BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, July 9, 2016

यह आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदुत्व दोनों के लिए महाविनाश है। अमेरिका में जो कुछ हो रहा है,उसका कुल आशय यही है। फिलहाल डलास में बारुदी सुरंग फटने का धमाका हुआ है। बांग्लादेश में फिर 20 जुलाई को आतंकी हमले की धमकी। उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद की वजह से मध्यपूर्व और अफ्रीका तबाह है जहां से दुनियाभर में शरणार्थी सैलाब अभूतपूर्व है।सद्दाम हुसैन को महिषासुर बन�

यह आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदुत्व दोनों के लिए महाविनाश है।

अमेरिका में जो कुछ हो रहा है,उसका कुल आशय यही है।

फिलहाल डलास में बारुदी सुरंग फटने का धमाका हुआ है।

बांग्लादेश में फिर 20 जुलाई को आतंकी हमले की धमकी।

उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद की वजह से मध्यपूर्व और अफ्रीका तबाह है जहां से दुनियाभर में शरणार्थी सैलाब अभूतपूर्व है।सद्दाम हुसैन को महिषासुर बनाकर अमेरिका ने ही इन आतंकी संगठनों को तेलकुंऔं पर कब्जा करने का अचूक हथियार बनाया तो ट्विन टावर धमाका हो गया और दुनियाभर के मीडिया को पालतू बनाकर विश्वजनमत को बंधक बनाकर अमेरिका ने एक के बाद एक मध्यपूर्व के देशों इराक, अफगानिस्तान, लीबिया,सीरिया,मिस्र को तबाह कर दिया।इससे पहले अमेरिका नें लातिन अमेरिकी देशों और मध्य अमेरिका के देशों के साथ यही सलूक किया और आज समूचा यूरोप युद्धभूमि है।


हम उसी अमेरिका और उससे भी खतरनाक इजराइल के पार्टनर हैं तो हमारा अंजाम क्या होगा और इस हिंदुत्व के आत्मघाती एजंडे का क्या होगा,इसे समझने के लिए डलास के वाल पर गौर करना बेहद जरुरी है।


इस पर भी गौर करें कि दुनियाभर के मुसलमानों ने उग्र इस्लाम का विरोध न करके इस्लामी राष्ट्रों के सत्तानाश का जैसा रास्ता बनाया,उसके नतीजतन दुनियाभर में मुसलमानों पर हमला हो रहा है।

ताजा नमूना बांग्लादेश है।


हम हिंदू भी मुसलमानों के नक्शेकदम पर उसी आत्मध्वंस के महाराजमार्ग पर दौड़ रहे  हैं।


डलास के हत्याकांड का असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं रंगभेद के गर्भ से निकले इस अंध राष्ट्रवाद के शिकार राष्ट्र राज्यों के सत्ता वर्चस्व को चुनौती की शक्ल में दुनियाभर में देर सवेर होना है।ब्रेक्सिट के साथ साथ यूरोप और अमेरिका में शरणार्थियों के लिए सारे दरवाजे बंद कर देने के नये उद्यम के साथ बांग्लादेश में हालात सारे यूरोप,मध्यएशिया,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में जिस तेजी से बन रहे हैं,इस दुनिया में अमन चैन, जम्हूरियत, मजहब, सियासत, इसानियत और अदब के लिए वह ट्विन टावर के विध्वंस से बड़ा खतरा है।




खतरे को ठंडे दिमाग से सोचिये और सशल मीडिया को गौर से देखिये कि कैसे यह सत्तावर्ग का ब्राह्मणवाद बहुजनों को ब्राह्मण जाति का दुश्मन बना रहा है।खुलेआम आंदोलन चल रहा है कि ब्राह्मण विदेशी है और ब्राह्मणों को भारत से खदेड़ दिया जाये और यह कोई गोपनीय एजंडा भी नहीं है ।


अमेरिका में जो हुआ उसकी वजह एकमात्र यही है अमेरिका और लातिन अमेरिका में जारी अश्वेतों के नरसंहार की निरंतरता।यह संकट गहराने के खतरे,रंगभेदी राष्ट्रवाद के विश्वव्यापी हो जाने की वजह से उसकी वैश्विक प्रतिक्रिया तेज होते जाने से अमेरिका ही नहीं,भारत समेत बाकी दुनिया को अपने शिकंजे में कसकर दुनियाभर में युद्ध और गृहयुद्ध के माहौल बना रहे हैं।भारत में हिंदुत्व अब अमेरिकी है।


रोहित वेमुला के मामले में जैसे हत्यारों को बचाने की और मामला रफा धफा करके केंद्रीयमंत्रिमंडल में सारे खास मंत्रालय सिर्फ ब्राह्मणों के हवाले करके बाकी लोगों को चिरकुट बना दिया गया है,उसके नतीजे भारत में दलितअस्मिता के अमेरिकी अश्वेत अस्मिता के आक्रामक तेवर की तरह उग्र हो जाने की पूरी आशंका है और फिर भारत में डलास जैसी घटना एकबार हो गयी तो होती ही रहेंगी।बहुजन आंदोलन फिलहाल शांतिपूर्ण है और उसके अब निरंतर दमन की वजह से जिहादी बन जाने का भारी खतरा है।


पलाश विश्वास


ब्रेक्सिट के जनमत संग्रह में हमने संप्रभु राष्ट्र,लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के मुद्दों पर सिलसिलवार चर्चा की है।यह इसका सकारात्मक पक्ष है।यूरोपीय यूनियन के बिखरने से अमेरिकी शिकंजे से यूरोप की मुक्ति की दिशा भी खुलती है।बाकी सबकुछ नकारात्मक है।जिसकी चर्चा तेज हो रहे घटनाक्रम के तहत हम नहीं कर सके हैं।सबसे बड़ा घातक परिणाम नस्ली रंगभेदी अंध राष्ट्रवाद की वैश्विक सुनामी है।ब्रिटेन में पुलिस और प्रधानमंत्री तक रंगभेदी नस्ली हिंसा की वारदातों में इजाफा से बेहद चिंतित है।


अब अमेरिका के डलास में कल जिस तरह उग्र वंचित प्रताड़ित अश्वेत अस्मिता का घात लगाकर हमला श्वेत वर्चस्व को लहूलुहान कर गया उससे दुनियाभर में पुलिसिया साम्राज्यवाद और मुक्तबाजार का बादशाह अमेरिका में गृहयुद्ध की नई शुरुआत हो गयी है और साफ जाहिर हो गया कि अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के दो दो कार्यकाल के बावजूद अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग का सपना साकार हुआ नहीं है बल्कि नस्ली राष्ट्रवाद से अमेरिका के पचास राज्यों में हालात दुनिया के किसी हिस्से से कम खराब नहीं है।यह अस्मिता राजनीति को खुली चेतावनी है।


बहरहाल डलास गोलीबारी के संदिग्ध की पहचान हो गई है। अमेरिकी मीडिया के मुताबिक, डलास गोलीबारी के संदिग्ध की पहचान 25 वर्षीय माइका जॉनसन के रूप में हुई है। खबर के मुताबिक वह श्वेत लोगों को मारना चाहता था। डलास पुलिस प्रमुख डेविड ब्राउन ने कहा कि डलास गोलीबारी मामले के संदिग्ध ने उन्हें बताया कि वह श्वेत लोगों, विशेष रूप से पुलिस कर्मियों को मारना चहता था। डलास पुलिस के प्रमुख डेविड ब्राउन ने बताया कि कुछ देर पहले इस छिपे हुए संदिग्ध से बातचीत बंद हो गई थी, जिसके बाद रोबोट के द्वारा एक बम दागकर उसे मार गिराया गया।


अमेरिकी प्रशासन ने गुरूवार को डलास शहर में हुई गोलीबारी की घटना पर औपराचारिक बयान जारी कर कहा है कि डलास में प्रदर्शन के दौरान पुलिसवालों पर गोलियां चलाने वाला एक ही शख्स था जिसने पांच पुलिसवालों की हत्या कर दी।अश्वेत लोगों पर हमले से दुखी इस शख्स ने पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। अमेरिकी इतिहास में यह पुलिस पर सबसे घातक हमले में से एक साबित हुआ है। पुलिस के मुताबिक हत्या करने वाला शख्स अश्वेत लोगों के साथ हो रहे व्यवहार से दुखी था और बदला लाने चाहता था।


बांग्लादेश के हगमलावरों के परिचय जैसे चौंकाने वाले हैं उसी तरह इस हमलावर के एक अन्य साथी लुई कांतो का बयान भी विस्फोटक है उसकी पृष्ठभूमि के मद्देनजर।


कांतो ने कहा कि जॉनसन का व्यक्तित्व अजीब सा था। कांतो ने फेसबुक पर लिखा, 'हम सभी जानते थे कि वह अजीब था लेकिन इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वह यह भी कर सकता है।'जॉनसन के सोची समझी साजिश के तहत पुलिसकर्मियों की हत्या करने से उसके परिवार के सदस्य हैरान हैं।


गौरतलब है कि  जॉनसन का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था या उसके किसी आतंकवादी समूह से संबंध नहीं था ।


वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने डलास में प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर हमले को विदेषपूर्ण कृत्य बताया है। मामले को लेकर बराक ओबामा ने डलास के मेयर से फोन पर बात की है और हमले की निंदा की है।


डलास के हत्याकांड का असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं रंगभेद के गर्भ से निकले इस अंध राष्ट्रवाद के शिकार राष्ट्र राज्यों के सत्ता वर्चस्व को चुनौती की शक्ल में दुनियाभर में देर सवेर होना है।ब्रेक्सिट के साथ साथ यूरोप और अमेरिका में शरणार्थियों के लिए सारे दरवाजे बंद कर देने के नये उद्यम के साथ बांग्लादेश में हालात सारे यूरोप,मध्यएशिया,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में जिस तेजी से बन रहे हैं,इस दुनिया में अमन चैन, जम्हूरियत, मजहब, सियासत, इसानियत और अदब के लिए,इससे बढ़कर आम लोगों की जान माल के लिए  वह ट्विन टावर के विध्वंस से बड़ा खतरा है।


सबसे घातक नतीजा तो जनांदोलनों पर होना है।ट्विन टावर विध्वंस के बाद दुनियाभर में और भारत में भी जन्मजात नागरिकता खत्म कर दी गयी और भारी तादाद में दुनियाभर में रातोंरात अपने ही देश में करोड़ों लोग विदेशी घोषित कर गये,जिनमें भारत में बसे करीब सात करोड़ विभाजन पीड़ित हिंदू बांगाली शरणार्थी शामिल हैं।जिनेस बाकी भारत की क्या कहें,पश्चिम बंगाल की भी कोई सहानुभूति नहीं है।


अब अमेरिका में अश्वेत जुलूस के साथ चल रहे श्वेत पुलिस पर हमले के बाद समजिये कि सलवाजुड़ुम विश्वव्यापी वैध हो गया।कहीं भी किसी भी आंदोलन को अमन चैन के लिए खतरा बताकर बेरहमी से कुचल देने का लाइसेंस सत्तावर्ग को मिल गया।इसके साथ ही जनता को कुचलने के तमाम कायदा कानून,जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका रोजगार नागरिक और मानवाधिकार खत्म करने के नरसंहारी अस्वमेध को भी वैधता मिल गयी है जो और व्यापक और बेरहम होगा।


वैसे 1991 के बाद भारत में लोकतंत्र और संविधान,नागरिक और मानवाधिकार निलंबित हैं।11 मई को होने वाली केंद्रीय कर्मचारियों की हड़ताल शुरु होने से पहले कुचल दी गयी है।इंसानियत के हक हकूक की लड़ाई और मुश्किल हो गयी है और सत्ता और निरंकुश।


अंध राष्ट्रवाद का रंगभेदी तेवर मनुष्यता और प्रकृति के लिए सबसे बड़ा खतरा है।हम भी हिंदू हैं जन्मजात और हिंदुत्व से हमारी दुश्मनी नहीं है।


हमारी जड़ों में ,हमारी संस्कृति और लोकसंस्कृति,हमारे माध्यमों और विधाओं में यह हिंदुत्व सर्वव्यापी  है।लेकिन हमारा हिंदुत्व आक्रामक उग्र हिंदुत्व नहीं है।


यह साझे चूल्हे की विरासत है।


दुनिया के इतिहास में भारत एकमात्र देश है,जहां से हमलावर फौजें दुनिया फतह करने निकली हो, ऐसा कभी हुआ नहीं है।


भारतीयता और भारत राष्ट्र का निर्माण हिंदुत्व के लोकतांत्रिक चरित्र की वजह से संभव हुआ है जिसने हजारों साल से विविधता और बहुलता,सहिष्णुता और मानवता के रास्ते इस भारत का निर्माण किया है।यही हमारा इतिहास हैय़यही संस्कृति और विरासत है और लोकसंस्कृति भी यही है तो आस्था भी यही है।


यही नहीं,वैदिकी हिंसा की वजह से भारतीय हिंदुत्व ने  गौतम बुद्ध के धम्म और पंचशील को अपनी राष्ट्रीयता का आधार बनाया है और इसीलिए दुनिया में दूसरी प्राचीन सभ्यताओं के मुकाबले में भारतीय सभ्यता अभी बनी हुई है,जिसकी वजह जाति व्यवस्था के जन्मजात अभिशाप,असमता और अन्याय की निरंतरता के बावजूद यह बेमिसाल लोकतंत्र है।वही लोकतंत्र अब निशाने पर है।


नवजागरण और भक्ति आंदोलन ने समाज सुधार के जरिये स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस हिंदुत्व को और उदार बनाया है। वह सिलसिला जहां शुरु हुआ वहीं खत्म हुआ है और हम हिंदुत्व के नाम ब्राह्मणवाद और वैदिकी  हिंसा के शिकंजे में हैं।


उदार लोकतांत्रिक हिंदुत्व का ही  नतीजा है कि भारत में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व गांधी,नेहरु और सुभाष के साथ तमाम हिंदू नेता ही कर रहे थे।एकमुशत हिदू महासभा और मुस्लिम लीग के उत्थान से भारत विभाजन हो गया और उसके बावजूद भारत में सामाजिक क्रांति की दिशा में पहल की हुई होती या भारतीय समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता,साम्यवाद और प्रगतिवाद ने जाति उन्मूलन के एजंडा को अपनाकर स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत में समानता और न्याय की स्थापना की होती तो न यह हिंदुत्व का रंगभेदी पुनरूत्थान होता और न हम अमेरिकी उपनिवेश बनकर अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत में आयात करते।


यह आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदुत्व दोनों के लिए महाविनाश है।


अमेरिका में जो कुछ हो रहा है,उसका कुल आशय यही है।


इसी वजह से हम लगातार हिंदुत्व के इस राष्ट्रवाद का विरोध कर रहे हैं ,हिंदुओं का नहीं और न हिंदू धर्म का।


हिंदुत्व के हित में है कि हम अमेरिका बनने की अंधी दौड़ से बाज आये वरना सत्ता वर्ग के ब्राह्मणवाद से ब्राह्मण जाति के खिलाफ जो अभूतपूर्व माहौल बन रहा है,वह बेहद खतरनाक है।


रोहित वेमुला के मामले में जैसे हत्यारों को बचाने की और मामला रफा धफा करके केंद्रीयमंत्रिमंडल में सारे खास मंत्रालय सिर्फ ब्राह्मणों के हवाले करके बाकी लोगों को चिरकुट बना दिया गया है,उसके नतीजे भारत में दलितअस्मिता के अमेरिकी अश्वेत अस्मिता के आक्रामक तेवर की तरह उग्र हो जाने की पूरी आशंका है और फिर भारत में डलास जैसी घटना एकबार हो गयी तो होती ही रहेंगी।बहुजन आंदोलन फिलहाल शांतिपूर्ण है और उसके अब निरंतर दमन की वजह से जिहादी बन जाने का भारी खतरा है।


ऐसा देर सवेर होना तय है।अंबेडकर भवन तोड़ने के खिलाफ जो गुस्सा है,उसका अंदाजा अभी सत्तावर्ग को नहीं है।ममाम राम के हनुमान बनने के बावजूद,जाति समीकरण के समरस राजकरणके बावजूद,बड़ी तादाद में बहुजनों की वानर सेना में तब्दील होने के बावजूद बहुजनों का असमता और अन्याय के खिलाफ गुस्सा अमेरिकी अश्वेतों के मुकाबले कम नहीं है और निरंतर दमन,वंचना,उत्पीड़न और नरसंहार की सत्ता संस्कृति की वजह से पीर पर्वत सी हो गयी है लोकिन अब कोई गंगा निकलने वाली नहीं है बल्कि हजारों खून की नदियां दसों दिशाओं में भीतर ही भीतर उमड़ घुमड़ रही हैं लेकिल हिंदुत्व के चश्मे से उसे देखना मुश्किल है।


इस खतरे को जरा  ठंडे दिमाग से सोचिये और सशल मीडिया को गौर से देखिये कि कैसे यह सत्तावर्ग का ब्राह्मणवाद बहुजनों को ब्राह्मण जाति का दुश्मन बना रहा है।खुलेआम आंदोलन चल रहा है कि ब्राह्मण विदेशी है और ब्राह्मणों को भारत से खदेड़ दिया जाये और यह कोई गोपनीय एजंडा भी नहीं है ।सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा पोस्ट ब्राह्मणों के खिलाफ हैं ।लाइक और शेयर भी सबसे ज्यादा ऐसे पोस्ट हो रहे हैं।अश्वेतों की तरह बहुजन भी हिंसा पर आमादा हो गये तो न ब्राह्मणवाद बचेगा और न हिंदुत्व।


अमेरिका में जो हुआ उसकी वजह एकमात्र यही है अमेरिका और लातिन अमेरिका में जारी अश्वेतों के नरसंहार की निरंतरता।


रंगभेद का यह संकट जाति व्यवस्था के संकट की तरह है,इस पर गौर किये बिना हम अमेरिका और उसके पचास राज्यों में पक रही खिचड़ी का जायका ले नहीं सकते।


रंगभेद और जाति के समीकरण के मातहत  राजकरण और आर्थिक नरसंहार के गहराते जाने के खतरे,रंगभेदी राष्ट्रवाद के विश्वव्यापी हो जाने की वजह से उसकी वैश्विक प्रतिक्रिया तेज होते जाने से अमेरिका ही नहीं,भारत समेत बाकी दुनिया को अपने शिकंजे में कसकर दुनियाभर में युद्ध और गृहयुद्ध के माहौल बना रहे हैं। भारत में हिंदुत्व अब अमेरिकी है।यह बेहद गौरतलब मसला है।


मसलन भारत में सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के तहत कश्मीर और मणिपुर में जो फौजी हुकूमत है,उसके नतीजों पर हमने गौर नहीं किया है।अभी सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश है कि मणिपुर और कश्मीर समेत आफस्पा इलाकों में सैन्यबल कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाी न करें।बल प्रयोग न करें।सर्वोच्च न्यायलय ने पिछले दो दशक में मणिपुर में सभी डेढ़ हजार से ज्यादा फर्जी मुठभेड़ों की जांच का आदेश भी दिया है।


मणिपुर में सेना द्वारा फर्जी एनकाउंटर के आरोप वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। कोर्ट का यह फैसला सेना के लिए बुरी खबर है। कोर्ट ने कहा कि अगर AFSPA लगा है और इलाका भी डिस्टर्ब एरिया के तहत क्लासीफाइड भी है तो भी सेना या पुलिस ज्यादा फोर्स का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल कोर्ट को एनकाउंटर मामलों के ट्रायल का अधिकार है। सप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना और पुलिस के ज्यादा फोर्स और एनकाउंटरों की स्वततंत्र जांच होनी चाहिए। कौन सी एजेंसी ये जांच करेगी, ये कोर्ट बाद में तय करेगा।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना और अर्धसैनिक बल मणिपुर में 'अत्यधिक और जवाबी ताकत' का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह की घटनाओं की निश्चित रूप से जांच होनी चाहिए। जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने एमिकस क्यूरी को मणिपुर में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों का ब्योरा सौंपने को कहा है। पीठ ने कहा कि मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ के आरोपों की अपने स्तर पर जांच के लिए सेना जवाबदेह है।


बेंच ने कहा कि मणिपुर में कथित फर्जी एनकाउंटर्स के आरोपों की जांच सेना चाहे तो, खुद भी कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि वह नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन के इस दावे की जांच करेगी कि वह शक्ति विहीन है और उसे कुछ और पावर्स की जरूरत है।सुप्रीम कोर्ट जिस पिटिशन पर सुनवाई कर रहा था वह सुरेश सिंह ने दाखिल की है। सुरेश सिंह ने अशांत इलाकों में इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को स्पेशल पावर्स देने वाले आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट को निरस्त करने की मांग की है।


इस फैसले का स्वागत करते हुए कहना होगा कि मध्यभारत और देश के आदिवासी भूगोल में नस्ली गृहयुद्ध दावानल है और अकेले छत्तीसगढ़ में हजारों आदिवासी सीधे सुरक्षाबलों के निशाने पर हैं,क्योंकि मधय भारत के अकूत खनिज समृद्ध इलाकों में कारपोरेट हितों के लिए सलावाजुड़ुम का मतलब नरसंहार है।इसे हम भारतीय नागरिक सन 1947 से लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं कि भारत में विकास का मतलब विस्थापन और बेदखली है तो आदिवासियों और दलितों के नरसंहार का सिलसिला भी है यह।


बांग्लादेश में ढाका के आतंकी हमले के बाद सत्यजीत राय और नीरदसी रायचौधरी के गृहजिला किशोरगंज में ईद के मौके पर जो हमला हुआ और रमजान में दुनियाभर में उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद के जो हमले हुए,वे ज्यादातर इस्लामी राष्ट्रों में हुए और रोजा रखने वाले नमाज और कलमा पढ़ने वाले मजहबी बेगुनाह मुसलमान ही उसके शिकार हुए हैं।


बांग्लादेश में फिर 20 जुलाई को आतंकी हमले की धमकी दी गयी है।जबकि किशोर गंज के हमले में आम आजमी कोई मरा नहीं है।दो पुलिसवाले मुढभेड में बम धमाके में मारे गये और एक हमलावर मारा गया तो अपने घर की खिड़की से तमाशा देख रही एक हिंदू महिला झरना रानी भौमिक  क्रास फायर का शिकार हो गयी।


ढाका के हमले के बाद लगातार सत्तादललीग से इस जिहाद के तार जुड़ते नजर आ रहे हैं।सभी वारदातों को अंजाम देने वाले सत्तावर्ग के उच्चशिक्षित लापता लड़ाके हैं और किशोरगंज में जो आठ लोग गिर्फतार किये गये,वे सारे के सारे आवामी लीग के कार्यकर्ता और नेता हैं।हमलावर जिस घर में मोर्चा लगाये बैठे थे,वह घर आवामी लीग का नेता का है।फर्जा आतंक की यह राजनीति है।


राहत की बात है कि भारत ने इस खबर से इनकार किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का एक दल बांग्लादेश की यात्रा कर रहा है। भारत की ओर से यह खंडन तब आया है जब ऐसी खबरें हैं कि यह दल हाल में हुए हमलों की स्टडी करने के लिए ढाका में है, जिसने देश को हैरान कर दिया है। शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'केवल स्पष्ट करने के लिए कि NSG टीम के बांग्लादेश की यात्रा करने की खबरें झूठी हैं।' स्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ विदेश यात्रा पर हैं और वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका में हैं।


गौरतलब है कि विश्वविद्यालय से गायब एक छात्र की पहचान बांग्लादेश के शोलाकिया में विशाल ईद कार्यक्रम के दौरान हमले के बाद पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए एक संदिग्ध आतंकवादी के रूप में की गयी है। इस हमले में चार व्यक्तियों की जान चली गयी थी। नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी था अबीर रहमान। गौरतलब है कि  किशोरगंज जिले के शोलाकिया में बमों और अन्य हथियारों से लैस इस्लामिक आतंकवादियों ने ईद की नमाज के एक कार्यक्रम स्थल के समीप हमला किया था। उस समय वहां करीब दो लाख लोग ईद की नमाज के लिए पहुंचे थे।


भारत में भी आतंकवाद और हिसां की जड़ें फिर वहीं है और भारत भी लगातार बांग्लादेश बनता जा रहा है।


सीमापार भारतीय राज्यों में इन जेहादियों की गतिविधियां अबाध हैं।कोलकाता और समूचे बगाल के शहरी और ग्रामीण इलाकों में इन्ही तत्वों ने पिछले दो दशकों में भारी पैमाने पर संपत्ति खरीदी है और प्रोमोटर सिंडिकेट माफिया राज उन्हींके शिकंजे में हैं।


इस पर तुर्रा यह कि बांग्लादेश में सत्ता के पक्ष विपक्षे के सीधे निशाने पर दो करोड़ गैर मुसलमान भारत में घुसने के इंतजार में है।रानजीतिक,राजनयिक और प्रशासनिक तीनों मोर्चे पर फेल भारत सरकार बांग्लादेश की क्या मदद करेगी,जब हमारे तमाम राज्यों में हमने कुद बारुदी सुरंगे बिछा दी हैम।


फिलहाल डलास में ऐसे ही बारुदी सुरंग फटने का धमाका हुआ है।


उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद की वजह से मध्यपूर्व और अफ्रीका तबाह है जहां से दुनियाभर में शरणार्थी सैलाब अभूतपूर्व है।


सद्दाम हुसैन को महिषासुर बनाकर अमेरिका ने ही इन आतंकी संगठनों को तेलकुंऔं पर कब्जा करने का अचूक हथियार बनाया तो ट्विन टावर धमाका हो गया और दुनियाभर के मीडिया को पालतू बनाकर विश्वजनमत को बंधक बनाकर अमेरिका ने एक के बाद एक मध्यपूर्व के देशों इराक, अफगानिस्तान, लीबिया,सीरिया,मिस्र को तबाह कर दिया।


इससे पहले अमेरिका नें लातिन अमेरिकी देशों और मध्य अमेरिका के देशों के साथ यही सलूक किया और आज समूचा यूरोप युद्धभूमि है।अब एशिया की बारी है।


भारत सबसे बड़ा मुक्त बाजार है,यह दावा दोहराते हुए अघा नहीं रहा है सत्ता वर्ग लेकिन दरअसल भारत सबसे बड़ा आखेटगाह में तब्दील है।आखेट में मर रहे लोग,मारे जा रहे लोग अगर पलटकर खड़े हो गये,तो फिर क्या होगा,उसे समझने के लिए डलास शायद काफी नहीं है।


हम उसी अमेरिका और उससे भी खतरनाक इजराइल के पार्टनर हैं तो हमारा अंजाम क्या होगा और इस हिंदुत्व के आत्मघाती एजंडे का क्या होगा,इसे समझने के लिए डलास के वाल पर गौर करना बेहद जरुरी है।


इस पर भी गौर करें कि दुनियाभर के मुसलमानों ने उग्र इस्लाम का विरोध न करके इस्लामी राष्ट्रों के सत्यानाश का जैसा रास्ता बनाया,उसके नतीजतन दुनियाभर में मुसलमानों पर हमला हो रहा है।


ताजा नमूना बांग्लादेश है।


हम हिंदू भी मुसलमानों के नक्शेकदम पर उसी आत्मध्वंस के महाराजमार्ग पर दौड़ रहे  हैं।


कृपया दिलीप मंडल के इस पोस्ट पर गौर करेंः



Dilip C Mandal

दैनिक जागरण के मालिक ने अखिलेश यादव से पूछा था कि यूपी पुलिस में कितने यादव हैं. अब वे नरेंद्र मोदी से पूछ सकते हैं कि उनकी लगभग आधी कैबिनेट एक ही जाति से क्यों भरी हुई है. वित्त, विदेश, एचआरडी, रेल, रक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य, संसदीय कार्य, ट्रांसपोर्ट, कॉर्पोरेट अफेयर्स, केमिकल एंड फर्टिलाइजर, प्रवासी मामले....


यूनियन कैबिनेट में कुल 26 मंत्री हैं. जिनमें...

यादव = 00

कुर्मी, पटेल = 00

जाटव = 00

कुशवाहा, मौर्या = 00

मल्लाह, निषाद = 00

लिंगायत = 00

अंसारी, जुलाहा = 00

वन्नियार = 00

कपू = 00

नायर = 00....और संख्या की दृष्टि से ये भारत की कुछ सबसे बड़ी जातियां हैं. ऐसे में 26 में से 9 मंत्री एक ही जाति से बनाना और वह भी उस जाति से जिसकी संख्या काफी कम है, एक गहरे सामाजिक असंतुलन की ओर संकेत करता है.


यह जरूर है कि कैबिनेट मंत्रियों के पदों को सवर्णों से भरने के बाद, राज्य मंत्रियों यानी जूनियर मिनिस्टर बनाने में सामाजिक संतुलन का ध्यान रखा गया है. लेकिन वहां भी स्वतंत्र प्रभार देने में खेल किया गया है.


Dilip C Mandal's photo.


पिछली बार नरेंद्र मोदी कैबिनेट की गलत तस्वीर लग गई थी. उसे डिलीट करके इसे शेयर कर लीजिए...यह है असली तस्वीर. असुविधा के लिए खेद है.

यदि वर्तमान कैबिनेट की खुदाई कीजिएगा तो प्रत्येक ब्राह्मण कैबिनेट मंत्री के नीचे एक या दो निचली जाति का राज्यमंत्री दबा हुआ मिलेगा ।


ऐसे मानो किसी ब्राह्मण तीर्थस्थल के नीचे दबा हुआ कोई बौद्ध अवशेष हो ।


Rajendra Prasad Singh


फोटो - फेसबुक से प्राप्त. प्रकाश जावड़ेकर का नाम छूट गया है.


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