BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, April 1, 2014

उम्र के लपेटे में फंसे वीरेन दा की चार कविताओं से ध्याड़…

उम्र के लपेटे में फंसे वीरेन दा की चार कविताओं से 

ध्याड़…

भारत सिंह||
पिछले साल मेरी उम्र ६५ की थी/ तब मैं तकतरीबन पचास साल का रहा होऊंगा/ इस साल मैं ६५ का हूं/ मगर आ गया हूं गोया ७६ के लपेटे में. वीरेन दा ने अपनी कविताओं से हमें फिर से ध्याड़ लगाई है. इसमें थोड़ी निराशा है तो इसके झींने पर्दे के पीछे छुपीं ढेरों ऊर्जा और आशा भी. तमाम नाउम्मीदों को एक जीवंत पुकार से मीलों पीछे धकेल देने वाले हमारे वीरेन दा आज कह रहे हैं- दोस्तों-साथियों मुझे छोड़ना मत कभी/कुछ नहीं तो मैं तुम लोगों को देखा करूंगा प्यार से/दरी पर सबसे पीछे दीवार से सटकर बैठा. अरे वीरेन दा, तुम्हें भला कैसे छोड़ सकते हैं तुम्हारे चाहने वाले? पर वीरेन दा, तुम्हें उम्र की कबसे फिक्र होने लगी, तुम्हारे यार तो तुम्हारी जुल्फों के बीच से कभी नजर न आने वाली तुम्हारी चांद और सफेदी की झलक पाने के चक्कर में दर्जनों बाजियां हार गए. यारबाज वीरेन दा आप कहां उम्र के लपेटे में फंसे हो, उससे होना-पाना कुछ नहीं, आप तो आज भी २५ से लेकर ७५  तक के यारों के लिए वीरेन दा और वीरेन ही हो.images
वीरेन दा को जानने वाले लोग उनकी जिंदादिली को भी बखूबी जानते हैं. ऐसी बीमारी जो अपनी चर्चाओं में ही हमें तोड़े दे रही हो वीरेन दा उससे गप्प हांकते हुए कह रहे हैं- ...मेरा ये कमबख्त दिल/डाक्टर कहते हैं कि ये फिलहाल सिर्फ पैंतीस फीसद पर काम कर रहा है/मगर ये कूदता है, भागता है, शामी कबाब और आईसक्रीम खाता है/शामिल होता है जुलूसों में धरनों पर बैठता है इन्कलाब जिंदाबाद कहते हुएसच वीरेन दा, ये सब जुलूस, धरने सूने हैं आपके बिना. भले ही सालों बाद मिलो वीरेन दा का दिल उसी ठिकाने पर मिलता है- अब हुई रात अपना ही दिल सीने में भींचे बैठा हूं/ हां जी हां वही कनफटा हूं, हेठा हूं/टेलीफोन की बगल में लेटा हूं/रोता हूं धोता हूं रोता-रोता धोता हूं/तुम्हारे कपड़ों से खून के निशां धोता हूं. 
कवि और पत्रकार वीरेन दा कहीं भी रहें उनकी चौकन्नी नजर अब भी सबकुछ नोट कर रही है- पैसे देकर भी हमने धक्के खाये/तमाम अस्पतालों में/हमें चींथा गया छीला गया नोचा गया/सिला गया भूंजा गया/झुलसाया गया/तोड़ डाली गईं हमारी हड्डियां/और बताया ये गया कि ये सारी जद्दोजेहद/हमें हिफाजत से रखने की थीं. कैसी जो हिफाजत होती होगी वह, जिसे वीरेन दा का दिल नहीं मानता. वह तो घोड़े के पैर पर नाल ठोंके जाने से भी कचोट उठता है. बरेली में रिपोर्टिंग के दौरान परेशानहाल वीरेन दा के पास पहुंचो तो कहते थे, यार ये भी क्या गजब का काम-धंधा हुआ? आदमी पेट भरने के लिए ऐसा अमानवीय काम करने को मजबूर है कि घोड़े के पैरों पर नाल तक ठोंक रहा है. इसकी भी रिपोर्टिंग करो यार। वीरेन दा ये रिपोर्ट भी अभी रह ही गई है.
ओ मेरी मातृभूमि ओ मेरी प्रिया/कभी बतला भी न पाया कि कितना प्यार करता हूं तुमसे मैं. वीरेन दा तुमने तो दुनियादारी के साथ कदम साधते हुए लाढ़-प्यार जताना खूब सीखा, पर अभी ये सब हमें सिखाना बाकी है. तुम्हारा प्यार हमें खूब मिला पर अब भी मिलना बाकी है. कैसे जो हम भूखे-प्यासे दिनों में तुम्हारे घर आते थे, ठीक तुम्हारे सोने के समय में सेंध लगाते हुए- दोपहर तीन बजे के आस-पास. फिर भी तुम अपने हाथों से चांद की तरह गोल हाफ ब्वॉयल एग बनाकर और उस पर काली मिर्च का पाउडर छिड़ककर लाते और चाय के साथ पिलाते थे. फिर तमाम मुश्किलों को अपनी एक हुंकार से भगाकर और अपनी कलाकारी से बेहतर दिनों की उम्मीद ओढ़ाकर हमें वापस काम पर भेजते थे.
खामोशी से इस बेहरम शहर को जी रहे वीरेन दा हमें पता चला है कि इंदिरापुरम में ही रह रहे हो. तुम इस तरह तो छुप-छुपा न पाओगे कभी, तुम्हारी कविताएं तुम्हारे दिल का हाल हमें बता रही हैं. सुना है, बीती होली भी ऐसी ही बीती है तुम्हारी- हाय मैं होली कैसे खेलूं तेरी मैट्रो में/तेरी फौज पुलिस के सिपाही/ली लीन्हा मेरी जामा तलासी तेरी मैट्रो में/एक छोटी पुड़िया हम लावा/उससे ही काफी काम चलावा/बिस्तर पर लेटे-लेटे खेल लिये जमकर के होली/आं-हां तेरि मैट्रो में. अरे वीरेन दा, ये आवाज के जादू से खुलने वाली मैट्रो तु्म्हें रंगों से खेलने से क्या और कैसे रोकेगी, जिन रंगों के सोते फूटे पड़ रहे हैं तुम्हारे भीतर. अभी तो वीरेन दा, हमें बीते साल ही पता चला है तुम्हारे सधे अंदाज में मजाज की ये गजल गाने का, शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नाकारा फिरूं..फिर ये तुम्हारे मुंह से सुननी और साथ-साथ गानी भी तो बाकी है. ये तो गलत बात ही हुई न वीरेन दा कि अपनी पुराने यारों के साथ तो तुम ये गजल खूब गाए हो और हमारे साथ नहीं.


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