BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, April 10, 2008

उच्च शिक्षा में ओबीसी आरक्षण को मंज़ूरी

उच्च शिक्षा में ओबीसी आरक्षण को मंज़ूरी
http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2008/04/080410_obc_sc.shtml

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इस मामले को संविधान पीठ के हवाले कर दिया था
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण को वैध ठहराया है, लेकिन संपन्न लोगों को यानी 'क्रीमी लेयर' इस दायरे से बाहर होंगे.
कई छात्र संगठनों और समूहों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण देने के सरकार के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को दिए अहम फ़ैसले में कहा कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग (आईआईटी), भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) और एम्स जैसे केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फ़ैसले से संविधान का उल्लंघन नहीं होता है.

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के वैसे छात्र-छात्राओं को आरक्षण की सुविधा नहीं देने को कहा है जो आर्थिक रुप से संपन्न हैं और 'क्रीमी लेयर' के दायरे में आते हैं.

क्रीमी लेयर

हालाँकि क्रीमी लेयर अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रा-छात्राओं के लिए लागू नहीं होगी.


ये फ़ैसला मील का पत्थर है. ये कांग्रेस और यूपीए सरकार की पहल थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नीतिगत तौर पर सही ठहराया है


अभिषेक मनु सिंघवी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्रीमी लेयर की परिभाषा वर्ष 1993 में निर्धारित मानकों के आधार पर ही तय होगी.

अदालत ने सरकार से कहा है कि हर पाँच वर्ष के बाद ओबीसी सूची की समीक्षा की जाए.

ओबीसी के दायरे में सैंकड़ों जातियाँ आती हैं और समय के साथ-साथ इसकी संख्या बढ़ी है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के बजाए इनको सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग कहा जाना चाहिए.

कांग्रेस के प्रवक्ता और इस मामले में सरकारी वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से कहा, "ये फ़ैसला मील का पत्थर है. ये कांग्रेस और यूपीए सरकार की पहल थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नीतिगत तौर पर सही ठहराया है."


उपनाम में पिता
मेघालय में पिता के उपनाम वाले जनजातीय नागरिकों को आरक्षण देने से मनाही.




नीचे वाले वंचित
'कार्पोरेट जगत सामाजिक जवाबदेही के प्रधानमंत्री के सुझावों का विरोध करेगा.'




इससे जुड़ी ख़बरें
मंडल के पंद्रह साल
09 सितंबर, 2005 | पहला पन्ना
गूजरों को आरक्षण का एक और प्रस्ताव
18 जनवरी, 2008 | भारत और पड़ोस
'संप्रदाय के आधार पर आरक्षण अभी नहीं'
16 जनवरी, 2008 | भारत और पड़ोस
आरक्षण पर कोर्ट का फ़ैसला सुरक्षित
09 मई, 2007 | भारत और पड़ोस
ओबीसी मुद्दे की सुनवाई संविधान पीठ करे
08 मई, 2007 | भारत और पड़ोस
आरक्षण पर हुई बैठक बेनतीजा रही
25 अप्रैल, 2007 | भारत और पड़ोस
आरक्षण मुद्दे पर रणनीति के लिए बैठक
25 अप्रैल, 2007 | भारत और पड़ोस
ओबीसी आरक्षण पर रोक हटाने से इनकार
23 अप्रैल, 2007 | भारत और पड़ोस
'ओबीसी को आरक्षण ऐतिहासिक क़दम’


मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताया है
भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया है, और इसे ऐतिहासिक क़दम बताया है.
उन्होंने कहा कि इस कदम से ओबीसी श्रेणी में आने वाले सैकड़ों छात्रों को फ़ायदा होगा.


ओबीसी आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट की मंज़ूरी

अर्जुन सिंह ने कहा कि वो अगले सत्र से इस फ़ैसले को क्रियान्वयन करने के लिए कोशिश करेंगे.

ज़्यादातर राजनीतिक दलो ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है. हालांकि कुछ राजनीतिक दलों ने सम्पन्न तबकों यानी क्रीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने के फ़ैसले पर सवाल उठाए हैं.

'ऐतिहासिक'

अर्जुन सिंह ने पत्रकारों से कहा कि बिना प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के समर्थन के इतना आगे नहीं पहुंच पाए होते.

उन्होंने कहा, "हम उच्चतम न्यायालय के आदेश को पूरा पढ़ेंगे क्योंकि अलग अलग न्यायाधीशों ने टिप्पणियां की हैं, जिनको संज्ञान में लेना होगा. इस लिए हम आदेश की कॉपी का इंतज़ार कर रहे हैं."

उनका कहना था कि जहाँ तक उच्च शिक्षा संस्थानों में मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो कुछ संस्थानों में ये सुविधा है, कहीं ये नहीं है.

जब अर्जुन सिंह से पूछा गया कि व्यक्तिगत रूप से उनके लिए ये पूरा सफ़र कितना संघर्षमय रहा है, तो उन्होंने कहा कि राजनीति में व्यक्तिगत कुछ नहीं होता, हाँ राजनीतिक संघर्ष ज़रूर रहा है.

उन्होंने कहा, "जहाँ तक आरक्षण से क्रीमी लेयर को हटाने की बात है, हम इस पर विचार कर रहे हैं और क्योंकि हमारी गठबंधन सरकार है, वे अपने सहयोगियों से विचार विमर्श करेंगे."

उल्लेखनीय अर्जुन सिंह उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी छात्रों को आरक्षण दिए जाने की वकालत करते रहे हैं और आरक्षण देने की घोषणा उनके ही कार्यकाल में हुई है.

प्रतिक्रिया

उधर वामपंथी दलों ने भी उच्चतम न्यायालय के इस फ़ैसले का स्वागत किया है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने आरक्षण कोटे से संपन्न लोगों को शामिल नहीं किये जाने का स्वागत करते हुए कहा है कि वे चाहेंगे कि सरकार आगामी सत्र से ये फ़ैसला लागू करे.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने जाति को आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का आधार मान लिया है.

पार्टी महासचिव डी राजा ने कहा है कि नौकरियों के मामले में संपन्न लोगों को आरक्षण देने की बात मान्य हो सकती है. शिक्षा में ऐसा नहीं हो सकता.

डी राजा ने कहा कि सरकार को अब ग़ैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के मुद्दे पर ज़ोर देना चाहिए.

फ़ॉरवर्ड ब्लॉक और कांग्रेस की सहयोगी पार्टी भारतीय मुस्लिम लीग ने भी इस फ़ैसले का स्वागत किया है.

लेकिन यूपीए में शामिल लोकजनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने कहा है कि क्रीमी लेयर के लोगों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए.

उधर एनडीए के घटक दल जनता दल (यूनाइटेड) के नेता शरद यादव ने भी सम्पन्न तबकों के लोगों को आरक्षण से बाहर रखने के फ़ैसले पर सवाल उठाए हैं.

उन्होंने कहा, "यह कोई आर्थिक विकास का कार्यक्रम नहीं है. यह एक नीतिगत फ़ैसला है और इसके लिए संसद ने एकमत से फ़ैसला किया था और इसका उद्देश्य सामाजिक समता था."

मुद्दा

सरकार ने वर्ष 2007 में यह उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछड़े वर्ग के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था.

साथ ही आश्वासन दिया था कि पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सीटें बढ़ाने के बावजूद सामान्य श्रेणी की सीटों की संख्या में कोई कमी नहीं आएगी.

लेकिन इसके ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु हो गए थे.

केंद्र सरकार के आरक्षण लागू करने के फ़ैसले का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में बहुत सी याचिकाएँ दायर की गई थीं.

इनमें यूथ फॉर इक्वालिटी रेज़िडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया इक्विटी फ़ोरम, अशोक कुमार, शिव खेड़ा और पीवी इंद्रसेन शामिल थे.

केंद्र सरकार का कहना है कि क़ानून बनने के बाद कई केंद्रीय संस्थानों ने ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों पर दाखिला देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. लेकिन कानून पर स्थगन के बाद यह प्रक्रिया रुक गई थी.

उच्चतम न्यायालय ने सरकार के आरक्षण देने के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी, और बाद में केंद्र सरकार के अनुरोध पर इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया गया था.

न्यायालय ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा था कि सरकार आरक्षण की नीति पर काम तो कर रही है पर उसके पास ओबीसी को आरक्षण देने के लिए कोई नया और मज़बूत आँकड़ा नहीं है.

बात ये भी उठी कि संपन्न तबकों यानी 'क्रीमी लेयर' को लेकर जो बहस शुरू हुई है उसे भी अप्रासंगिक नहीं माना जा सकता है.

आरक्षण की व्यवस्था से असहमति व्यक्त करने वाले लगातार कहते रहे हैं कि 'क्रीमी लेयर' को आरक्षण की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए.

ओबीसी आरक्षण: फैसले से अर्जुन-लालू खुश
भेजें छापें

10 अप्रैल 2008
वार्ता

नई दिल्ली। मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय द्वारा सही ठहराए जाने का स्वागत किया है।

आज सुबह जब उच्चतम न्यायालय का अहम फैसला आया तो अर्जुन सिंह ने न केवल प्रसन्नता व्यक्त की बल्कि राहत की भी सांस ली।

गौरतलब है कि केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का जब केन्द्र सरकार ने फैसला किया था, तब उसके इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई थी और अदालत ने इस आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी।

‘आरक्षण यानि योग्यता को नजरअंदाज करना’

अदालत के फैसले के बाद सिंह से जब पत्रकारों ने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें प्रसन्नता है कि अदालत ने उनके निर्णय को वैध ठहराया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में इस साल से ही यह आरक्षण लागू कर देगी, तो सिंह ने कहा कि इस शैक्षणिक सत्र से उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू हो जाएगा।

’क्रीमी लेयर’ को आरक्षण के दायरे से बाहर रखे जाने के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा कि सरकार अदालत का सम्मान करती है।

‘उच्च जाति के गरीबों को भी आरक्षण मिले’

रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला भारतीय जनता पार्टी के मुंह पर करारा तमाचा है, जो अप्रत्यक्ष रुप से आरक्षण का विरोध कर रही थी।

यादव ने ‘क्रीमी लेयर’ के सवाल पर कहा कि सरकार को यह तय करना है कि क्रीमी लेयर का दायरा क्या हो। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी जरुरत पड़ने पर सरकार के साथ बातचीत करेगी।

रेल मंत्री ने इन आरोपों को खारिज किया कि ओबीसी का आरक्षण लागू होने से उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिभा का अनादर होगा। उन्होंने कहा कि प्रतिभा और योग्यता उच्चवर्ग का एकाधिकार नहीं है। पिछड़े और दलित वर्गों में भी काफी तेजस्वी लोग हैं।



सर्वोच्च न्यायालय की ओबीसी आरक्षण को हरी झंडी
सम्बंधित ख़बरे - देश
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज
शराब के ठेकों पर महिलाओं का हमला
आरक्षण के फैसले से नाखुश हैं छात्र
हिजबुल का आतंकवादी मारा गया
‘आरक्षण यानि योग्यता को नजरअंदाज करना’
वाराणसी में अनोखे मंदिर का निर्माण शुरू
मशाल दौड़ के लिए तगड़े बंदोबस्‍त
समुद्री कछुओं को नई जिंदगी देतीं सुप्रजा
अपनी जेल में ही कैदी बना एक जेलर
भिवंडी के एक गोदाम में आग लगी
प्रमुख ख़बरें
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज
शराब के ठेकों पर महिलाओं का हमला
अंतरिक्ष हमला!! एक ही घर पर उल्कापात
आरक्षण के फैसले से नाखुश हैं छात्र
हिजबुल का आतंकवादी मारा गया
बीजिंग ओलंपिक: बुश पर दबाव बढ़ा
‘आरक्षण यानि योग्यता को नजरअंदाज करना’
वाराणसी में अनोखे मंदिर का निर्माण शुरू
मशाल दौड़ के लिए तगड़े बंदोबस्‍त
समुद्री कछुओं को नई जिंदगी देतीं सुप्रजा

ओबीसी पर फैसले को चुनौती देगा वाईएफई Apr 10, 05:08 pm

नई दिल्ली। जाति के आधार पर आरक्षण देने के खिलाफ संघर्षरत संगठन [यूथ फॉर इक्विलिटी] ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी] को 27 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी देने संबंधी सुप्रीमकोर्ट के फैसले को योग्यता को नजरअंदाज करना करार देते हुए कहा कि वह इस फैसले को चुनौती देगा और जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ संघर्ष जारी रखेगा।

संगठन के संस्थापक सदस्य कुमार हर्ष ने कहा कि न्यायालय का यह फैसला देश की भावी पीढ़ी के लिए अहितकारी होगा। इस फैसले से देश की योग्यता और भविष्य पर दुष्प्रभाव पडे़गा। उन्होंने कहा कि वाईएफई फैसले को चुनौती देगा और संघर्ष को आगे बढ़ाएगा।

कुमार ने कहा कि यह फोरम उन लोगों के खिलाफ संघर्ष जारी रखेगा जो देश को जाति और धर्म के आधार पर बांटना चाहते हैं। हम किसी जाति के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम केंद्र की पक्षपातपूर्ण नीतियों के विरुद्ध अवश्य हैं।
ओबीसी के खालीपद भरे जाएँगे नई दिल्ली-केन्द्र सरकार ने सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ावर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित कोटे के खाली पड़े पदों को भरने के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है।

मंत्रिमंडल समूह की इस आशय की सिफारिश को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंजूरी मिलने के बाद कार्मिक राज्यमंत्री सुरेश पचौरी ने शनिवार को इस संबंध में आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए।

सरकार के इस फैसले से ओबीसी के रिक्त पड़े 23000 पदों को विशेष अभियान चला कर भरा जा सकेगा।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार विशेष भर्ती अभियान के पहले सरकारी नियमों में एक संशोधन किया जाना है जिसके तरह अनुसूचित जाति एवं जनजाति के रिक्त पदों के लिए विशेष भर्ती अभियान की तरह ही ओबीसी के लिए विशेष भर्ती अभियान को भी उच्चतम न्यायालय की उस व्यवस्था के दायरे से बाहर किया जाएगा जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की गई है।

सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 22 दिसंबर 2005 को सरकारी नौकरियों में ओबीसी के रिक्त पदों को भरने के लिए विशेष अभियान चलाने पर विचार के लिए गृहमंत्री शिवराज पाटिल की अध्यक्षता में मंत्रिसमूह गठित किया था। मंत्रिसमूह ने चार बैठकें कीं और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के साथ ओबीसी कोटे के रिक्त पदों की भर्ती के लिए भी विशेष अभियान चलाने की सिफारिश की।

इस मंत्रिसमूह में भी पचौरी तथा केन्द्रीय परिवहन मंत्री टी आर बालू भी शामिल थे। मंत्रिसमूह की सिफारिश प्राप्त होने पर कार्मिक मंत्री ने इसे प्रधानमंत्री को भेजा था तथा एक दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री के इसे मंजूरी देने के बाद पचौरी ने शनिवार को इस संबंध में निर्देश जारी किए।

गौरतलब है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) ने मई 2004 में केन्द्र में सत्ता संभालने के बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति के रिक्त पड़े करीब 60 हजार पदों को भरने के लिए विशेष अभियान चलाने का फैसला लिया था।

इस फैसले को लागू करने मे 1992 उच्चतम न्यायालय का इंदिरा साहनी मामले का फैसला अड़चन था जिसमें कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। बाद में सरकार ने नियमों में संशोधन कर कोटे के तहत पहले से रिक्त पड़े पदों को उच्चतम न्यायालय की इस व्यवस्था के दायरे से बाहर कर दिया था।

सरकारी सूत्रों के अनुसार विशेष अभियान के तहत अब तक 53444 पद भरे जा चुके हैं जो कुल रिक्त पदों का 87 प्रतिशत हैं। संप्रग सरकार के इस नए फैसले से 23000 से ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोग लाभान्वित होंगे।

ओबीसी कोटे को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडीनई दिल्ली-सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में पिछड़े तबके के छात्रों को 27 फीसदी आरक्षण मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है। हालाँकि कोर्ट ने क्रीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा है। कोर्ट के फैसले के बाद इन संस्थानों में मिलने वाले आरक्षण की सीमा बढ़कर 49.5 फीसदी हो गई है।

कोर्ट ने पिछले साल नवंबर महीने में कोर्ट ने इस मामले पर फैसला रिजर्व रखा था। इस मामले की सुनवाई करने के लिए 5 जजों की बेंच का गठन हुआ था जिनमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि 8 अगस्त 2007 को केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछड़े तबके के छात्रों के लिए 27 फीसदी कोटा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति देने से इनकार कर दिया था।
ओबीसी से तौबा!
भास्कर न्यूजThursday, March 27, 2008 01:47 [IST]
जयपुर.राजस्थान में ओबीसी कोटे ने सारा ताना-बाना डावांडोल कर दिया है। दरअसल, मात्र 21 प्रतिशत सीटों के लिए राज्य की आधी जनसंख्या को मौका दिया गया है, जिससे आपसी प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि ओबीसी की बजाय सामान्य वर्ग का कम कट ऑफ मार्क्‍स में सलेक्शन हो रहा है। इससे हालात ये हो गए हैं कि ओबीसी के छात्र अब सामान्य वर्ग से प्रतियोगी परीक्षा देना चाहते हैं।

ओबीसी छात्रों का मानना है कि सामान्य वर्ग में ५१ सीटों के लिए केवल ३४ प्रतिशत ही जनसंख्या होने से प्रतिस्पर्धा में कमी आ गई है, जबकि ओबीसी वर्ग में रहकर २१ प्रतिशत सीटों के लिए प्रदेश की आधी जनसंख्या से जूझना पड़ रहा है। विधि एवं जाति विशेषज्ञों के मुताबिक अगर ओबीसी के छात्र अपना वर्ग छोड़कर सामान्य वर्ग से प्रतियोगी परीक्षा देंगे तो आरक्षण की व्यवस्था बिगड़ जाएगी।

माना जा रहा है कि इस बार आरएएस-प्री के रिजल्ट में सामान्य से अधिक ओबीसी के कट ऑफ मार्क्‍स आना भी आरक्षण की व्यवस्था बिगड़ने का संकेत है। आरएएस-प्री मे सामान्य वर्ग से अधिक कट ऑफ मॉर्क्‍स ओबीसी वर्ग के होने से इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि ओबीसी वर्ग का शैक्षणिक स्तर सामान्य वर्ग से बेहतर आ गया है।

>> पाला बदलेंगे ओबीसी छात्र :

आरएएस-प्री के रिजल्ट से 70 फीसदी ओबीसी वर्ग के छात्रों के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि ओबीसी कोटे से फार्म भरना फायदे का सौदा नहीं होगा। राज्य लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष जीएम खान का कहना है कि आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं में ओबीसी वर्ग के छात्र निश्चित तौर पर सामान्य कोटे से ही परीक्षा देंगे। इससे आरक्षण की व्यवस्था पर फर्क पड़ेगा।

>> कहना है-

गुर्जर आंदोलन के पीछे भी यही

-गुर्जर आरक्षण आंदोलन का मुख्य कारण यह भी था कि गुर्जर समाज के लोगों को यह बात समझ में आ गई थी कि ओबीसी वर्ग की जनसंख्या आधी हो रही है, जबकि उनके लिए रिजर्व कोटा केवल 21 प्रतिशत का है। इसलिए गुर्जर समाज ने ओबीसी कोटे से निकलने के लिए आंदोलन किया। अगर आरक्षित वर्ग सामान्य कोटे में आकर प्रतियोगिता परीक्षा देता है तो कानूनन नहीं रोका जा सकता। इस स्थिति से निबटने के लिए कानून बनाने की जरूरत है।
जसराज चोपड़ा, सेवानिवृत्त न्यायाधीश

>> आजादी के बाद जब ओबीसी वर्ग के आरक्षण का निर्धारण हुआ था, तब स्थिति अलग थी और अब अलग है। हालात सबके सामने हैं।

सामान्य कोटे से देंगे परीक्षा

>> आरएएस प्री में मेरे कट ऑफ मार्क्‍स २00 थे, लेकिन ओबीसी के कट ऑफ मार्क्‍स २0६ रहने से मेरा सलेक्शन नहीं हुआ। अगर मैं सामान्य वर्ग से फार्म भरता तो मेरा आरएएस-प्री सलेक्शन हो जाता। मैंने तय किया है कि अगली बार आरएएस-प्री व अन्य परीक्षाएं सामान्य कोटे से दूंगा।
>> जितेंद्र सिंह, ओबीसी छात्र, भरतपुर
>> शशिकांत शर्मा, अध्यक्ष आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग


यह सच है कि ओबीसी वर्ग के छात्र सामान्य कोटे से परीक्षा देने की मंशा रखते हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो आरक्षण की व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।
डॉ. राघव प्रकाश, निदेशक, परिष्कार

अनसोचा सच


ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण अब लाभ का विषय नहीं रह गया है। आरक्षण देते और लेते वक्त किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कभी ओबीसी के कट ऑफ मार्क्‍स सामान्य से ज्यादा भी जा सकते हैं। आज यह सच्चई बन चुकी है।

अनजाना भय

ओबीसी में आपसी प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि इस वर्ग के छात्रों को पिछड़ने का भय है। वे सामान्य वर्ग से प्रतियोगी परीक्षाएं देना चाहते हैं। आरएएस-प्री में कई छात्रों को ओबीसी वर्ग में होने का नुकसान उठाना पड़ा।

अनदेखा क्यों!

विधि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ओबीसी छात्र सामान्य वर्ग से परीक्षाओं में शामिल होने लगे, तो न केवल सामान्य वर्ग प्रभावित होगा, बल्कि आरक्षण व्यवस्था भी बुरी तरह चरमरा जाएगी। इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

ओबीसी का भविष्य खतरे में

ओबीसी में आधी जनसंख्या पर केवल २१ फीसदी सीटें आरक्षित होने से ओबीसी वर्ग के छात्रों का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है। सामान्य कोटे की ५१ प्रश सीटों के लिए केवल ३४ प्रश जनसंख्या की प्रतिस्पर्धा को ओबीसी वर्ग के छात्र बेहतर मानने लगे हैं। जल्द ही रास्ता निकालना होगा।
-बीजी रावत, लॉ प्रोफेसर

ठोस कानून बनाने की जरूरत

आरक्षित वर्ग के लोग सामान्य वर्ग में दाखिल नहीं हो सकें, इसके लिए सरकार को ठोस कानून बनाने की जरूरत है। अगर सामान्य कोटे से ओबीसी वर्ग के छात्र प्रतियोगी परीक्षा देंगे तो सामान्य वर्ग बुरी तरह प्रभावित होगा और आरक्षण की व्यवस्था चरमरा जाएगी।
-पीके तिवाड़ी,अध्यक्ष, ओबीसी आयोग

सामान्य वर्ग से परीक्षा देने में लाभ

मैंने तय किया है कि अगली बार प्रतियोगी परीक्षा सामान्य वर्ग से देना उचित होगा। आरक्षण की व्यवस्था मे ओबीसी का २१ प्रतिशत कोटा है जबकि जनसंख्या आधे के करीब है। इसलिए सामान्य वर्ग की ३४ प्रतिशत जनसंख्या की प्रतिस्पर्धा में शामिल होना बेहतर होगा।
-धर्मेद्र सिंह,ओबीसी छात्र, जयपुर

No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...