घूम रहे हैं, वे महाशय भी अपनी जमीनें स्वेच्छा से खाली करके महंत सरजूदास महाराज के शिष्य बालकदास को नासिक के कुंभ में घुमा रहे थे, तब तक मुझसे किसी ने कोई सम्पर्क नहीं किया, सब अच्छा ही चल रहा था। सैंकड़ों लोगों के सामने उन्होंने स्वेच्छा से अपने कब्जे वाली मंदिर की जमीन खाली करने के स्टांप तक दिए, फिर अचानक ही उन्हें अहसास हुआ कि महंत हम पर अत्याचार कर रहे हैं और हमारी पैतृक जमीन हमसे छीन रहे हैं।

   एक और तथ्य ध्यान में लाने की बात है कि उक्त अतिक्रमण मुक्त करवाई गई जमीन के तीन बिस्वा हिस्से पर कुछ दलितों व कुछ अन्य समाजों के मकान व दुकानें बनी हुई हैं, जिन्हें खाली करवाने या तोड़ने के बारे में मंहत सरजूदास महाराज ने कभी कोई इच्छा नहीं दर्शाई, मगर इसी दौरान 20 सितम्बर की हिंसक झड़प हो गई। इससे पहले 10 कलाल तथा 27 खटीक काश्तकारों ने अपने कब्जे रही जमीन के सम्बन्ध में एसडीएम कोर्ट मांडल में एक वाद दायर करके कानूनी लड़ाई भी प्रारंभ कर दी जो अभी विचाराधीन है। मगर शायद कोर्ट के मार्फत उन्हें राहत मिलने की संभावना कम लगी तो इस मामले को अलग रंग देने तथा इसे 'दलित उत्पीड़न' बताकर राजनीतिक समर्थन जुटाने की कवायद शुरू कर दी।

20 सितम्बर को एक मूर्तिकार द्वारा खाली किए भूखण्ड पर कब्जा करने की कोशिश शुरू हुई, इसका प्रतिरोध महंत सरजूदास के दो साधुओं व दो ग्रामीणों द्वारा किया गया, प्रतिक्रिया में दलित स्त्रियों द्वारा किये गए पथराव में चार लोग घायल हो गए, जिससे मामला अत्यंत संगीन हो गया और विरोधस्वरूप लोग एकजुट होने लगे।

 इस हादसे के बाद उसी दिन करेड़ा थाने में 53 लोगों के विरुद्ध अजा जजा (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराने हेतु अर्जी दी गई जिसमें घटना का कवरेज करने गए तीन पत्रकारों, एक वकील तथा गांव के ऐसे लोग जो गाँव में उस दिन मौजूद ही नहीं थे, ऐसे दर्जनों लोगों के नाम भी शामिल कर दिए गए, यहां तक कि एक दलित जनप्रतिनिधि को भी इसमें आरोपी बनाया गया। इस प्रकार के मनगढ़ंत आरोपों ने आग में घी डालने का काम किया. पूरा गांव उबल पड़ा और आस-पास के गांवों से सवर्ण युवाओं के एकजुट होकर प्रतिक्रिया करने के समाचार मिलने लगे.

   दलितों के विरुद्ध हिंसा की संभावना बनते देखकर मैंने इस मामले में दखल करने का मानस बनाया और मैं घटना के एक दिन बाद 21 सितंबर को करेड़ा पहुंचा, विभिन्न लोगों से मिला तो मुझे पता चला कि करेड़ा के आम नागरिकों से लेकर प्रशासन तक में यह बात किसी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत पहुंचाई गई कि 'दलित उत्पीड़न' का यह झूठा मामला बनवाने तथा दलित पक्ष को उकसाने में मैं प्रमुख भूमिका निभा रहा हूँ तथा दलितों को भड़काने तथा गांव के निर्दोष लोगों को फंसाने के काम में अग्रणी भूमिका में हूँ।

मेरे लिए अपनी भूमिका का स्पष्टीकरण देना इसलिए भी जरूरी हो गया था, क्योंकि इस मामले से आक्रोशित सवर्ण हिंदू जातियों की संभावित प्रतिक्रिया काफी खतरनाक रूप ले सकती थी और जहां पर धर्म, आस्था का सवाल हो तो भीड़ बिना सोचे विचारे उन्मादी होकर कुछ भी कर सकती है।

मैंने तय किया कि मैं इस मामले में एक सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करूं ताकि दलितों पर किसी भी संभावित खतरे को टाला जा सके।

  मैंने करेड़ा के रेगर, खटीक, जीनगर, सालवी, सरगरा तथा वाल्मीकि जैसी दलित समुदाय की जातियों के मोतबीरों से मुलाकात की तथा उनसे फीडबैक लिया कि क्या उनके साथ महंत सरजूदास तथा ग्रामीणों की ओर से कोई भेदभाव किया जा रहा है? क्या वहां हो रहे धार्मिक आयोजन में किसी प्रकार की छुआछूत या उत्पीड़न अथवा रोकटोक की जा रही है?

मुझे यह जानकर तसल्ली मिली कि हनुमान बाग स्थित हरमंदिर की जमीन पर चल रहे आयोजन इत्यादि में सभी जातियों के लोग अपनी सहभागिता निभा रहे है तथा महंत सरजूदास का रवैया दलितों के प्रति समानतापूर्ण व बंधुत्व का है।

मुझे करेड़ा के दलित समाज तथा आस-पास के गांवों के दलित समाज के लोगों ने महंत सरजूदास महाराज की प्रशंसा के ही शब्द कहे तथा यह भी कहा कि इन संत की वजह से हम सब जाति समुदाय के लोग पहली बार एक साथ एक जाजम पर बैठ पाए हैं और गांव में सामाजिक समरसता व सौहार्द्र का माहौल बना है। जिसे अब कुछ वो लोग जिनका जमीन संबंधी स्वार्थ है, वे बिगाड़ना चाह रहे हैं और इसे जातीय संघर्ष में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि अनुचित है।

 मैं महंत सरजूदास से मिलने उनके मचान पर पहुंचा तथा उन्हें अपनी इस चिंता से अवगत कराया कि कहीं आपके शिष्य, भक्त या समर्थक दलितों के प्रति किसी प्रकार की हिंसक प्रतिक्रिया नहीं कर दें।

मैंने कहा कि जमीन के हक की लड़ाई अपनी जगह है, मगर दलितों पर किसी प्रकार का अन्याय, अत्याचार नहीं होना चाहिए।

महंतजी ने इस बात का वचन दिया कि किसी भी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने भी मुझसे भी यह सहयोग चाहा कि जिन ग्रामीणों के विरुद्ध एससी एसटी एक्ट में झूठा मुकदमा दर्ज करवाया गया है, उसकी भी निष्पक्ष जांच हो। कोई बेवजह नहीं फंसाया जाए।

मैंने उन्हें तथा वहां मौजूद आक्रोशित हजारों ग्रामीणों जिसमें सैंकड़ों दलित भी मौजूद थे, के समक्ष माइक पर कहा कि-अजा जजा (अत्याचार निवारण) कानून का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा तथा जरूरत पड़ने पर जिले के आला अधिकारियों से मिलकर उन्हें भी झूठे फंसाने वाले मामलों में कार्यवाही नहीं करने का आग्रह किया जाएगा।

  यह करके मैं उस रात घर लौट गया, लोग भी शांत होकर अपने-अपने घरों को लौट गए। अगर मैं हल्की सी भी चूक करता या भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल करता तो वहां पर जातीय संघर्ष तय था, मगर वक्त की नजाकत को देखते हुए मैंने हिंसक टकराव को टालने की पूरी कोशिश की तथा क्या मैंने गलत काम किया ? मुझे दलितों की सुरक्षा के प्रति चिंतित नहीं होना चाहिए ? दूसरे दिन 22 सितम्बर 2015 को करेड़ा से तकरीबन 200 लोग जिसमें दलित समुदाय के भी 50-60 लोग शामिल थे, वे भीलवाड़ा जिला मुख्यालय पहुंचे तथा उन्होंने करेड़ा में चल रहे घटनाक्रम की निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच की मांग की। मैं भी अपने पूर्व वादे के मुताबिक उनके साथ प्रशासन व मीडिया से मिला तथा मैंने जिले के आला अधिकारीयों से आग्रह किया कि -'यह जमीन के अधिकार का विवाद है, इसे दलित उत्पीड़न बताना एक दुखद कदम है, इससे क्षेत्र की शांति भंग हो सकती है और भाईचारा खत्म होने से होने वाले जातीय संघर्ष से सर्वाधिक नुकसान दलितों का होने की सम्भावना है ।'

  मैं जिला प्रशासन से मिल कर अपने घर लौट गया तथा करेड़ा का जनजीवन पटरी पर आने लगा, लोगों का गुस्सा भी शांत होने लगा, मेरी भूमिका किसी भी तरह से हिंसक टकराव से दलितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की थी, मैं अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए अपने लोगों को किसी भी प्रकार के हिंसक संघर्ष में धकेलने के पक्ष में नहीं था। मुझे खुशी है कि मेरे साथ खड़े होने से सवर्ण हिंदुओं का गुस्सा काफी कुछ कम हुआ। मगर 'दलितों के ठेकेदार' इस  समन्वयन, सौहार्द्र, भाईचारे और मोहब्बत को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे ? उन्होंने आनन-फानन में सोशल मीडिया पर क्रांतिकारी लेखन चालू कर दिया।

एक हिन्दू धर्म छोड़ चुके एक सज्जन ने मुझे लिखा कि- ''मैं 'ढोंगी महाराज' के जरिए हिंदू धर्म को बढ़ावा दे रहा हूँ तथा दलितों को 'सीताराम सीताराम' कहने के लिए मजबूर कर रहा हूँ।''

मैंने उनसे पूछा कि- आप ईमानदारी से बताएं कि क्या मैं वाकई ऐसा कर रहा हूँ और क्या करेड़ा के दलितों पर कोई जातिगत अत्याचार हो रहा है अथवा यह महज जमीन सम्बन्धी विवाद है ?

वे कोई तथ्यात्मक जवाब देने के बजाय मेरी निष्ठाओं पर सवाल उठाने लगे तथा कहने लगे कि मैं दलित समाज के खिलाफ हूँ, सवर्णों के हाथों बिका हुआ हूँ, हिंदुत्व को बढ़ावा दे रहा हूँ।

मैंने यथासंभव उनके प्रश्नों का जवाब दिया, मगर वे यह मन बना चुके थे कि मैं इस मसले से दलित विरोधी हो चुका हूँ, उनका तो यहाँ तक कहना था कि अगर दलित गलत भी हो तब भी मुझे दलितों के ही पक्ष में बोलना चाहिए क्योंकि मेरा काम है दलितों की आवाज़ बुलंद करना ना कि सवर्णों के प्रति सहानुभूति रखना।

उन्होंने कहा कि –" दलित कभी भी गलत नहीं हो सकता है। अगर मैं इस मसले में उनके साथ नहीं खड़ा होता हूँ तो वे दलित अधिकारों के लिए नेटवर्क चलाने वाले एनजीओ के साथ मिलकर मेरा राष्ट्रव्यापी पर्दाफाश कर देंगे तथा मुझे झूठा, फर्जी व नकली अंबेडकरवादी घोषित करवा कर मेरी दलित दुकान पर ताला लगवा देंगे।''

  मैंने उनसे कहा कि वे जो भी उचित समझे, करने को स्वतंत्र हैं। मुझे जो भी उचित लगा वह मैंने किया है तथा आगे भी करूंगा। मेरे लिए दलित प्रश्न जीवन मरण का प्रश्न हैमैं आम गरीब दलित के हक में खड़ा हूँना कि करोड़ों रुपए की फण्डिंग लेकर दलितों के नाम पर कारोबार चलाने वालों अथवा ढाई किलो सोने की झंझीरों का गले व हाथों में लटका कर वैभव का भौंडा प्रदर्शन करने वाले अवास्तविक दलितों का पक्षधर ! मेरे सरोकार सदैव ही स्पष्ट थे और आज भी है।

मैंने उन महाशय को कहा कि आपको लोगों को यह भी बताना चाहिए कि करेड़ा में मंदिर माफी की जमीन से सिर्फ दलित ही नहीं हटाए गए हैं बल्कि अन्य जाति समुदाय के लोग भी हटे हैं, सब लोग स्वेच्छा से हटे हैं, यह किसी प्रकार की जोर-जबरदस्ती या अन्याय -अत्याचार का मामला कतई नहीं था। आज की तारीख में जमीन का स्वामित्व व कब्जा हरमंदिर के पास है तथा एक कानूनी लड़ाई के जरिए जीत कर इसको वापस पाया जा सकता है।

मेरा उन्हें सुझाव था कि किसी भी प्रकार का सड़क का संघर्ष इन दलितों को कुछ भी राहत नहीं देगा। हां यह नाटकबाजी कुछ सामाजिक कारोबारियों का प्रोजेक्ट पूरा कर सकती है तो कुछ मृतप्रायः विफल राजनेताओं को राजनीतिक संजीवनी भी दे सकती है, मगर करेड़ा के दलितों को राहत नहीं दिला सकती है।

मेरी इस तरह की बात उन्हें पसंद नहीं आई, उन्होंने मुझे अम्बेडकरवाद से बाहर निकालने की कवायद प्रारम्भ कर दी। फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्वीटर आदि सोशल मीडिया पर उन्माद फैलाया जाने लगा था और देखते ही देखते मुझे 'दलित विरोधी' व 'सवर्णों के तलुवे चाटने वाला' घोषित करने की होड़ सी मच गई।

   मित्रों, मुझे इन आलोचनाओं और असहमति के स्वरों से कतई दुख नहीं हैमैं इनका स्वागत करता हूँमैं किसी भी अविवेकी उन्मादी भीड़ का हिस्सा होने से इंकार करता हूँमैंने कभी स्वयं को महान अंबेडकरवादी घोषित नहीं किया, मैं बहुत अच्छी तरह से यह जानता हूँ कि मैं अंबेडकर की बताई राह का पथिक मात्र हूँ, मुझमें असली अंबेडकरवादी होने के गुण अभी मौजूद नहीं हैं। मैं बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं का पालन नहीं कर रहा हूँ, मैं अंबेडकर का अध्येयता हूँ,उनका प्रशंसक और समर्थक हूँमगर मैं असली अंबेडकरवादी नहीं हूँ। आज भी मैं सैंकड़ों ऐसे काम करता हूँ जो एक सच्चे अंबेडकरवादी को नहीं करने चाहिए। मेरा पूरा परिवार हिंदू रीति-नीति से जीवन जीता है, कई प्रकार के देवी-देवताओं की तस्वीरें मेरे तथा मेरे रिश्तेदारों के घरों की शोभा बढ़ा रही है। प्रतिवर्ष मैं दर्जनों रामरसोड़ों के उद्घाटन व समापन में हिस्सा लेता हूँ, अब तक हजारों सत्संगों में शिरकत कर चुका हूँ, जिसमें अलखनामी, वेदान्ती, रामस्नेही तथा कबीरपंथी संतों की उपस्थिति रहती है। मैं सूफी संतों से प्यार करता हूँअजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती से लेकर दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया व करेड़ा के सैलानी सरकार तक के उर्सों में सक्रिय भागीदार रहा हूँजैन मुनियोंरागियोंग्रंथियोंभिक्खुओंतिब्बती लामाओंरेव्रेण्डस,पास्टर्सफ़ादर ,ओझागुणीभोपातांत्रिकमांत्रिकसिद्ध आदि ना जाने कौन-कौन लोग अब तक की जीवन यात्रा में मिल चुके हैसबसे मैंने कुछ ना कुछ सीखा ही है। मैं वैचारिक कट्टरपंथ का भी कभी आग्रही नहीं रहा, मार्क्सवाद, बुद्धिज्म, गांधी विचार, अम्बेडकर, फुले, पेरियार तथा कांशीराम, जेपी और राममनोहर लोहिया जैसे तमाम सारे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक विचारों व देशनाओं को करीब से जानने-समझने की कोशिश करते रहा हूँ। विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक संगठनों से मेरा लंबा जुड़ाव रहा है। पेशे से पत्रकार और आदत से एक्टिविस्ट हूँजिंदगी को पूरे अल्हड़पनमस्तीआनंद तथा खुलेपन से जीने में यकीन करता हूँ। विगत दो दशक से जो भी देखा, जाना, सोचा व समझा, उसके बारे में किसी की नाराजगी या खुशी की परवाह किए बगैर अपने विचार व्यक्त करते आया हूँ, कभी भीड़ की परवाह नहीं की, लोकप्रियता, गालियों व गोलियों की तरफ ध्यान नहीं दिया, मानवतावाद, समतावाद, प्रगतिशीलता के साम्यवादी व मुक्तिकामी मूल्यों का गुणगाहक रहा हूँ।

   रही बात मुझ पर ढोंगी बाबाओं, हिंदुत्व को बढ़ावा देने के आरोपों की तथा दलितों के विरुद्ध काम करने के की तो इन बातों का जवाब वक्त देगा, लोग देंगे और दस्तावेज देंगे। मुझे इस बारे में बहुत कुछ नहीं कहना है। यह सही है कि मैं आज भी दलित हिंदुओं की एक बड़ी आबादी के मध्य कार्यरत हूँ, मेरा विश्वास धर्म परिवर्तन के जरिए सामाजिक बदलाव में नहीं हैक्यूंकि मुझे किसी भी धर्म में मुक्ति का रास्ता नहीं दिखता। मैं मंदिर प्रवेश, यज्ञों में भागीदारी, बेवाण निकालने जैसे तरीकों में दलितों की आजादी के प्रयत्नों की विफलता से वाकिफ हूँ, मैं जमीन के झगड़ों की व्यक्तिगत लडाई और दलितों के स्वाभिमान, हको हकूक की रक्षा के सामूहिक जनआंदोलन के मध्य के फर्क को बहुत अच्छी तरह समझ सकता हूँ। मैंने कभी भी 24 कैरेट शुद्ध अंबेडकरवादी होने का दावा नहीं किया। कई बार मुझे लगता है कि मेरे विचार भले ही अंबेडकरवादी हो मगर व्यवहार में तो मैं सिर्फ एक नकली अंबेडकरवादी हूँ, आज भी मैं बाबा रामदेव के मंदिरों में जाता हूँ, सूफी संगीत सुनता हूँ, कबीर सत्संगों में तिलक लगवाता हूँ, हिंदू पर्व-त्यौहारों को अपने परिवार के साथ मिलकर आराम और उल्लास से मनाता हूँ, हाल ही में मेरी बहनों ने मेरी कलाई पर राखी का धागा बांधा था। दीवाली पर मेरे घर आंगन में दीप जलते हैं, गांव में मेरे घर के पास होलिका दहन होता है, गुरू पूर्णिमा के उत्सवों में मैं शिरकत करता हूँ। दलित समुदाय की विभिन्न जाति समाज के मंदिरों पर आयोजित सभाओं में शामिल होता रहता हूँ, अपने मुस्लिम दोस्तों को ईद की मुबारकबाद देता हूँ तो ईसाईयों को  हैप्पी क्रिसमस कहता हूँ, बुद्ध जयंती, महावीर जयंती, नानक, कबीर, रैदास की जयंती पर बधाई व शुभकामना के संदेश भेजता हूँ।

कुल मिलाकर मैं वह सब करता हूँ जो एक आम सक्रिय सेकुलर उदारवादी भारतीय नागरिक करता हैइसलिए भी मैं  संभवतः असली अंबेडकरवादी होने का दावा करने में सक्षम नहीं हूँआगे भी मेरा चरित्र कमोबेश यही रहने वाला है, इसलिए मैं भीलवाड़ा व राजस्थान के कुछ असली अम्बेडकरवादियों से क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैं उनके जैसा शुद्ध व परम पवित्र टंच अंबेडकराईट नहीं बन पाया हूँ।

रही बात मुझ पर हिंदुत्व को बढ़ावा देने और सवर्ण हिंदुओं के तलवे चाटने का आरोप लगाने के लिए बुलाई गई समाज विशेष की मीटिंग की तो इस मीटिंग के विरोधाभासी चरित्र पर भी ध्यान देना जरूरी है, जैसे कि मुझे सवर्ण हिन्दुओं का चमचा बताने के लिए आयोजित यह मीटिंग ही एक प्रसिद्ध हिंदू धर्म स्थल जगदीश मंदिर पर बुलाई गई, जहाँ सारे दलित क्रांतिवीर 'जगदीश भगवान' के मंदिर में इकट्ठा हुए, तस्वीरें देखने पर पता चलता है कि उनके सिर पर 'ऊँ' लिखा हुआ था, ईर्द-गिर्द 'जय जगदीश', 'जय विश्वकर्मा' तथा 'जयश्रीराम' लिखा साफ दिखता है, इनके नेता सार्वजनिक रूप से बण्डी-बनियान धारण करते हैं तथा गरीब दलितों का रोना रोने के लिए ढाई किलो सोने की जंजीरें गले में लटका कर आवारा पूंजी का भौंडा प्रदर्शन करते है। अवैध शराब, अवैध गैस, अवैध ठेके, अवैध भूमि माफिया के काम करने वाले, ब्लैकमेलिंग के जरिए पैसा ऐंठने वाले, आरटीआई का दुरुपयोग करने वाले, विदेशी पूंजी लेकर भारतीय समाज में दरारों को और चौड़ा करने वाले साम्राज्यवाद के ट्रोजन होर्सी एनजीओ वादी और चूक चुके राजनीतिक दलों के विफल राजनेता तक शामिल है।

ऐसे लोग इनके रहनुमा हैं जो अपनी पत्नी को उत्पीड़ित करने के आरोपी रहे हैं अथवा अपने ही स्टाफ की महिलाओं के यौन उत्पीड़न के घृणित भागीदार रहे हैं। इनके कुकृत्यों की काफी फेहरिस्त लंबी है, मगर फिर भी ये सभी सच्चे अंबेडकरवादी हैं, दलितों के देवता हैं, गरीबों के रहनुमा हैं, इन्हें इसी काम के लिए देश-विदेश से पैसा मिल रहा है। ये धार्मिक व जातीय घृणा के सौदागर अब सड़कों पर ज्ञापन, धरना, प्रदर्शन, सत्याग्रह तथा महापड़ाव डालने की घोषणा कर चुके हैं, इस क्षेत्र में बसने वाले लाखों दलितों की शांति, सुरक्षा व भाईचारे को पलीता लगाकर इन्हें अपनी-अपनी राजनीति, कारोबार अथवा प्रोजेक्ट चमकाने हैं, इन्हें अंबेडकर तथा दलित अधिकारों का टेंडर मिल चुका है, ये ठेकेदार हैं, इनके हाथ में दलितों का भविष्य है, इनमें लाख ऐब हो सकते हैं, ये गलत मुद्दे तथा अधूरी जानकारियों के जरिए देशभर के दलित बहुजन आंदोलन को गुमराह कर सकते हैं, क्योंकि ये स्वघोषित महान अंबेडकरवादी हैं, हालांकि इनमें से प्रत्येक को मैं व्यक्तिगत रूप से विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिरों में मूर्तियों के समक्ष साष्टांग दण्डवत करते देखते रहा हूँ, इनके घरों की दीवारों पर उसी हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की तस्वीरों व पोस्टरों की लाइनें लगी हुई है, जिनको ये पानी पी-पी कर कोस रहे हैं।

मेरी बला से ये ढोंगी छद्म दलित नेता स्वयं को दलितों का स्वयंभू नेता घोषित करते रहें, अपने एनजीओ के प्रोजेक्ट चलाते रहें, अपने-अपने लैटरपेड चमकाते रहें, रात-दिन मुझे गालियां निकालते रहें। इससे मेरी सेहत ना अच्छी होती है और ना ही खराब होती है, ना ही मुझे कोई फर्क पड़ता है।

  मैं सदैव सच्चे, वास्तविक मुद्दों में पीड़ितों के साथ था, हूँ और रहूँगा, मुझे ना वोट चाहिए, ना चंदा चाहिए और ना ही किसी प्रकार की दुकान या प्रोजेक्ट मुझे चलाना है, मैं अपनी जिंदगी अपनी शर्तों व अपनी आजादी के साथ जीता हूँ, मुझे दलित नेता कहलाने का भी कोई शौक नहीं है, मुझे किसी प्रकार की नेतागिरी नहीं करनी है, जिसे करनी है वो करे, मैं मानवता, शांति, सहिष्णुता, भाईचारे, समानता तथा स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों का पक्षधर हूँ और रहूँगा, मुझे असली अंबेडकरवादी होने का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।

नफरत फैलाने, अशांति पैदा करने तथा एक-दूसरे को लड़ाने की ओछी हरकतों को मैं सामाजिक चेतना कहना गवारा नहीं करता, मुझे विदेश और देश में बैठे किन्हीं आकाओं को अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं पेश करनी है, मेरी मर्जी होगी और मैं उचित समझूंगा उन मुद्दों में मैं भाग लूंगा, वर्ना नहीं। सब अपना काम करें तो अच्छा होगा।

मेरी कोशिश है कि करेड़ा के दलितों को उनके हक बिना किसी जातीय संघर्ष के हासिल हो, इलाके का भाईचारा बरकरार रहे, जिसकी जो श्रद्धा है, उसके वो भजन करे, जो नास्तिक है, वे अपना काम करे। सबकी आजादी बनी रहे, लड़ाई-झगड़े नहीं हो, सब कुछ प्रेम और शांति से निपटे ताकि करेड़ा के सभी निवासी आगे भी मिल-जुल कर एक साथ रहे। ..और हाँ अगर मुझे दलित विरोधी, सवर्ण समर्थक, गद्दार, वर्गद्रोही कहने से अगर किसी का भला होता हो, किसी की रोजी-रोटी चलती हो तो मुझे ये गालियां भी आभूषण लगेगी। मेरी गुजारिश है कि मेरे खिलाफ गाली देने का अखण्ड कीर्तन कुछ और बर्ष जारी रखा जाए। मैं आभारी रहूँगा।

भंवर मेघवंशी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है,)

Subscribe


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...