BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, February 2, 2015

मारे जाने के बाद भी जिंदा है लेखक

मारे जाने के बाद भी जिंदा है लेखक

Posted by Reyaz-ul-haque on 1/30/2015 05:20:00 PM

भाषा सिंह अपनी इस ताजा रिपोर्ट में बता रही हैं कि कैसे प्रभुत्वशाली विचारों, प्रथाओं और सामाजिक संरचनाओं को चुनौती देने वाले लेखकों की इस मुल्क में जीते जी 'हत्या' कर दी जाती है. यहां वे तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन से हुई अपनी हालिया मुलाकात को पेश कर रही हैं, और साथ ही वे उनके उपन्यास के बारे में हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा पैदा किए गए विवाद और इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी दे रही हैं. 

अब भी दिमाग मेरे दिमाग में 7-8 उपन्यास हैं। कई का तो पूरा नक्शा भी तैयार है, बस देर है उन्हें उतारने की। इन सभी उपन्यासों की विषयवस्तु एक से बढ़ कर है। मुझे लिखने में वैसे भी ज्यादा समय नहीं लगता। आपको पता है, अभी जनवरी में ही मेरे दो उपन्यास अलावायन और अर्द्धनारी चेन्नई पुस्तक मेले में आए और अच्छी प्रतिक्रिया मिली। ये दोनों उपन्यास मादोरुबागन की अगली कड़ी (सीक्वल) हैं।

यह बताते हुए जबर्दस्त उत्साह में आ जाते हैं 48 वर्षीय पेरुमल मुरुगन। उनके साथ बिताए करीब तीन घंटों में मुरुगन सिर्फ और सिर्फ अपनी लेखनी के बारे में बतियाते रहे। उसी में पूरी तरह से डूबते-उतराते रहे। उनसे कुछ भी और सवाल पूछती, उनका जवाब अपने किसी उपन्यास या कहानी के साथ समाप्त होता। वह धाराप्रवाह अपने रचना संसार के बारे में जिस तरह से बता रहे थे कि विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं तमिलनाडु के उसी चर्चित लेखक के सामने बैठी हूं जिन्होंने अपने लेखक की मृत्यु का ऐलान कर दिया है। उन्होंने किसी भी अपरिचित से मिलना बंद कर रखा है और खुद को अपने परिवार और परिचित दायरे में कैद कर रखा है। मुझसे और मेरे साथ गए कुछ मित्रों से वह सिर्फ इसलिए मिलने को तैयार हो गए क्योंकि हम दिल्ली से हजारों किलोमीटर का सफर तय करके सिर्फ उनसे मिलने पहुंचे थे। हालांकि फोन पर जब हमने उनसे मिलने की ख्वाहिश जताई थी तो उन्होंने कहा कि मिले बिना कोई रचनाकार जिंदा नहीं रह सकता, पर अभी स्थितियां अच्छी नहीं हैं। इस बात का अहसास नामाक्कल में पी. मुरुगन के छोटे से घर के बाहर पहुंचकर हो गया। पुलिस वहां तैनात थी। उनकी पत्नी और दोनों बच्चों के चेहरों पर जबर्दस्त तनाव था। उनकी पत्नी अलिरासी ने, जो खुद तमिल साहित्य की प्राध्यापक और कवि हैं, बस यह कहा कि हमारी जिंदगी में सब कुछ बदल गया। मुरुगन से जब उनकी अगली किताब के बारे में पूछा तो बहुत बोझिल स्वर में उन्होंने जवाब दिया, 'अब कागज नहीं मन पर लिखूंगा, यहां किसी का कोई दखल नहीं हो सकता।'

तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर से करीब 200 किलोमीटर दूर है नामाक्कल। बेहद शांत दिखने वाला यह शहर इस समय खदबदाया हुआ है और इसकी खदबदाहट का असर तमिलनाडु की राजनीति से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में महसूस हो रही है। पेरुमल मुरुगन के तमिल उपन्यासमादोरुबागन (2010) का 2014 में अंग्रेजी में तर्जुमा पेंगुइन प्रकाशन से वन पार्ट वुमन नाम से आया। रातों-रात इस पर आर्श्चयजनक ढंग से हिंदुत्वादी और जातिवादी राजनीति गरमा गई। निश्चित तौर पर इसका संबंध राज्य में भाजपा और उग्र हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा सांप्रदायिक-जातिवादी ध्रुवीकरण तेज करने की कवायदों से है। ये अभियान वॉट्स-अप पर शुरू हुआ। इसकी शुरुआत की, गाउंडर जाति (जिससे खुद लेखक पी.मुरुगन आते हैं) की पार्टी कोंगुनाडू मक्कलकच्छी ने, जिसका राज्य में भारतीय जनता पार्टी से चुनावी गठबंधन रहा है। इस पार्टी के साथ विवादित उग्र संगठन हिंदू मुन्नानी और भाजपा ने नामाक्कल से लेकर चेन्नई तक, लेखक तथा उनकी किताब को निशाने पर लेकर हल्ला बोल दिया। स्थानीय प्रशासन ने इन उग्र संगठनों का साथ देते हुए, लेखक पेरुमल मुरुगन को तीन बैठकों (जनवरी 7, 9 जनवरी और 12 जनवरी) में बुलाया और उन पर दबाव बनाया, किताब वापस लेने और धमकाने की लंबी प्रक्रिया चलाई, जिससे आहत होकर पेरुमल मुरुगन ने 14 जनवरी को फेसबुक पर लिखा, 'लेखक पेरुमल मुरुगन मर गया। वह भगवान नहीं है, लिहाजा वह खुद को पुनर्जीवित नहीं कर सकता। वह पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करता। आगे से, पेरुमल मुरुगन सिर्फ एक अध्यापक के बतौर जिंदा रहेगा, जो वह हरदम रहा है।'

लेखक ने इन शब्दों के माध्यम से जिस गहरी पीड़ा और प्रतिरोध का इजहार किया, उसने साहित्यिक जगत में एक जबर्दस्त बेचैनी का संचार किया। देश भर में पी. मुरुगन के पक्ष में लेखक, कलाकार, बुद्धिजीवी बोलने लगे। चेन्नई में प्रगतिशील लेखक संघ ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की, जिसमें इस असंवैधानिक बैठकों में मादोरुबागनऔर वन पार्ट वुमन किताब के बारे में लिए गए फैसलों को खारिज करने की अपील की, अभिव्यिक्त की स्वतंत्रता को बचाने की मांग की गई। चेन्नई, बंगलूर से लेकर दिल्ली, जयपुर, कोलकाता तक में मुरुगन की किताब मादोरुबागन का पाठ किया गया। तमाम भाषाओं के लेखक मुरुगन के पक्ष में खड़े हुए और मैं मुरुगन हूं-जैसे अभियान भी चले।

इस तरह से नामाक्कल शहर इस समय चर्चा के केंद्र में आ गया है। उनकी किताब मादोरुबागनऔर उसके अंग्रेजी संस्करण वन पार्ट वुमन को कोयंबटूर शहर में दो घंटे ढूंढ़ने में नाकाम रहने के बाद समझ आया कि किसी किताब पर अघोषित प्रतिबंध कैसे लगाया जाता है। हालांकि एक पुस्तक विक्रेता ने कहा, इस हंगामे की वजह से मुरुगन की यह किताब और नामक्कल शहर दुनिया भर में मशहूर हो गया। इन तमाम बातों से बेहद विनम्र स्वर में बात करने वाले पी. मुरुगन वाकिफ हैं और उन्हें लग रहा है कि लेखन पर गहराया संकट जल्द नहीं हटने वाला है। जाति के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि यह मेरे लिए तो बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन समाज में एक बड़ा मुद्दा है। कैसे हम इससे बाहर आ सकते हैं, यह कोई नहीं जान पाया। हालांकि यह पेरियार की जमीन है, जिन्होंने जातिवाद, ब्राह्मणवाद और अंधविश्वास के खिलाफ ऐतिहासिक सफल आंदोलन चलाया लेकिन फिर भी जाति लोगों को संगठित करने का सबसे बड़ा औजार बनी हुई है। मैंने 2013 में पूक्कली (अर्थी) उपन्यास अंतर्जातीय विवाह पर होने वाली राजनीति पर ही लिखा था और इस उपन्यास को तमिलनाडु में अंतर्जातीय विवाह करने के बाद मारे गए दलित युवक इलावरसन और—को समर्पित किया था। यह किताब भी अंग्रेजी में अनुवाद हो रही है।

मुरुगन ने बताया कि तिरुचेंगोड गांव के एक गरीब भूमिहीन परिवार में जन्मे और खानदान के पहले शिक्षित व्यक्ति थे। इसी गांव के अर्धनारीश्वर मंदिर की एक प्रथा का जिक्र पी. मुरुगन ने अपने उपन्यास मादोरुबागन में किया है, जिसमें निस्संतान महिलाओं के लिए सहमति से किसी देवता से शारीरिक संबंध बनाने की छूट होती है। उपन्यास के इसी हिस्से को तिरुचेंगोडु की महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला और उनके चरित्र पर सवाल उठाने वाला बताया गया और इसके खिलाफ आवाज उठाने का आहृवान सभी हिंदुओं से किया गया। इस विवाद के बारे में पी. मुरुगन सीधे कुछ भी बोलने के बजाय, यह कहते हैं, 'मेरे सारे उपन्यास जमीनी हकीकत पर आधारित हैं। कल्पना का पुट साहित्य में होता है, लेकिन मैं हकीकत से जुदा होकर लिखने में विश्वास नहीं करता।'

अब तक 35 किताबें लिख चुके मुरुगम पेरियार, मार्क्स और अंबेडकर की विचारधारा से गहरे रूप से प्रभावित हैं। हालांकि वह किसी वामपंथी पार्टी से नहीं जुड़े हैं लेकिन खुद को मार्क्सवादी मानते हैं। अपने उपन्यासों में उन्हें सबसे प्रिय है सीजन्स ऑफ पाम, जिसमें उन्होंने एक दलित-अरुधंतियार भूमिहीन बंधुआ मजदूर की कहानी लिखी है। उन्होंने अब तक नौ उपन्यास लिखे हैं जिसमें से पांच पिछले पांच साल में आए।

बातचीत के दौरान अनगिनत लोगों की आवाजाही बनी रही। पेरियार के अनुयायी द्रविड़ कयगम के वालिएंटरों का दस्ता काली कमीज में लेखक के साथ मुस्तैद था। मुरुगन अभी इस विवाद पर कुछ बोलना नहीं चाहते, वह संकट कटने का खामोशी के साथ इंतजार करना चाहते हैं। सरकार वहां अन्नाद्रमुक की है और वह इसमें हिंदुत्वादी संगठनों को संरक्षण दे रही है, द्रमुक पार्टी के नेता स्टालिन लेखक के पक्ष में बयान देने तक सीमित रहे, वाम दल समर्थन में हैं। लेकिन मुरुगन की खामोशी उनके कई साथियों को चुभ रही है। तमिल लेखिका वासंती का कहना है कि मुरुगन को इस तरह से हथियार नहीं डालना चाहिए। हालांकि चेन्नई की महिला कार्यकर्ता के. मंजुला का कहना है कि हम मुरुगन के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने निस्संतान महिला के लिए विषम स्थितियों को उजागर किया। पी. मुरुगन के सहकर्मी प्रो. मुत्तूस्वामी का मानना है कि इस पूरे प्रसंग में जीत लेखक की हुई है। उनकी लेखनी विजयी हुई है। पूरे देश और दुनिया में लोगों का लेखक के पक्ष में आना इसका सबूत है।

तमिल साहित्य के जुझारू इतिहास में पहली बार किसी लेखक ने अपने लेखक की मौत की घोषणा की है। हालांकि इसे भी प्रतिरोध की उस अमर श्रृंखला के साथ ही जोड़ के देखा जा रहा है, जिसमें तमिल के प्रख्यात कवि भारतीयार ने कहा था, 'अगर एक व्यक्ति के पास खाने को अन्न नहीं है तो हम उस दुनिया को जला देंगे।'

मादोरुबागन पर क्यूं हंगामा

यह उपन्यास कोंगू अंचल में एक निस्संतान किसान दंपत्ति पोन्ना (पत्नी) और काली (पति) की दास्तां है, जिनमें बेहद प्रेम है। इस प्रेम पर बच्चा न होने की वजह से समाज और परिवार के ताने तथा दबाव कैसे कहर बरपाते हैं, इसका मार्मिक चित्रण है। इसमें तिरुचेंगोडु में स्थित शिव के अर्दनारीश्वर मंदिर में हर साल लगने वाले एक 14 दिन लंबे मेले का जिक्र है, जिसमें मान्यता है कि अंतिम दिन मेले में उपस्थित सभी पुरुष देवता हो जाते हैं और निस्संतान स्त्रियां किसी भी देवता के साथ समागम कर संतान प्राप्ति कर सकती हैं। मान्यता के अनुसार ऐसी संतानों को देवता का प्रसाद माना जाता है। इस ट्रैजिक उपन्यास में नायिका यहां जाती है। इसी हिस्से पर हिंदुत्वादी संगठनों ने सारा कहर बरपा किया।

हिंदी आउटलुक के 1-15 फरवरी 2015 अंक में प्रकाशित. साभार. 

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