BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, October 29, 2011

मंदिर मस्जिद और सत्ता

http://www.samayantar.com/2011/04/27/mandir-masjid-aur-satta/

मंदिर मस्जिद और सत्ता

April 27th, 2011

संपादकीय

इस साल के पहले ही महीने में एक के बाद कई ऐसी घटनाएं घटीं जो हमारे समाज में धर्म के प्रति बढ़ती अंध आस्था, विवेकहीन श्रद्धा और आक्रामकता के साथ ही साथ राजनीतिक नेतृत्व की इस में सहभागिता को दर्शाती हैं। ये घटनाएं यह भी स्पष्ट कर देती हैं कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद, धर्म को लेकर हम किसी भी तरह के नियम-कानून में विश्वास नहीं करते। यह किस तरह से हमारे समाज के लिए घातक हो रहा है इसका ताजा प्रमाण केरल के शबरीमाला में भगदड़ में हुई सौ से अधिक मौतें हैं। शर्मनाक बात यह है कि इस तीर्थ स्थल में भीड़ के कारण होनेवाली यह पहली दुर्घटना नहीं थी। यह दुर्घटना मकर ज्योति नाम की ज्वाला को देखने के लिए मकर संक्रांति के दिन वहां इकट्ठी हुई एक करोड़, जी हां एक करोड़, लोगों की भीड़ के कारण हुई। इस ज्योति के बारे में कहा जाता है कि यह एक दैवीय परिघटना है और एक खास समय पर ही कुछ ही क्षणों के लिए नजर आती है।
माना यह सच है, तब भी प्रश्र यह है कि इतनी बड़ी संख्या में वहां लोग आए कैसे? क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह उतने ही श्रद्धालुओं को आने दे जिनकी जान-माल का वह निश्चित प्रबंध कर सकती है? देखा जाए तो भक्तों की इस तरह से बेलगाम भीड़ के किसी भी तीर्थ में पहुंचने की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसका कारण यातायात के साधनों की बढ़ी सुविधा और मास मीडिया द्वारा दिन रात इस तरह के अवसरों का अतिरेक वर्णन है। यह बात छिपी नहीं है कि आज धर्म व्यवसाय का एक बड़ा माध्यम बन गया है और इसे बढ़ाने में विभिन्न किस्म के स्वार्थ काम कर रहे हैं।
हम यह बात दोहराना चाहते हैं कि सारे देश में जितने भी तीर्थ स्थल हैं उन में श्रृद्धालुओं के जाने की संख्या निर्धारित होनी चाहिए। फिर चाहे वह कुंभ हो, बद्रीनाथ और केदारनाथ हो, हेमकुंठ साहिब हो, अजमेर शरीफ हो या शबरीमाला या कोई और धार्मिक स्थल। यह तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के अलावा स्थानीय निवासियों और मार्ग के निवासियों के लिए तो सरदर्द है ही पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है। दुनिया का कोई भी स्थान, विशेष कर नदी, प्रदूषित होने से कैसे बच सकती है अगर वहां एक करोड़ लोग जमा हो जाएंगे और नहायेंगे? और कुछ को छोड़ें , इतने लोगों का मल-मूत्र ही जो तबाही करेगा, उसकी कल्पना ही रोंगटे खड़े करनेवाली है। आखिर तीर्थ यात्रियों का कोटा राज्यवार निर्धारित करने में क्या परेशानी है?
पर शबरीमाला की घटना का एक और पक्ष भी है जो ज्यादा गंभीर है। दक्षिण के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार हिंदू में छपी रिपोर्टों से साफ हो जाता है कि यह ज्योति और जो हो दैवीय नहीं है। मकर ज्योति के चारों ओर एक छद्म प्रभामंडल गढ़ा गया है जिसके कारण केरल और आसपास के प्रदेशों की जनता वहां इकट्ठा होती है। सवाल यह है कि इस झूठ को इतने वर्षों से चलने क्यों दिया जा रहा है? सरकारी तौर पर इस बात की जांच कर आधिकारिक तौर पर स्थिति को स्पष्ट क्यों नहीं कर रही है? साफ है कि इसमें धार्मिक नेताओं के अलावा राज्य सरकार के भी हित शामिल हैं क्योंकि इससे उसकी अच्छी-खासी आय होती है। वैसे भी वोट राजनीति के चलते सरकारों में इतनी हिम्मत ही नहीं है कि वे इस तरह के अंधविश्वासों पर सीधे-सीधे प्रहार करें। उल्टा जब से देश में हिंदुत्ववादी शक्तियों ने धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करना शुरू किया है लगभग सभी संसदीय राजनीतिक दलों ने धर्म की किसी भी बुराई के खिलाफ बोलने की बात तो छोड़ उंगली उठाना भी छोड़ दिया है। यह कम शर्मनाक नहीं है कि इस राज्य में अर्से से कम्युनिस्ट पार्टियों का शासन रहा है और आज भी है।
इसी तरह की अनिश्चितता और अवसरवादिता से जुड़ा प्रसंग दिल्ली में न्यायालय के आदेश से गिराई गई एक मस्जिद और मंदिर का है। यह भी कम चकित करने वाला नहीं है कि वे धर्म जो अपने माननेवालों से कहते हैं कि ईमानदारी बरतें, जब पूजा स्थलों के नाम पर किसी सार्वजनिक जमीन को हथियाने का मामला सामने आता है तो सारे सिद्धांत भूल कर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। दुनिया भर में सभी धार्मिक स्थल और उनकी संस्थाओं के संचालन प्रशासनिक नियमों से नियंत्रित होते हैं। ऐसे में धर्म को आड़ बना कर कोई भी जमीन या दूसरी किसी चीज को घेरना या हथियाना दोहरा अपराध है। पहला धार्मिक नैतिकता के अनुसार और दूसरा देश के कानूनों के अनुसार।
दूसरी बात यह है कि सरकार उन पूजा स्थलों को जो शुद्ध जमीन घेरने की मंशा से अवैधानिक तरीके से बनाए गए हैं और सार्वजनिक जीवन में व्यवधान पैदा करते हैं तथा सतत तनाव का कारण बनते हैं, समय पर रोकती और तोड़ती क्यों नहीं है? इसका नतीजा यह हुआ है कि देश के लगभग सभी शहरों में , विशेष कर बड़े शहरों में, लाखों की तादाद में अवैध पूजा स्थल खड़े हो गए हैं। दिल्ली के प्रसंग से साफ हो जाता है कि हमारे नेता तात्कालिक लाभ के चक्कर में ऐसे किसी अवसर को नहीं गंवाते जो वोट बटोरने का संभावित अवसर प्रदान करती हो।
इस संबंध में जरूरी है कि सरकार विभिन्न धर्मों की प्रतिनिधि संस्थाओं से मिल कर सुनिश्चित करे कि कोई भी धर्म इस तरह से बने किसी भी धार्मिक स्थल को मान्यता नहीं देगा और सार्वजनिक रूप से उसकी आलोचना करेगा। इसके अलावा यह भी निश्चित किया जाना चाहिए कि कोई धार्मिक स्थल कहां बन सकता है और उसके लिए किन बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है, मसलन उसके पास कितनी जगह हो, आवासीय स्थल से उसकी कितनी दूरी हो उसका आकार क्या हो आदि। दिल्ली के हवाई अड्डे से लगी विशाल मूर्ति जो किसी भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है, इसके लिए सबक का काम कर सकती है।
मीडिया पर केंद्रित इस विशेषांक को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है। इसके युवा संपादक भूपेन सिंह ने जिस दृष्टि और श्रम से इसे संपादित किया है हमें आशा है वह हिंदी में मीडिया पर गंभीर चर्चा की शुरुआत करेगा। इस अंक में स्थानाभाव के कारण सामान्य सामग्री बहुत सीमित है पर हमें विश्वास है विशेष सामग्री जितनी विचारोत्तेजक है वह इस कमी को पूरा करेगी।

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