BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, June 2, 2015

गोडसे का अधूरा काम पूरा कर रहे हैं मोदी

गोडसे का अधूरा काम पूरा कर रहे हैं मोदी

भारतीय राष्ट्रवाद पर हिन्दू राष्ट्रवाद के हमले के प्रतीक हैं मोदी

 मोदी : राजनैतिक फायदे के लिये इतिहास का दुरूपयोग

राम पुनियानी

गोडसे का अधूरा काम पूरा कर रहे हैं मोदीमोदी के पितृ संगठन आरएसएस की राजनीति, इतिहास, विशेषकर मध्यकालीन इतिहास, को तोड़ने-मरोड़ने पर आधारित है। राजाओं को धर्म के चश्मे से देखा जाता है, मुस्लिम राजाओं का दानवीकरण किया जाता है और ऐतिहासिक तथ्यों को न केवल तोड़ा-मरोड़ा जाता है वरन् इतिहास के बारे में सफेद झूठ भी कहे जाते हैं। इन सब को आधार बनाकर, मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जाती है। इतिहास का विरूपण ही वह नींव हैजिस पर संघ की राजनीति आधारित है। नरेन्द्र मोदी इसी रणनीति को अपना रहे हैं।परन्तु वे मध्यकालीन की जगह आधुनिक इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं और काफी निचले दर्जे की बातें कर रहे हैं। अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में उन्होंने दो आमसभाओं को सम्बोधित किया और एक साक्षात्कार दिया। और इन तीनों में ही उन्होंने यह दिखा दिया कि राजनैतिक लाभ के लिये वे किस हद तक गिर सकते हैं।

सरदार पटेल के स्मारक के उद्घाटन समारोह में मोदी ने कहा कि भारत का प्रथम प्रधानमंत्री सरदार पटेल को होना था। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दो बड़े और महान नेताओं – महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू – की छवि को आघात पहुँचाने का प्रयास था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पूरे देश का समर्थन प्राप्त था। उन्हें सभी क्षेत्रों, धर्मों, लिंगों और जातियों के लोग ईश्वर की तरह पूजते थे। देश का प्रधानमंत्री कौन हो, यह चुनने का अधिकार गांधी जी को दिया गया। और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के नेहरू को इस पद के लिये चुना। महात्मा गांधी ने यह निर्णय विभिन्न कारकों पर गहन विचार करके ही लिया होगा क्योंकि सरदार पटेल और नेहरू, दोनों ही उनके बहुत प्रिय चेले थे। वे दोनों को बहुत अच्छी तरह से समझते थे। पटेल देश के उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री बने और इस हैसियत से उन्होंने देश में फैले 550 राजे-रजवाड़ों का भारतीय संघ में विलय करवाया। यह भारत के लिये उनका बहुत बड़ा योगदान था। प्रधानमंत्री के बतौर नेहरू ने औद्योगिक विकास, शिक्षा और विदेशी मामलों में देश की नीतियों की नींव रखी और वे 'आधुनिक भारत के निर्माता' कहलाए। उन्होंने भारत को औद्योगिकीकरण और शिक्षा की राह पर तेजी से आगे बढ़ाया और उनके द्वारा रखी गयी नींव पर ही भारत आज विश्व की एक बड़ी आर्थिक शक्ति बन सका है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल के साथियों का इस वृहद कार्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा होगा। उनकी कुछ नीतियों की आलोचना करने में कुछ भी गलत नहीं है परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय समाज को सामन्ती खाँचे से बाहर निकालना, महिलाओं और नीची जातियों को गुलामी से मुक्त करना और स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व जैसे प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित समाज का निर्माण, उन्हीं के महान नेतृत्व में हुआ था। सरदार पटेल की विरासत पर मोदी-आरएसएस कब्जा जमाने का प्रयास कर रहे हैं। यह इस तथ्य के बावजूद कि पटेलभारतीय राष्ट्रवाद के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध थे। वे गांधी जी के निष्ठावान अनुयायी थे और पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष थे। आरएसएस इनमे से कुछ भी नहीं है।आरएसएस और मोदी तो उन सभी मूल्यों के कट्टर

गोडसे का अधूरा काम पूरा कर रहे हैं मोदी

राम पुनियानी, लेखक आई.आई.टी. मुम्बई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।

विरोधी हैं, जिन पर सरदार पटेल की पूर्ण आस्था थी। मोदी की पहली कोशिश यह है कि वे पंडित नेहरू की भूमिका और उनके योगदान को कम करके बतायें। एक हिन्दी दैनिक को दिए साक्षात्कार में उन्होंने यह तक कह डाला कि नेहरू ने सरदार पटेल की अन्तिम यात्रा में भाग नहीं लिया था। इस झूठ की पोल तुरन्त खुल गयी। द टाईम्स ऑफ इण्डिया ने सरदार पटेलके अन्तिम संस्कार की खबर को मुखपृष्ठ पर छापा था और इसमें स्पष्ट शब्दों में कहा गया था कि राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू इस मौके पर मौजूद थे। अखबार ने नेहरू द्वारा पटेल को दी गयी श्रृद्धांजलि भी प्रकाषित की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि सरदार पटेल की भारत को स्वतंत्र कराने और नए भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक वीडियो क्लिप अपने ब्लॉग पर अपलोड की हैजिसमें नेहरू को अन्तिम संस्कार में भाग लेते हुये दिखाया गया है। यह भी स्मरणीय है कि मोरारजी देसाई ने अपनी आत्मकथा (खण्ड – 1, पृष्ठ 271, पैरा-2) में अन्तिम यात्रा में पंडित नेहरू की उपस्थिति की चर्चा की है।

यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि आरएसएस व मोदी एक ऐसे व्यक्ति को अपने आदर्श के रूप में प्रचारित कर रहे हैंजिसने राष्ट्रपिता की हत्या के बाद उनके संगठन पर रोक लगायी थी। आरएसएस के मुखिया एम.एस. गोलवलकर को सरदार पटेल ने एक पत्र में लिखा, ''उसके (आरएसएस) नेताओं के भाषण साम्प्रदायिकता के जहर से भरे हुये थे। अन्तिम नतीजा यह हुआ कि समाज में साम्प्रदायिकता का ऐसा जहरीला वातावरण बन गया, जिसमें इतनी भयावह त्रासदी (गांधी की हत्या) संभव हो सकी''। (सरदार पटेल के पत्र के अंश, जिन्हें 'आउटलुक' पत्रिका के अप्रैल 27, 1998 के अंक में प्रकाशित किया गया था)। 'आउटलुक' का यही अंक हमें बताता है कि गांधी जी की मृत्यु पर आरएसएस ने खुशियाँ मनायी और मिठाई बाँटी। मोदीगोडसे का अधूरा काम पूरा कर रहे हैं। वे भारतीय राष्ट्रवाद पर हिन्दू राष्ट्रवाद के हमले के प्रतीक हैं। हिन्दू राष्ट्रवादी गोडसे ने गांधी पर इसलिये हमला किया क्योंकि वे भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। अब एक नया हिन्दू राष्ट्रवादीनरेन्द्र मोदीमहात्मा गांधी पर प्रधानमंत्री पद के लिये उनकी पसंद को लेकर आक्रमण कर रहा है। मोदी का यह कहना कि नेहरू के स्थान पर सरदार पटेल को देश का प्रधानमंत्री होना था, नेहरू की छवि को आघात पहुँचाने का प्रयास तो है ही, उससे भी बढ़कर, यह गांधी पर सीधा हमला है। और इसमें आश्चर्य की कोई बात भी नहीं है।मोदी उस हिन्दू राष्ट्रवाद के पैरोकार हैंजिसे गांधी और उनकी विचारधारा इसलिये पसन्द नहीं थी क्योंकि वह भारत की विभिन्नता को स्वीकार करने की हामी थी। शायद ये लोग नहीं समझते कि ऐसा करके वे सरदार पटेल का भी अपमान कर रहे हैं क्योंकि सरदार भी भारतीय धर्मनिरपेक्षता और बहुवाद के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध थे और भारत को बहुवादी और धर्मनिरपेक्ष देश बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पटेल ने गांधी जी के धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण के सपने को पूरा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोदी के एक और झूठ का शपर्दाफा किया है। उन्होंने कहा कि मोदी ने पटना में अपने भाषण में कहा कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्यगुप्त राजवंश के थे जबकि वे मौर्य वंश के थे। इसी तरह, मोदी ने कहा कि सिकंदर गंगा के तट तक आ पहुँचा था। जबकि सच यह है कि सिकंदर सतलुज के तट से ही यूनान लौट गया था। मोदी ने इतिहास की अपनी अज्ञानता का भरपूर प्रदर्शन करते हुये कहा कि तक्षशिला, बिहार में है, जबकि तक्षशिला भारत के पश्चिमी भाग में थी और इस समय पाकिस्तान में है। मोदी ने पटना में अपनी आमसभा में ये सब झूठ जनता को लुभाने के लिये कहे। पटना की आमसभा को 'हुंकार सभा' का नाम दिया गया था। हुंकार का अर्थ होता है किसी बात को जोर से और अहंकार के अंदाज में कहना। और यह फासीवादी मानसिकता का प्रतीक है। मोदी ने अपनी सभा में विरोधियों को 'चुन-चुनकर उखाड़ फेंकने' की बात भी कही। हिटलर ने भी ठीक यही किया था। उसने भी कम्युनिस्टों, ट्रेड यूनियनों और यहूदियों को चुन-चुनकर उखाड़ फेंका था। इस समय मोदी का ध्यान उनके राजनैतिक विरोधियों पर केन्द्रित है परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा का पुराना नारा है ''पहले कसाई फिर ईसाई''। कुल मिलाकर, एक अत्यंत खतरनाक परिदृश्य उभर रहा है। गांधी जी की प्रधानमंत्री पद के लिये पसन्द पर आक्रमण कर, भारतीय राष्ट्रवाद पर हल्ला बोला जा रहा है। जनता को भड़काने के लिये गोएबल्स के अंदाज में इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और उसी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, जो फासीवादियों की याद दिलाती है।

इस समय आरएसएस-भाजपा-मोदी की किसी भी अन्य राजनैतिक गठबंधन से तुलना करना बेमानी और खतरनाक है। भाजपा एक अलग तरह की पार्टी हैजिसका अन्तिम लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है। और इसके नेता मोदी चाहकर भी अपने खूनी पंजों को छुपा नहीं पा रहे हैं। जो लोग भाजपा और मोदी की किसी अन्य दल से तुलना करते हैं वे गम्भीर भूल कर रहे हैं, जिसकी देश को आने वाले समय में, प्रजातन्त्र के खात्मे के तौर पर, भारी कीमत चुकानी होगी। हमें यह याद रखना चाहिए कि हिटलर भी प्रजातांत्रिक तरीके से सत्ता में आया था। परन्तु सत्ता में आने के तुरन्त बाद उसने प्रजातन्त्र का गला घोंट दिया और देश पर फासीवाद लाद दिया। उसके लिये उसने एक ओर अपने गुण्डों की सेना का उपयोग किया तो दूसरी ओर विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचारधारा के समर्थकों का।

खतरे की घंटी बज चुकी है। हम सबको उठकर खड़े हो जाना चाहिए।

(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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