BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, March 19, 2014

लेकिन दलित लेखक और चिंतक यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकर्म में किसी दलित लेखक को शामिल क्यों नहीं किया? इस सवाल पर क्यों अरुंधति के समर्थक बिदक रहे हैं. भागीदारी का सवाल उठाने पर क्यों किसी को मुश्किल पेश आ रही है?

Swatantra Mishra
अभी बाबा साहेब आंबेडकर की किताब 'जाति का उच्छेद' अंग्रेजी में आ रही है जिसकी बहुत लम्बी भूमिका उन्होंने लिखी है. क्या लिखा है, यह एक पाठक के तौर पर मैं पढ़ने को उत्सुक हूँ. उसपर कोई सवाल नहीं उठा रहा हूँ. लेकिन दलित लेखक और चिंतक यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकर्म में किसी दलित लेखक को शामिल क्यों नहीं किया? इस सवाल पर क्यों अरुंधति के समर्थक बिदक रहे हैं. भागीदारी का सवाल उठाने पर क्यों किसी को मुश्किल पेश आ रही है? 
अरुंधति हिंदी मीडिया से बात क्यों नहीं करती हैं 

अरुंधति रॉय को पढ़ना बहुत स्तरों पर अच्छा लगता है. वे जब भी प्रकट होती हैं तो कुछ न कुछ हिलता सा दीखता है. वे अपनी लेखनी में भाषा के रोमांच के साथ नए- नए तथ्यों के साथ हर बार प्रकट होती हैं. अभी बाबा साहेब आंबेडकर की किताब 'जाति का उच्छेद' अंग्रेजी में आ रही है जिसकी बहुत लम्बी भूमिका उन्होंने लिखी है. क्या लिखा है, यह एक पाठक के तौर पर मैं पढ़ने को उत्सुक हूँ. उसपर कोई सवाल नहीं उठा रहा हूँ. लेकिन दलित लेखक और चिंतक यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकर्म में किसी दलित लेखक को शामिल क्यों नहीं किया? इस सवाल पर क्यों अरुंधति के समर्थक बिदक रहे हैं. भागीदारी का सवाल उठाने पर क्यों किसी को मुश्किल पेश आ रही है? 
अरुंधति को मैंने कई मुद्दे पर बातचीत करने के लिए फ़ोन किया। कई बार फ़ोन पर कुछ जानकारी लेने के बाद (अरुंधति) उधर से जवाब आता आप 15 मिनट बाद फ़ोन कीजियेगा। उसके बाद वह 15 मिनट कभी नहीं आया जब उन्होंने मेरा फ़ोन उठाया हो और बातचीत हुई हो. मैंने उनके कुछ करीबियों से जब पता किया तो उन्होंने बताया कि वे हिंदी मीडिया से बात नहीं करती हैं. आदिवासियों, गरीबों लोगों की चिंता में दिन-रात घुलने वाली अरुंधति हिंदी मीडिया से बात नहीं करती हैं, यह मुझे नहीं पचा. इसलिए मैंने प्रयोग के तौर पर कम-से-कम ५-६ मौकों पर पकड़ने की कोशिश की लेकिन उनके (अरुंधति) करीबी मित्र की बात ही सही निकली। एक प्रसंग याद आ रहा है, कभी बहुत पहले पढ़ा था. एक बहुत बड़े वैज्ञानिक शायद आइंस्टीन एक क्रन्तिकारी पार्टी के मेंबर थे. वे जब भी पार्टी की बैठक में जाते तो वे पीछे बैठते थे. उनसे आग्रह किया जाता पर वे मना करते। वे कहते- मैं विज्ञान की दुनिया का उस्ताद हो सकता हूँ लेकिन यहाँ जो लोग राजनीतिक तौर पर ज्यादा सक्रिय हैं, जो लोग जमीन पर काम कर रहे हैं वही मेरे नेता हैं, मैं उनका follower हूँ.
Photo: अरुंधति हिंदी मीडिया से बात क्यों नहीं करती हैं   अरुंधति रॉय को पढ़ना बहुत स्तरों पर अच्छा लगता है. वे जब भी प्रकट होती हैं तो कुछ न कुछ हिलता सा दीखता है. वे अपनी लेखनी में भाषा के रोमांच के साथ नए- नए तथ्यों के साथ हर बार प्रकट होती हैं. अभी बाबा साहेब आंबेडकर की किताब 'जाति का उच्छेद' अंग्रेजी में आ रही है जिसकी बहुत लम्बी भूमिका उन्होंने लिखी है. क्या लिखा है, यह एक पाठक के तौर पर मैं पढ़ने को उत्सुक हूँ. उसपर कोई सवाल नहीं उठा रहा हूँ. लेकिन दलित लेखक और चिंतक यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकर्म में किसी दलित लेखक को शामिल क्यों नहीं किया? इस सवाल पर क्यों अरुंधति के समर्थक बिदक रहे हैं. भागीदारी का सवाल उठाने पर क्यों किसी को मुश्किल पेश आ रही है?  अरुंधति को मैंने कई मुद्दे पर बातचीत करने के लिए फ़ोन किया। कई बार फ़ोन पर कुछ जानकारी लेने के बाद (अरुंधति) उधर से जवाब आता आप 15 मिनट बाद फ़ोन कीजियेगा। उसके बाद वह 15 मिनट कभी नहीं आया जब उन्होंने मेरा फ़ोन उठाया हो और बातचीत हुई हो. मैंने उनके कुछ करीबियों से जब पता किया तो उन्होंने बताया कि वे हिंदी मीडिया से बात नहीं करती हैं. आदिवासियों, गरीबों लोगों की चिंता में दिन-रात घुलने वाली अरुंधति हिंदी मीडिया से बात नहीं करती हैं, यह मुझे नहीं पचा. इसलिए मैंने प्रयोग के तौर पर कम-से-कम ५-६ मौकों पर पकड़ने की कोशिश की लेकिन उनके (अरुंधति) करीबी मित्र की बात ही सही निकली। एक प्रसंग याद आ रहा है, कभी बहुत पहले पढ़ा था. एक बहुत बड़े वैज्ञानिक शायद आइंस्टीन एक क्रन्तिकारी पार्टी के मेंबर थे. वे जब भी पार्टी की बैठक में जाते तो वे पीछे बैठते थे. उनसे आग्रह किया जाता पर वे मना करते। वे कहते- मैं विज्ञान की दुनिया का उस्ताद हो सकता हूँ लेकिन यहाँ जो लोग राजनीतिक तौर पर ज्यादा सक्रिय हैं, जो लोग जमीन पर काम कर रहे हैं वही मेरे नेता हैं, मैं उनका follower हूँ.
Unlike ·  · 
  • You, Anita BhartiAk PankajPramod Ranjan and 24 others like this.
  • Nivedita Shakeel अरुंधति रॉय ने इतनी सुन्दर भूमिका लिखी है कि उसे जरुर पढ़ा जाना चाहिए। मुझे लगता है तुम्हारी ये बात सही नहीं है कि वे हिन्दी मीडिया से बात नहीं करती। मैंने खुद उनसे बात कि है. काफी संवेदनशील महिला है। इस तरह कि टिप्पणी से बचना चाहिए। हर लिखने वाला आंदोलन करे ये जरुरी नहीं। वह अगर लिख कर अपना काम कर रहा है तो उसे भी आंदोलन का ही हिस्सा मन जाना चाहिए

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