BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, December 12, 2014

भालो आछि, भालो थेको आमार देश! पलाश विश्वास

भालो आछि, भालो थेको आमार देश!
पलाश विश्वास
अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए श्री कृष्ण की कांस्य प्रतिमा

क्या श्रीमती स्वराज को लगता है कि गीता किसी संकट में है या फिर वे साध्वी निरंजन ज्योति के 'रामजादे कांड' और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के ताजमहल को 'तेजोमहालय' नाम का शिवमंदिर बताने से पैदा हुए शोर के बीच अपनी जगह खोज रही हैं?


पंकज श्रीवास्तव ने कुछ मौजूं सावल उठाये हैंः

प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं की धूम के बीच लगभग गुम हो चुकीं विदेशमंत्री सुषमा स्वराज अब 'गीता' की वजह से चर्चा में हैं। उन्होंने गीता को 'राष्ट्रीय ग्रंथ' घोषित करने की मांग की है। वैसे, भारत में किसी को 'राष्ट्रीय' घोषित करने का मतलब ही यह स्वीकार करना है कि वह संकट में है, जैसे 'राष्ट्रीय नदी' गंगा या 'राष्ट्रीय पशु' बाघ। तो क्या श्रीमती स्वराज को लगता है कि गीता किसी संकट में है या फिर वे साध्वी निरंजन ज्योति के 'रामजादे कांड' और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के ताजमहल को 'तेजोमहालय' नाम का शिवमंदिर बताने से पैदा हुए शोर के बीच अपनी जगह खोज रही हैं?

पंकज के मुताबिक गीता कई सौ साल से भारत का प्रमुख दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भेंट करने की प्रथा शुरू करके नई रीति शुरू की है, लेकिन क्या वाकई गीता सभी संदेहों से परे होकर राष्ट्रीय भावना को प्रकट करती है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि यह 21वीं सदी है जहां नागरिक अधिकारों को लेकर सजगता आंदोलनों की शक्ल में फूटती रहती है। ऐसे में 'निष्काम कर्मयोग' खाये-पिये अघाये लोगों के लिए तो आनंदवर्षा कर सकता है, लेकिन जो मजदूर मनरेगा की पूरी मजदूरी चाहता है,जो किसान अपनी फसलों का उचित मूल्य चाहता है, जो नौजवान पढ़ाई के बाद रोजगार चाहता है या फिर जो, किसी दफ्तर से तीस दिन के अंदर सूचना के अधिकार के तहत सूचना चाहता है, वह निष्काम कर्मयोगी नहीं हो सकता। उसे अपने प्रयासों का फल चाहिए, वह भी एक निश्चित समयावधि में।

पंकज का यह लिखना भी वाजिह हैः
बाहरहाल, इस व्याख्या पर कई किंतु-परंतु हो सकते हैं, लेकिन गीता में बहुत कुछ और भी ऐसा है जिसे आधुनिक युग में 'राष्ट्रीय' घोषित करने का अर्थ समाज को सैकड़ों साल पीछे ले जाकर संविधान की भावना के साथ खिलवाड़ करना है। गीता में स्त्रियों, वैश्यों और शूद्रों को 'पापयोनि' वाला घोषित किया गया है, जो कृष्ण की शरण में जाकर मुक्ति पा सकते हैं। ज़ाहिर है, गीता मनुष्य को मनुष्य से एक दर्जा नीचे गिराने वाली वर्णव्यवस्था को 'ईश्वरीय विधान' बताती है। गीता में कृष्ण का उद्घोष है-" चातुर्वण्यैमया सृष्टं" (अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों के रूप में मनुष्य जाति का विभाजन मैंने ही किया है।)

डॉ. अंबेडकर गीता को वर्णव्यवस्था पर चोट करने वाले बौद्धधर्म की प्रतिक्रिया में लिखी गई पुस्तक मानते हैं।
पंकज ने बाकायदा बाबासाहेब अंबेडकर का हवाला देते हुए लिखा है कि यही वजह है कि डॉ. अंबेडकर गीता को वर्णव्यवस्था पर चोट करने वाले बौद्धधर्म की प्रतिक्रिया में लिखी गई पुस्तक मानते हैं। उनके मुताबिक यह प्रतिक्रांति का दर्शन है, जो चातुर्वर्ण्य को सही साबित करने का बचकाना प्रयास है। 'हत्या शरीर की होती है, आत्मा की नहीं'- इस सिद्धांत का विवेचन करते हुए डॉ. अंबेडकर यह भी लिखते हैं-"यदि कृष्ण को अपने उस मुवक्किल की ओर से अधिवक्ता के रूप में उपस्थित होना पड़ता जिस पर हत्या का मुकदमा चलाया जा रहा है और वे भगवद्गीता में बताए गए सिद्धांतों को उस अपराधी के बचाव के लिए प्रस्तुत करते, तो इसमें संदेह नहीं कि उन्हें पागलखाने भेज दिया जाता।' (डॉ. अंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय, पृष्ठ 260)
हम अब बाबासाहेब को इस आलेख में उद्धृत नहीं कर रहे हैं।जो पाछ क इच्छुक हो वे कृपया वे यह लिंक खोल लेंः

Riddle In Hinduism - Ambedkar.org



पंकज श्रीवास्तव का यह मंतव्य आईबीएन खबर में आया है,जो अब रिलायंस समूह का है और जो लिका गया है,उससे कहीं ज्यादा यह महत्वपूर्ण है।

गीता महोत्सव से उद्योग कारोबार जगत में भी भारी खलबली मची है,हम आगे उसका खुलासा करते रहेंगे।

गीता का कर्मफल सिद्धांत
सबसे पहले गीता का कर्मफल सिद्धांतः

जैसा कि कहा जाता है गीता का उपदेश अत्यन्त पुरातन योग है। श्री भगवान् कहते हैं इसे मैंने सबसे पहले सूर्य से कहा था। सूर्य ज्ञान का प्रतीक है अतः श्री भगवान् के वचनों का तात्पर्य है कि पृथ्वी उत्पत्ति से पहले भी अनेक स्वरूप अनुसंधान करने वाले भक्तों को यह ज्ञान दे चुका हूँ। यह ईश्वरीय वाणी है जिसमें सम्पूर्ण जीवन का सार है एवं आधार है। मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अन्त है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा? मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा? किसी भी जिज्ञासु के हृदय में यह बातें निरन्तर घूमती रहती हैं। हम सदा इन बातों के बारे में सोचते हैं और अपने को, अपने स्वरूप को नहीं जान पाते। गीता शास्त्र में इन सभी के प्रश्नों के उत्तर सहज ढंग से श्री भगवान् ने धर्म संवाद के माध्यम से दिये हैं।

युद्धवचनों का सार

गीता के युद्धवचनों का सार यह है कि  इस देह को जिसमें 36 तत्व जीवात्मा की उपस्थिति के कारण जुड़कर कार्य करते हैं, क्षेत्र कहा है और जीवात्मा इस क्षेत्र में निवास करता है, वही इस देह का स्वामी है परन्तु एक तीसरा पुरुष भी है, जब वह प्रकट होता है; अधिदैव अर्थात् 36 तत्वों वाले इस देह (क्षेत्र) को और जीवात्मा (क्षेत्रज्ञ) का नाश कर डालता है। यही उत्तम पुरुष ही परम स्थिति और परम सत् है। यही नहीं, देह में स्थित और देह त्यागकर जाते हुए जीवात्मा की गति का यथार्थ वैज्ञानिक एंव तर्कसंगत वर्णन गीता शास्त्र में हुआ है। जीवात्मा नित्य है और आत्मा (उत्तम पुरुष) को जीव भाव की प्राप्ति हुई है। शरीर के मर जाने पर जीवात्मा अपने कर्मानुसार विभिन्न योनियों में विचरण करता है। गीता का प्रारम्भ धर्म शब्द से होता है तथा गीता के अठारहवें अध्याय के अन्त में इसे धर्म संवाद कहा है। धर्म का अर्थ है धारण करने वाला अथवा जिसे धारण किया गया है। धारण करने वाला जो है उसे आत्मा कहा गया है और जिसे धारण किया है वह प्रकृति है। आत्मा इस संसार का बीज अर्थात पिता है और प्रकृति गर्भधारण करने वाली योनि अर्थात माता है।

धर्मांतरण अब जिहाद है

भारत जिहाद के भूगोल में शामिल हो चुका है और अब जिहाद का दूसरा नाम धर्मांतरण है।हमने छह साल तक मेरठ के दंगे देखे हैं और बरेली में भी साल भर रहा हूं।सिखों के सफाये के वक्त भी मैं मेरठ में था तो इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद सफदर जंग अस्पताल से दिल्ली को धू धू जलते मेरे पिता ने देखा था जो मेरठ में भी कर्फ्यू और गोली मारो आदेस के मध्य मेटिकल कालेज के टीबी वार्ड में बंद थे महीनेभर,लगभग अकेले और आग और धुआं का सिलिसिले में उन्हें कोई फर्क महसूस न हुआ था।
हमेन दंगो के उन अनुभवों को कहानियों में दर्ज किया है और ऐसी ही कहानियों का संग्रह है अंडे सेंते लोग।एक उपन्यास भी है,उनका मिशन ।फुरसत है नहीं वरना कुछ टुकड़े वहीं से डाल देता।

वैसे दिन प्रतिदिन जो हो रहा है और जो अमन चैन की फिजां है,भोगे हुए यथार्थ के मुकाबले वे हकीकत बयां करती कहानियां भी बासी कढ़ी है।अब शहरों की दंगाई भीड़ राजकाज के मध्यदेहातों कोतबाह करने लगी है और तबाह खेतों और खलिहानों में,बंद कलकारखानों में दंगों की लहलहाती फसल है जिसे धर्मांतरण अभियान मुकम्मल जिहाद की शक्ल दे रहा है।

इसी सिलसिले में आने वाली कयामत का जरा अंदाजा भी लगाइयेगा क्योंकि बीबीसी की एक स्टडी में गुरुवार को सामने आया है कि सिर्फ नवंबर में जिहाद के नाम पर दुनियाभर में हो रही हिंसा में करीब 5 हजार लोगों की मौत हो चुकी है।

स्टडी के मुताबिक 664 आतंकवादियों ने करीब 14 देशों पर हमले किए, जिनमें चार देशों-इराक, अफगानिस्तान,सीरिया, नाइजीरिया के हालात सबसे गंभीर हैं। इस देशों में हुई हिंसा में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है। बीबीसी ने यह स्टडी इंटरनैशनल सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ रैडिकैलाइजेशन (आईसीएसआर) के साथ की, जिसका मकसद यह जानना था कि एक महीने में जिहादी हिंसा में कितने लोगों की मौतें हुईं।

आतंकवादियों से बड़े आतंकवादी वे ही तो

आंतकवादियों से बड़े आतंकवादी तो वे हैं जो बजरिये राजनीति और सत्ता नस्ली वर्चस्व जनसंहार संस्कृति के धारक वाहक राष्ट्रनेता  वगैरह वगैरह हैं।

ताजा खबर यह है कि अभी कथित धर्मांतरण को लेकर विवाद थमा भी नहीं था कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने आज यह कहकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया कि 'भारतीय नागरिकों की इच्छा' के अनुरूप बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए।यह धर्मातंरण  शुद्धिकरण घर वापसी का संघ परिवारी अभियान राम राज्य के लिए भयादोहन कार्यक्रम भी है,जाहिर है।

बहरहाल, धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर कल हुए हंगामे के बाद आज भी संसद में हंगामे के आसार हैं। विपक्ष के कड़े विरोध के बाद धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर राज्यसभा में आज चर्चा होने की संभावना है। लोकसभा में गुरुवार को इस मुद्दे पर विपक्ष ने काफी हंगामा किया गया था। विपक्ष ने आरोप लगाया कि इस तरह से लोगों का धर्म परिवर्तन कराना देश में धुव्रीकरण को बढ़ावा देने वाला कदम है। वहीं सरकार ने पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष की ओर से इस मुद्दे को बेवजह तरजीह दी जा रही है। संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि अगर विपक्ष साथ दे तो सरकार इस पर चर्चा कर कानून लाने के लिए तैयार है।

प्रणव उवाच,आपातकाल परिणामों से अनजान इंदिरा


गोडसे राष्ट्रभक्त था?


हुआ यह कि  बीजेपी सांसद साक्षी महाराज के एक और विवादित बयान से राजनीतिक पारा चढ़ गया है। साक्षी महाराज ने अपने एक बयान में कहा है कि नाथूराम गोडसे राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने कहा कि गोडसे राष्ट्रभक्त था और गांधी जी ने भी राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया। महात्‍मा गांधी की तरह ही गोडसे भी राष्‍ट्रभक्‍त थे। हालांकि अपने इस बयान के महज कुछ घंटों के भीतर ही उन्‍होंने यू टर्न ले लिया। सांसद ने अपने बयान से पलटते हुए कहा कि गोडसे देशभक्‍त नहीं था।

इससे पहले एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्‍नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि मुझे लगता है कि नाथूराम गोडसे के दिल में भी राष्‍ट्रभक्ति का जज्‍बा था। गोडसे के उस वक्त के बयान से लगता है कि वो किसी बात से दुखी था इसलिए उसने गांधी जी की हत्या की थी। उसके दिल में भी देश के लिए दर्द था।
उन्होंने कहा कि जब मुझसे पूछा गया कि कुछ लोग गोडसे का जन्मदिन मना रहे हैं। हिंदुस्तान इतना बड़ा देश है जहां लोग पत्थर को पूजते हैं रावण को पूजते हैं, राम का पुतला जलाते हैं। अब कोई गोडसे को पूज रहा है तो इसमें हम क्या करेंगे। हमारे झारखंड में रावण को पूजा जाता है इसमें हम क्या कर सकते हैं। कोई गोडसे की पूजा करता है तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नही है। हिंदुस्तान में कोई भी किसी की पूजा कर सकता है।


गौरतलब है कि 30 जनवरी ,1948 को गांधी की ह्तायके बाद से गोडसे संघ परिवार के महानायक हैं और उनके साथ सत्ता शेयर करने में राजनीतिक मंच शोयर करने में तमाम विचारधाराओं और तमाम रंग बिरंगे क्षत्रपों को कभी शर्म आयी हो,ऐसा कोई रिकार्ड बना नही है।शंग परिवार की ओर से गोडसे का सार्वजनिक महिमामंडन कोई नया नहीं है।

बाबरी विध्वंस,सिखों के नरसंहार और गुजरात के हत्यारों के महिमामंडन से जाहिर है यह धतकरम कोई बड़ा नहीं है।

बहरहाल संसद में नूरा कुश्ती जारी है और आगरा में धर्मांतरण के मुद्दे पर उठे विवाद के बीच गुरुवार को लोकसभा में चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने हंगामा किया। वहीं, सरकार ने आज कहा कि अगर सभी दल सहमत हों तब धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए वह कानून भी ला सकती है। वहीं, संसदीय कार्यमंत्री एम वैंकेया नायडू के आरएसएस को लेकर बयान पर लोकसभा में खासा हंगामा हुआ, बाद में पूरी विपक्ष ने सदन से वाकआउट किया।

मुसलमानों के बाद अब ईसाई भी हिंदू बनाये जायेंगे।फिर बौद्धों,सिखों और जैनियों की बारी ? क्रमशः.


गौरतलब है कि संसदीय सुनामी के मध्य संघ परिवार की ओर से धर्मांतरण अश्वमेध अभियान व्यापक और तेज बनाये जाने की योजना है।मुसलमानों के बाद अब ईसाई भी हिंदू बनाये जायेंगे।फिर बौद्धों,सिखों और जैनियों की बारी ?क्रमशः.
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कोई कारण नहीं है कि बौद्धों और सिखों को हिंदुत्व में समाहित न करने की संघ परिवार की कोई योजना न हो।हिंदुत्व से बौद्धमय बानेनवाले राम अब केसरिया हनुमान हैं और पंजाब में सिख संगत के मालिकान अकाली संघ परिवार में ही शामिल है।

विधर्मी बांग्लादेशियों के शुद्धिकरण की भी योजना

हिंदुत्व की इस महासुनामी  में विधर्मी बांग्लादेशियों के शुद्धिकरण की भी योजना है।हो सकता है ,उन्हें नागरिकता मिल जाये लेकिन अनार्य हिंदुओं के नागरिकत्व का मसला हल होने के आसार नहीं हैं।


फिर ग्लोबल हिंदुत्व का पुणयप्रताप यह कि भारत की पहचान और मौजूदा संत बाबा स्वामी  कारोबार योग को आज तब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई जब संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के साथ ही अब हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में इसका स्वागत करते हुए कहा कि मेरे पास इस खुशी को बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं।यह करिश्मा भी मोदी की पहल पर हुआ बताते हैं।डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक देश की सेहत के लिए योगाब्यास निश्चय ही बेहतर।

बाबाओं के अनंत यौवन का रहस्य भी वही।

बाबाओं के अनंत यौवन का रहस्य भी वही।इसी सिलसिले में खबर यह भी कि गुड़गांव की एक निजी कंपनी में काम करने वाली 27 साल की एक युवती से बीते दिनों उबेर कैब सर्विस के एक कैब में हुए बलात्कार के मामले में नित नए चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। वहीं, रेप के आरोपी कैब ड्राइवर शिव कुमार यादव ने अब कथित तौर पर चौंकाने वाला बयान दिया है। पुलिस सूत्रों के अनुसार कैब चालक ने खुद को काम देव का अवतार बताया है। उधर, उबेर कैब के आरोपी ड्राइवर शिव कुमार यादव की न्यायिक हिरासत की अवधि बढ़ा दी गई है।

यादव महाराज की बलात्कार कामदेवी दक्षता में योगाभ्यास और आयुर्वेद की कोई भूमिका है या नहीं,इसका बहरहाल खुलासा नहीं हुआ है।

अनंत यौवन कायाकल्प के मध्य रेडियएक्टिव सक्रियता

इसी अनंत यौवन कायाकल्प के मध्य रेडियएक्टिव सक्रियता भी गौरतलब है।रूस 2035 तक भारत में कम-से-कम 12 परमाणु रिएक्टर लगाएगा और उसने यहां अत्याधुनिक हेलीकाप्टरों के विनिर्माण पर भी सहमति भी जतायी है। दोनों देशों ने गुरुवार को यहां कुल मिलाकर अपने रणनीतिक सहयोग को और गति देने के लिये तेल, गैस, रक्षा, निवेश और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

गौरतलब है कि भरत अब तक अमेरिका समेत सभी विकसित देशों से ऐसा रक्षा आंतरिक सुरक्षा समझौता कर चुका है जो सेनसेक्स की उछाल की वजह भी है और रेटिंग बढ़ने का आधार बभी।जबकि उत्पादन आंकड़े सुधरे नहीं है और न वित्तीयघाटा का समाधान हुआ है।

प्रधानमंत्री के नाम तसलिमा का पत्र

कल हमने अपनी अति प्रिय लेखिका तसलिमा नसरीन का निजी पत्र उनके छूटे हुए देश के प्रधानमंत्री के नाम जो उनने लिखकर अपनी फेसबुकिया दीवाल पर टांगा है,ब्लागों के जरिये जारी किया है।

इनदिनों तसलिमा खबरों में रहती हैं।सत्ता उनका उसी तरह इस्तेमाल करती है जैसे कभी हेलेन और द्रोपदी का हुआ होगा।

उनके इस मार्मिक पत्र का न मीडिया में कहां प्रकाशन हुआ है और न इसका जिक्र कहीं हुआ है ।न बांग्ला में और न हिंदी में।

और वे जो नास्तिकता और मानवाधिकार की बातें लिखती हैं ,उस प्रसंग को सिरे से मटियाकर मीडिया की कृपा से वे अनंतकाल के लिए प्रतिबंधित निर्वासित हैं और किसी को भी उनके चीरहरण का अधिकार है और कोई श्रीकृष्ण इस द्रोपदी को बचाने वाला नहीं है।संघ परिवार उसका लगातार हिंदुत्व सुमनामी में इस्तेमाल करता रहा और उसकी नागरिकता पर विचार तक करने को तैयार नहीं है।

अपनी सुविधा की राजनीति में एक अकेली औरत की इतने सालों से हत्या होती रही है और वह फिरभी मर मरकर जी रही है और उसके दर्द की दास्तां का कोई भागीदार नहीं है लेकिन उसकी दांस्ता देश परदेस बदनाम है।

कृपया देखेंः

প্রধানমন্ত্রীর কাছে একটি ব্যক্তিগত চিঠি

Taslima Nasreen writes a personal letter to Hasina with every drop of her blood but Indian media makes her stand with RSS!


बलिप्रदत्त हैं तसलिमा नसरीन

संघ परिवार के अश्वमेधी गीता महोत्सव के तहत राष्ट्रव्यापी धर्मांतरण और घुसपैठियों तक को धर्मांतरण बजरिये भारतीय बनाकर विधर्मियों के सफाये के महायज्ञ में बलिप्रदत्त हैं तसलिमा नसरीन।

बांग्लादेश के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष ताकतें तसलमिमा की घर वापसी कमांग उठा ही रही थी और इस बारे में भी हस्तक्षेप में हमने रपट लगा दी है और देश लौटने की मार्मिक चिठ्ठी अपेन प्रधानमंत्री को लिखने वाली तसलिमा को भारत देश के महान मीडिया ने फिर एकबार संघ परिवार के सात खड़ा कर दिया है और लज्जा से लगातार यह सिलसिला चल रहा है।

गौरतलब ह कि तसलिम बार बार कहती रही हैं कि  तसलीमा नसरीन का कहना है कि उन्होंने अपने विवादग्रस्त उपन्यास 'लज्जा' में इस्लाम की आलोचना नहीं की और उनके खिलाफ फतवा इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपनी कई अन्य किताबों में धर्म की आलोचना की है।

बिल्कुल सही कहा है तसलिमा ने।

वैदिकी सभ्यता और इस्लाम दोनों पर जो हमले किये

तसलिमा नसरीन की असली पहचान तो उनके निर्वाचित कालम नामक किताब है जो बांग्लादेशी अखबारों में प्रकाशित उनके चुनिंदा कालमों का संकलन है।इस किताब में वैदिकी सभ्यता और इस्लाम दोनों पर जो हमले किये हैं तसलिमा ने,वैसे हमले वे फिर दोहरा नहीं सकी।

  1. मैं सभी धर्म के दुश्मन हूँ: तस्लीमा नसरीन - यूट्यूब

  2. ২ ফেব্রুয়ারী, ২০১০ - Tamoso Deep আপলোড করেছেন
  3. मुझे लगता है मैं बौद्ध धर्म, साथ ही ईसाई धर्म की आलोचना, मैं हिंदू धर्म की आलोचना, इस्लाम की आलोचना। यहूदी और अन्य सभी धर्म केवल मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मुझे मृत चाहते ...
'दुःसहबास'
गौरतलब है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध प्रदर्शन और आपत्ति के बाद बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन द्वारा लिखी पटकथा पर आधारित धारावाहिक के एक बंगला चैनल पर प्रसारण को अनिश्चित समय के लिए स्थगित करना पड़ा। तसलीमा ने कहा कि इसकी कहानी का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। आकाश आठ चैनल पर 'दुःसहबास' (कठिन जिंदगी) का प्रसारण होना था। अल्पसंख्यक समूह मिल्ली इत्तेहाद परिषद के अब्दुल अजीज और कोलकाता स्थित टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना नुरूर रहमान बरकती ने चैनल को इस धारावाहिक का प्रदर्शन रोकने की चेतावनी देते हुए कहा कि इससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। इस पर तसलीमा ने ट्वीट कर कहा है, 'मैं महसूस कर रही हूं जैसे मैं सउदी अरब में रह रही हूं।'

आपबीती का सिलसिला

फिर तसलिम का लेखन आपबीती का सिलसिला बन गया।मसलनः

तसलीमा नसरीन - बचपन में खुद के साथ हुए यौन शोषण को उजागर करती एक बहादुर लेखिका


उस दिन 16 अगस्‍त था, सन 1967। दो दिन पहले ही पाकिस्‍तान का स्‍वाधीनता दिवस मनाया गया था । मैं स्‍कूल से घर लौटकर मां का इंतजार कर रही थी। उनके घर आने पर ही मुझे नाश्‍ता-पानी मिलना था। नानी के मकान में प्रतिदिन शाम को किताब पढने की जैसी बैठकी जमती थी, वैसी ही जमी हुई थी। *** मै मां के न रहने पर अकेली थी, दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गई। हाशिम मामा ने कहा, 'जा, बाहर जाकर खेल।'
... मुझे बाहर जाकर खेलने की इच्‍छा नहीं हुई।  मुझे भूख लगी हुई थी। मां जाली की आलमारी में ताला लगा गई थीं। नानी के आंगन के कुएं की बगल से होती हुई नारियल के पेड़ के  नीचे से अपने घर के सूने आंगन की सीढि़यों पर पहुंचकर गाल पर हाथ रखकर मैं अपने पैर पसारकर बैठ गई। तभी शराफ मामला उधर आए।
... उन्‍होंने मुझसे पूछा, 'बड़ी बू कहां  हैं ?'
मैने गालों पर हाथ रखे-रखे सिर हिलाकर कहा, 'नहीं हैं।'
'कहां गई हैं?' जैसे अभी उन्‍हें किसी जरूरी काम से मां से मिलना था, उन्‍होंने इस तरह पूछा।
शराफ मामा ने सीढि़यों पर-मेरी बगल में पीठ पर हल्‍का धौल जमाते हुए कहा, 'तू यहां अकेली बैठी क्‍या कर रही है ?' 'कुछ नहीं' मैंने उदास होकर कहा।
शराफ मामा ने 'बड़ी बू कब तक आएगी?' पूछते हुए गालों से मेरा था हटाकर कोमल स्‍वर में कहा, 'इस तरह गालों पर हाथ रखकर नहीं बैठते, असगुन होता है । ' मेरा मन कहने को हुआ कि मुझे बड़े जोरों की भूख लगी है, मैं क्‍या खाऊं? मां अलमारी में ताला लगा गई हैं।
... चल तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं ।' यह कहकर शराफ मामा खड़े हो गए और आंगन के पूरब में मेरे भाइयों के कमरे की दक्षिण दिशा में हमारे मकान के अंतिम छोर पर बने काली टीन वाले कमरे की ओर बढ़ने लगे।  उनके पीछे मैं भी चल पड़ी । ... शराफ मामा के साथ चलती हुई मैंने झाडि़यों में पैर रखने के पहले कहा, 'शराफ मामला इस जंगल में सांप रहते हैं।'
धत, डर मत ।  तू दरअसल बहुत बुद्धू है, एक बिलैया है । आ तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं, जिसके बारे में किसी को पता नहीं ।'
... 'कैसी चीज, पहले बताओ ।' मैंने उधर जने से हिचकिचाते हुए कहा ।
'पहले बता देने से उसका मजा नहीं रहेगा ।' शराफ मामला बोले।
बाहर से अंगुली डालकर उस दरवाजे को खोलकर शराफ मामा भीतर घुसे। उनके पीछे-पीछे एक ही दौड़ में मैंने भी वह झाड़ी पार कर ली। उस मजे की चीज को देखने के लिए मै अपनी जान हथेली पर रखकर सांप वाली झाड़ी कूदकर चली आई थी। शराफ मामा की उस गोपनीय वस्‍तु को देखने का मुझमें कौतूहल जग गया था। कमरे में घुसते ही मरे चूहों की दुर्गंध से मेरी नाक सिकुड़ गई। चूहों के दौड़ने की आवाज कानों में आई। कमरे के एक तरफ जलावन की लकडि़यों का ढेर था। दूसरी तरफ एक छोटी चौकी बिछी हुई थी।
... शराफ मामा बोले, 'यह जगह बढिया है, यहां कोई नहीं है। किसी को हमारे यहां होने का पता ही नहीं चलेगा।' उनकी ऐसी आदत भी थी। वे बीच-बीच में अचानक गायब हो जाते थे। एक बार रसोई के पीछे मुझे बुलाकर ले जाने के बाद कहा था, 'एक मजे की चीज पीएगी?' उन्‍होंने अपनी जेब से दियासलाई निकालकर बीड़ी जलाई थी। शराफ मामा ने सिगरेट का कश जैसा कश लेकर मुंह से धुआं उगलते हुए उस जलती हुई बीड़ी को मुझे भी देते हुए कहा था, 'ले तू भी पी ।' मैने भी कश लेकर मुंह से धुआं निकाला था ।
... शराफ मामा की भूरी आंखों की चमक और उनके ओठों पर खेलनेवाली उस अनोखी मुस्‍कान के बारे में ठीक-ठाक बता नहीं सकती। 'अब तुझे वह मजे की चीज दिखाऊं' कहकर उन्‍होंने एक झटके में मुझे उस तख्‍त पर लिटा दिया। मैं एक इलास्टिक वाला हाफपैंट पहने हुए थी। शराफ मामा ने उसे खींचकर नीचे सरका दिया।मुझे बड़ी हैरानी हुईा अपने दोनों हाथों से मैं हाफपैंट ऊपर खींचते हुए बोली, जो मजे की चीज दिखाना है दिखाओ। मुझे नंगी क्‍यों कर रहे हो ?'
शराफ मामा ने हंसते हुए अपने शरीर का पूरा बोझ मुझ पर डाल दिया और दुबारा मेरा हाफ पैंट खींचकर अपने हाफ पैंट से अपनी छुन्‍नी बाहर निकालकर मेरे बदन से सटा दिया। मेरे सीने पर दबाव बढ़ने से मेरी सांस रुकने लगी थी। उन्‍हें ठेलकर हटाने की कोशिश करते हुए मैं जोर से बोली, 'यह क्‍या कर रहे हो? शराफ मामा हट जाओ, हटो।' अपने बदन की पूरी ताकत लगाकर भी मैं उन्‍हें हिला तक नहीं पाई।
'तुझे जो मजे की चीज दिखाना चाहता था, वह यही चीज है ।' शराफ मामा ने हंसते हुए अपना नीचे का जबड़ा कसकर भींच लिया। पता है, इसे क्‍या कहते हैं, चुदाई । दुनिया में सभी इसे करते हैं । तेरे अम्‍मा-अब्‍बू भी करते हैं, मेरे भी ।' शराफ मामा अपनी इंद्री को बड़े ताकत से ठेल रहे थे। मुझे बहुत खराब लग रहा था। शर्म से अपनी आंखों पर मैंने अपना हाथ रख लिया।
अचानक कमरे में एक चूहा दौड़ा। इस आवाज से शराफ मामा उछल पड़े। मैं अपना हाफ पैंट ऊपर खींचकर उस कमरे से बाहर भागी। झाडि़यों को पार करते वक्‍त सांप का डर मन में आया ही नहीं। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था, जैसे वहां भी कोई चूहा दौड़ रहा हो। शराफ मामा ने पीछे से अद्भुत स्‍वर में कहा, 'यह बात किसी से कहना मत । कहेगी तो सर्वनाश हो जाएगा।'    
तसलीमा नसरीन
(आत्‍मकथा: खंड-एक: मेरे बचपन के दिन,सौजन्यःकलम से)
नोट- जिस वक्‍त की यह घटना है उस वक्‍त तसलीमा म‍हज पांच वर्ष की थीं।
सुनील ने जब छुआ हाथ
बांग्लादेश में रहते हुए ऐसे वाणिज्यिक आपबीती तसलिमा के लेखन का आचरण नहीं रहा है।इस आपबीती की सुरुआत कोलकाता में सुनील गंगोपाध्याय के सान्निध्य में ह हुई,ऐसा माने के अनेक कारण है और तसलिमा का सुनील गोगोपाध्याय के बारे में लिखा विस्फोटक संस्मरण इसके सबूत हैं।

लज्जा प्रकरण और बवंडर का रहस्य

लज्जा तो तसलिमा ने बाबरी विध्वंस की प्रतिक्रिया में बांग्लादेश में हुए अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर लिखा है और उसमें इस्लाम पर वैसा हमला कतई नहीं हुआ,जो बांग्लादेश के तमाम अखबारों में उससे पहले प्रकाशित तसलिमा के कालमों में हुआ।जाहिर है कि लज्जा के प्रकाशन का भारत में हुए राजनीतिक इस्तेमाल से ही सारे समीकरण तसलिमा के खिलाफ हो गये।

गौरतलब है कि विकिपीडिया के मुताबिक लज्जा तसलीमा नसरीन द्वारा रचित एक बंगला उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार १९९३ में प्रकाशित हुआ था और कट्टरपन्थी मुसलमानों के विरोध के कारण बांगलादेश में लगभग छः महीने के बाद ही इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जो जाहिर है कि फिर हटा नहीं।

विकिपीडिया के मुताबिक ही बांग्लादेश की बहुचर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन का बाँग्ला भाषा में लिखा गया यह पाँचवाँ उपन्यास सांप्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप को रेखांकित करता है। इस्लामी कट्टरपन को उसकी पूरी बर्बरता से सामने लाने के कारण उन्हें इस्लामकी छवी को नुकसान पहुँचाने वाला बताकर उनके खिलाफ मौलवियों द्वारा सज़ा-ए-मौत के फतवे जारी किए गए। बाँग्लादेश की सरकार ने भी उन्हें देश निकाला दे दिया जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

हिंदुत्व एजंडे के लिए लगातार लगातार इस्तेमाल

यह जो इस्लामी कट्टरपन के खिलाफ तसलिमा का जिहाद है,उसका जो संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे के लिए लगातार लगातार इस्तेमाल होता रहा है,तसलिमा के देस निकाले की असली पृष्ठभूमि लेकिन यही है।

तसलिमा का लिखा अब धर्मनिरपेक्ष भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश दोनों जगह निषिद्ध है तो लिखकर जीने वाली एक औरत के लिए निर्वासित जीवन यंत्रणा क्या होती है,इसे समझने की अगर संवेदना नहीं है तो उन सनसनीखेज तबके का क्या किया जा सकता है।
वजूद मिटा दिया
तसलिमा मयमनसिंह के गांव से डाक्टर बनी एक महिलाहैं जो सिर्फ बांग्ला बोलती हैं और बांग्ला लिखती हैं जब लिखती हैं तो अपना कतरां कतरां खून लेखन में बहा देती हैं।अपेन लेखन के बिना उसका कोई वजूद है ही नहीं और सीमा आर पार पुरुषतांत्रिक वर्चस्ववादी  बंगाली साहित्य ने उसका यह वजूद मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

निरंतर स्त्री पक्ष
तसलिमा निरंतर स्त्री के पक्ष में लिखती रही है और बार बार कहती लिखती रही है कि धर्म के रहते स्त्री मुक्ति असंभव है और हमारे बिरादर तो उनका धर्मांतरण करने पर ही आमादा है।

तसलिमा का लेखन न वे पढ़ते हैं और न तसलिमा का दिलोदिमाग की कोई खोज खबर रखते हैं,तसलिमा के ट्विटर से सनसनीखेज टुकड़े उठाकर संदर्भ प्रसंग बिना हिंदुत्व के हितों के मुताबिक प्रचारित प्रसारित करते हैं।

जबरन धर्मांतरण का विरोध
तसलिमा ने दरअसल जबरन धर्मांतरण का विरोध किया है और कहां हो कि जैसे धर्म मानने की आजादी है,वैसे ही धर्म न मानने की नास्तिकता की आजादी होनी चाहिए और इसी सिलसिले में कहां है कि इस्लाम का इतिहास धर्मांतरण का इतिहास है।इसी तरह देखा जाय सत्ता समर्थित किसी भी धर्म का इतिहास धर्मांतरण का इतिहास ही है।
हिंदुत्व का इतिहास भी तो धर्मांतरण का इतिहास
हिंदुत्व का इतिहास भी तो धर्मांतरण का इतिहास है।बौद्धमय बारत के बौद्धों के वंशज आज जो हिंदू हो गये,वह तो सत्ता के बल पर धर्मांतरण का नतीजा ही है।बंगाली की सत्तानव्बे फीसद आबादी जो शूद्र,अछूत,मुसलमान हैं सात फीसद आदिवासियों को छोड़कर,वह भी ताजातरीन सामूहिक धर्मांतरण की कथा व्यथा है।ईसाई धर्म के विस्तार में भी बरतानिया और अमेरिका साम्राज्यवाद पर चर्च के आधिपात्य है।

आमृत्यु अफसोस रहेगा।

तसलिमा ने ऐसा विस्तार में नहीं लिखा है और यह उसकी भूल है,राजनीति कतई नहीं है।वह लिखती है और सत्ता समीकरण से बचकर भी नहीं लिखती है।राजनीतिक नतीजों से बेपरवाह लेखन  ही उसकी निजी त्रासदी है।

इस्लाम का वजूद धर्मांतरण के बिना नहीं है,ऐसे विस्फोटक बयान तसलिमा के नाम नत्ती करके भारतीय मीडिया ने दरअसल तसलिमा की घर वापसी के मौके की हमेशा के लिए हत्या कर दी है।

हम चूंकि पिछले चार दशक से भारतीय पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय हैं तो यह शर्मिंदगी हमारी है और यह चूंकि स्त्री उत्पीड़न का मामला है तोजिंदगी पत्रकार बने रहने का हमें आमृत्यु अफसोस रहेगा।

स्त्री मन की पूरी अभिव्यक्ति

तसलिमा को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा लिखने के लिए,राजनीति के लिए नहीं,लेखन में अपने स्त्री मन की पूरी अभिव्यक्ति देने के लिए जो पुरुषतांत्रिक सत्ता ,राजनीति, विचारधारा और विमर्श के विरुद्ध है।

तसलिमा की त्रासदी का प्रस्तानबिंदू यही दुस्साहस है और इतने साल तक निर्वासन में रही तसलिमा आज भी दुस्साहस के मामले में उसीतरह युवती है और उम्र के हिसाब से ऊंच नीच की व्यावहारिकता उसके आचरण में नहीं है। लेखन में भी नहीं।

बाकी लेखकों से अलग भी हैं

इसीलिए तसलिमा नसरीन बाकी लेखकों से अलग भी हैं।वह हर बात बेहिचक कहती लिखती हैं।उसकी पूरी बात रखें बिना,उसका कहा लिखा कुछ भी कहीं सेउठाकर तूपान खड़ा करने और उसके संघ परिवार के हित में राजनीतिक इस्तेमाल से उसका निर्वासन इस जनम में तो खत्म होने को नहीं है।वह लिखती है और सत्ताी

हर नागरिक के लिए सलवा जुड़ुम का स्थाई बंदोबस्त
संघ परिवार का ताजा अभियान हिंदुओं के कल्याण के लिए मुक्तबाजारी चौतरफा सत्यानाश है तो इस पूरे देश के हर नागरिक के लिए सलवा जुड़ुम का स्थाई बंदोबस्त है।

किसी भूगोल की समूची जनसंख्या को आत्मघाती गृहयुद्ध में झोंक देना साम्राज्यवाद का पुराना दस्तूर है।

हिंदू साम्राज्यावाद के पुनरूत्थान का महाकाव्य अब नये सिरे से लिखा और पढ़ा जा रहा है।इसको लिखने वाले संजोग से हमारे हमपेशा लोग हैंं जिनकी भाषा,दक्षता,शैली और कामकला से मैं अपने रोजमर्रे की जिंदगी में रोजाना दो दो हाथ करता हूं।
रामायण की अगली कड़ी
महाभारत और उसके तहत लिखे गये भागवत गीता का कोई सिक्वेल नहीं लिखा गया था तब।महाभारत को बल्कि रामायण की अगली कड़ी कह सकते हैं।

रामायण में त्रेता के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो मनुस्मृति अनुशासन के लिए शंबूक की हत्या करते हैं और लंका विजय के बाद अपनी पति सीता की अग्निपरीक्षा लेने के बाद भी उन्हें भरोसा नहीं होता कि रावण के अशोक वन में उनका सतीत्व कैसे और कितना अक्षुण्ण  है।

मनुस्मृति अनुशासन

रामराज्य में ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु के बाद मनुस्मृति अनुशासन भंग होनो का बोधोदय होने पर घनघोर बियांबां में ज्ञान के लिए निषिद्ध बहिस्कृत शूद्र शंबूक को तपस्यारत देखकर राम उनका वध कर देते हैं तो एक प्रजाजन धोबी के सीता पर लगाये लांछन के आधार पर बिना सीता से कोई बात किये छलपूर्वक उन्हें भाई लक्ष्मण के साथ वनवास पर भेज देते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने राजसूय यज्ञ में स्वर्ण सीता का अभिषेक भी करते हैं और उसी राजसूय में रामायण का गान गाते हैं उनके जुड़वां बेटे लव और कुश।इसी राजसूय के मौके पर अयोध्या की राजसभा में फिर सीता का आविर्भाव होता है और स्वर्ण सीता के मुखातिब होकर विद्रोहिनी सीता फिर अग्निपरीक्षा न देकर पातालप्रवेश का विकल्प चुनते हैं और सरयू में भगवान श्रीराम जलसमाधि लेते हैं।

यह युद्ध वचन हिंदुत्व

इन्हीं राम को विष्ण का अवतार त्रेता का बताया जाता है और इस हिसाब से महाभारत रामायण का सीक्वेल है क्योंकि महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण हैं और कर्मफल सिद्धांत के दर्शन मध्ये धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे वे स्वजनों के वध के लिए एकलव्य का अंगूठा गुरुवर द्रोण की गुरुदक्षिणा में कट जाने और सूतपुत्र कहे जाने वाले सूर्यपुत्र अपने ही बड़े भाई कर्ण के उनके मुकाबले खड़े हो जाने के बाद सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बतौर द्रोपदी को जीतकर मातृवचन रक्षार्थ शास्त्र सम्मत तौर पर पूर्व जन्म में द्रोपदी की तपस्या पर शिव के वर के मुताबिक पांच पति के प्रावधान के तहत  भाइयों से साझा करने वाले अर्जुन को युद्ध केलिए प्रेरित करते हैं और यह युद्ध वचन हिंदुत्व है,हिंदुत्व का बीजमंत्र और मनुस्मृति अनुशासन गीता है,जो अब भारत का इकलौता राष्ट्रीयपवित्र ग्रंथ बनने वाला है।

वैसे हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ चारों वेद हैं,जिनको केंद्रित वैदिकी सभ्यता है।उपनिषद तमाम भी पवित्र हैं। तमाम पुराण पवित्र हैं।पवित्र है मूल महाकाव्य रामायण भी।

पवित्र हैं ब्राह्मण ,शतपथ और स्मृतियां।
धर्मांतरित लोग किस जाति के होंगे?
गीता को एकमात्र राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ बनाने के बाद दूसरे पवित्र ग्रंथों का संघ परिवार क्या करने वाला है ,यह उसी तरह नामालूम है कि गीता महोत्सव के तहत लालकिले पर अघोषित दावा करने के बाद संघ परिवार जो भारत के सारे विधर्मियों का धर्मांतरण करने का अभियान छेड़ा हुआ है, इस महा शुद्धि अभियान में धर्मांतरित लोग किस जाति के होंगे।

अछूत और शूद्र बना दिये गये

वैसे आर्यों नें हजारों सालों से अनार्यों को,द्रविड़ों को,हुणों को ,शकों को किन्नरों और गंधर्वं को,वध्य हने से बचे राक्षसों, दानवों, दैत्यों, दस्युओं और असुरों का भी धर्मांतरण किया है।वध्यमय बौद्धमय भारत के तमाम बौद्ध अब आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं हैं।

वे सारे बौद्ध भी हिंदुत्व में धर्मांतरित हैं और अखंड बंगाल जो सबसे अंत तक यानी ग्यारहवीं सदी तक बौद्धमय रहा,वहा इस्लाम आ जाने से ज्यादातर बौद्ध जाति व्यवस्था में शामिल होने से इंकार करते हुए मुसलमान हो गये और बाकी बौद्ध हिंदुत्व का अंगीकार करते हुए अछूत और शूद्र बना दिये गये।

आर्यों की तरह ही विदेशी मूल के शक,कुषाण और हुणो को छोड़कर बाकी तमाम लोग आज के बहुसंख्य शूद्र हैं।

कुषाण तो पहले बौद्ध बने और सम्राट कनिष्क कुषाण ही हैं।

शक हुण और कुषाण,मंगोलों की तरह भारतीय इतिहास और भूगोल को मध्यएशिया से जोड़ते रहे हैं।इन्ही शक हुण कुषाण और मंगोल और मध्यएशिया से आये पठानों के अलावा जो भी धर्मांतरित होकर हिंदू बने वे या तो शूद्र हैं या  फिर अछूत।

अखंड अनादि अनंत जाति व्यवस्था

हिंदुत्व की इस अखंड अनादि अनंत जाति व्यवस्था में इस महाउपद्वीप के तमाम देशों के तमाम धर्म भी शामिल हैं और सिखी, बौद्ध धर्म,जैन धर्म,ईसाई और इस्लाम में भी जाति बंदोबस्त का संक्रमण हो गया है और फिलहाल इस आलेख में उसका ज्यादा खुलासा किये जाने की जरुरत नहीं है।
गुरु ग्रंथ साहेब को बनायें राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ
हमारे सहकर्मी मित्र रंजीत लुधियानवी ने तो फेसबुकिया स्टेटस में दावा किया है कि अगर भारत में किसी ग्रंथ को राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ माना जाना चाहिए तो वह है गुरु ग्रंथ साहेब।

मैं उनके इस अभिमत का समर्थन करता हूं।
क्योंकि सिखी में गुरुग्रंथ साहेब ही सर्वोच्च सत्ता है और उसका कोई ईश्वर नहीं है।सिखों के लिए उनके तमाम गुरु ही सबकुछ हैं और वे ईश्वर भी नहीं है।

ईश्वर की अनातिक्रम्य सत्ता के बिनागुरु ग्रंथ साहेब सिख सर माथे लिये चलते हैं और अपनी सारी जिंदगी उसके मुताबिक चलते हैं,वह शायद पवित्रतम ही है।

हमने रंजीत लुधियानवी से निवेदऩ किया है कि वे अपने इस मंतव्य के पक्ष में  वाजिब दलीलें जरुर पेश करें।

सिख संगत से भी वही निवेदन है।

कल ही हमने हस्तक्षेक के साथ अपने तमाम ब्लागों में अपने आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े का आलेख Understanding Castes for their Annihilation पोस्ट किया है।


यह आलेख आनंद ने अनुराधा गांधी की जाति विमर्श पुस्तक के तेलुगु संस्करण की भूमिका बतौर लिखा है जो अभी छापा नहीं है।

आनंद की अनुमति से इसे हमने साजा किया है।

इस आलेख का रियाज जितनी जल्दी अनुवाद कर दें,हम उतनी ही जल्दी इसे हिंदी में साझा करेंगे और बाकी भारतीयभाषाों में सक्रिय मित्र इसका अनुवाद करें तो उन भाषाओं में भी इसे साझा किया जा सकेगा।

और हम उन सभी मित्रों से ऐसा करने का अनुरोध भी कर रहे हैं।

जाति उन्मूलन के एजंडे को समझने के लिए जाति को समझना भी जरुरी है।

चोल सम्राटों के वीर विक्रम के पुण्यस्वरुप

बहरहाल जैसे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणात्य के तामिलभाषी चोल सम्राटों के वीर विक्रम के पुण्यस्वरुप सुदूर कंबोडिया से लेकर इंडोनेशिया,बाली, सुमात्रा, जावा से लेकर फिलीपींस तक रामराज्य का विस्तार रहा है।

हमारी समझ में नहीं आता राम से तो हमारा इतना प्रेम है लेकिन हिंदू साम्राज्य के भूगोल को हकीकत बनाने वाली भाषा तामिल को हम संस्कृत के मुकाबले तनिक भाव क्यों नहीं देते।




जिस तरह समूचे एशिया के इतिहास भूगोल पर भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत का व्यापक असर है,उसीतरह अमेरिका,यूरोप और आस्ट्रेलिया का जो विकसित विश्व है वह ट्राय के काठ का घोड़ा है।

जो अब नई दिल्ली में धायं दांय चल रहा है और उसके पेट से विदेसी सेनाों की अनंत आवक है तो विदशी पूंजी भी वहीं से अबाध है।

ग्रीक त्रासदियां ग्लोबल सत्ता विमर्श

विकसित देशों के नवजागरण,उनकी भाषा,साहित्यऔर संस्कृति पर यूनानी महाकाव्य की धमक है और यूनाने की ही ग्रीक त्रासदियां ग्लोबल सत्ता विमर्श है।

हमारे आसपास कितने ही राजा आदोपियास,हैमलेट,ओथेलो,आंतिगोने,मैकबेथ और रोमन सम्राट नीरो और जूलियस सीजर कंधे और घुटने की मार से हमें रोजाना लहूलुहान कर रहे हैं हम नहीं जान सकते।

जीं हां,शेक्सपीयरन ट्रेजेडी का मूल भी ग्रीक त्रासदियां हैं।

जैसे आदिकवि बाल्मीकि के बाद संस्कृत के सबसे बड़े कवि कालिदास का यावतीय लेखन मनुस्मृति वृतांत और आख्यान है।
सूफी संत बाउल धाराएं
संस्कृत महाकाव्यधारा के अंतिम महाकवि कवि जयदेव ने जो गीत गविंदम के जरिेये लोक मार्फत उस अलौकिक दिव्य मनुस्मृति अनुशासन को तोड़कर वैष्णव मत का प्रवर्त्तन किया तो उसकी अंतरात्मा से सूफी संत बाउल धाराएं निकल पड़ी जिसकी वजह से आज का यह लोकतंत्र है और शायद बना भी रहेगा।

मौजूदा हिंदुत्व की बुनियाद

महाभारत का कोई फालोअप है नहीं।परीक्षित कथा भी महाभारत का ही हिस्सा है।

इसलिए कुरुक्षेत्र के महाविनाश के बाद भारतीय जनपदों का इतिहास भूगोल के आख्यान किसी भारतीय महाकाव्य में नहीं है।

गौर करने वाली बात यह है कि रामायण महाभारत के अलावा दूसरे पवित्र ग्रंथों में मनुस्मृति अनुशासन का खुलासा कहीं नहीं है।

हालंकि तमाम पुराणों ,स्मृतियों,ब्राह्ममों और शतपथ ग्रंथों में इसी अनुशासन पर्व का महिमा मंडन है और सतीकथा इसका अंतिम बिंदू अधुनातन है।

वैदिकी साहित्य यानी वेदों और उपनिषदों में जो वर्ण व्यवस्था है ,उसका अंत तो गौतम बुद्ध की क्रांति से ही हो गया था।

वैदिकी सभ्यता का आवाहन करते हुए पुरुषतांत्रिक स्थायी सत्ता आधिपात्य बंदोबस्त लागू करने के हिंदुत्व एजंडे में इसी कारण शायद चारों वेदों और तमाम उपनिषदों के मुकाबले भागवत गीता पवित्रतम है।

जो चरित्र और आचरण,स्थाई भाव से पुराण मात्र है और वेदों और उपनिषदों के उत्कर्ष से उसकी तुलना की ही नहीं जा सकती।उसे उपविषद कहना इतिहासविरोधी है।



वेदों और उपनिषदों की कोई भूमिका बची नहीं,इसीलिए गीता

जाति व्यवस्था जारी रखने के लिए अब वेदों और उपनिषदों की कोई भूमिका बची नहीं है।वैदिकी आराधना पद्धति की परंपरा मानें तो यज्ञ के अलावा मूर्ति पूजा हो ही नहीं सकती जो मौजूदा हिंदुत्व की बुनियाद है।

मूर्ति पूजा और नस्ली शुद्धता केंद्रित जो मनुस्मृति निर्भर हिंदुत्व है,उसके लिए वेदों और उपनिषदों समेत समूचे वैदिकी साहित्य की प्रासंगिकता इस मुक्त बाजार में बची नहीं है। क्योंकि इसमें चार्वाक परंपरा भी है जो मौलिक भौतिक वादी दर्शन है।

और वैदिकी सभ्यता में जो प्रकृित से सान्निध्य की अटूट परंपरा है जो प्रकृतिक शक्तियों की विजयगाथा है और उनकी उपासना पद्धति है,मूर्तिपूजक मनुस्मृति अनुशासन के हिंदुत्व और हिंदू साम्राज्यवाद के लिए मौजूदा ग्लोबल हिदुत्व के मुक्तबाजार में उसकी कोई प्रासंगिकता है नहीं।

सारे कृषि अभ्युत्थानों के मद्देनजर

इसलीए दरअसल गौतम बुद्ध और बौद्धमय भारत वर्ष से लेकर हरिचांद गुरुचांद बीरसा मुंडा टंट्या भील सिधो कान्हो रानी दुर्गावती से शुरु कृषि समुदायों के तेभागा और नक्सलबाड़ी तक के सारे कृषि अभ्युत्थानों के मद्देनजर,महात्मा ज्योतिबा फूले से लेकर बाबासाहेब अंबेडकर,पेरियार जोगेंद्र नाथ मंडल,नारायणगुरु के सामाजिक आंदोलन और जयदेव चैतन्य महाप्रभू से लेकर कबीर रसखान रहीम गालिब लालन फकीर आदि से शुरु अटूट संत बाउल फकीर सूफी परंपरा की,भारत में जो प्रगतिवादी दर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक आंदोलन है जो पर्यावरण चेतना है,जो जल जंगल जमीन नागिरकता नागरिक मानवाधिकार के हक हकूक की लड़ाई का अनंत सिसलिला है,जो दरअसल भारत राष्ट्र का साझा चूल्हा है,उसे एक मुश्त ठिकाने लगाने के लिए यह गीता महोत्सव है।

पहला नरसंहार क्षत्रियों का,इक्कीसबार

बाकी लोगों का क्या होगा कहना मुश्किल है लेकिन समझना यह भी चाहिए कि महाकाव्य रामायण के मुताबिक ब्राह्मण परशुराम ने अपनी मां की आकांक्षाओं का अनुशासन भंग हो जाने के अपराध में राजकुमारी से ऋषि जमदाग्नि की पत्नी बनने क मजबूर उन्ही मां का वध किया पिता के आदेश से।

हालांकि पिता के चमत्कार से वे फिर जी उठी और सतीत्व के अनुशासन में बंध गयी हमेशा के लिए।चूंकि मां की आकांक्षाओं में एक क्षत्रिय राजा का अतिक्रमण हुआ,इस अपराध में एकाबार दोबार नहीं,तीन बार भी नहीं इक्कीसबार इस भू से भूदेवता परशुराम ने क्षत्रियों का सफाया कर दिया।

नरसंहार संस्कृति का निर्लज्ज आख्यान

नरसंहार संस्कृति का इससे निर्लज्ज आख्यान और उसका धार्मिक आख्यान कहीं नहीं है।गौरतलब है कि आजाद भारत में गांधी के सौजन्य से अब कारोबारी उद्योगपति तबके ने क्षत्रियों को रिप्लेस कर दिया है।

सबसे ज्यादा भूसंपत्ति होने के बावजूद आपस में मारकाटकरने वाले राजपूतों की हालत राजनीतिक सत्ता के हिसाब से अछूतों और मुसलमानों की तुलना में भी दो कौड़ी की नहीं है।

राजनाथ सिंह भले ही ऐंठते हो,दिग्विजय की जली हुई रस्सी की ऐंठ बी बरकरार है लेकिन हमने वीपी और अर्जुन सिंह जैसे राजपूतों का अंतिम हश्र देख चुके हैं।

आजादी से पहले निरंकुश सता इन्ही क्षत्रियों का हाथों में थी और रामायण महाभारत महाकाव्यों को जो इतिहास बनाने पर तुला है संघ परिवार,उनके मुताबिक मनुस्मृति अनुशासन लागू करना ही उनके राजकाज का एकमात्र लक्ष्य रहा है।

मनुस्मृति अनुशासन लागू करने के माध्यम बतौर क्षत्रिय वर्ण का सृजन है।

इस कार्यभार के अनुशासन तोड़ने से वे भी बख्शे नहीं गये और इक्कीस बार उनका सफाया हुआ।

सिखों की हुक्म उदुली
यह ऐसा ही हुआ होगा जैसे कि संघ परिवार के मुताबिक विधर्मियों से हिंदुत्व की रक्षा के लिए सिख धर्म है और सिख और बौद्ध और जैन अंततः हिंदू हैं।

बौद्ध अपने को बौद्ध कम कहते हैं।नवबौद्ध दलित कहते हैं और इसी परिचिति के तहत आरक्षण और कोटा भी जाति व्यवस्था को स्वीकार करते हुए उठाने में सबसे आगे रहते हैं।तो जैन धर्म में मनुस्मृति अनुशासन बना हुआ है।

बौद्ध और जैन धर्म को साध लेने के बाद सिखों की हुक्मउदूली और सिखी को हिंदुत्व से अलग धर्म घोषित करने के अपराध में इंदिरानिमित्ते भगवान श्रीकृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के तमाम रंग बिरंगे परशुरामों ने कम से कम एकबार तो दुनिया से सिखों का नामोनिशान मिटाने का करिश्मा करने का मनुस्मृति अनुशासन का राजकाज निभा दिया।

होइहिं सोई जो राम रचि राखा

अब समझ लीजौ कि सारे शूद्र और सारे अछूत,सारे आदिवासी और सारे मुसलमान,ईसाई ,बौद्ध, जैन,सिख और दिगर जाति धर्म न्सल के लोग सत्ता के भागीदार क्षत्रप सिपाहसालार नहीं हैं और उनके लिए होइहिं सोई जो राम रचि राखा।

ग्रीक महाकाव्य इलियड का फालोअप उन्ही होमर महाशय का ओडिशी है और ओडिशी में ट्रीय के युद्ध के उपरांत जनपदों के विध्वंस की महागाथा है।

बाकी जनता और जनपदों का कोई किस्सा नहीं है

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे महाविनाश और स्वर्ग मर्त्य पाताल व्यापी आयुधों के ग्लोबल कारोबार के भयंकर जो परिणाम हुए उसका एक मात्र विवरण गांधारी का अभिशाप है और उसके फलस्वरुप मूसल पर्वे यदुवंश ध्वंस है और वब्याध के वाण से भगवान का महाप्रयाण है।

बाकी जनता और जनपदों का कोई किस्सा वैसे ही नहीं है जैसे आधुनिक माडिया में सत्ता संघर्ष और समीकरण के सिवाय न कोई मुद्दा होता है,न कोी जनता होती है और न उनकी सुनवाई होती है और  वहां जनपदों की कोई व्यथा कथा है।

कल्कि अवतार का अवतरण

इसी परिदृश्य में कलिकि यानी कल्कि अवतार का अवतरण है और जैसे हम कहते रहे हैं कि सारा धर्म कर्म जो पुरुषतांत्रिक आधिपात्य और सत्ता विमर्श का राजसूय अश्वमेध है और मुक्तबाजारी ग्लोबल हिंदुत्व में वह आर्थिक सुधार का मनुस्मृति अनुशासन पर्व है।

आप चाहे तो इसमें पुरातन प्रगतिवादियों और सर्वोदयी संप्रदाय और गांधीवादियों के संत विनोबा भावे के नेतृ्त्व में इंदिरायुगीन आपातकालीन अनुशासन पर्व का संदर्भ प्रसंग जोड़ सकते हैं जो शायद विषय विस्तार में मदद भी करें

जो हैं चतुर सुजान

जो हैं चतुर सुजान उसे पहेली बूझने की जरुरत भी नहीं है और जिनके भाग महान वे सीता का वनवास देने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम के कल्कि अवतारत्व से भी अनजान नहीं है और महाकाव्यों और मनुस्मृति के साझा राजकाज से देश ही नहीं,समूचे एशिया और सारी दुनिया का क्या रुपांतरण किस तृतीयलिंगे होने वाला है,उससे भी अनजान नहीं हैं वे।

भालो आछि भालो थेको।

सविता तसलिमा के पहले पति बांग्लादेश के असमय दिवंगत कवि रुद्र का गीत अक्सर गाती रहती हैःभालो आछि भालो थेको।

तसलिमा भी अपने छूटे हुए देश को,छूटे हुए घर परवार और समाज और समूचे बंगाली भूगोल को संबोधित करके अक्सरहां लिखती हैं,भालो आछि,भालो थेको आमार देश।

यूएन ने 21 जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' किया घोषित


इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से योग दिवस के विचार का प्रस्ताव करने के तीन महीने से भी कम समय में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' घोषित करने के भारत के नेतृत्व वाले प्रस्ताव को शुक्रवार को मंजूरी प्रदान कर दी। इसमें यह स्वीकार किया गया है कि 'योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक संपूर्ण दृष्टिकोण मुहैया कराता है।' उधर, प्रधानमंत्री मोदी ने 21 जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' घोषित करने का भारत नीत प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वीकार होने पर प्रसन्नता जाहिर की। साथ ही प्रधानमंत्री ने वैश्विक निकाय के सभी 177 देशों का शुक्रिया भी अदा किया।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी की ओर से आज पेश किया गया और इसमें 177 देश सह प्रायोजक थे जो यह आमसभा में किसी प्रस्ताव के लिए सबसे अधिक संख्या है। यह पहली बार हुआ है कि किसी देश ने कोई प्रस्ताव दिया हो और संयुक्त राष्ट्र के निकाय में 90 दिन से कम समय की अवधि में उसका कार्यान्वयन किया गया हो।
'वैश्विक स्वास्थ्य और विदेश नीति' एजेंडा के तहत मंजूरी प्राप्त इस प्रस्ताव के माध्यम से 193 सदस्यीय महासभा ने हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा करने का फैसला किया। प्रस्ताव में कहा गया है कि योग स्वास्थ्य के लिए समग्र पहल प्रदान करता है एवं योग के फायदे की जानकारियां फैलाना दुनियाभर में लोगों के स्वास्थ्य के हित में होगा। यह प्रस्ताव पेश करते हुए मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी के दिए भाषण को उद्धृत किया। भाषण में मोदी ने विश्व नेताओं से एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए मंजूरी देने का आह्वान करते हुए कहा था कि जीवन शैली में बदलाव और चेतना जाग्रत करने पर जलवायु परिवर्तन का सामना करने में मदद मिल सकती है।

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