BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, July 17, 2010

बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा

बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा

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नौनिहाल शर्मा: भाग 27 : 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने मेरठ की पत्रकारिता का परिदृश्य ही बदल दिया था। पहली बार मेरठ के पाठकों को अपने शहर और उसके आसपास की खबरें इतने विस्तार से पढऩे को मिलीं। अपने बीच की हस्तियों का पता चला, जिनके बारे में दिल्ली के अखबारों में कुछ नहीं छपता था। मेरठियों को इन अखबारों की आदत पड़ गयी। इससे इन अखबारों का सर्कुलेशन तेजी से बढ़ा।

फिर शुरू हुई 'सर्कुलेशन वार'। इसकी योजना बड़े स्तर पर बनायी जाती। मध्यम स्तर इसके क्रियान्वयन की देखरेख करता। क्रियान्वित करने का जिम्मा होता निचले स्तर का। इस स्तर के लोग हॉकरों को पटाते कि भइया, हमारा अखबार ऊपर रखना। उच्च स्तर जरूरत पडऩे पर ही सामने आता।

हॉकरों को पार्टियां दी जातीं। उपहार दिये जाते। बड़े डीलरों के सामने यह सब होता, ताकि हॉकर अपने वादे से ना मुकरें। पहले तो हॉकरों को समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है। उन्हें इसका जरा भी अनुभव नहीं था। दिल्ली के अखबारों की 'सैटिंग' डीलर ही कर देते थे। हॉकर उनके हाथों की कठपुतली थे। किसी भी अखबार के सर्कुलेशन की घट-बढ़ का उन्हें कोई फायदा नहीं होता था। पर 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने खेल ही बदल दिया। बाजी धीरे-धीरे बड़े डीलरों के हाथों से निकलकर हॉकरों के हाथों में आने लगी। इसकी एक वजह हॉकरों की संख्या का बढऩा भी था।

दोनों अखबारों ने नये हॉकर बनाने का चलन शुरू किया। इन नये हॉकरों को सर्कुलेशन के खेल के नये नियम सिखाये गये। हॉकरों में भी गुट बन गये। दोनों अखबारों के धड़े बन गये। कई बार टकराव की नौबत आ जाती। तब डीलर ही बीच-बचाव कराते। दोनों अखबारों के सर्कुलेशन विभाग के लोगों के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती रहती। इसलिए वे कई बार सीमाएं भी लांघ जाते। तब मामला उच्च स्तर पर सुलझाया जाता। इस स्पर्धा में हॉकरों की बन आयी। वे अपना कमीशन बढ़ाते चले गये। आखिर दोनों अखबारों में शीर्ष स्तर पर फैसला किया गया कि अपने सर्कुलेशन वार में हॉकरों को शामिल ना किया जाये।

कई हॉकर नौनिहाल के दोस्त थे। उनसे नौनिहाल को सर्कुलेशन का सारा दंद-फंद पता चलता रहता था। इसके लिए वे महीने में एक चक्कर टाउन हॉल का लगा देते थे। कई बार मैं भी उनके साथ गया। वहां अंदर की बातें भी पता चल जाती थीं। एक बार एक हॉकर ने बेहद राज की बात बतायी। अमर उजाला के धड़े की जागरण की धड़े से बहस हो गयी। जागरण बोला, 'हमसे दो साल बाद आये हो मेरठ में। इसलिए हमेशा पीछे ही रहोगे सर्कुलेशन में। चाहे जितनी मर्जी कोशिश कर लो।'

जागरण ने जवाब दिया, 'ये पहले-बाद में आने का राग छोड़ो। तुम्हें कई दंगे मिल चुके हैं यहां जमने के लिए। हमें अभी केवल एक दंगा मिला है। दो-तीन दंगे और हो जाने दो। फिर बात करना सर्कुलेशन की।'

'हां-हां, देख लेंगे। दंगे की हमारी रिपोर्टिंग का जवाब है क्या तुम्हारे पास?'

'दिखा देंगे। जवाब भी देंगे। बस, हमें दो-तीन दंगे और मिल जायें।'

हमें ये पता चला, तो काटो खून नहीं। दंगों से पूरा शहर परेशान हो जाता था। जान-माल का नुकसान होता था। महीनों तक गरीबों का बजट बिगड़ा रहता था। रोज मजदूरी करके कमाने-खाने वालों को कर्ज लेना पड़ता था। वे कभी-कभी तो सालों तक उस कर्ज को चुका नहीं पाते थे। और अखबारों के सर्कुलेशन वाले इन्हीं दंगों को अपने लिए फायदेमंद मान रहे थे...

मेरा मूड ऑफ हो गया। नौनिहाल ने कमर पर धप्पा मारते हुए कहा, 'यार तू बहुत जल्दी इमोशनल हो जाता है। ये तो अपने धंधे की बात कर रहे हैं। इसे दिल पर लेने की क्या जरूरत है?'

'दिल पर क्यूं ना लिया जाये? इनकी संवेदनशीलता तो मानो खत्म ही हो गयी है।'

'ठीक है। तुझे अपने विभाग का ही उदाहरण देता हूं। जब किसी दुर्घटना में 50 लोगों के मरने की खबर आती है, तो हम भी कहते हैं- वाह, लीड मिल गयी।'

'हम खबर के महत्व पर प्रतिक्रिया करते हैं इस तरह। पर यह कभी नहीं चाहते कि ऐसी कोई दुर्घटना हो।'

'तो वे भी नहीं चाहते कि कभी दंगे हों। पर उन्हें यह लालसा जरूर रहती है कि दंगे हो गये, तो अखबार का फायदा हो जायेगा।'

'पर लालसा तो रहती है ना?'

'बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा है। आदर्शवाद ठीक है। पर और भी बहुत सी चीजें हैं। उनका भी महत्व है। सबके तालमेल से ही बात बनती है।'

'पर मैं तो पत्रकारिता में यह सोचकर आया था कि यह जन-सरोकार का पेशा है। इसमें संवेदनशीलता तो होनी चाहिए।'

'संवेदनशीलता पर धंधा नहीं चलता। धंधा नहीं चले, तो दुनिया नहीं चलती। अखबारों में स्पर्धा होगी, तो संवेदनशीलता पर ही आंच आयेगी। इसलिए इस पर भावुक होने की जरूरत नहीं है। अभी तो तूने कुछ नहीं देखा है। आगे-आगे हालात और बदलेंगे।'

'फिर तो पत्रकारिता मिशन न रहकर पेशा बन जायेगी।'

'बिल्कुल बनेगी। अब अखबार निकालने में बहुत पूंजी लगती है। उसे जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पूंजी जुटाने के बाद उस पर लाभ भी चाहिए। इसलिए बाजार की नब्ज पर हाथ रखना जरूरी है।'

'आप तो पूंजिपतियों की भाषा में बात कर रहे हैं।'

'मैं यथार्थवादी हूं। किसी भ्रम या झूठे आदर्शवाद में नहीं रहता। इसीलिए तुझे एकदम स्पष्टï तरीके से बता रहा हूं कि आदर्शवादी होने के बजाय व्यावहारिक बनना जरूरी है।'

'यह पलायन नहीं है क्या?'

'किससे पलायन और कैसा पलायन?'

'सच्चाई से। अखबार पर आम पाठक बहुत यकीन करता है। क्या ऐसा करके हम उसके भरोसे को नहीं तोड़ेंगे?'

'भरोसे को तोडऩे की भी बात नहीं है। मैं झूठी खबरें छापने की बात तो कर नहीं रहा। खबर की सच्चाई के लिए तो मैं आखिरी सांस तक लडऩे को तैयार हूं। पर कोरे आदर्श की आड़ में यथार्थ से भी तो आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं।'

'गुरू, आज पहली बार तुम्हारी बातें मेरे गले नहीं उतर रहीं। तुम्हारा अंदाज कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है।'

'यह मुद्दा बेहद जटिल है। लंबी बहस मांगता है। फिर कभी इस पर लंबी चर्चा करेंगे।'

नौनिहाल 1980 के दशक में यह सब कह रहे थे। तब मैं उनसे सहमत नहीं था। आज मैं इस बात को सोलह आने सच मानता हूं, पर वे हमारे बीच नहीं हैं...

... और आज आलम ये है कि मीडिया में हर चीज सैलिब्रेट कर ली जाती है। गुजरात के दंगे, उड़ीसा में ईसाइयों पर हमले, सुनामी, मुम्बई में 26 जुलाई 2005 की बाढ़, 11 जुलाई 2006 के ट्रेन विस्फोट, 26 नवम्बर 2008 का आतंकवादी हमला, ऑनर किलिंग, आरुषि हत्याकांड और मॉडल विवेका बाबाजी की आत्महत्या... सूची अंतहीन है ... और इन सबको मीडिया ने सैलिब्रेशन में तब्दील कर लिया।

नौनिहाल ने पत्रकारिता का कोई कोर्स नहीं किया था। उनका कोई गुरु भी नहीं था। फिर भी वे न केवल अच्छे पत्रकार बने, बल्कि दर्जनों युवा पत्रकारों को, सच कहा जाये तो, कलम पकड़कर लिखना भी सिखाया। पर इस सबसे बड़ी खूबी उनमें ये थी कि उनकी दृष्टि बहुत व्यापक और दूरगामी थी।

आज पेड न्यूज का जमाना है। मीडिया बाजार की धुन पर नाच रहा है। झूठे सपने दिखा रहा है। पाठक बेचारे परेशान। दर्शक भुवेंद्र त्यागीहैरान। अधर में लटकी है सबकी जान। और मीडिया कभी भी गा उठता है- मेरा भारत महान। नौनिहाल मीडिया के व्यावसायिक रुख के तो समर्थक थे, पर शायद वे मीडिया को बाजार की कीमत पर जनता के असली मुद्दों को छोडऩे से बहुत दुखी होते। उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि बीसवीं सदी की दूसरी दहाई तक मीडिया इतना गिर जायेगा!

लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है. वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क bhuvtyagi@yahoo.comThis e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it के जरिए किया जा सकता है.



Govt again on muzzle media move

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NK Singh: Task Force presents its Black draft : "A judge cannot sit in his own judgment" thus goes the argument preferred by the Union Information and Broadcasting Ministry officials who have prepared a draft for regulating media under the soothing  phrases like "co-regulation" "independent body" and Broadcast Authority.

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ये अंगुली कटा कर शहीद कहाने वाले

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: हेडलाइंस टुडे पर कथित हमला : भोपाल में एक थे (पता नहीं अब हैं या नहीं) राजा बुन्देला. उनकी एक कथित फिल्म थी 'प्रथा'. फिल्म में तथाकथित तौर पर हिंदू भावनाओं को भड़काने का मसाला था, जैसा कि बुंदेला जी का स्वयम्भू मानना था. लेकिन सवाल है कि दर्शक का जुगाड कैसे हो? अच्छी-भली फिल्मों को तो दर्शकों का टोटा झेलना पड़ता है या क्या-क्या ना सहना और झेलना पड़ता है तो आखिर 'बुंदेलों-हरबोलों' के मुंह कही कहानी सुनने की फुर्सत आजकल किसे?

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महाशय चिरकुट जी

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महाशय चिरकुट शब्द पढऩे में आपको जरूर कुछ अटपटा लग रहा होगा। वैसे तो चिरकुट शब्द लगभग सभी लोगों ने सुना  होगा पर 'महाशय चिरकुट' शायद पहली बार सुन रहे होंगे। हमारा यह नायक ऐसा ही है। उसको ऐसे कहना मेरी मजबूरी है। शायद इसके अलावा मेरे पास कोई और शब्द नहीं हैं जिससे इस 'महान' आदमी को नवाज सकूं। महाशय के महान कार्यों को कागजों पर उकेर रहा हूं तो ऐसा मत समझ लीजिएगा कि यह कार्य खुशी-खुशी करने जा रहा हूं। यह भी मेरी मजबूरी है।

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बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा

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नौनिहाल शर्मा: भाग 27 : 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने मेरठ की पत्रकारिता का परिदृश्य ही बदल दिया था। पहली बार मेरठ के पाठकों को अपने शहर और उसके आसपास की खबरें इतने विस्तार से पढऩे को मिलीं। अपने बीच की हस्तियों का पता चला, जिनके बारे में दिल्ली के अखबारों में कुछ नहीं छपता था। मेरठियों को इन अखबारों की आदत पड़ गयी। इससे इन अखबारों का सर्कुलेशन तेजी से बढ़ा।

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हेडलाइंस टुडे और राहुल कंवल का उद्धार

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SN Vinod: निंदनीय है पत्रकारिता पर हमला, किन्तु...! : खबरिया चैनल 'आज तक' कार्यालय पर संघ कार्यकर्ताओं के हमले को जब पत्रकारिता पर हमला निरूपित किया जा रहा है तो बिल्कुल ठीक। पत्रकारों की आवाज को दबाने, गला घोंटने की हर कार्रवाई की सिर्फ भत्र्सना भर न हो, षडय़ंत्रकारियों के खिलाफ दंडात्मक कदम भी उठाए जाएं। दंड कठोरतम हो।

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झंडेवालान पर भेड़िया आया....

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: बेनामी की टिप्पणी-2 : भेड़िया आया.... शाम को एक एसएमएस आया कि झंडेवालान पर क्या करा दिया.... करा दिया ऐसे जैसे झंडेवालान हमारे दद्दा वसीयत में छोड़ गए थे और वहां कुछ भी हो ज़िम्मेदारी हमारी होगी.... खैर रास्ते में थे... तो घर पहुंच कर टीवी खोला... इतने तो समझदार हैं ही कि जानते हैं कि झंडेवालान में सबसे तेज़ चैनल का दफ्तर है....

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'लॉबिंग' के लिए खूब है पत्रकारों की मांग

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: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे- अंतिम : लाइसेंस निरस्तीकरण की व्यवस्था हो : बावजूद इन व्याधियों के, पेशे को कलंकित करनेवाले कथित 'पेशेवर' की मौजूदगी के, पूंजी-बाजार के आगे नतमस्तक हो रेंगने की कवायद के, चर्चा में रामबहादुर राय जैसे कलमची भी मौजूद थे.

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सात काम सौंप गए प्रभाष जी

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प्रभाष जी से मेरा पहला परिचय जेपी आंदोलन के समय में उस समय हुआ जब वे रामनाथ गोयनका के साथ जयप्रकाश नारायण से मिलने आए थे। उस समय की वह छोटी सी मुलाकात धीरे-धीरे प्रगाढ़ संबंध में बदल गई। बोफोर्स मुद्दे को लेकर जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठने लगी तब उन्होंने मुझे भारतीय जनता पार्टी में भेजने के लिए संघ के अधिकारियों से बात की। उनका मानना था कि जेपी आंदोलन के दौरान जो ताकतें कांग्रेस के खिलाफ सक्रिय थीं, उन्हें फिर से एकजुट करने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वीपी सिंह की सरकार बनने के पहले और बाद में भी मेरा उनसे लगातार संपर्क बना रहा।

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भारतीय मीडिया

अमर उजाला से पुष्पेंद्र शर्मा का इस्तीफा

: गाजियाबाद एडिशन के संपादक थे : अमर उजाला ने अपना एक पुराना पत्रकार खो दिया है. अमर उजाला, गाजियाबाद के संपादक पुष्पेंद्र शर्मा के बारे में सूचना आ रही है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. सूत्रों के मुताबिक पुष्पेंद्र अपनी उपेक्षा से नाराज थे. अमर उजाला में सभी संपादकों की सेलरी बढ़ी पर पुष्पेंद्र का न तो इनक्रीमेंट हुआ न प्रमोशन. पुष्पेंद्र को इसी साल जनवरी में अमर उजाला, आगरा के संपादक पद से हटाकर गाजियाबाद भेज दिया गया था.

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हिन्‍दुस्‍तान, इटावा में घमासान, तीन गए

: एक ने ज्‍वाइन किया कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस : एक रिपोर्टर के सहारे चल रहा अखबार : हिन्‍दुस्‍तान, इटावा कार्यालय में इन दिनों कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. ब्‍यूरो चीफ के रवैये से परेशान दो रिपोर्टर और एक कम्‍प्‍यूटर ऑपरेटर ने संस्‍थान को बॉय बोल दिया है. तीसरा रिपोर्टर बिना रिपोर्ट छुट्टी पर चला गया है. सभी ने अपनी परेशानी से कानपुर यूनिट के वरिष्‍ठ लोगों को अवगत कराया, सुनवाई न होने से नाराज रिपोर्टरों एवं कम्‍प्‍यूटर ऑपरेटर ने हिन्‍दुस्‍तान को नमस्‍कार कर लिया.

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Govt again on muzzle media move

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: Task Force presents its Black draft : "A judge cannot sit in his own judgment" thus goes the argument preferred by the Union Information and Broadcasting Ministry officials who have prepared a draft for regulating media under the soothing  phrases like "co-regulation" "independent body" and Broadcast Authority.

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4 लोगों के लिए 30 फोटोग्राफर!

मेरठ मीडिया का भी जवाब नहीं। कल कमाल हो गया। चार लोगों को कवर करने के लिए तीस प्रेस फोटोग्राफर पहुंच गए। ऐसा भी नहीं था कि चार आदमी सेलिब्रेटी हों या वे चार आदमी कोई अजूबा करने वाले थे। मेरठ का एक स्थानीय संगठन 'परिवार' के नाम पर 'तलवार' भांजता रहता है। यह संगठन जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरुकता लाने का दावा करता है। साल भर सरकार को ज्ञापन भेजता है कि देश की जनसंख्या बढ़ने से रोकें।

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'रांची में बहुत पैसा झोंक दिया है योर आनर'

: डीबी कार्प ने अदालत को बताया : स्टे वैकेट करने का अनुरोध किया : झारखंड में अखबार निकालने की भास्कर लगभग सारी तैयारियां कर चुका है पर अदालत ने संजय अग्रवाल के पक्ष में स्टे देकर फिलहाल रमेश चंद्र अग्रवाल और उनके बेटों की सांस तेज कर दी है. दैनिक भास्कर के यूपी-उत्तराखंड के मालिक संजय अग्रवाल ने पिछले दिनों आरएनआई द्वारा डीबी कार्प के पक्ष में दिए गए फैसले के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत से स्टे हासिल किया था.

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आजतक के क्राइम रिपोर्टर कमल की मौत

कमल शर्मा को सिर्फ क्राइम रिपोर्टर कहना उचित न होगा. उन्हें जानने वाले लोग उन्हें 'दिल्ली की क्राइम रिपोर्टिंग का बादशाह' कहते थे. ब्रिलियेंट. लेबोरियस. चौबीसों घंटे चौकन्ने. कोई छुट्टी नहीं. खबर आते ही स्पाट पर. खबर मिलते ही आफिस में. ऐसे कमल शर्मा हमारे बीच नहीं रहे. कहने वाले कहते हैं कि अतिशय काम, अतिशय तनाव, अतिशय मोबाइल पर बातचीत से वे न्यूरो प्राब्लम के शिकार हो गए थे. पिछले कई महीनों से उनका इलाज चल रहा था.

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जागरण का न्यूज रूम इनपुट-आउटपुट में बंटा

: खबरें लाने वाले इनपुट हेड के अधीन होंगे: खबरें संपादित करने वाले व पेज बनाने वाले आउटपुट के हिस्से : कुशल कोठियाल उत्तराखंड का स्टेट हेड घोषित किए जाने की सूचना : दैनिक जागरण ने भी अब न्यूज चैनलों वाले सिस्टम को अपना लिया है. न्यूज रूम में दो विभाग होंगे. इनपुट और आउटपुट. खबरें लाने वाले लोग इनपुट में. खबरें संपादित कर पेजीनेशन करने वाले लोग आउटपुट में. इस सिस्टम को लागू करने की कवायद दैनिक जागरण में जोरों पर है.

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बाहर सब्जी दुकान अंदर प्रेस क्लब का सामान

चलिए आपको प्रेस क्लब बस्ती घुमा लाते हैं। जरूरी नहीं कि बस्ती जनपद के बारे में आप जानते हों। थोड़े आलोचक-समालोचक किस्म के होंगे तो शायद आचार्य रामचंद्र शुक्ल को जानते होंगे। आचार्य शुक्ल का यह गृह जनपद है। यहीं के अगौना नामक ग्राम में वह जन्म लिये थे। खैर, मूल विषय से आचार्य प्रवर का कोई सम्बंध नहीं है। लेकिन परिचय के लिए बताना जरूरी समझा गया। अब आपको हम सड़क मार्ग से बस्ती ले चलते हैं।

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सूखे को सैलाब बताने वाला उर्दू अखबार

: झूठी खबर या बदनाम करने की साजिश! : 9 जुलाई के उर्दू राष्ट्रीय सहारा में बिहार के पृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित हुई। किशनगंज से लिखी गयी इस खबर में कहा गया है... ''दक्षिण बिहार के ठाकुर गंज ब्लॉक के पूबना नदी का पुश्ता टूट जाने से हज़ारों घर बह गए हैं और बेशुमार लोग खुले आसमान के नीचे ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। तेज़ आँधी और बिजली के फ़ेल जाने की वजह से कश्ती से जो संपर्क था वह भी टूट गया है जिससे प्रभावित लोगों का जीवन बिल्कुल थम गया है।

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ये अंगुली कटा कर शहीद कहाने वाले

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महाशय चिरकुट जी

महाशय चिरकुट शब्द पढऩे में आपको जरूर कुछ अटपटा लग रहा होगा। वैसे तो चिरकुट शब्द लगभग सभी लोगों ने सुना  होगा पर 'महाशय चिरकुट' शायद पहली बार सुन रहे होंगे। हमारा यह नायक ऐसा ही है। उसको ऐसे कहना मेरी मजबूरी है। शायद इसके अलावा मेरे पास कोई और शब्द नहीं हैं जिससे इस 'महान' आदमी को नवाज सकूं। महाशय के महान कार्यों को कागजों पर उकेर रहा हूं तो ऐसा मत समझ लीजिएगा कि यह कार्य खुशी-खुशी करने जा रहा हूं। यह भी मेरी मजबूरी है।

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'इंडिया न्यूज प्रबंधन को चापलूसों ने घेर रखा है'

एडिर, भड़ास4मीडिया, मान्यवर आपके न्यूज़ पोर्टल में खबर लगी की 'कमल इंडिया न्यूज़ से कार्यमुक्त'. लेकिन कृपया ऐसी खबर लगाने से पहले आप एक बार हमसे संपर्क करने की कोशिश कर सच्चाई जानते. खैर, जो भी हुआ अच्छा हुआ. इसी बहाने आपसे बात करने का मौका तो मिला. मैं बतौर स्टाफर इंडिया न्यूज़ हरियाणा में अम्बाला के लिए काम कर रहा था.  मैंने इसी चैनल के लिए कई धमाकेदार खबरें की जिनसे चैनल को टीआरपी भी मिली.

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फर्जी मुकदमों से परेशान हो गए हैं पत्रकार

मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में कार्यरत पत्रकारों को इस समय पुलिस जबरन फसा रही है. पत्रकारों पर एक के बाद एक फर्जी मुक़दमे लगाकर प्रताड़ित किया जा रहा है. जबकि कई बार पत्रकार समाचार संकलन करने के उद्देश्य से क्षेत्र में गए थे मगर बिना जाँच पड़ताल उन पर मुकदमे लगा जेल तक भेज दिया. विगत कई माह से कई पत्रकार पुलिस द्वारा लगाये गए फर्जी मुक़दमे से परेशान हैं. जिले की पुलिस ने पत्रकारों पर लूट व डकैती जैसे गंभीर अपराध भी लगाये हैं.

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हमले के विरोध में रिपोर्टिंग का बहिष्कार

हमले के विरोध में रिपोर्टिंग का बहिष्कार

भुवनेश्वर : ओडिशा में मीडियाकर्मियों के साथ हमलों की बढ़ रही संख्या के बावजूद राज्य सरकार द्वारा कोई कदम न उठाने के खिलाफ राज्य के मीडियाकर्मियों ने शुक्रवार को एक घंटा के लिए विधानसभा कार्यवाही की रिपोर्टिंग का बहिष्कार किया।

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आईपीएन ग्रुप की दूसरी वर्षगांठ पर समारोह

लखनऊ : पत्रकारिता करना उतना कठिन नहीं है, जितना मूल्यों की पत्रकारिता करना। खास तौर से तब जब लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ में भी अब बाजावारवाद की झलक देखने को मिलती है और बड़े व्यवसायिक घराने ही इसे चला रहे हैं। ऐसे में आईपीएन ने अपने को इस कसौटी पर ख़रा उतारा है। आईपीएन ने साबित किया है कि बिना पूंजी भी पत्रकारिता संभव है। यह बात आईपीएन ग्रुप की दूसरी वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि एस.सी. मिश्रा ने कही।

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बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा

बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा

: भाग 27 : 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने मेरठ की पत्रकारिता का परिदृश्य ही बदल दिया था। पहली बार मेरठ के पाठकों को अपने शहर और उसके आसपास की खबरें इतने विस्तार से पढऩे को मिलीं। अपने बीच की हस्तियों का पता चला, जिनके बारे में दिल्ली के अखबारों में कुछ नहीं छपता था। मेरठियों को इन अखबारों की आदत पड़ गयी। इससे इन अखबारों का सर्कुलेशन तेजी से बढ़ा।

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भास्कर, उज्जैन के संपादक विवेक का इस्तीफा

भड़ास4मीडिया को एक मेल के जरिए जानकारी दी गई है दैनिक भास्कर, उज्जैन के एडिटर विवेक चौरसिया ने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि इस खबर की अभी आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है. विवेक चौरसिया से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उनका मोबाइल स्विच आफ मिला. इस प्रकरण से संबंधित कोई जानकारी आपके पास हो तो bhadas4media@gmail.comThis e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it पर मेल कर सकते हैं. चाहें तो जानकारी नीचे कमेंट आप्शन में लिख उसे पोस्ट कर सकते हैं.

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कल्पतरू एक्सप्रेस का प्रकाशन लटका

: संसाधन जुटाने में देरी : दावे बड़े-बड़े पर जमीन पर कुछ नहीं : कइयों ने ज्वाइनिंग से मना किया : अखबार लांच होने में संशय : आगरा से प्रस्तावित कल्पतरू एक्सप्रेस के प्रकाशन में देरी हो रही है। ट्रायल के दौरान समाचार पत्र के दो पेज डमी बताकर बाजार में पेश कर दिए जाने से खिल्ली उड़ने के बाद प्रबंधन सकते में है। इसके बाद अखबार को कमजोर मानकर आगरा और मथुरा की दो-दो और अलीगढ़ की एक न्यूजपेपर एजेंसी ने अपनी सिक्योरिटी मनी वापस ले ली।

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छह पत्रकारों के विरूद्ध डकैती का मामला दर्ज

भोपाल : रीजनल हिन्दी समाचार चैनल टाईम टुडे के 6 पत्रकारों के विरूद्ध भोपाल के एमपी नगर थाने में डकैती का प्रकरण दर्ज किया गया है. प्तीन माह से टाईम टुडे के पत्रकारों-गैर पत्रकारों को वेतन नही मिला है. इसी विवाद के चलते मामला थाने पहुंचा. बताते हैं की जब चैनल के कर्मचारियों ने प्रबंधन से वेतन मांगा तो प्रबंधन के प्रतिनिधि और चैनल के प्रधान संपादक रमेश लाम्बा ने पत्रकारों के साथ अभद्र व्यवहार किया और जान से मारने की धमकी दी.

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हेडलाइंस टुडे और राहुल कंवल का उद्धार

हेडलाइंस टुडे और राहुल कंवल का उद्धार

: निंदनीय है पत्रकारिता पर हमला, किन्तु...! : खबरिया चैनल 'आज तक' कार्यालय पर संघ कार्यकर्ताओं के हमले को जब पत्रकारिता पर हमला निरूपित किया जा रहा है तो बिल्कुल ठीक। पत्रकारों की आवाज को दबाने, गला घोंटने की हर कार्रवाई की सिर्फ भत्र्सना भर न हो, षडय़ंत्रकारियों के खिलाफ दंडात्मक कदम भी उठाए जाएं। दंड कठोरतम हो।

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व्याख्यान बनाम मुकुल शिवपुत्र

व्याख्यान बनाम मुकुल शिवपुत्र

माहौल में एक आवाज़ गूंज रही थी और अंतस में कुछ चलचित्र से चल रहे थे.... पहली बार प्रभाष जी के घर पर था... उन्हीं पुस्तकों के बीच में बैठा जहां कई बार प्रभाष जी को कई बार बाईट देते... लाइव या तस्वीरों में देखा था... कागद कारे पढ़ते हुए कई बार जिस व्यक्ति के व्यवहार के बारे में कल्पनाएं की थी.... वो सामने थे और कुछ भी अलग नहीं था जैसे लिखते थे वैसे ही थे वो...

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झंडेवालान पर भेड़िया आया....

झंडेवालान पर भेड़िया आया....

: बेनामी की टिप्पणी-2 : भेड़िया आया.... शाम को एक एसएमएस आया कि झंडेवालान पर क्या करा दिया.... करा दिया ऐसे जैसे झंडेवालान हमारे दद्दा वसीयत में छोड़ गए थे और वहां कुछ भी हो ज़िम्मेदारी हमारी होगी.... खैर रास्ते में थे... तो घर पहुंच कर टीवी खोला... इतने तो समझदार हैं ही कि जानते हैं कि झंडेवालान में सबसे तेज़ चैनल का दफ्तर है....

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'रांची में बहुत पैसा झोंक दिया है योर आनर'

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Palash Biswas
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http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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