BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, March 30, 2016

मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं? पलाश विश्वास

 मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को  क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं?
पलाश विश्वास
मन बेहद कच्चा कच्चा हो रहा है।सत्तर साल पहले आजादी मिलने के बावजूद हमारी राष्ट्रीयता इतनी कमजोर है कि कुछ प्रतीकों और कुछ मिथकों में ही राष्ट्र,लोकतंत्र और मनुष्यता,धर्म और संस्कृति ,इतिहास और विरासत,मनुष्यता और सभ्यता कैद हो गयी।हम दीवारों को तोड़ने के बजाये रोज नये नये कैदगाह बना रहे हैं।गैस चैंबर में तब्दील कर रहे हैं पूरे मुल्क को और मुल्क सिर्फ राजनीतिक नक्शे और सत्ता की राजनीति के दायरे में दम तोड़ रहा है।जिस भारतवर्ष की अवधारणा विविध संस्कृतियों,नस्लों और संप्रदायों और भाषाओं के बावजूद मनुष्यता और सभ्यता के मूल्यों से बनी थी,जिसे हमारे पुरखों ने अग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भारतीय संविधान के तहत समता और न्याय,नागरिक और मानवाधिकार,मनुष्य और प्रकृति के तादात्म्य.प्राकृतिक संसाधनों के न्यायपूरण बंटवारे के आर्थिक लक्ष्य के साथ हकीकत की जमीन पर वंचितों और उत्पीड़ितों,बहिस्कृतों,अछूतों और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक रक्षाकवच और लोकतंत्र के संघीय ढांचे में विविध लोकतांत्रिक संस्थानों,स्थानीय स्वायत्तता और नैसर्गिक कृषि व्यवस्था के साथ औदोगीकरण और सतत विकास की परिक्लपना के तहत तामील करने की सुनिश्चित दिशा तय की थी,वह सबकुछ बिखरकर किरचों में टूटकर हमें ही लहूलुहान कर रहा है और हम खून की नदियों में मुक्तबाजार का उत्सव मना रहे हैं अस्मिताओं, पहचानों, मिथकों के आधार पर रंगभेदी जातिवादी वर्चस्व के एकाधिकारवादी निरंकुश सत्ता का अंध प्रजाजन बनकर जिसमें नागरिकता का कोई विवेक या साहस है ही नहीं,मनुष्यता और सभ्यता के मूल्यभी बचे नहीं है।जिन आस्थाओं के नाम यह सारा कारोबार गोरखधंधा है,उनके शाश्वत मूल्यों के विरुद्ध है पशुवत हिंसक यह घृणासर्वस्व राष्ट्रवाद।

किसी व्यक्ति या संगठन को दोष देकर शायद ही इस आत्मघाती तिलिस्म को तोड़ पाना असंभव है।आज अपने भीतर झांकने की जरुरत है कि क्या हमारा अंध राष्ट्रवाद का यह हिंसक धर्मोन्माद और आधिपात्यवादी ब्राह्मणवाद का मनुस्मृति आधिपात्य हमारी मनुष्यता,हमारी आस्था .हमारी लोक विरासत,हमारी भाषा और संस्कृति के मुताबिक है या नहीं।जो पढे़ लिखे समृद्ध और नवधनाढ्य मध्यम वर्ग का महत्वाकांक्षी तबका आजादी के बाद बना है,हमें इसकी पड़ताल करनी चाहिए आजादी के पहले जो स्वतंत्रता संग्राम में सबकुछ न्योच्छावर कर देने को तैयार हमारे पुरखे रहे हैं,उनकी विरासत का हम क्या बना बिगाड़ रहे हैं।
भारत माता का प्रतीक बहुत पुराना भी नहीं है।सन्यासी विद्रोह के दौरान भारत माता का यह प्रतीक बना,जिसे इस देश के अल्पसंख्यकों ने कभी स्वीकारा नहीं है।क्योंकि यह मिथक हिंदुत्व का प्रतीक भी है,जिसमें देश को हिंदू देवी के रुप में देखा जाता है।इसे लेकर बहुत विवाद भी हुआ हो,ऐसा भी नहीं है।जैसे जो लोग सरस्वती वंदना को अनिवार्य मानते हैं,उन्हें सरस्वती वंदना की स्वतंत्रता है और जो नहीं मानते उनके लिए सरस्वती वंदना अनिवार्य नहीं है।
भारतमाता की जय का उद्घोष अब तक अनिवार्य नहीं है।लोग अपनी अपनी आस्था के मुताबिक इन प्रतीकोे के साथ जुड़े हैं या नहीं भी जुड़े हैं।भारतीय संविधान ने किसी धार्मिक प्रतीक किसी समुदाय पर थोंपा भी नहीं है।
आज ही भारत देश की राजधानी में इक्कीसवीं सदी के बुलेट जमाने में भारत माता की जय कहला ना पाने के गुस्से में तीन बेगुनाह मुसलमान जिनकी आस्था हिंदुत्व के प्रतीकों के मफिक नहीं है,उनकी खुलेआम पिटाई कर दी गयी है और वे इसी देश के किसी राज्य के पिछड़े क्षेत्र के नागरिक हैं।इसे उन्माद कहा जाये या मूर्खता,समझ में नहीं आता।
28 मार्च को हम चंडीगढ़ से जालंधर पहुंचे कि हमें पठानकोट से टिकट बन जाने की वजह से वहीं से कोलकाता के लिए हिमगिरि एक्सप्रेस आधीरात के बाद 2 बजकर बीस मिनट पर पकड़नी थी।बगल में फगवाड़ा है औरयह पूरा इलाका सूखी हुई पंजाब की पांच बड़ी नदियों में से दो सतलज और व्यास का दोआब है,जिसे हरित क्रांति की कोख बी हम कह सकते हैं।फगवाड़ा से हमारे मित्र ज्ञानशील आ गये तो हम लोग देश के बाकी हिस्सों के मित्रों के साथ संवाद भी करते रहे और लगातार इस विषय पर बातचीत करते रहे कि देश दुनिया को कैसे जोड़ा जाये।हिमाचल में पालमपुर से लेकर शिमला तक यही कवायद जारी रहा।
पलामपुर में जम्मू से पधारे अशोक बसोतरा और उनके साथियों,पूंछ से आरटीआई कार्यकर्ता अयाज मुगल और कश्मीर घाटी से महेश्वर से और बाकी देश के लोगों जिनमें यूपी,बिहार,मध्यप्रदेश ,झारखंड,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र,असम,दिल्ली से लेकर गुजरात तक के युवा छात्र और सामाजिक कार्यक्र्ता शामिल थे,हम लगभग हफ्तेभर इसी माथापच्ची में फंसे रहे कि जाति और धर्म,नस्ल के तंग दायरे में पंसी इंसानियत को कैसे आजाद किया जाये।हम 17 मई को रिटायर करने वाले हैं 36 साल की पत्रकारिता से,जहां हमने हर मुद्दे पर लगातार विचार विमर्श जारी रखा ,उन लोगों के साथ भी जो हमसे असहमत हैं और हमारे दुर विरोधी हैं।अभी रिटायर होने के बाद हमें पेंशन मासिक दो हजार से ज्यादा मिलने वाली नहीं है और सर छुपाने लायक कोई छत हमारी है नहीं है और नघर वापसी का रास्ता हमारे लिए कोई खुली है।लेकिन हमारे लिए यह फिक्र का मसला उतना नहीं है,जितना  कि इस दुनिया को बेहतर बनाने का,कायनात की रहमतों बरकतों और नियामतों को बहाल रखने और नागिरकों के मानवबंधन के लिए साझा मंच बनाने का मुद्दा।
इसी दौरान आम आदमी पार्टी के निर्माम में खास भूमिका रखने वाले प्रशांत बूषण जी से बी लंबी बातें हुई तो हिमांशु जी के मार्फत हम मध्यबारत के ग्राउंड जीरो से भी टकराते रहे।इस वर्कशाप में स्वराज के कार्यकर्ता भी बहुत थे लेकिन उनकी सामाजिक पृष्ष्ठभूमि वही बहुजन  बिरादरी है जो अलग अलग विचारधाराओं और आस्थाओं में बेतरह बंटे हैं।
प्रशांत जी से और उन सबसे हमारा विनम्र निवेदन यही था कि इस अभूतपूर्वसंकट की घड़ी में निरंकुश फासिस्ट सत्ता के मुकाबले के लिए सभी विचारदाराओं और सभी समुदायों वर्गों का साझा मंच जरुरी है और इस मंच का फौरी कार्यभार टुकड़ा टुकड़ा बंटे हुए देश को एकताबद्ध करने का है।
हमने प्रशांत जी से कहा कि आपने राजनीतिक विकल्प की तलाश में भस्मासुर तैयार कर दिया है तो कृपया इस अनुभव से सबक लें क्योंकि अब राजनीतिक विकल्प राष्ट्र चरित्र को सिरे से बदले बिना असंभव है।मौजूदा तंत्र में हम बार बार नेतृत्व पर फोकस हैं और एक के बाद एक मसीहा गढ़े जा रहे हैं और उनका विश्वासघात का सिलसिला जारी है।सिर्प जनादेश के समीकरण से हालात बदलने वाले नहीं है।राष्ट्र की चर्चा हम जरुरत से ज्यादा करते हैं लेकिन नागरिकों की चर्चा हम करते नहीं है।बेहतर हो कि हम सब लोग अपने अपने आग्रह और अहंकार को छोड़कर इस देश के नागरिकों के हक में गोलबंद हो जाये और इसके लिए एक बहुत बड़े सामाजिक आंदोलन की जरुरत है,जिसे हमने सिरे से नजरअंदाज किया हुआ है।
प्रशांत जी की प्रतिक्रिया हमें मिली नहीं है लेकिन बाकी लोग कमोबेश सहमत है।
ज्ञानशील को सविता जी ने रात ग्यारह बजते न बजते घर के लिए रवाना कर दिया औरहम ट्रेन में सवार हो गये ।रात गहरा गयी थी और लंबे सफर की वजह से हम सो गये।
सुबह एक कश्मीरी मुसलमान साफ्टवेयर इंजीनियर की शिकायती उद्गार से हमारी नींद खुली।वह साफ्टवेयर इंजीनियर है और उसकी नागरिकता का प्रमाणपत्र बी उसके पास है।वह कोलकाता के किसी फर्म में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था।उसने सारे सबूत दिखाये लेकिन पंजाब पुलिस ने जब सारे लोग सो रहे थे,उसे नंगा करके उसकी तलाशी ली।
हम उसका नाम पता नहीं दे रहे हैं ताकि वह फिर उत्पीड़न का शिकार न हो।लेकिन उसकी यह बात आज फिर नासूर बनकर दर्द का सबब है कि उसने कहा कि मारो गोली कश्मीर को,मुसलमानों का बी कत्लेआम कर दो,लेकिन आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों के साथ हिंदू राष्ट्र में क्या हो रहा है।पूर्वोत्तर और कश्मीर की बात छोड़ बी दीजिये,हिमालयक्षेत्र से दिल्ली पहुंचने वाले नागरिकों से,बंगाली हिंदू शरणार्थियों से,जल जमीन जंगल से बेदखल लोगों से,बिहार यूपी झारखंड छत्तीसगढ़ से दिल्ली और दूसरे शहरो मे जाने वाले भारतीय नागरिकों के साथ आप क्या करते हो।
उसने कहा कि मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को  क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं?

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