BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, July 31, 2013

प्रेमचंद की परम्परा और हंस : वरवर राव का खुला खत

प्रेमचंद की परम्परा और हंस : वरवर राव का खुला खत

Posted by Reyaz-ul-haque on 7/31/2013 10:54:00 PM


वरवर राव

मुक्तिबोध की हजारों बार दुहराई गई पंक्ति को एक बार फिर दुहरा रहा हूं : उठाने ही होंगे अभिव्यक्ति के खतरे/ तोड़ने ही होंगे/ गढ़ और मठ/ सब।'

कुछ साल पहले की बात है जब मेरे साथ अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक समिति और अखिल भारतीय जनप्रतिरोध मंच में काम करने वाले क्रांतिकारी उपन्यासकार और लेखक विजय कुमार ने आगरा से लेकर गोरखपुर तक हिंदी क्षेत्र में प्रेमचंद की जयंती पर एक सांस्कृतिक यात्रा आयोजित करने का प्रस्ताव दिया था। यह हिंदुत्व फासीवाद के उभार का समय था। जो आज और भी भयावह चुनौती की तरह सामने खड़ा है। उस योजना का उद्देश्य उभर रही फासीवाद की चुनौती से निपटने के लिए प्रेमचंद को याद करना और लेखकीय परम्परा को आगे बढ़ाकर इसके लिखाफ एक संगठित सांस्कृतिक आंदोलन को बनाना था।

जब 'हंस' की ओर से प्रेमचंद जयंती पर 31 जुलाई 2013 को 'अभिव्यक्ति और प्रतिबंध' विषय पर बात रखने के लिए आमंत्रित किया गया तो मुझे लगा की अपनी बात रखने का यह अच्छा मौका है। प्रेमचंद और उनके संपादन में निकली पत्रिका 'हंस' के नाम के आकर्षण ने मुझे दिल्ली आने के लिए प्रेरित किया। इस आयोजन के लिए चुना गया विषय 'अभिव्यक्ति और प्रतिबंध' ने भी मुझे आकर्षित किया। जब से मैंने नक्सलबाड़ी और श्रीकाकुलम के प्रभाव में लेखन और सांस्कृतिक सक्रियता में हिस्सेदारी करना शुरू किया तब से मेरी अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगता ही रहा है। यह स्वाभाविक था कि इस पर विस्तार से अपने अनुभवों को आपसे साझा करूं।

मुझे 'हंस' की ओर से 11 जुलाई 2013 को लिखा हुआ निमंत्रण लगभग 10 दिन बाद मिला। इस पत्र में मेरी सहमति लिए बिना ही राजेंद्र यादव ने 'छूट' लेकर मेरा नाम निमत्रंण कार्ड में डाल देने की घोषणा कर रखी थी। बहरहाल, मैंने इस बात की तवज्जो नहीं दिया कि हमें कौन, क्यों और किस मंशा से बुला रहा है? मेरे साथ मंच पर इस विषय पर बोलने वाले कौन हैं?

आज दोपहर में दिल्ली में आने पर 'हंस' की ओर भेजे गए व्यक्ति के पास छपे हुए निमत्रंण कार्ड को देखा तब पता चला कि मेरे अलावा बोलने वालों में अरूंधती राय के साथ-साथ अशोक वाजपेयी व गोविंदाचार्य का भी नाम है। प्रेमचंद जयंती पर होने वाले इस आयोजन में अशोक वाजपेयी और गोविंदाचार्य का नाम वक्ता के तौर पर देखकर हैरानी हुई। अशोक वाजपेयी प्रेमचंद की सामंतवाद-फासीवाद विरोधी धारा में कभी खड़े  होते नहीं दिखे। वे प्रेमचंद को औसत लेखक मानने वालों में से है। अशोक वाजपेयी का सत्ता प्रतिष्ठान और कारपोरेट सेक्टर के साथ जुड़ाव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसी तरह क्या गोविंदाचार्य के बारे में जांच पड़ताल आप सभी को करने की जरूरत बनती है? हिंदुत्व की फासीवादी राजनीति और साम्राज्यवाद की जी हूजूरी में गले तक डूबी हुई पार्टी, संगठन के सक्रिय सदस्य की तरह सालों साल काम करने वाले गोविंदाचार्य को प्रेमचंद जयंती पर 'अभिव्यक्ति और प्रतिबंध' विषय पर बोलने के लिए किस आधार पर बुलाया गया!

मैं इस आयोजन में हिस्सेदारी कर यह बताना चाहता था कि अभिव्यक्ति पर सिर्फ प्रतिबंध ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का खतरा उठा रहे लोगों की हत्या तक की जा रही है। आंध्र प्रदेश में खुद मेरे ऊपर, गदर पर जानलेवा हमला हो चुका है। कितने ही सांस्कृतिक, मानवाधिकार संगठन कार्यकर्ता और जनसंगठन के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया। हजारों लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। अभी चंद दिनों पहले हमारे सहकर्मी गंटि प्रसादम की क्रूर हत्या कर दी गई। गंटी प्रसादम जनवादी क्रांतिकारी मोर्चा-आरडीएफ के उपाध्यक्ष, शहीद बंधु मित्र में सक्रिय सहयोगी और विप्लव रचियतल संघम के अभिन्न सहयोगी व सलाहकार और खुद लेखक थे। विरसम ने उनकी स्मृति में जब एक पुस्तक लाने की योजना बनाया और इस संदर्भ में एक वक्तव्य जारी किया तब हैदराबाद से कथित 'छत्तीसगढ चीता' के नाम से विरसम सचिव वरलक्ष्मी को जान से मारने की धमकी दिया गया। इस धमकी भरे पत्र में वरवर राव, प्रो. हरगोपाल, प्रो. शेषैया, कल्याण राव, चेलसानी प्रसाद सहित 12 लोगों को जान से मारने की चेतावनी दी गई है। लेखक, मानवाधिकार संगठन, जाति उन्मूलन संगठनों के सक्रिय सदस्यों को इस हमले में निशाना बनाकर जान से मारने की धमकी दी गई। इस खतरे के खिलाफ हम एकजुट होकर खड़े हुए और हमने गंटी प्रसादम पर पुस्तक और उन्हें लेकर सभा का आयोजन किया। इस सभा के आयोजन के बाद एक बार फिर आयोजक को जान से मार डालने की धमकी दी गई। अभिव्यक्ति का यह भीषण खतरा साम्राज्यवादी-कारपोरेट लूट के खिलाफ अभियान, राजकीय दमन की खिलाफत और हिंदुत्व फासीवाद के खिलाफ गोलबंदी के चलते आ रहा है। यह जन आंदोलन की पक्षधरता और क्रांतिकारी आंदोलन की विचारधारा को आगे ले जाने के चलते हो रहा है।

हैदराबाद में अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ एक सभा को संबोधित करने के समय हिंदुत्व फासीवादी संगठनों ने हम पर हमला किया और इसी बहाने पुलिस ने हमें गिरफ्तार किया। इसी दिल्ली में जंतर-मंतर पर क्या हुआ, आप इससे परिचित होंगे। अफजल गुरू के षरीर को ले जाने की मांग करते हुए कश्मीर से आई महिलाओं और अन्य लोगों को न तो जंतर मंतर पर एकजुट होने दिया गया और न ही मुझे और राजनीतिक जेल बंदी रिहाई समिति के सदस्यों को प्रेस क्लब, दिल्ली में बोलने दिया गया। प्रेस क्लब में जगह बुक हो जाने के बाद भी प्रेस क्लब के आधिकारिक कार्यवाहक, संघ परिवार व आम आदमी पार्टी के लोग और पुलिस के साथ साथ खुद मीडिया के भी कुछ लोगों ने हमें प्रेस काफ्रेंस नहीं करने दिया और वहां धक्कामुक्की किया।

मैं जिस जनवादी क्रांतिकारी मोर्चा का अध्यक्ष हूं वह संगठन भी आंध्र प्रदेश, उडीसा में प्रतिबंधित है। इसके उपाध्यक्ष गंटी प्रसादम को जान से मार डाला गया। इस संगठन के उड़ीसा प्रभारी दंडपाणी मोहंती को यूएपीए सहित दर्जनों केस लगाकर जेल में डाल दिया गया है। इस संगठन का घोषणापत्र सबके सामने है। पिछले सात सालों से जिस काम को किया है वह भी सामने है। न केवल यूएपीए बल्कि गृहमंत्रालय के दिए गये बयानों व निर्देषों में बार बार जनआंदोलन की पक्षधरता करने वाले जनसंगठनों, बुद्धिजीवियों, सहयोगियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने, प्रतिबंधित करने, नजर रखने का सीधा अर्थ हमारी अभिव्यक्ति को कुचलना ही है। हम 'लोकतंत्र' की उसी हकीकत की आलोचना कर रहे हैं जिससे सारा देश वाकिफ है। जल, जंगल, जमीन, खदान, श्रम, … और विषाल मध्यवर्ग की कष्टपूर्ण बचत को लूट रहे साम्राजयवादी-कारपोरेट सेक्टर और उनकी तानाषाही का हम विरोध करते हैं। हम वैकल्पिक जनवादी मॉडल की बात करते हैं। हम इस लूट और तबाही और मुसलमान, दलित, स्त्री, आदिवासी, मेहनतकष, …पर हमला करने वाली और साम्राज्यवादी विध्वंस व सामूहिक नरसंहार करने वाली हिंदुत्व फासीवादी राजनीति का विरोध करते हैं।

हम ऐसे सभी लोगों के साथ हैं जो जनवाद में भरोसा करते हैं। हम उन सभी लोगों के साथ हैं जो अभिव्यक्ति का खतरा उठाते हुए आज के फासीवादी खतरे के खिलाफ खड़े हैं। हम प्रेमचंद की परम्परा का अर्थ जनवाद की पक्षधरता और फासीवाद के खिलाफ गोलबंदी के तौर पर देखते है। प्रेमचंद की यही परम्परा है जिसके बूते 1930 के दषक में उपनिवेशवाद विरोधी, सामंतवाद विरोधी, फासीवाद विरोधी लहर की धार इस सदी में हमारे इस चुनौतीपूर्ण समय में उतना ही प्रासंगिक और उतना ही प्रेरक बना हुआ है।

अशोक वाजपेयी और गोविंदाचार्य इस परम्परा के मद्देनजर किसके पक्ष में हैं? राजेन्द्र यादव खुद को प्रेमचंद की परम्परा में खड़ा करते हैं। ऐसे में सवाल बनता है कि वे अशोक वाजपेयी और गोविंदाचार्य को किस नजर से देखते हैं? और, इस आयोजन का अभीष्ट क्या है? बहरहाल, कारपोरेट सेक्टर की संस्कृति और हिंदुत्व की राजनीति करने वाले लोगों के साथ मंच पर एक साथ खड़ा होने को मंजूर करना न तो उचित है और न ही उनके साथ 'अभिव्यक्ति और प्रतिबंध' जैसे विषय पर बोलना मौजूं है।

प्रेमचंद जयंती पर 'हंस' की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में जो भी लोग मुझे सुनने आए उनसे अपनी अनुपस्थिति की माफी दरख्वास्त कर रहा हूं। उम्मीद है आप मेरे पक्ष पर गौर करेंगे और अभिव्यक्ति के रास्ते आ रही चुनौतियों का सामना करते हुए हमसफर बने रहेंगे।

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,

वरवर राव

31 जुलाई 2913, दिल्ली

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