BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, April 5, 2017

रामनवमी पर राम के नाम सशस्त्र बंजरंगी शक्तिपरीक्षण पलाश विश्वास



रामनवमी पर राम के नाम सशस्त्र बंजरंगी शक्तिपरीक्षण

पलाश विश्वास

आज एक अंतराल के बाद लिखने का मौका मिला है।

हम लगातार बंगाल,असम और पूर्वोत्तर में बिगड़ती हालात के बारे में किसी न किसी तरह आगाह करते रहे हैंं।त्रिपुरा के कामरेडों का खुल्ला बयान आने के बावजूद जब पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति खामोश है तो जाहिर है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों की कोईदिलचस्पी वैचारिक लड़ाई में नहीं है।

इसी के मध्य बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण का अभूतपूर्व सशस्त्र  शक्ति परीक्षण रामनवमी के पर्व पर हो गया।

मजे की बात तो यह है कि संघ परिवार के हिंदुत्व के इस सशस्त्र प्रदर्शन के जबाव में सत्ता दल ने बजरंगवली की बंगाल भर में व्यापक पूजा का आयोजन किया।

हिंदुओं के तैतीस करोड़ देवता और शायद इतने ही अवतार और बाबाओं की पूजा बंगाल में होती रही है।

शिव की पूजा बंगीय लोकसंस्कृति है तो बंगाल में बौद्ध काल के समांतर गौड़ के सम्राट शंसांक स्वयं शैव रहे हैं।

इसके अलावा बंगाल में महायान बौद्धमत के वर्चस्व के दौरान काली भक्त लगातार तांत्रिक पद्धति से पूजा करते रहे हैं।

राम और कृष्ण का कीर्तन बंगाल में कृत्तिवास के रामायण और काशीदास सके महाभारत के अनुवाद के साथ चैतन्य महाप्रभू के वैष्णव मत के सात करीब पांच सौ साल से प्रचलन में हैं।फिरभा बंगाल में सूफी संत फकीर बाउल के आंदोलनों का असर इतना ज्यादा रहा है कि धर्मांधता और धर्मोन्माद का महाविस्फोट विभाजन जैसी अभूतपूर्व त्रासदी के मौके पर पूरे बंगाल उसतरह नहीं हुआ जैसे पंजाब और समूचे उत्तर भारत में लगातार होता रहा है।

वह रुका हुआ महाधमाका अब कभी भी हो सकता है और धार्मिक ध्रूवीकरण की सत्ता राजनीति ने बंगाल के चप्पे तप्पे में बारुद सुरंगे बिछा दी हैंं।इसके लिएसिर्प संग परिवार को दोषी ठहराना गलत है क्योंकि पूरी राजनीति का ही केसरियाकरण हो गया है।सब मजहबी सियासत के आपस में लडने वाले भूखे शरीक हैं। इसके उलट इसे संघ परिवार की उपलब्धि मानी जानी चाहिए कि बंगाल के समूचे हिंदू जन मानस को उसने इतना राममय बना दिया जो बंगाल के इतिहास में अभूतपूर्व है।हिंदू अस्मिता के तहत उसने सारे बंगाल,सारे असम और समूचे पूर्वोत्तर का गायपट्टी की तुलना में ज्यादा प्रभावी और खतरनाक हिंदुत्वकरण कर दिया है और बाकी तमाम दल बी सत्ता समीकरण साधने में उसकी भरसक मदद करते दीख रहे हैं।

भविष्य में संघ परिवार से साथ इन दलों की या इन दलों से टूटे घटकों की मिलीजुली सरकार बन जाना असम और मणिरुर का सच हो सकता है और इससे पहले इस सच का चेहरा शायद त्रिपुरा में देखने को मिल जाये।

दरअसल, हिंदुत्व महोत्सव यह अभूतपूर्व आयोजन कुल मिलाकर रामनवमी के अवसर पर रामभक्ति की जगह बजरंगी शक्ति प्रदर्शन में तब्दील हो गया।इससे पहले बंगाल में दुर्गोत्सव का राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा है लेकिन मनुस्मृति विधान के सात इस मातृसत्ता का अवसान होने वला है और मनुस्मृति विधान लागू करने के लिए स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने तीर तरकश के साथ बंगाल में अवतरित हैं।

इस पर कास द्यान देने की जरुरत है कि हिंदू जागरण मंच और विश्व हिंदू परिषद ने पहलीबार अपनी सशत्र शक्ति प्रदर्शन किया है तो दीदी की वाहिनी भी बजरंगी बन गये।

आज बांकुड़ा में दीदी ने भाजपा पर धार्मिक ध्रूवीकरण का आरोप लगाते हुए यहां तक कहा कि दिन में सीपीएम और रात में बीजेपी।

तो वामपंथियों ने भी पलटवार करते हुए कह दिया की भाजपा के साथ दीदी की गुपचुप युगलबंदी से बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण तेज हो रहा है।

यानी संघ परिवार के खिलाफ बंगाल की राजनीति अब भी सत्ता की वोटबैंक राजनीति बनी हुई है और विचारधारा के स्तर संघ परिवार की विचारधारा के मुताबिक इस शस्त्र रामसुनामी का कोई मुकाबला नहीं हो रहा है।

कल हमारी अपने मशहूर फिल्मकार मित्र आनंद पटवर्धन से बात हुई थी, जिन्होंने रामंदिर आंदोलन पर 1992 में राम के नाम फिल्म बनायी थी।वे भी संघ परिवार का वैचारिक प्रतिरोध की बात कर रहे थे और राजनीतिक लामबंदी के तहत ममता बनर्जी और वामपंथियों के मिलकर बंगाल में हिंदुत्व के पुनरूत्थान के अश्वमेधी अभियान के प्रतिरोध पर जोर दे रहे थे।

अब वास्तव में ममता बनर्जी जब खुद बजरंगी वाहिनी तैयार कर रही हैं तो कहना ही होगा कि हिंदुत्व की राजनीति पर ही दांव लगा है और कुल मिलाकर संघ परिवार की जबर्दस्त सांगठनिक शक्ति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति में बाकी राजनीति से है।जबकि आस्था और विचारधारा दोनों स्तर पर बढत संघ परिवार को है और बाकी दल सिरे से निराधार हैं,जनका ताश महल कभी भी भरभराकर गिर सकता है।

इस बीच बंगाल में जमीनी स्तर पर भी संघ परिवार का नेतृत्व भाजपा पर कायम हो गया है। इसके तमाम छोटे बड़े नेता प्रशिक्षत स्वयंसेवक हैं और हम उनसे सहमत हो या न हों,वे वैचारिक तौर पर लड़ रहे हैं और हिंदुत्व उनकी विचारधारा है, जिसकी हमेशा बंगाल में मजबूत वैचारिक पृष्ठभूमि बनी रही है।

गौरतलब है कि 2014 से पहले तक भाजपा को करीब चार प्रतिशत वोट मिलते थे जो 2014 में 17 प्रतिशत तक हो गये और फिर विधानसभा चुनावों में दीदी केी सत्ता में वापसी के साथ  भाजपा का वोट फिर ग्यारह प्रतिशत के स्तर पर आ गया। इसतरह पिछले विधानसभा चुनावों के मतों के हिसाब से 2014 से पहले के मुकाबले भाजपा के वोट में सात प्रतिशत वृद्धि हुई है।जिसमें और इजाफा होना है।

बंगाल पंजाब की तरह विभाजन पीड़ित है और बंगाल के पढ़े लिखे तबके इस विभाजन के लिए गांधी,नेहरु और कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग और मुसलमानों को जिम्मेदार मानते हैं। पूर्वी बंगाल में जो दलित मुसलमान एकता रही है,वह हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के 1942 में बने गठबंधन से ही भंग हो गयी।

1947 से लगातार पूर्वी बंगाल से भारत आने वाले विभाजन पीड़ित शरणार्थी जो बंगाल में एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और जिसका दलित तबका मतुआ आंदोलन के जरिये अब भी संगठित है और उनकी जनसंख्या 28 से 30 प्रतिशत है, वे अपनी हर समस्या के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार मानते हैं।

भारत की राजधानी ब्रिटिश राज में ही  कोलकाता से दिल्ली में स्थानांतरित हो जाने के बाद बंगाल और कोलकाता का जो आर्थिक और औद्योगिक अधःपतन अब भी जारी है,जो बेरोजगारी का आलम है,उसके लिए पूर्वी बंगाल से आये शरणार्थी और पश्चिम बंगालमूल के, दोनों प्रकार के घोटि बांगाल बंगाली भारत विभाजन और कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग को जिम्मेदार मानते हैं।

इसीलिए संघ परिवार के मुसलमानों के खिलाफ घृणा अभियान से इसीलिए बंगाल,असम और समचे पूर्वोत्तर में इतना तेज केसरियाकरण हो रहा है।

हकीकत यह है कि बंगाल में जीवन के किसी भी क्षेत्र में और खासतौर पर राजनीति और सत्ता में राजनीतिक आरक्षण के बावजूद दलितों,पिछड़ों और आदिवासियों का कोई प्रतिनिधित्व न होने की वजह से गैर भाजपाई दलों से इन तबकों का तेजी से मोहभंग हुआ है और उतने ही तेजी से वे संघ परिवार के विभिन्न संगठनों में सक्रिय होते जा रहे हैं।

धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राजनीति में दलित विरोधी,पिछड़ा विरोधी और आदिवासी विरोधी वैज्ञानिक छुआछूत संघ परिवार की समरसता की कामयाबी का बड़ा कारण है।जिस तरह अति दलित और अति पिछड़े उत्तर  भारत में जिन कारणों से संघ परिवार की पैदल सेना में तब्दील हैं,उन्ही परिस्थितियों और उन्हीं कारणों से बंगाल में बहुसंख्य बहुजन जनता का केसरियाकरण हो रहा है और बंगाल के राममय हो जाने की शायद यह सबसे बड़ी वजह है, जिसका हिंदुत्व विरोधी धर्मनिरपेक्षतावादियों को अहसास तक नहीं है।ने वे यह सामाजिक वर्चस्व को तोड़ना चाहते हैं।

इसके अलावा बंगाल में जिस तरह सवर्ण मानसिकता मनुस्मृति विधान के पक्ष में हैं और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कोलकाता हिंदू मिशन और हिंदू महासभा की पैठ जैसे शासक तबके में बनी हुई है, वामपंथियों ने भी उसे बदलने की कोई कोशिश नहीं की है।

जो लोग हिंदू महासभा और उन्नीसवीं सदी के नवजागरण और रवींद्र संस्कृति के खिलाफ लगातर बने रहे हैं,कहना होगा कि बंगाल में जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हींका वर्चस्व है।

नवजागरण का विरोध भी इसी सिलसिले में हो रहा है तो श्रीजात, मंदाक्रांता, रवींद्र, माइकेल, विद्यासागर से लेकर मनुस्मृति दहन करने वाले छात्रों के उग्र विरोध का कारण भी यही मनुस्मृति मानसिकता है,जो बंगाल का असली चेहरा है।

गौरतलब है कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर इसी बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गये थे लेकिन इसी बंगाल में वे आज भी यहां के दलितों की तरह अछूत बने हुए हैं और बंगाल में बहुजन राजनीति की कोई इजाजत नहीं मिलती और बहुजनों के,शरणार्थियों की कहीं सुनवाई तक नहीं होती तो संघ परिवार व्यापक पैमाने पर अंबेडकर के नाम उन्हें केसरिया बनाने में लगा है।

गौरतलब है कि सीपीएम के कामरेडों ने हैदराबाद कांग्रेस में दलित एजंडा पारित किया लेकिन उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और अपने 35 साल के शासन के दौरान उन्होंने किसी भी स्तर पर अंबेडकर की चर्चा नहीं की तो बहुजन समाज के लोग अब किसी भी स्तर पर वाम पक्ष के साथ नहीं है।

दूसरी तरफ ,सच्चर आयोग ने मुसलमानों को हैसियत बता दी तो वामपक्ष का मुस्लिम वोट बैंक दीदी के हवाले हैं।

ऐसे ही हालात में हिंदुओं को एकजुट करके बंगाल और बाकी भारत को दखल करने की संघ परिवार की राजनीति शबाब पर है।

यही संघ परिवार की बुनियादी पूंजी है और हिंदुत्ववादी संगठनों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नियंत्रित सगंठनात्मक ढांचा, संघ परिवार की बढ़ती हुई राजनीतिक ताकत  और केंद्र सरकार और केंद्रीय एजंसियों की मदद के साथ हिंदुत्व की विचारधारा के मुकाबले हिंदुत्व की इस राजनीति से धार्मिक ध्रूवीकरण रोक पाना मुश्किल ही नहीं, सिरे से नामुमकिन है।मनुस्मृति मानसिकता से कामरेड पहले मुक्त हो,तभी संग परिवारका वैचारिक मुकाबला संभव है,अन्यथा नहीं।यीपी के बाद बंगाल का भी यही सबक है,जिससे कोई कुछ सीख नहीं रहा है

बंगाल में वैष्णव आंदोलन के समय से हरे राम हरे कृष्ण की गूंज जारी है और कृत्तिवासी रामायण से लेकर राम जात्रा तक की लोक संस्कृति की परंपरा के मुताबिक राभक्त बंगाल में भी कम नहीं रहे हैं।

राम नवमी बंगाल में खूब मनायी जाती है। दक्षिणेश्वर के प्राचीन आद्यापीठ मंदिर में रामनवमी के मौके पर कुमारी पूजा का प्रचलन रहा है जो दुर्गोत्सव के दौरान बेलुड़ मठ की कुमारी पूजा से किसी मायने में कम भव्य नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस ने मनुष्य की स्वतंत्रता और संप्रभुता को सामंती तंत्र से मुक्त करते हुए राम की आस्था से उन्हें जो भक्तिमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी ,उसका प्रभाव भारत भर में हुआ है।यह रामभक्ति सांती प्रभुत्व के खिलाफ थी।समूचे भक्ति आंदोलन अपने आप में जनविद्रोह से कम नहीं रहा है।

अब उन्हीं सांमती तत्वों का प्रभुत्व मनुस्मृति के मुताबिक कायम करने के लिए राम की भक्ति का राजनीतिकरण राममंदिर आंदोलन के जरिये मजहबी सियासत में तब्दील है।इसके के बावजूद बंगाल में रामभक्ति का प्रदर्शन हिंदुओ ने कभी शक्ति प्रदर्शन बतौर नहीं किया है।जो आज हो गया है।

इसके मुकबले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में आरएसएस व विश्व हिंदू परिषद द्वारा पूरे राज्य में रामनवमी के आयोजन पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि वे राम को लेकर नहीं, रावण को लेकर राजनीति करें। बंगाल में सभी धर्मों व वर्गों के लिए समान स्थान है। बंगाल में दंगा फैलाने वालों की कोई जगह नहीं है। बंगाल में हिंदी भाषी शांति से रहते हैं।

अगर ऐसा है तो बजरंगवली की पूजा किस राजनीति से हुआहै,दीदी ने इसका खुलासा नहीं किया है।

बहरहाल उन्होंने इस हिंदुत्व सुनामी को बंगाली हिंदी बाषी विवाद का रंगे देने की कोशिश में सवाल किया कि क्या बंगाल में किसी हिंदी भाषी का घर जलाने दिया गया है।फिर वायदा भी किया कि  कभी किसी का घर जलाने नहीं देंगे। बंगाल में हर जाति, बंगाली, हिंदी भाषी, मुसलमान, उर्दूभाषी सभी रहते हैं। छठ पूजा पर उन्होंने अवकाश की घोषणा की, लेकिन केंद्र सरकार ने नहीं किया।इस बयान का मतलब बूझ लें।

फिर उन्होंने यही भी  कहा कि उन्होंने  खुद हिंदू धर्म में जन्म लिया है तथा दुर्गा पूजा से लेकर विभिन्न पूजा आयोजन करती हैं और उनमें भाग लेती हैं।क्या यह हिंदुत्व नहीं है और इस हिंदुत्व के हथियार से वे संघ परिवार के हिंदुत्व का मुकाबला करना चाहती हैं तो कमोबेश वामपंथियों का भी तेवर हैं,जहां किसी विचारधारा की आहट तक नहीं है।

दीदी ने कहा है कि दंगा करने वाले नेताओं का हिंदु धर्म में कोई स्थान नहीं है। राम ने रावण वध करने के लिए पूजा की थी। शायद इसीलिए बजरंग वली की पूजा रामनवमी पर राम के सशत्र अभ्युत्थान के मुकाबले।

दीदी ने भाजपा नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि वह धमकी और चमक से नहीं डरेंगी। भाषा में भी सौजन्यता होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने आरोप लगाया था कि दक्षिणेश्वर में मंगल शंख व मंगल आरती उन लोगों ने बंद करा दिया था। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे दक्षिणेश्वर को लेकर भी राजनीति कर रहे हैं। राम को लेकर राजनीति कर रहे हैं। उन्हें जानना चाहिए कि दक्षिणेश्वर मंदिर का संचालन ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नहीं।

उन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव काभी  जिक्र करते हुए कहा कि शांति की बात करते हैं, लेकिन इ‍वीएम दखल ले लिया गया। इवीएम दखल की जांच होनी चाहिए तथा मशीन का सैंपल सर्वे कराया जाना चाहिए।

यह संघ परिवार के राजनीतिक प्रतिरोध का मजेदार उदाहरण है।मजा लीजिये।


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