BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, December 18, 2013

मीडिया ट्रायल और साजिश, नतीजा आत्महत्या…

मीडिया ट्रायल और साजिश, नतीजा आत्महत्या…

Khurshid anwar

और आखिरकार मीडिया-सोशल मीडिया ट्रायल ने एक और जान लेली…जिसकी जान गई उसको मीडिया-सोशल मीडिया दोनों ने ही अपराधी साबित कर दिया था, क़ानून के अपना काम करने से पहले ही एक शख्स पर आरोप लगे, और क़ानून के अपना काम करने से पहले ही उस शख्स को मीडिया-सोशल मीडिया ने सज़ा ही दे दी. सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अनवर के दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से खुदक़ुशी कर लेने की ख़बर मिलते ही बरबस राजेंद्र यादव याद आ गए और सीधे कहा जाए तो मीडिया-सोशल मीडिया ट्रायल से हाल के दिनों में जाने वाली ये दूसरी जान है.

खुर्शीद अनवर प्रकरण में सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली और संदेह पैदा करने वाली बात ये है कि इस मामले को पिछले 3 महीने से सोशल मीडिया में प्रोपोगेंडे की तरह प्रचारित किया जाता रहा. आरोप लगाने वालों ने आरोपी पर कम और कुछ और लोगों पर ज़्यादा आरोप लगाए. सूत्रों के मुताबिक पीड़ित लड़की का वीडियो मोदी समर्थक सामाजिक कार्यकर्त्री मधु किश्वर के घर पर लगभग 3 माह पहले शूट किया गया लेकिन उसको सार्वजनिक अब किया गया. सवाल ये है कि आखिर जिस लड़की को मधु किश्वर 3 माह पहले ही अपने दफ्तर ले जा कर वीडियो शूट करवा सकती थी, उसे एक एफआईआर के लिए क्यों तैयार नहीं कर पाई? यही नहीं जानकारी ये भी कहती है कि पीड़िता एफआईआर नहीं चाहती थी, साथ ही उसने अपने तमाम साथियों से किसी भी तरह की घटना को सार्वजनिक न करने का अनुरोध भी किया था. अगर ऐसा नहीं था तो फिर पिछले 3 माह से ये वीडियो शूट करने के बाद भी मधु किश्वर इसे लेकर पुलिस के पास क्यों नहीं गई. साफ है कि मंशा में कहीं न कहीं कोई खोट ज़रूर था.

mkishwar

मधु किश्वर

अब सवाल फेसबुक पर प्रोपोगेंडा करते रहने वाले लोगों पर भी है कि आखिर उनके पास इतने ही पुख्ता सबूत और जानकारी थे, तो वो इतने दिन से पुलिस के पास क्यों नहीं पहुंचे, इससे भी बढ़ कर सवाल इंडिया टीवी और जिया टीवी के संपादकों से है कि क्या वो अपने टीवी चैनलों को अदालत समझते हैं? जिया टीवी के नए नवेले सम्पादक जे पी दीवान के बारे में कुछ कहना बहुत ज़रूरी नहीं लेकिन रजत शर्मा क्या कभी इंडिया टीवी को पत्रकारिता करने वाला चैनल बनाना भी चाहते हैं या नहीं? क़मर वहीद नकवी, अमिताभ श्रीवास्तव समेत तमाम सार्थक पत्रकारों को इंडिया टीवी से जोड़ लेने के बाद भी क्या इंडिया टीवी को ये ही करना था? आपने एक पीड़िता के बयान को चलाया अच्छी बात है लेकिन क्या आपको टीवी पैनल में फासीवादियों के समर्थकों को बिठा कर आरोपी के पक्ष को बिना जांचे, बिना पुलिस की जांच आगे बढ़े, उसे दोषी करार दे देना उचित लगा? माफ कीजिएगा रजत शर्मा, लेकिन ये सैद्धांतिक और क़ानूनी दोनों तरीकों से अपराध है.

इस मामले में साफ तौर पर ये सवाल उठना चाहिए कि आखिर किस मंशा के तहत मोदीवादी एक्टिविस्ट पिछले 3 महीने से ये वीडियो दबा कर बैठी रहीं, और शातिराना ढंग से समाज में बने माहौल का फ़ायदा उठाने के लिए 16 दिसम्बर को ही जारी किया गया? आखिर क्यों किसी पर लगने वाले आरोपों को बिना जांच सच मान कर आरोपी को दोषी बना देने का षड्यंत्र रचा गया? क्या अदालत-पुलिस और क़ानून के अलावा किसी को भी फैसला सुना देने का अधिकार है? क्या महज टीआरपी हासिल करने के लिए किसी की भी जान को दांव पर लगाया जा सकता है? क्यों नहीं इंडिया टीवी, जिया न्यूज़ समेत मधु किश्वर और उनके साथियों के खिलाफ़ खुर्शीद अनवर की सार्वजनिक क्षति और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप दर्ज होना चाहिए? क्यों नहीं इंडिया टीवी के खिलाफ इस तरह के पुराने सभी मामलों की भी जांच होनी चाहिए? आखिर क्यों नहीं अब मीडिया-सोशल मीडिया ट्रायल पर रोक लग ही जानी चाहिए?

रजत शर्मा आप जवाब दें…क्योंकि मधु किश्वर तो जवाब देने से रहीं, न तो वो पत्रकार हैं और न ही दरअसल सामाजिक कार्यकर्ता…वो विशुद्ध राजनैतिक कार्यकर्ता है.



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