BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, May 23, 2014

न मैं ब्राह्मण बन सका और न ही वो इन्सान बनने को राज़ी हुए

न मैं ब्राह्मण बन सका और न ही वो इन्सान बनने को राज़ी हुए
भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान'

न मैं ब्राह्मण बन सका और न ही वो इन्सान बनने को राज़ी हुए

हिन्दू तालिबान -18- ये कौन से ब्राह्मण हुए ?

भंवर मेघवंशी

संघ की वजह से अम्बेडकर छात्रावास छूट गया था और अब संघ कार्यालय भी, शहर में रहने का नया ठिकाना ढूँढना पड़ा, मेरे एक परिचित संत चैतन्य शरण शास्त्री, जो स्वयं को अटल बिहारी वाजपेयी का निजी सहायक बताते थे, वो उन दिनों कृषि उपज मंडी भीलवाडा में स्थित शिव हनुमान मंदिर पर काबिज थे, मैंने उनके साथ रहना शुरू किया, हालाँकि थे तो वो भी घनघोर हिन्दुत्ववादी लेकिन संघ से थोड़े रूठे हुए भी थे, शायद उन्हें किसी यात्रा के दौरान पूरी तवज्जोह नहीं दी गयी थी, किसी जूनियर संत को ज्यादा भाव मिल गया, इसलिए वो खफा हो गए, हम दोनों ही खफा-खफा हिंदूवादी एक हो गए और एक साथ रहने लगे….

मैं दिन में छात्र राजनीति करता और रात्रि विश्राम के लिए शास्त्री जी के पास मंदिर में रुक जाता। बेहद कठिन दिन थे, कई बार जेब में कुछ भी नहीं होता था, भूखे रहना पड़ता, ऐसे भी मौके आये जब किसी पार्क में ही रात गुजारनी पड़ी भूखे प्यासे… ऊपर से 'एंग्री यंगमेन' की भूमिका… जहाँ भी जब भी मौका मिलता, आर एस एस के खिलाफ बोलता और लिखता रहता… उन दिनों कोई मुझे ज्यादा भाव तो नहीं देता था… पर मेरा अभियान जारी रहता… लोग मुझे आदिविद्रोही समझने लगे… संघ की ओर से उपेक्षा का रवैय्या था… ना तो वो मेरी बातों पर कुछ बोलते और ना ही प्रतिवाद करते… एक ठंडी सी ख़ामोशी थी उनकी ओर से… इससे मैं और भी चिढ़ गया। संत शास्त्री भी कभी कभार मुझे टोकाटाकी करते थे कि इतना उन लोगों के खिलाफ मत बोलो, तुम उन लोगों को जानते नहीं हो अभी तक। संघ के लोग बोरे में भर कर पीटेंगे और रोने भी नहीं देंगे… पर मैंने कभी उनकी बातों की परवाह नहीं की।

वैसे तो चैतन्य शरण शास्त्री जी अच्छे इन्सान थे मगर थे पूरे जातिवादी। एक बार मेरा उनसे जबरदस्त विवाद हो गया। हुआ यह कि शास्त्री और मैं गाँधी नगर में गणेश मंदिर के पास किसी बिहारी उद्योगपति के घर पर शाम का भोजन करने गए। संभवतः उन्होंने किन्हीं धार्मिक कारणों से ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमन्त्रित किया था। शास्त्री जी मुझे भी साथ ले गए। मुझे कुछ अधिक मालूम न था, सिर्फ इतनी सी जानकारी थी कि आज शाम का भोजन किसी करोड़पति बिहारी बनिए के घर पर है। इस प्रकार घर-घर जा कर भोजन करने की आदत संघ में सक्रियता के दौरान पड़ ही चुकी थी, इसलिए कुछ भी अजीब नहीं लगा। संघ कार्यालय प्रमुख रहते हुए मैं अक्सर प्रचारकों के साथ संघ के विभिन्न स्वयंसेवकों के यहाँ खाने के लिए जाता था और वह भी कथित उच्च जाति के लोगों के यहाँ… सो बिना किसी संकोच के मैं शास्त्री जी के साथ चल पड़ा….

भोजन के दौरान यजमान ( दरअसल मेजबान ) परिवार ने मेरा नाम पूछा। मैंने जवाब दिया- भंवर मेघवंशी। वे लोग बिहार से थे, राजस्थान की जातियों के बारे में ज्यादा परिचित नहीं थे, इसलिए और पूछ बैठे कि- ये कौन से ब्राह्मण हुए ? मैंने मुंह खोला- मैं अनूसूचित…, मेरा जवाब पूरा होता उससे पहले ही शास्त्री जी बोल पड़े- ये क्षत्रिय मेघवंशी ब्राह्मण हैं। बात वहीँ ख़तम हो गयी, लेकिन जात छिपाने की पीड़ा ने मेरे भोजन का स्वाद कसैला कर दिया और शास्त्री भी खफा हो गए कि मैंने उन्हें क्यों बताने की कोशिश की कि मैं अनुसूचित जाति से हूँ… हमारी जमकर बहस हो गयी। मैंने उन पर जूठ बोल कर धार्मिक लोगों की आस्था को ठेस पंहुचाने का आरोप लगा दिया तो उन्होंने भी आखिर कह ही दिया कि ओछी जात के लोग ओछी बुद्दि के ही होते हैं। मैं तो तुम्हें ब्राह्मण बनाने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम उसी गन्दी नाली के कीड़े बने रहना चाहते हो… मैं गुस्से के मारे कांपने लगा, जी हुआ कि इस ढोंगी की जमकर धुनाई कर दूँ। पर कर नहीं पाया। मगर उस पर चिल्लाया मैं भी कम नहीं… मैंने भी कह दिया तुम भी जन्मजात भिखमंगे ही तो हो, तुमने कौन सी कमाई की आज तक मेहनत करके।

….तो शास्त्री ने मुझे नीच जात का प्रमाणपत्र जारी कर दिया और मैंने उन्हें भिखारी घोषित कर दिया… अब साथ रह पाने का सवाल ही नहीं था… मैं मंदिर से निकल गया… मेरे साथ रहने से उनके ब्राह्मणत्व पर दुष्प्रभाव पड़ सकता था और कर्मकांड से होने वाली उनकी आय प्रभावित हो सकती थी। वहीँ मैं भी अगर ब्राह्मणतव की ओर अग्रसर रहता तो मेरी भी संघ से लड़ाई प्रभावित हो सकती थी, इसलिए हमारी राहें जुदा हो गयी… न मैं ब्राह्मण बन सका और न ही वो इन्सान बनने को राज़ी हुए… बाद में हम कभी नहीं मिले

भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान' का अठारहवां अध्याय

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