BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, July 1, 2012

निजी मतभेद और गुस्से की वजह से हम यशवंत के साथ खड़े नहीं होते तो यह सोशल मीडिया और वैकल्पिक मीडिया दोनों के लिए खतरनाक हैं।

निजी मतभेद और गुस्से की वजह से हम यशवंत के साथ खड़े नहीं होते तो यह सोशल मीडिया और वैकल्पिक मीडिया दोनों के लिए खतरनाक हैं।

पलाश विश्वास

मैं अमलेंदु, अविनाश और दूसरे मित्रों के यशवंत के साथ खड़ा होने के मसले पर सौ फीसद सहमत हूं। यशवंत को निजी तौर पर मैं ​​जानता नहीं हूं, पर उनके पंगा लेने की आदत के बारे में समझ सकता हूं। हमारे ढेरों मित्रों को उनसे शिकायतें हैं।हमारे पुराने मित्र जगमोहन फुटेला ने भी आपबीती लिखी है।जितने मित्रों ने अब तक लिखा है, सबने यशवंत की आदतों के बारे में शिकायत दर्ज की है। पर इससे मीडिया की ​अंदरुनी दुनिया को एक्सपोज करने और सबसे उत्पीड़ित कामगार पत्रकारों की व्यथा कथा सामने लाने की यशवंत के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

जो खबरें मीडिया के दो बड़े अखबारों में  फ्लैश करके यशवंत को खलनायक,अपराधी बनाने की कोशिश की गयी हैं, वहां हो रहे पत्रकारों के शोषण दोहन के बारे में हम सभी जानते हैं और यशवंत ने लगातार इसकी सूचनाएं हमें दी हैं।

भड़ास के बाद जैसा कि अमलेंदुने लिखा है,दूसरे पोर्टलों में भी वंचित पत्रकारों के बारें में सूचनाएं आ रही हैं।मैं समझ सकता हूं कि मित्रों को यशवंत की कुछ आदतों के कारण भारी तकलीफ हुई होगी। पर जैसे साजिसन यशवंत को फंसाया गया है, उसे देखते हुए भी अगर निजी मतभेद और गुस्से की वजह से हम यशवंत के साथ खड़े नहीं होते तो यह सोशल मीडिया और वैकल्पिक मीडिया दोनों के लिए खतरनाक हैं।

हमें खुशी है कि अविनाश और अमलेंदु ने अपने मतभेदों के बावजूद इस दिशा में सही पहल की है। सरकार की मंशा अब किसी से छुपी नहीं है। कारपोरेट साम्राज्यवाद की गिरफ्त में है पूरा देश और अर्थव्यवस्था, जिसमे मीडिया भी कारपोरेट के शकंजे में हैं।

इस बंदोबस्त को तोड़ने में तमाम लोग अलग अलग ढंग से महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। पर अपने ही एक साथी को फंसाये जाने का तमाशा ​​देखते हुए हम आत्महत्या का रास्ता अख्तियार करें, यह मुनासिब नहीं है। हम जानते हैं कि कैसे कैसे संसाधन जुटाकर बेहद कठिनाई से हमारे तमाम मित्र अपनी निजी तकलीफें और जानलेवी बीमारी से जूझते हुए वैकल्पिक मीडिया की मशाल थामे हुए हैं। इसमें किसी को अकेले सत्ता और कारपोरेट की कृपा पर छोड़ देने का मतलब खुद के बी अलग हो जाना है। अभी हेमचंद्र , सीमा आजाद, प्रशांत राही का मामला ठंडा नहीं हुआ है।​​


अभिव्यक्ति पर हर किस्म की बंदिश लग रही है। आज यशवंत के साथ जो हो रहा है,कल हममें से किसी के साथ भी ऐसा कुछ संभव है।​​
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​इसलिए वक्त का तकाजा है कि आपसी रिश्तों में पैदा हुई कटुता भूलकर हम एकजुट हों और इस साजिश के खिलाफ पुरजोर आवाज बुलंद​​ करें।

मैंने इस सिलसिले में अंग्रेजी में एक टिप्पणी बतौर त्वरित प्रतिक्रिया मोहल्लालािव पर पोस्ट की है, पर मामले की नजाकत को ​​समझते हुए हिंदी में भी लिख रहा हूं और सबको भेज रहा हूं।
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