BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, May 20, 2018

भारत के कुलीन वाम नेतत्व को उखाड़ फेंकना सबसे जरूरी पलाश विश्वास

भारत के कुलीन वाम नेतत्व को उखाड़ फेंकना सबसे जरूरी
पलाश विश्वास


उत्तर आधुनिकता और मुक्तबाजार के समर्थक दुनियाभर के कुलीन विद्वतजनों ने इतिहास,विचारधारा और विधाओं की मृत्यु की घोषणा करते हुए पूंजीवादी साम्राज्यवाद और समंती ताकतों की एकतरफा जीत का जश्न मनाना शुरु कर दिया था।लेकिन पूंजीवाद के गहराते संकट के दौरान वे ही लोग इतिहास,विचारधारा और विधाओं की प्रासंगिकता की चर्चा करते अघा नहीं रहे हैं।
दुनियाभर में प्रतिरोध,जनांदोलन और परिवर्तन के लिए वामपंथी नेतृ्तव कर रहे हैं।यहां तक कि जिस इराक के ध्वंस की नींव पर अमेरिका इजराइल के नेतृत्व में मुक्तबाजार की नरसंहारी यह व्यवस्था बनी,उसी इराक में वामपंथियों की सरकार बनी।
इसके विपरीत भारत में कुलीन सत्तावर्ग ने शुरु से वामपंथी आंदोलन पर कब्जा करके जमींदारों,रजवाडो़ं के कुलीन वंशजों का वर्गीय जाति एकाधिकार बहाल रखते हुए सर्वहारा और वंचित तबकों से विश्वास घात किया और दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के हितों के विपरीत सत्ता समीकरण साधते हुए भारत में वामपंथी आंदोलन के साथ ही प्रतिरोध और बदलाव की सारी संभावनाएं खत्म कर दी।
सिर्फ वंचितों को ही नहीं,बल्कि समूची हिंदी पट्टी को नजरअंदाज करते हुए वामपंथियों ने भारत में मनुस्मृति राज बहला करने में सबसे कारगर भूमिका निभाई।
वामपंथी मठों और मठाधीशों को हाल हाल तक ऐसे मौकापरस्त सत्ता समीकरण का सबसे ज्यादा लाभ मिला है।तमाम प्रतिष्ठानों और संस्थाओं में वे बैठे हुए थे और उन्होंने आपातकाल का भी समर्थन किया।बंगाल के ऐसे ही वाम बुद्धिजीवी और मनीषी वृंद वाम शासन के अवसान के साथ दीदी की निरंकुश सत्ता के सिपाहसालार हो गये।
सामाजिक शक्तियों के जनसंगठनों और मजदूर यूनियनों को भी वामपंथी नेतृत्व ने प्रतिरोध से दूर रखा।
भारत में अगर समता और न्याय पर आधारित समाज का निर्माण करना है तो ऐसे जनविरोधी वाम नेतृ्त्व को,सत्ता समर्थक मौकापरस्त मठों और मठाधीशों को उखाड़ फेंकने की जरुरत है।वंचितों और सर्वहारा तबकों के लिए वाम नेतृ्तव अपने हाथों में छीनकर लेने का वक्त आ गया है।
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनता के स्वतंत्रता संग्राम के कारण आजादी मिली है लेकिन जातिव्यवस्था का रंगभेद अभी कायम है जबकि ब्रिटेन की राजकुमार का विवाह भी अश्वेत कन्या से होने लगा है और इस विवाह समारोह में पुरोहित से लेकर संगीतकार,गायक तक अश्वेत थे।इसके विपरीत भारत में जो मनुस्मृति अनुशासन कायम हुआ है,उसके लिए वामपंथ के जनिविरोधी कुलीन वर्गीय जाति नेतृ्तव,मठों और मठाधीशों की जिम्मेदारी तय किये बिना,समाप्त किये बिना भारतीय जनता की मुक्ति तो क्या लोकतंत्र,स्वतंत्रता,नागरिक और मानवाधिकार,विविधता,बहुलता की विरासत बचाना भी मुश्किल है।

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